कहानी / हेमन्त शेष
कल रात नींद में एक बेहतरीन कहानी सूझी और सोचा कि सुबह उठते ही सबसे पहले उसे लिखूंगा, पर सुबह उठा तो कागज पेन लिए घंटे भर एकाग्रचित्त हो कर मेज़ पर जमा रहा, कहानी गायब थी. लाख सर मारा, याददाश्त पर काफी जोर डाला, पर कहानी को दुबारा पास न आना न था, न आई. कहानी इतनी अच्छी थी कि मैं उसी में डूबा रह गया था. उसे तभी न लिख सका- मेरी भूल थी. क्या ऐसा हो सकता था कि नींद में ही में उसे किसी काग़ज़ पर लिख लेता, पूरा न सही, थोड़ा बहुत, याददाश्त के लिए, और फिर दूसरे दिन अगर सुबह अपने बिस्तर के सिरहाने उसे आधा-अधूरा लिखा हुआ देखता तो याददाश्त के धागे जोड़ते-जोड़ते उसे मुकम्मल करता. मुझे नहीं पता वह बेहतरीन कहानी कहलाती या नहीं .
अब जब भी कोई अच्छी कहानी कहीं भी पढ़ता हूँ, सोचने लगता हूँ- क्या कहीं ये वही तो नहीं थी जो नींद में मेरे पास आयी थी? वही कहानी?