कहानियों के परिंदे उड़ें सरहद पार / जयप्रकाश चौकसे

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कहानियों के परिंदे उड़ें सरहद पार
प्रकाशन तिथि :10 अप्रैल 2015


परेश रावल और नसीरुद्दीन शाह अभिनीत 'धरम संकट में' और विधु विनोद चोपड़ा की अंग्रेजी भाषा में बनी 'ब्रोकन हॉर्सेस' दोनों ही आज प्रदर्शित हो रही हैं। 'धरम संकट में' एक हिंदू पात्र की कथा है, जिसे पिता की मृत्यु के बाद ज्ञात होता है कि वह जन्मा एक मुस्लिम परिवार में है। कोई मनुष्य अपना जन्म नहीं चुनता और जन्म के साथ उसे उसका धर्म मिलता है। इस तरह की कथाएं पहले भी लिखी गई हैं और सबसे पहला उपन्यास रवीन्द्रनाथ टैगोर की 'गोरा' है, जिसमें हिंदू, परिवार में पले एक लड़के को यह तथ्य मालूम पड़ता है कि वह जन्मा एक ब्रिटिश महिला से और यह कड़वा यथार्थ उसे उस समय मालूम होता है जब वह पूरे जुनून से भारत के स्वतंत्रता संग्राम में व्यस्त है। कुछ इसी तरह की रचना ख्वाजा अहमद अब्बास की भी है और हिंदी में 'धरम पुत्र' लोकप्रिय है, जिससे प्रेरित फिल्म बलदेवराज चोपड़ा ने बनाई थी। इन सबसे थोड़ी अलग-हास्य के लहजे में 'धरम संकट में' रची गई है। यह भी गौरतलब है कि परेश रावल नरेंद्र मोदी के निकट हैं, जिनकी कृपा से वे अहमदाबाद से सांसद भी चुने गए हैं अर्थात वे भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हैं। इसके बावजूद उन्होंने 'ओह माय गॉड' बनाई थी, जिसमें हिंदुओं के अंधविश्वास का जमकर उपहास उड़ाया गया था। संभवत: 'धरम संकट में' भी कुछ हद तक उसी मिजाज की फिल्म हो। उसके प्रमो से वह जबर्दस्त हास्य फिल्म लग रही है। कुरीतियों और अंधविश्वास की कुनैन को ही गहरे शकर के लेप सहित 'पीके' में प्रस्तुत किया गया था। यह अजीबोगरीब भारत में ही संभव है कि ये फिल्में सफल हो रही हैं और दूसरी ओर 'घर-वापसी' भी हो रही है परंतु भारत की भीतरी ताकत ही हमेशा किसी न किसी तरह उजागर होती रही है।

दूसरी फिल्म 'ब्रोकन हॉर्सेस' भी विनोद चोपड़ा की सफल 'परिंदा' से प्रेरित अलग स्वरूप में बनी अंग्रेजी फिल्म है। 'परिंदा' दो कस्बाई भाइयों की महानगर में आने के बाद के परिवर्तन की कहानी है। इसी फिल्म में अंगार और पानी से भय खाने वाला विक्षिप्त पात्र नाना पाटेकर ने अभिनीत किया था और आज तक उस छवि से उबर नहीं पाए हैं। दो भाइयों की कहानी विनोद चोपड़ा के दिल के नजदीक है। उनका अपना सगा भाई वीर चोपड़ा अपने क्षेत्र का जीनियस है और बहुत सफल भी है। ज्ञातव्य है कि चोपड़ा बंधु रामानंद सागर के भाई हैं जो सारी उम्र एक घोर व्यावसायिक घटिया फार्मूला फिल्में बनाते रहे। रामानंद सागर के पिता ने दो विवाह किए थे और चोपड़ा बंधु तथा सागर दोनों एक ही पिता परंतु दो अलग-अलग माताओं की संतान हैं और उनका सिनेमा भी जुदा है।

विनोद चोपड़ा का लक्ष्य हमेशा गुणवत्ता रहा है। अपने पूना संस्थान के दिनों में भी उनकी एक लघु फिल्म को अपनी श्रेणी का ऑस्कर मिला था। अत: उनका अंग्रेजी भाषा में फिल्म बनाना तो पहले ही तय था। विनोद चोपड़ा ने संजय लीला भंसाली और राजकुमार हीरानी को अवसर दिए। यह संभव है कि उनकी सारी फिल्मों की भीतरी बुनावट शतरंज के खेल की तरह है। मुझे शतरंज का ज्ञान नहीं अन्यथा उनकी सारी फिल्मों का पुनरावलोकन उस दृष्टि से भी किया जा सकता है। विनोद चोपड़ा के मन पसंद संगीतकार राहुल देव बर्मन भी शतरंज खेलना पसंद करते थे। बहरहाल, आज प्रदर्शित हुई दोनों फिल्मों के कथानकों की गंगोत्री पुरानी रचनाएं हैं।