कांच के फूल / जयश्री रॉय
हिया ने फ़ेसबुक से लॉग आउट किया और बिस्तर पर गिरकर रोने लगी... नील और जेनोभी दोनों ऑन लाइन हैं, ज़रुर चैट कर रहे होंगे! सबीना ठीक कह रही थी। दोनों के बीच इन दिनों कोई चक्कर चल रहा है। नील जेनोभी का हर पोस्ट लाईक कर रहा है, पिक्स पर कमेंट्स दे रहा है। उस दिन तो उसकी कविता भी अपने वाल पर शेयर किया। ओह गॉड! क्या नील मेरे साथ सचमुच टु टाइमिंग कर रहा है! सोच-सोचकर उसका दिल डूबा जा रहा था।
नील और वह तीन महीने से साथ हैं। दूसरे शब्दों में 'सीइंग इच अदर' उससे पहले रॉनी के साथ एक छोटा-सा अफेयर... वैसे उसमें 'नथिंग वाज़ सीरियस'! कह सकते हैं 'पार्ट ऑफ ग्रोइंग अप'। नील भी उनदिनों अपने 'एक्स' को भुलाने की क़ोशिश में था। दोनों कुछ क़दम साथ चले तो लगा रास्ता आसान हो रहा है। मगर अब... हिया कुछ भी सोच नहीं पा रही थी। इतने सारे डेट्स- के. एफ. सी., डोमिनोज़, आइनॉक्स... इस बार के नेवी बॉल में भी तो वही उसका डांस पार्टनर रही। दोनों ने 'बेस्ट डान्सिंग कपल' का ख़िताब जीता। सभी कह रहे थे, उनकी जोड़ी बहुत जंचती है। तब तो नील भी कितना ख़ुश था उसके साथ! सारा क़सूर जेनोभी का है। शी इज़ अ रियल बीच! हर हैंडसम लड़के पर डोरे डालती है। पढ़ना-लिखना तो है नहीं। सारा दिन कॉलेज कैंटिन में बैठकर आवारा लड़कों के साथ 'हा-हा, हू-हू' करती रहती है। बड़े बाप की बिगड़ी हुई औलाद! जाने उसमें क्या है कि लड़के भी मधुमक्खी की तरह उसके पीछे पड़े रहते हैं।
रोते हुये ही जाने उसे कब नींद आ गई थी। मोबाईल के मैसेज अलर्ट से चौंककर उठी थी। डिस्प्ले स्क्रीन पर नील का नाम चमक रहा था। विकल्प में जाकर उसने मैसेज खोलकर पढ़ा था- 'मिसिंग यू बेबी!' झूठा! मक्कार! अपना निचला होंठ काटते हुये उसने किसी तरह अपनी रुलाई रोकी थी। मुझे मिस कर रहा है और उस चुड़ैल से चैट कर रहा है! शायद वह समझ रहा है कि उसे उसकी करतूत का कुछ पता ही नहीं। फ़ेस्बुक पर वह ऑन लाइन नहीं हुई थी। ऑफ लाइन रहकर ही दोनों पर नज़र रख रही थी।
थोड़ी देर बाद नील का दूसरा मैसेज आया था- "चुप क्यों हो?" उसने बिना कोई जवाब दिये फोन बंद कर दिया था। तभी उसकी माँ दूध का गिलास लेकर कमरे में दाखिल हुई थीं- "हिया! पढ़ रही हो कि वही फ़ेसबुक पर बैठी हो? परीक्षा को सिर्फ चार दिन रह गये हैं। पिछली बार अर्थशास्त्र में फेल होते-होते बची हो, याद है ना?"
"अर्थशास्त्र?" आ गईं उपदेश झाड़ने... मन ही मन चिढ़ते हुये उसने मुंह बनाया था।
"अर्थशास्त्र यानी इकॉनमिक्स! समझी? यहाँ सब अंग्रेज़ हैं!" माँ ने झुंझलाकर दूध का गिलास टेबल पर रख दिया था- "कितनी बार कहा इनसे, परीक्षा के समय इंटरनेट का कनेक्शन बंद कर दे। सबके सब बिगड़ते जा रहे हैं। बाप उधर अख़बार या टी. वी. में सर डाले बैठा है, बेटा का रातदिन क्रिकेट, आई. पी. एल. और बेटी को फ़ेसबुक से फुरसत नहीं। रह जाती हूँ बस एक मैं!"
