कवितावां / निशांत / कथेसर

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मुखपृष्ठ  » पत्रिकाओं की सूची  » पत्रिका: कथेसर  » अंक: अप्रैल-जून 2012  

निशान्त री कवितावां

निशान्त री कविता रो अेक न्यारो उणियारो है। वां री कविता, कवितावां री भीड़ मांय नीं गमै। वां खुद री भाषा सूं, खुद रै समै अर परिवेश नै कमायो है। इणी वास्तै अै कवितावां पाठक नै भरोसो दिरावै। निशान्त देखादेखी कविता करणियां में नीं है। अर ना ही वां कवियां में है जिका कोरै सबदां सूं कविता बणावै। म्हारो मानणो है, सबदां सूं कविता नीं बणै, कविता सूं सबद बणै। कई चोखा-चोखां री कविता अनुवाद-सी लागै। क्यूंकै वां कनै सबद है अनुभव कोनी। निशान्त री कवितावां अनुभव रै आंच में पक्योड़ी है। इणी वास्तै अै कवितावां पाठक नै खुद रै जीवण सूं जुड़्योड़ी-सी लागै। पाठक नै लागै जाणै आं कवितावां रै ओळावै वो खुद नै बांचै। असल कविता बा ई है जिकी पाठक नै साथै लेय'र चालै। अैड़ी कवितावां खुद री माटी सूं ई निकळ सकै। सफल कवि री कविता में उणरो इलाको दीखणो जरूरी है। जिको कवि खुद री भाषा सूं आप रै समै अर इलाकै नै बेजां दूहणो जाणै वो कवि ई समै अर इलाकै री सींव तोड़ सकै। समाजू सरोकारां सूं जुड़्योड़ी निशान्त री कवितावां में खाली चमत्कार कोनी, अेक ऊंडो अर लाम्बो असर है। इण अंक मांय निशान्त री कविता देवता थकां घणो हरख है। -सं.

मायड़भासा

मायड़भासा स्यूं कट्योड़ो
जद कठै ई सुणल्यूं म्हैं
बीं रो कोई
भूलेड़ो-बिसरेड़ो सबद
याद आ ज्यावै
गांव-गुवाड़
घर-आंगण
बै दिन
जकां मांय पक्यै करतो
दिमाग में ओ सबद
अर म्हैं
डूबण-तिरण लाग ज्याऊं
हरख रै अेक समंदर में।

जीवण सारू

हरेक आदमी अक्सर
अपणै आपनै कमजोर गिणै।
बा बात अळगी कै
पूरो आखतीजेड़ो
भड़कज्यै अर भिड़ज्यै
पण अक्सर सैंवतो रैवै चुपचाप।
खैर, आपां तो इन्सान हां
आपां रै तो देवतावां नै भी
याद दिरावण पर ई
याद आंवतो आप रो जोर
जियां कै हड़मानजी नै।
तो इस्यै मांय जरूरत होवै
आदमी नै याद दिरावण री कै
जिस्यो नाड़ी तंत्र तेरो है
बिस्यो ई है आगलै रो
कम नीं है तूं भी किणी स्यूं।

बै अर आपां

बै खेतां मांय
निपजै तो ई खावै।
आपां बाकी रा स्सै
लूटां-
पहाड़/ जंगळ/ नदी/ समंदर
धरती री कूख
अर सागै-सागै
बांनै भी।

पैनावो

पैंट-बुसरट पैर्यां
सै'र री सड़क माथै चालता
'रोबोट' जिस्या मिनखां बिचाळै
अेक धोती-कुड़तै आळै नै देख्यां
ठंडी पवन रो रूळो-सो बैग्यो
सारैकर।

नूंवी पीढ़ी

मिंदर सांमीकर
टिपती बगत
अेक मोट्यार आप रै
मोटरसाइकल री
टीं....टीं...बजाई
तो म्हैं सोच्यो-
इण स्यूं देवताजी
राजी हुया कै बिराजी?
बियां म्हैं थानै आप री बताऊं
जद म्हारै पड़ोसी रो छोरो
आप रै मोटरसाइकल री
फालतू मांय टीं...टीं...बजावै
तो म्हनैं बड़ी झाळ आवै।
उच्छब रै बावजूद
लुगाइयां
उगेर्या है गीत,
टेरी है बनड़ी।
खुसी मांय कूदण लाग्यो है
घर रो कूणो-कूणो,
पण उच्छब रै इण राग-रंग मांय
घर रो धणी
डूब्यो है चिंतावां मांय।
बीं रै कानां मांय तो
गीतां री भणकार
कदे-कदे ई पड़ै
थोड़ी-थोड़ी।
हो न हो
टांग'र
साइकल पर
लाम्बी-सी धजा
अेक गबरू
चाल्यो है
सालासर धाम।
फरूकती धजा
आवै बार-बार
आंख्यां आगै।
सड़क भरी बगै
साधनां स्यूं।
सोचूं-
आ अंध सरधा
ले न ल्यै कठैई
बीं री ज्यान!