कवितावां / रूमी / अनुवाद : जयनारायण त्रिपाठी / कथेसर

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(तेरवीं सदी में अफगानिस्तान में जलम्या सूफी संत मौलाना मुहम्मद जलालुद्दीन रूमी फारसी साहित्य रा नांमी लिखारा हुया। रूमी री आं कवितावां रा अनुवादक जय नारायण त्रिपाठी आईआईटी मुम्बई मांय पीएच.डी. स्कोलर अनै गंगापुर (भीलवाड़ा) रा रैवासी है। सो खास मेवाड़ी रळक इणरी भाषा रो फुटरापो बधावै।)

॥ चोर आंख्यां॥

चोर आंख्यां!
थां वी का रूप की चोरी कर दी,
अनै थानै सजा मली गी।
वा थानै देख्यो, फर गी,
अर अठा ऊं छेटी परी गी।

॥ पींजरो॥

थारा वास्तै
वो बणाई आखी धरती
कै अठै ऊं वठै रम्या कर।
थे बांध दीधो खुद नै ई पींजरा में
जीं नै कैवै थूं थारो घर!

॥ मोती॥

मौत ऊं डरपणी न लागै वानै, जो देख सकै
जिंदगी का छोटा’क टेम ऊं बानै।
हाल जावै चट्टानां, आ जावै लहरां तमाम, पण
सीप का मईनै को मोती, पड़्यो रैवै ठाम को ठाम।

॥ घणो उजळो॥

दीवो कस्योक भी व्है
सूरज का आगै नजर न आणो।
प्रेम और कई कोने, बस
वी अेक में मल जाणो।
ई वास्तै आव अठै, घुळ जा
पाणी में टपका की ज्यान।
बस दीखै चार्योमेर पाणी
रैवै न थारो, कई भी हेदाणञ्॥

॥ जिन्दगी॥

आपा आया वी मूं, जो है अणदेख्यो,
यो सब है वीको ई कर्यो।
आपा आया वी बाग मूं,
जो रैवै बारा ई मास हर्यो॥
ई लिये जाणो पड़ी, पाछो वठे ई,
बली’ अठे, कतरा भी पच लो।
या जिन्दगी और कई भी कोने
है बस एक खिण, आवा-जावा रे बचलो॥