"मां तुम फिर शुरु हो गई! मुझे पढ़ने दो..." हिया ने झल्लाकर कहा तो वे "हां जाती हूँ, जाती हूँ! पता है कितना पढ़ना है..." कहकर बड़बड़ाती हुई चली गई थीं।
उनके कमरे से बाहर जाते ही उसने उठकर ड्रेसिंग टेबल के आईने में अपना चेहरा देखा था और चिंहुक उठी थी- ओह गॉड! ये मुंहासा तो पक गया! कितना गंदा दिख रहा है! उस दिन नील कह रहा था 'आई हेट पिंपल्स!' सक्स! अब क्या करूं! उसे फिर रोना आने लगा था... बाल सीधे करने हैं, नेल पॉलिश लगाना है, स्नग फिट जिंस भी अभी तक सूखा नहीं! आईने में खुद को निहारते-निहारते जाने कितनी बातें उसे एक साथ परेशान कर रही थीं। टेस्ट ख़त्म होते ही जिम ज्वाइन करुंगी, जिंस टाईट होने लगी है। उस दिन राघव फैटसो कहकर चिढ़ा रहा था। और इस सांवलेपन का भी कोई ईलाज नहीं! पांच साल से शायद पांच सौ ट्युब निचोड़ डाले, मगर इन गोरे रंग का दावा करनेवाले क्रीम्स का कोई असर नहीं। सब झूठे, मक्कार! सोचते हुये उसने क्रीम का ट्युब उठाकर कमरे के कोने में फेंक दिया था। इसी गोरी रंगत की वजह से वह चुड़ैल जेनोभी सारे लड़को की फेवरिट बनी हुई है... रात के दो बजे जाने कितनी सारी चिंतायें लेकर वह सोने गई थी। इन सब के बीच उसकी बस पढ़ाई ही रह गई थी। ऐसा रोज़ होता है!
सुबह कॉलेज कैम्पस में जाते ही उसे बुरी ख़बर मिली थी- तनु ने आत्महत्या कर ली है!
'कब?', 'कैसे?', 'क्यों?' - जाने एक ही साथ उसने कितने सवाल कर डाले थे।
"कल रात! सुना काम्पोस का पूरा पत्ता गटक गई थी। सुबह उसकी माँ कॉलेज के लिये उठाने गईं तो उसे मरी हुई पाया!"
"मगर क्यों! उसे जान देने की नौबत क्यों आई?" हिया जैसे अब भी इस बात पर यकीन नहीं कर पा रही थी। वह बहुत क़रीब से उसे नहीं जानती थी। दूसरे डिविजन में थी वह। कितनी ज़हीन थी तनु, पढ़ाई में हमेशा अब्बल! एस. एस. सी. में पूरे राज्य में पांचवी नम्बर पर थी।
"कहते हैं किसी ने उसका एम. एम. एस. बनाकर नेट पर डाल दिया था। सब उसके एक्स ब्यॉय फ़्रेंड का नाम ले रहे हैं। उसीने बदला लिया होगा। अपने मां-बाप के कहने पर उसने उसे छोड़ जो दिया था!"
"कौन, कुणाल?"
हिया के पूछते ही शैली ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया था- "शी... इनका नाम लेना भी खतरे से खाली नहीं! देखती नहीं, कैसे रातदिन कैंटिन में दबंगों के साथ बैठे रहते हैं ये लड़के? उसदिन किसी ने बाहर के लड़कों के कैम्पस में आने पर ऐतराज़ किया तो उन्होनें चाकू निकाल लिया। कभी कोई क्लास में नज़र आते हैं? प्रोफ़ेसर्स भी इनसे डरकर चलते हैं। स्पोर्टस टीचर सावंत और रंगनाथन की तो इनसे पूरी मिली-भगत है। इनके बल पर मैनेजमेंट पर भी रौब जमाने से बाज नहीं आते।"
