कहां हो तुम / चित्तरंजन गोप 'लुकाठी'

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किसी गाँव में काला, भोला और शिरीष बाबुओं के यहाँ मजदूरी करते थे। तीनों चचेरे भाई थे। एक दिन काम के दौरान मोटरसाइकिल की बात चल रही थी तो मालिक ने बात-बात में कहा-- हूँह ! किस दुनिया में हो? मोटरसाइकिल घर की इज़्ज़त होती है।

"हं बाबू, सो तो है।" काला ने जवाब दिया।

"मोटरसाइकिल रखना शान की बात है। एक ठो ले लो।"

"बात तो सही है बाबू , पर पैसा भी तो चाहिए।" भोला बोला।

"एक काम करो। सड़क किनारे का खेत बेच दो। गोपाल बाबू बोल रहा था। अच्छा दाम देगा।"

"हूँ...! सलाह ठीक है। एक काम की चीज हो जाएगी।" शिरीष बोला। योजना के मुताबिक ही काम हुआ। तीनों ने खेत बेच दिया और एक एक मोटरसाइकिल खरीद ली। जैसे ही समय मिलता, वे छाती फुलाकर एक-एक चक्कर लगा लेते।

एक दिन अपनी पत्नी को लेकर काला बोकारो गया हुआ था। डॉक्टर को दिखाकर वह लौट रहा था। गाड़ी सत्तर की स्पीड में थी। वह हल्का पिया हुआ था। पत्नी धीरे चलाने के लिए बोली, तो उसने ऊँची आवाज़ में जवाब दिया, "तुम हो कहाँ ! गाड़ी तो सत्तर की स्पीड में चल रही है, अभी और सत्तर बचा हुआ है। हूँह, कहाँ हो तुम !" और वह एक्सीलेटर को ऐंठने ने लगा।

आजकल काला का बूढ़ा बाप बड़बड़ाता रहता है... बुदबुदाता रहता है... काला तुम कहाँ हो? बोकारो से कब लौटोगे? ... बेटा कहाँ हो तुम?