कहीं भूख, कहीं अपच, सब दस्तावर है / जयप्रकाश चौकसे

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कहीं भूख, कहीं अपच, सब दस्तावर है
प्रकाशन तिथि : 18 सितम्बर 2018


आमिर खान का कहना है कि इस पृथ्वी पर केवल मनुष्य ही आवश्यकता से अधिक भोजन करता है। इतना ही नहीं वह आवश्यकता से अधिक वस्तुओं को भी अपने अधिकार में लेता है। जानवर और पक्षी उतना ही खाते हैं, जितना जीवित बने रहने के लिए आवश्यक है। जानवर और पक्षी के प्रेम के मौसम होते हैं। मनुष्य बारहमासी है। आमिर खान की 'ठग्स ऑफ हिंदोस्तान' कुछ माह पश्चात प्रदर्शित होने जा रही है। अतः उन्होंने साक्षात्कार देना प्रारंभ किया है। वे उतना ही उजागर होते हैं, जितना उन्हें आवश्यक लगता है। इस फिल्म में अमिताभ बच्चन भी अभिनय कर रहे हैं। वे जमकर उजागर होते हैं। पहली बार बच्चन और खान साथ-साथ काम कर रहे हैं परंतु आमिर खान की 'लगान' में बतौर सूत्रधार हम अमिताभ बच्चन की आवाज सुन चुके हैं।

आमिर खान ने टेलीविजन पर 'सत्यमेव जयते'नामक कार्यक्रम प्रस्तुत किया, जिसमें सामाजिक समस्याओं को प्रस्तुत किया गया था और खुलकर बातचीत की जाती थी। गणतांत्रिक भावना का निर्वाह किया गया था। टेलीविजन पर अब तक प्रसारित इस श्रेणी में वह सर्वश्रेष्ठ कार्यक्रम था। वह बंद कर दिया गया। सत्य को केंद्र में रखने पर अदृश्य ताकतें कार्यक्रम को बंद करा देती हैं। पुण्य प्रसून वाजपेयी को हाल ही में हटा दिया गया। कुछ पत्रकारों की आवाजें बंद कर दी गई हैं। कुछ लोग नज़रअंदाज कर दिए जाते हैं, क्योंकि व्यवस्था को यह भी सिद्ध करना होता है कि वे गणतंत्र में विश्वास रखते हैं और विरोध प्रकट करने की इजाजत है। 'सत्यमेव जयते' अदालतों और सरकारी दफ्तरों की दीवारों पर फ्रेम में जड़े हुए ही व्यवस्था को अच्छे लगते हैं। आमिर खान ने स्पष्ट किया है कि वह चुनावी राजनीति के दंगल का हिस्सा नहीं बनेंगे। एक बार उन्हें अपनी राष्ट्रीयता का प्रमाण देना पड़ा था, जब उन्होंने अपने परिवार में हुई एक बातचीत को उजागर कर दिया था। बातचीत का विषय था सुरक्षा। क्या दिन आए हैं कि मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद के रिश्तेदार को भी राष्ट्रीयता का प्रमाण देना पड़ा।

आमिर खान के ताऊ नासिर हुसैन साहब मसाला फिल्में गढ़ते थे और उन्हें मसाला के आदि गुरु शशिधर मुखर्जी ने प्रशिक्षित किया था। इस परिवार के आमिर खान ने लीक से हटकर फ़िल्में बनाईं और इस नई सदी के पहले दो दशकों में वे छाए रहे हैं। प्रयोग के प्रति उनके मन में ललक है। वे नासिर हुसैन के सुपुत्र मंसूर हुसैन से भी निरंतर सलाह-मशविरा करते हैं। मंसूर ने ही आमिर को जूही चावला के साथ 'कयामत से कयामत तक' में पहला अवसर दिया था। कुछ फिल्मों के बाद ही मंसूर हुसैन अपने पिता द्वारा बनाए गए भव्य भवन और जायदाद को अपनी बहन के नाम करके सुदूर दक्षिण में बस गए। वहां वे जैविक खेती करते हैं और उन्होंने बिजली का कनेक्शन नहीं लिया है। इसी तरह वे रेडियो टेलीविजन से भी दूर रहते हैं। सारी आपाधापी और संकीर्ण प्रतिद्वंद्विता से दूर प्रकृति की गोद में सादा जीवन व्यतीत करते हैं। दरअसल, कोई-कोई पुत्र अपने पिता, चाचा, या ताऊ की कार्बन कॉपी नहीं होता। व्यवस्था की ज़िद है कि सभी एक सा पहने, एक सा विचार करें और एक दल ही सदैव सत्ता पर काबिज रहे।

आजकल सूचनाओं को ज्ञान माना जा रहा है। टेलीविजन पर सूचना आधारित कार्यक्रम को ज्ञान का कार्यक्रम कहां जा रहा है। आजकल टेक्नोलॉजी ने सूचनाओं की नदी प्रवाहित कर दी है, जिसमें कुछ कूड़ा कचरा भी बह रहा है। गुजश्ता तमाम सभ्यताएं जानकारियों के अभाव में मिट गईं और मौजूदा को जानकारियों की अधिकता मिटा सकती हैं। फिल्मी गीत की पंक्ति है 'वह लोग जो ज्यादा जानते हैं इंसान को कम पहचानते हैं, यह पूरब है पूरब वाले हर जान की कीमत जानते हैं।' पूरब का महिमागान आज लोकप्रिय शगल है। हम शून्य की खोज पर इतराते हुए उससे बाहर नहीं आ पा रहे हैं। दुनिया के सारे विभाजन अस्वाभाविक हैं। पूरब-पश्चिम का भेद भी हमने रचा है। इस सारे खेल में अवाम ठगा जा रहा है। नारों और वादों की विजय पर जीना उसने सीख लिया है।

पृथ्वी और पर्यावरण प्रदूषित हो रहे हैं। आवश्यकता से अधिक भोजन करना, आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संचयन करना पूरी दुनिया को कबाड़ खाना बनाता जा रहा है। आणविक कूड़ादान हम पहले ही बना चुके हैं। संकीर्ण सोच वाले नेता इन बारूद के गोदामों पर माचिस की तरह पहरेदार बने बैठे हैं। हम सब की आजादी, अब हमारी जंजीरों की लंबाई तक है। कहीं ट्रम्प हैं कहीं कार्ड है। कहीं बाहुबली, कहीं कटप्पा। समाजवादी स्वप्न धूल-धूसरित होता सा लग रहा है परंतु यह अनल पक्षी की तरह अपनी आग से फिर जन्मेगा। 'वह सुबह कभी तो आएगी, वो सुबह हमी से आएगी।'