उसदिन तनु की आत्मा की शांति के लिये प्रार्थना और एक मिनट के मौन के बाद कॉलेज की छुट्टी कर दी गई थी। हिया का मन उदासियों में डूबा हुआ था। आज उसने कॉलेज कैम्पस में नील को भी कहीं नहीं देखा था। बाहर निकलते हुये उसे राहिला ने बताया था कि उसने नील और जेनोभी को बास्किन रोबिन्स आईस क्रीम पार्लर में साथ-साथ आईस क्रीम खाते हुये देखा था। "जेनोभी अपने फेवरिट स्ट्राबेरी फ्लेवर के लिये नील से ज़िद्द कर रही थी..." बताते हुये राहिला ने शैली की तरफ देखकर शरारत से आँख मारी थी। सुनकर वह और उदास हो गई थी। आज सुबह से उसने कितने मिस कॉल दिये थे उसे, मगर उसने उसे मुड़कर फोन नहीं किया था। वह खुद भी उसे कॉल नहीं कर पा रही थी, क्योंकि उसके फोन में बैलेंस नहीं बचा था। पापा साढ़े तीन सौ का रीचार्ज हर महीने करवाते हैं, मगर इससे क्या होता है! 1000 का मैसेज पैक भी 15 दिन से ज़्यादा नहीं चलता। नील बाकी रीचार्ज करवा देता है, मगर इस महीने जाने उसने क्यों नहीं करवाया। वह भी संकोच से कुछ कह नहीं पाई. जसिका ने कहा तो वह उसके साथ ममता को देखने उसके घर चली गई. ममता उनके क्लास में पढ़ती थे। उसकी तबीयत बहुत दिनों से ठीक नहीं चल रही थी। जाने क्यों दिन पर दिन दुबली होती जा रही थी। उसे याद है स्कूल के दिनों में लड़कियां उसके सेब-से सुर्ख और फूले-फूले गालों की चुटकियां लिया करती थीं।
ममता के घर जाकर देखा था, वह अपने घर पर नहीं थी। खून की जांच करवाने पैथोलॉजी सेंटर गयी हुई थी। तीन दिन से उसका बुखार नहीं उतरा था। उसके घर में अमेरिका से उसकी आंटी आई हुई थीं जो मनोविज्ञान में बफेलो यूनिवर्सिटी से पी. एच. डी. कर रही थीं। ममता की माँ उन्हें अपना नया बंगला घूम-घूमकर दिखा रही थीं। ममता का इंतज़ार करते हुये हम भी उनके साथ थे। ममता के कमरे में ममता की तस्वीर देखकर उसकी आंटी उसे यकायक पहचान ही नहीं पाई थीं- "ये ममता है! इतनी दुबली! उसकी तबीयत तो ठीक है?"
"अरे तबीयत को क्या हुआ! डायटिंग चल रही है। जानती हो ना आजकल ज़ीरो फिगर फैशन चल रहा है।" उनके सवाल पर ममता की माँ ने हंसते हुये सहज भाव से जवाब दिया था और फिर फर्श पर पड़ी हुई ममता की कोई चीज़ उठाकर अलमारी में रखने के लिये जैसे ही उसके पल्ले खोले थे, प्लास्टिक का एक बड़ा थैला भरभराकर नीचे गिर पड़ा था। हम सब ज़मीन पर बिखरी हुई चीज़ों को हैरत से देखते रह गये थे- बासी, उबले अंडे, सड़े हुये टोस्ट, फल...
ममता की आंटी ने फर्श पर बिखरी चीज़ों से नज़र हटाकर एक बार ममता की तस्वीर की तरफ देखी थी और होंठों ही होंठों में बुदबुदाई थी- "ओह! आई सी... अनोरेक्सिया! खाना ना खाने की जानलेवा बीमारी!"
"क्या!" हम सब के मुंह से लगभग एक साथ ही निकला था। ममता की माँ का चेहरा एकदम से रक्त शून्य पड़ गया था। वे चुपचाप बिस्तर में बैठ गई थीं।
ममता की आंटी भी उनके पास बैठ गई थीं- "मुझे ममता के बारे में बताइये दीदी, सबकुछ!"
ममता की माँ गहरे आश्चर्य में दिख रही थीं- "क्या बताऊं! सब कुछ तो ठीक था... ममता, मेरी बहुत अच्छी बच्ची! विनम्र, अनुशासित, कभी किसी बात का विरोध नहीं। ना कहना तो जैसे उसने सीखा ही नहीं। सब कहते, बेटी हो तो हमारी ममता जैसी." कहते-कहते वे रोने लगी थीं- "आप तो जानती हैं, हमारी एकलौती बेटी को हमने भी किस प्यार-दुलार से पाला! उसके मुंह खोलने से पहले ही उसकी सारी इच्छायें पूरी कर दी। कभी स्कूल-कॉलेज तक अकेली जाने नहीं दिया, किसी बुरी संगत में पड़ने नहीं दिया... इतनी भोली जो है मेरी बच्ची!"
