कस्मे वादे प्यार वफा सब बातें हैं? / जयप्रकाश चौकसे

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कस्मे वादे प्यार वफा सब बातें हैं?
प्रकाशन तिथि :09 जनवरी 2017


बच्चों के खेलने के लिए काठा का घोड़ा होता है,जो अपनी जगह पर डोलते हुए गति का भ्रम मात्र देता है। इसे अंग्रेजी में रॉकिंग हॉर्स कहते हैं। शेखर कपूर की 'मासूम' में गीत था 'लकड़ी की काठी, काठी पर घोड़ा, घोड़े की दुम पर मारा हथौड़ा, घोड़ा दौड़ा दुम उठाकर दौड़ा दौड़ा।' शराबबंदी भी रॉकिंग हॉर्स की तरह है, जो समाज सुधार का भ्रम पैदा करती है। बिहार के नीतीश कुमार को नरेंद्र मोदी के पर्याय के तौर पर देखा जा रहा था परंतु वे तो गुजरात में हुई शराब बंदी के साथ बिहार की शराब बंदी को जोड़ते हुए नमो जाप करते ध्वनित हो रहे हैं। शराब बंदी से केवल अवैध शराब बेचने वालों को ही लाभ होता है। दुनिया के कई देश शराब बंदी की कसरत करते रहे हैं। एक दौर में हुकूमत-ए-बरतानिया ने भी यह स्वांग किया था। उन दिनों एक प्रख्यात लेखक चार्ल्स डिकेंस फ्रांस से अपने वतन लंदन लौटे थे। एयरपोर्ट पर कस्टम अधिकारियों ने उनसे पूछा कि कुछ लाए हैं, जिस पर कस्टम टैक्स लगे। उन्होंने इनकार करते हुए कहा कि उनके सूटकेस में केवल कपड़े हैं परंतु तलाशी लेने पर एक बोतल शराब निकली तो उन्होंने कहा कि यह नाइट कैप है। नाइट कैप उस कपड़े को कहते हैं, जो प्रकाश से बचने के लिए सोते समय लगाया जाता है। एक मायने में उन्होंने ठीक ही कहा था, क्योंकि यह लोकप्रिय मान्यता है कि शराब पीने से अच्छी नींद आती है। शरीर विज्ञान यह कहता है कि शराब का सेवन नैराश्य को बढ़ाता है। शराब कतई उत्साहवर्द्धक नहीं है। इस मामले में लोकप्रिय विचार ही वैज्ञानिक तथ्य पर भारी पड़ता है। कई लोगों के लिए गल्प ही सत्य की तरह होता है और सत्य को ही वे गल्प मानते हैं।

यह सर्वविदित है कि गुजरात में शराब बंदी के कारण वहां अवैध शराब का व्यवसाय दो परस्पर विरोधी सरगना करते थे और उन्होंने अपने व्यापारिक द्वंद्व को ही धार्मिक लड़ाई की तरह प्रस्तुत किया। संभवत: शाहरुख खान की 'रईस' की यही पृष्ठभूमि भी है। गुजरात व मध्यप्रदेश की सीमा के निकट के क्षेत्रों से ही शराब गुजरात में भेजी जाती है और इसी के दम पर वहां के ठेके असामान्य रूप से महंगे दामों में नीलाम होते रहे हैं। मध्यप्रदेश का आबकारी विभाग यह तथ्य जानता है गोयाकि अवैध शराब व्यापार को परोक्ष रूप से सरकारी मान्यता मिल जाती है।

देव आनंद अभिनीत 'शराबी' नामक फिल्म बनी थी जिसका केंद्रीय पात्र जतन करते हुए भी शराब पीना छोड़ नहीं पाता। याद आता है कि गुरुदत्त की बिमल मित्र के उपन्यास से प्रेरित फिल्म 'साहब, बीबी और गुलाम' में शराबी वेश्यागामी जमींदार पति से घर पर रहने का आग्रह करते हुए पत्नी शराब पीने लगती है परंतु जब पति सुधरने लगता है तब भी वह शराब छोड़ नहीं पाती। यह असहायता की भावना ही त्रासदी का असली कारण है।

विगत सदी के चौथे दशक में फिल्म अभिनेता चंद्रमोहन और मोतीलाल अभिन्न मित्र थे। एक दौर में चंंद्रमोहन की फिल्में असफल होती गईं और बंगला गाड़ी सब बिक गया। उसी दौरान मोतीलाल सफल होते गए। मोतीलाल की समृद्धि का यह हाल था कि वे जिस रंग का सूट पहनते, उसी रंग की कार उस दिन इस्तेमाल करते थे। एक दिन मोतीलाल अपने मित्र चंद्रमोहन से मिलने गए। उस समय वे शराब पी रहे थे परंतु उन्होंने मोतीलाल को पीने के लिए आमंत्रित नहीं किया। कुछ समय बाद मोतीलाल को ज्ञात हुआ कि कड़की के उन दिनों में चंद्रमोहन विदेशी शराब की बोतल में देशी ठर्रा डालकर पीते थे। उन्होंने अपने मित्र मोतीलाल को देशी ठर्रे से नुकसान नहीं पहुंचे, इसलिए नहीं पिलाई। आत्म ग्लानि से भरे मोतीलाल चंद्रमोहन से क्षमा मांगने गए परंतु देर हो चुकी थी। चंद्रमोहन की मृत्यु हो चुकी थी। ज्ञातव्य है कि के. आसिफ ने 'मुगल-ए-आजम' बनाने का प्रयास 1944 में ही किया था और उस संस्करण में चंद्रमोहन ही सलीम की भूमिका कर रहे थे। बाद में 1952 में के. आसिफ ने नए सिरे से 'मुगल-ए-आजम' बनाना शुरू की और 5 अगस्त 1960 को फिल्म प्रदर्शित हुई।

आज के दौर के सितारे शराबनोशी के वैसे दीवाने नहीं हैं जैसे पहले होते थे। आज के सभी कलाकार चुस्त-दुरुस्त शरीर बनाए रखने में यकीन करते हैं। आज का युवा फिल्म अभिनय क्षेत्र में आने के पहले जिम जाता है और मांसपेशियां मजबूत करा है। वह घुड़सवारी व तैरना सीखता है गोयाकि अभिनय को छोड़कर सब कुछ करता है। अभिनय के विषय में मान्यता है कि अभिनय सीखा नहीं जा सकता परंतु सिखाया जा सकता है अर्थात वह शास्त्र तो है परंतु गुरु से अधिक महत्व छात्र की लगन पर निर्भर करता है। इसका प्रशिक्षण रॉकिंग हॉर्स की सवारी की तरह है कि आप डोलते हैं परंतु उसी जगह पर रहते हैं।

विशेषज्ञों का कथन है कि विकास दर घटकर चार प्रतिशत मात्र ही रह सकती है। ज्ञातव्य है कि मोदी सरकार ने विकास दर की आकलन विधि में परिवर्तन यह किया था कि माल बनने का आंकड़ा ही शामिल किया जाएगा, वह बिके या न बिके अर्थात सत्ता में आते ही वे जानते थे कि वादे पूरे नहीं होंगे और विकास दर घट जाएगी। सशक्त प्रचार तंत्र के बलबूते पर विकास का भ्रम पैदा किया जाएगा। सरकार बच्चे की तरह रॉकिंग हॉर्स पर सवार है और गति का भ्रम मति पर सवार है।