कांग्रेस बदल जाएगी? / अब क्या हो? / सहजानन्द सरस्वती

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कहा जाता है कि 'कांग्रेस ने अपने जीवन के इतिहास में सिध्द कर दिया है कि बदलते हुए समय की जरूरत के अनुसार ही वह अपना कायाकल्प कर लेती है, अपने को ढाल लेती है। उसके सामने एक ताजा ऐतिहासिक काम आया है जिसे उसे लगातार पूरा करना ही होगा बिना विराम के ही।' 'The Congress has proved its capacity to adapt itself to the needs of the changing times. A fresh historic task has to be taken up without any break in the continuity of the life of the congress."

लेकिन यहाँ भी कांग्रेस के इतिहास का या तो केवल तोड़-मरोड़ किया गया है, या उसकी बुनियादी बातें समझने में भूल की गई है। दुनिया की हर चीजें और हर संस्थाएँ कमबेश बदलती और अपने को नए साँचे में ढालती भी हैं, मगर सबों की एक मर्यादा होती है जिसके आगे वे इस मामले में जा नहीं सकती हैं। कांग्रेस की भी यही बात है। वह इस नियम का अपवाद नहीं हो सकती। कही चुके हैं कि कांग्रेस केवल आजादी के संग्राम में ही क्रांतिकारी बन सकती थी। मगर श्रीयुत देव देश के भीतरी काम, घरेलू काम में भी इसे क्रांतिकारी रखना और उसका पुराना स्वभाव बदलना चाहते हैं, जो असंभव है। उनकी रचनात्मक क्रांतिConstructive revolution केवल विदेशियों के हटाने में भले ही समर्थ हुई, वहीं उसकी गुंजाइश रही हो। लेकिन मुल्क के भीतर आर्थिक या सामाजिक मामलों में कांग्रेस के द्वारा वह असंभव है। ऐसा करने पर वह राष्ट्रीय कांग्रेस रहेगी ही नहीं। लेकिन उनके जवाब में हम आचार्य कृपलानी जी की लेखमाला को ही उध्दृत कर देना उचित समझते हैं। वह कहते हैं, 'It is true that the Congress has changed its from and shape often enough. It changed them after the leadership of Gandhiji. But the changes brought about under his leadership were comparatively conservative and in keeping with its natural evolution and its traditions. Even the non-violence of Gandhiji was in keeping with the traditions of the Congress. From constitutional agitation to non-violent direct action was not a sudden revolution, but an evolutionary revolution that did not change the nature of the Congress as a national organisation. But supposing Gandhiji had changed the Congress to violent and military organisation, such a change would have been too revolutionary for the very safety and existence of the Congress as an open mass organisation. It would not have been in keeping with its origin, history, tradition and direction of growth. In the language of religion this would not have been its Swa-Dharma, but Para-Dharma, in which it would have perished.'

इसका भाव यह है कि 'बेशक कांग्रेस ने अपना आकार-प्रकार अकसर बदला है। यह बात गाँधी जी के नेतृत्व के समय भी हुई। लेकिन उनके नेतृत्व में इसमें जो भी परिवर्तन हुए वे अपेक्षाकृत पुराने ढर्रे के ही थे जो इसके स्वाभाविक विकास एवं परंपरा के अनुकूल ही थे। यहाँ तक कि गाँधीजी की अहिंसा भी उसकी प्राचीन परंपरा के अनुसार ही थी। वैधानिक आंदोलन तो अहिंसात्मक ही होता है। उसे बदल कर अहिंसात्मक सीधी लड़ाई के रूप में ला देना कोई यकायक क्रांति न हो कर विकासात्मक क्रांति ही थी जिसने कांग्रेस के राष्ट्रीय संस्थात्मक रूप और स्वभाव को नहीं बदला। लेकिन यदि गाँधी जी उसे हिंसात्मक फौजी संस्था बना देते तो यह बात कांग्रेस की प्रत्यक्ष जन-समूह की संस्था के रूप में होनेवाली सत्ता एवं उसकी रक्षा के लिए भयंकर क्रांतिकारी सिध्द हो जाती। कांग्रेस की उत्पत्ति, इतिहास, परंपरा और विकास के विपरीत यह बात जा पड़ती। धार्मिक भाषा में यह 'स्वधर्म' न हो कर'परधर्म' हो जाता जिसके चलते वह खत्म हो जाती।' लेकिन श्रीयुत देव उसका स्वभाव ही बदल देना चाहते हैं। फिर भी इसे स्वाभाविक कहते हैं।