सुनते हुये आंटी के चेहरे का रंग बदला था- "हां, ये सब तो मैं जानती हूँ, उसमें हाल में आये बदलाव के बारे में बतलाइये।"
जाने वे क्या जानना चाहती थीं! हम भी ध्यान से सुन रहे थे। "इधर..." ममता की माँ सोचने की क़ोशिश करते हुये बोल रही थीं- "इधर उसके रिजल्ट ख़राब आने लगे हैं।"
"हमसे भी ज़्यादा बोलती-बतियाती नहीं, अपने में गुमसुम-सी रहती है मैम!" हिया से रहा नहीं गया तो उसने भी बढ़कर कह दिया। आंटी सबकी बातें बहुत ध्यान से सुन रही थीं। "घर में भी अधिकतर अपने कमरे में पड़ी रहती है। खाना भी अपने कमरे में खाने की ज़िद्द करती है।" थोड़ी देर चुप रहकर ममता की माँ ने संकोच के साथ रुक-रुककर कहा था- "मैंने उसदिन ब्रा पहनने की सलाह दी तो उसने अजीब-सी बात कही- 'नहीं, मैं यह नहीं पहनूंगी! फिर मैं बड़ी हो जाऊंगी। मुझे बड़ी नहीं होना है!'"
सारी बातें सुनकर आंटी बेहद चिंतित नज़र आने लगी थीं। उन्होंने ममता की माँ के दोनों हाथ पकड़ लिये थे- "सुनिये दीदी! हमारी बेटी बीमार है! उसे अनोरेक्सिया है! यह एक जानलेवा मानसिक बीमारी है। हमें और देर नहीं करनी चाहिये, ममता को मदद की आवश्यकता है।"
सुनकर ममता की माँ बेहद घबरा गई थीं। फफक-फफककर रोने लगी थीं। जसिका ने ही फिर बढ़कर इस बीमारी के बारे में तफसील से जानना चाहा था। घबरा तो सभी गये थे। आंटी ने उन्हें साधारण भाषा में समझाने की क़ोशिश की थी- "यह मानसिक बीमारी अधिकतर सम्पन्न घर की लड़कियों को किशोरावस्था में होती है। कुछ लड़कियां 'अच्छी बेटी' बनी रहने के लिये बड़ों की हर जायज़-नाजायज़ बातों को मानती चली जाती हैं। दुर्बल व्यक्तित्व के होने के कारण ना चाहते हुये भी दूसरों की हर बात मानते चले जाने की विवशता उनके भीतर विद्रोह की भावना पैदा कर देती है। ममता के मामले में ही देख लो, बहुत ज़्यादा सुरक्षित माहौल में इनका आत्मविश्वास पनप नहीं पाता। मां-बाप की अनुशासित छ्त्र-छाया में उनका अपना परिचय खो जाता है। आईडेंटिटी क्राइसिस की मन: स्थिति में वे रात दिन घिरी रहती हैं। सेक्स के प्रति भी मन में कुंठा समा जाती है। वे बड़ी होने में असुरक्षित महसूस करने लगती हैं। इसलिये किशोरावस्था में शरीर में आनेवाले परिवर्तनों से भी परेशान हो जाती हैं। नहीं खाकर, दुबली रहकर वे खुद को जिस्म से बच्ची बनाये रखना चाहती हैं।"
वे सब हैरत से मुंह खोले उनकी बात सुन रहे थे। ओह! मन की दुनिया कितनी अजीब होती है! किसी भूलभुलैया से कम नहीं! आंटी का कहना ख़त्म नहीं हुआ था- "यह खाना ना खाना, अपनी मर्ज़ी का करना एक तरह से उसी विद्रोह की अभिव्यक्ति है। इसमें वे अपनी जीत देखती हैं। इस बीमारी का ईलाज इसलिये भी कठिन हो जाता है कि बीमार अपनी ग़लत सोच को सही समझता है और नहीं खाकर जितना दुर्बल होता जाता है, स्वयं को अपने इस मिशन में उतना ही सफल मानने लगता है। इस ग़लत बात के प्रति उनका दृष्टिकोण सकारात्मक होता है।"
"अब ये बताओ हम करें क्या?" ममता की माँ लगातार रोये जा रही थीं।
"सबसे पहला काम तो यही है कि ममता के खतरनाक ढंग से गिर गये वजन को नॉर्मल स्तर तक लाना पड़ेगा। उसके बाद ही आगे की सोची जायेगी।"
ममता अभी तक नहीं लौटी थी। उन्हें यहाँ आये हुये काफी देर हो चुकी थी इसलिये वे फिर आने की बात करके वहाँ से चली आयी थीं। रास्ते भर हिया को आंटी की बात याद आती रही थी। मन और भी विषन्न हो उठा था। आज का दिन ही मनहूस है। हर तरफ से बस बुरी ख़बरें!
