कांग्रेस एक पार्टी है / अब क्या हो? / सहजानन्द सरस्वती
कहा जाता है कि अब कांग्रेस को एक राजनीतिक पार्टी के रूप में ही रहना है। उसके भीतर अब विरोधी दलों की गुंजाइश नहीं रही। इतना ही नहीं, कांग्रेस की ओर से ही अब किसान सभा, मजदूर सभा आदि वर्ग-संस्थाओं का भी संगठन होगा! यह कथन उसके प्रधानमंत्री श्री शंकरेराव देव का है। जहाँ महात्मा गाँधी ने अभी-अभी स्पष्ट ही कहा है कि कांग्रेस यदि पार्टी बनेगी, तो आत्महत्या करे लेगी, तहाँ उनके मंत्री का ऐसा फरमाना है। यह भी विचित्र बात है। क्योंकि गाँधी जी और उसके सिध्दांत की दोहाई दे कर ही कांग्रेस को जिंदा रखने की कोशिश की जाती है। दरअसल पहले भी कांग्रेस एक पार्टी ही रही है। मगर खुल के नहीं, छिपे रुस्तम। तब इसी की जरूरत थी। पार्टी कहने से किसान-मजदूर भड़क जाते और अगर वे आते, तो अमीर भाग जाते। लड़ने-मरने का काम तो गरीब ही करते हैं। इसलिए उन्हें कांग्रेस में रखना जरूरी था मगर मालदारों को भी रखना था। आखिर 15 अगस्त का स्वराज्य कौन लेता यदि अमीर न रहते? श्रीयुत देव भी तो मानते ही हैं कि यह अमीरों का ही स्वराज्य है। तभी तो गरीबों को अभी स्वराज्य दिलाना बाकी ही है।
बेशक पहले उस पर नकाब थी, जो अब उतार फेंकी जा रही है। फिर भी कहा जा रहा है कि किसानों और मजदूरों का संगठन कांग्रेस की ओर से ही किया जाएगा। क्यों साहब, कांग्रेस की ओर से क्यों? स्वतंत्र क्यों नहीं? श्री देव कहते हैं कि, 'कांग्रेस में इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस, किसान कांग्रेस या इसी तरह की कांग्रेस के द्वारा पुनरपि संगठित वर्ग-संस्थाओं के प्रतिनिधि भी लिए जाएँगे, ताकि वह जन-समूह की संस्था रहे।' इसका सीधा अर्थ यही है कि नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस और किसान कांग्रेस राष्ट्रीय कांग्रेस की मातहती में हैं─कांग्रेस के द्वारा संगठित हैं, और अगर कदाचित वह कांग्रेस की मातहती से इनकार करें, तो कांग्रेस द्वारा वैसी दूसरी संस्थाएँ बनाई जा सकती हैं। मगर हाल में ही श्री गुलजारी लाल नंदा जी ने इसकी सफाई देते हुए जो पुस्तिक 'आक्षेपों का उत्तर' Criticisms Answered छापी है, उसके चौथे पृष्ठ में लिखा है कि 'नई नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस राष्ट्रीय कांग्रेस या किसी भी राजनीतिक संस्था से स्वतंत्र है और रहेगी और उसकी स्वतंत्र हस्ती में कोई फर्क न होगा, वह कांग्रेस का पुछल्ला न बनेगी'-'The new organisation is and will remain independent of the Congress or any other political boby....does not affect the independent status of the organisation or make it an appendage of the National Congress.' अब प्रश्न होता है कि दोनों परस्पर विरोधी बातें कैसे होंगी? कांग्रेस के द्वारा संगठित होने पर उसका पुछल्ला बनना ही होगा। तभी श्री देव का कहना संगत होगा कि 'And in order to keep its mass basis it should include representatives of functional organisations such as I.N.T.U.C. or Kisan Congress or such other organisations re-organised by the Congress for the purpose.' या कि श्रीयुत देव कांग्रेस की ओर से कुछ दूसरी ही और नई वर्ग-संस्थाएँ खड़ी करेंगे और उस काम के लिए नए वर्ग भी ढूँढ़ निकालेंगे?
और, अगर वर्ग-संस्थाओं का स्वतंत्र संगठन करना ही है, तो पहले से संगठितों को ही प्रतिनिधित्व क्यों नहीं दिया जाता? अब आप ऐसा करने चले हैं। लेकिन अब तक कौन सी बाधा थी? यदि पहले से ही यह काम करते रहते, तो क्या आसमान टूट पड़ता? यदि वर्ग-युध्द का खतरा था, तो अब भी है और आप उससे भड़कते हैं। जो लोग अब तक वर्ग-संस्थाओं को फूट आँखों भी नहीं देख सकते थे, वही अब उनका संगठन करेंगे, यह भी निराली बात है। सचमुच संसार परिवर्तनशील है या कि केवल धोखे की टट्टी खड़ी की जाएगी? हम श्रीयुत देव से करबध्द प्रार्थना करेंगे कि यदि हमें वह अपनी किसान संस्था के संगठन का इंचार्ज किसी भी शर्त पर बना दें, तो हम उसके लिए तैयार हैं। केवल हम एक ही आजादी चाहते हैं और वह यह कि कांग्रेसी जमींदारों की जमींदारियों में जाकरे किसान-संगठन करने में कोई रुकावट न हो। तब उन्हें और दुनिया को पता चल जाएगा कि कांग्रेस की ओर से किसानों का संगठन किस प्रकार किया जा सकता है।