घर में आते ही बुआ को देखकर उसका रहा-सहा मूड भी एकदम से बिगड़ गया था। इस झुमरी तलैयावाली बुआजी को वह ज़रा बर्दास्त नहीं कर पाती। हर बात में दूसरों के फटे में टांग अड़ाना, ताने देना, जासूसी करना... रिश्तेदारों के बीच मैडम 'हिन्दुस्तान टाइम्स' के नाम से जानी जाती हैं। इसकी ख़बर उसे, उसकी ख़बर इसे... बस अब यही एक काम बचा है इनके जीवन में। एकलौते बेटी की शादी हो चुकी है। ज़ाहिर है, बहू से भी नहीं बनती। ये सेर तो बहुरिया सबा सेर! इसलिये हर दूसरे, तीसरे महीने अचार, मठरी लेकर किसी ना किसी रिश्तेदार के घर छापा मारने निकल पड़ती हैं। उनको देखकर सभी का मुंह बन जाता है।
पैर छूते ही उन्होंने अपनी तहक़ीकात शुरु कर दी थी - "बड़ी देर कर दी बिट्टो आज तो आने में!" फिर दीवार घड़ी की तरफ देखा था- "बहू तो कह रही थी दो बजे तक घर आ जाती हो!" इसके बाद बाबूजी की ओर मुड़ी थीं - "समय बहुत ख़राब है नंदू! निर्भयावाला मामला देखा ना... दूसरों को दोष देकर क्या होगा। औरतों को खुद सम्हलकर रहना चाहिये... बाद में गला फाड़ते रहो, उससे क्या होने वाला! गया तो अपना ही जायेगा ना?"
उनकी बात सुनकर हिया का सर गरम हो गया था। मगर माँ का चेहरा पीला पड़ गया था। बाबूजी उसे इशारे से शांत रहने को कह रहे थे। फिर भी उससे चुप रहा नहीं गया था - "अगर जमाना बुरा है तो औरतों को घर के भीतर रहना पड़ेगा? क्यों भला! अंदर वह रहे जिसकी नीयत ख़राब है। क्या हम जंगल में रहते हैं कि शेर, भालू के डर से बाहर ना निकलें? और अगर दरिंदे खुले घूम रहे हैं तो उन्हें पिंजरे में बंद करो! मर्दों के डर से औरतें बहुत घरों में रह चुकीं, अब घर में रहने की बारी उनकी है। मैं तो कहती हूँ शाम के बाद सारे लफंगों, दबंगों को लॉक अप्स में डाल देना चाहिए ताकि लड़कियां निश्चिंत होकर घर से बाहर निकल सके!"
सुनकर बुआ मुंह फाड़कर हंसी थीं - "तेरी बेटी तो वाकई बहुत पढ़-लिख गई है रे नंदू!" फिर किसी तरह अपनी हंसी रोकते हुये व्यंग्य से बोली थी - "क़िताबों की दुनिया से बाहर निकलकर चीज़ों को देखना सीखो बिटिया, कितने धान से कितना चावल निकलता है पता चल जायेगा..."
उनकी बातों को टालने के लिये माँ पहले ही भीतर चली गई थीं। अब हिया भी पैर पटकते हुये उनके पीछे चली गई थी। जाते हुये उसने सुना था, बुआ पापा से कह रही थीं - "मेरी नज़र में एक बहुत अच्छा लड़का है नंदू..."
खाने बैठकर वह बड़बड़ाती रही थी - "इन्हें मना कर देना, मेरे मामलों में टांग ना अड़ाया करें!"
मां ने खाना परोसते हुये अपने होंठों पर उंगली रखी थीं - "शी...! ऐसा नहीं कहते। तुम्हारे भले की सोचती हैं। पढ़ी-लिखी नहीं हैं इसलिये बोलने का सलीका नहीं आता। साई बाबा के दर्शन के लिये सीरीडिह जायेंगी परसों, दो दिन की ही बात है।"
जानकर हिया का मूड ख़राब हो गया था - "दो दिन!"
उसने खाना शुरु किया ही था कि मोबाईल का मैसेज अलर्ट आने लगा था। एक के बाद एक तीन। मोबाईल किताबों के बैग में था। शीट! मोबाईल साइलेंट पर करना भूल गई! वर्ना हमेशा वह घर में घुसने से पहले मोबाईल को याद से साइलेंट मोड में कर देती है। कॉल लॉग, मैसेज- सब मिटा देती है। उसने सारे लड़कों के नाम भी लड़कियों के नाम से सेव कर रखे हैं। ये मोबाईल भी जान का जंजाल बना हुआ है! कॉलेज में भी हर टीचर की नज़र से छिपाओ. बीच-बीच में क्लास के सी. आर. से तलाशी ली जाती है तो कभी प्रिंसिपल खुद छापा मारने आ जाता है। ओह गॉड! पूरी दुनिया हमें सुधारने के पीछे पड़ी हुई है! स्कर्ट घूटनों से दो इंच नीचे होनी चाहिये, ब्लाउज के सारे बटन बंद होने चाहिये, नो स्लीबलेश, नो टाइट्स, नो फैशन... जोसुआ ठीक ही कहता है- 'ये बूढ़े-खुसट हम नौजवानों से जलते हैं! जो खुद करना चाहकर भी कर नहीं पाते, वही करने से हमें रोकते हैं!' शैली कहती है- 'और क्या! ये पादरी लोग खुद कुंठित होते हैं। ना जीते हैं ना किसी को जीने देते हैं! एक कुंठित, अपने जीवन से नाख़ुश आदमी दूसरों को ख़ुश देख नहीं पाता।' इधर घर में माँ की निगरानी! आंखें तो पूरी सर्च लाईट! ज़र्रा-ज़र्रा सूंघती फिरती हैं। कितने सारे तरीके ईज़ाद करने पड़े हैं उनकी सर्वव्यापी दृष्टि से बचने के लिये- हर जगह मोबाईल को उल्टा रखना पड़ता है ताकि आये मैसेज या भेजनेवाले का नाम ना दिखे। सिम लॉक, स्क्रीन लॉक लगाया है। हमेशा साइलेंट पर भी। अधिकतर बाथरुम में घुसकर मैसेज बगैरह करना पड़ता है। निकलते समय टॉयलेट का चेन खींच देती है ताकि किसी को शक ना हो। फिर भी माँ को खटक ही जाता है- 'क्या बात है, आजकल नहाने में इतना समय लगता है, बार-बार बाथरुम जाकर देरतक अंदर बैठी रहती है! पहले तो दो-चार छींटे लगाकर काक स्नान करके बाहर निकल आती थी! वह चिढ़कर अपनी चोरी छिपाती-'अब तुम भी मेरे साथ बाथरुम चला करो, बैठकर देखना क्या-क्या करती हूँ! 'उसदिन तो कॉलेज में गज़ब हुआ, लॉजिक के लेक्चर के दौरान टीचर के अचानक क्लास में आ जाने की वजह से जल्दीबाजी में मोबाईल ब्लाउज में छिपा दिया था। किसी सवाल का जवाब देने के लिये खड़ी हुई तो ब्लाउज में हलचल मच गयी! साथ में ज़ोर की घों-घों और जलती-बुझती रोशनी! फोन वाइब्रेटर पर था! वह सबके सामने पानी-पानी हो गई. कोई पीछे से गाया- चोली के पीछे क्या है... पूरे क्लास में ठहाका पड़ गया!
चौथे मैसेज की आवाज़ पर माँ ने उसे घूरा था - "तू फिर मोबाईल कॉलेज ले गई थी? याद है पिछली बार दो हज़ार ज़ुर्माना भरना पड़ा था! प्रिंसिपल की डांट अलग से। अब कभी पकड़ी गई तो फिर कभी मोबाईल नहीं मिलेगा याद रखना!"
"ठीक है, ठीक है!"
वह किसी तरह खाना ख़त्म करके अपने कमरे में चली आई थी। आज सब ने मिलकर उसका मूड ख़राब कर दिया था। इस बुआजी को भी अभी आना था। रही-सही क़सर अकेली ही पूरी कर देंगीं! सामने क़िताब खोलकर बैठी रही थी देरतक, मगर अंदर कुछ जा नहीं रहा था। बार-बार नज़र मोबाईल की तरफ घूम जाती थी। हर दो मिनट में किसी का मैसेज आता है। साथ में विज्ञापनवालों का- गणेशा स्पीकींग, इतने में इतने का टॉक टाईम फ़्री, बेस्ट लव मैसेजस, रक्षा बंधन के मौके पर डबल धमाका ऑफर... कभी वाकायदा फोन करके विज्ञापन कम्पनियां गीत सुनाते हैं, तरह-तरह की पेशकश करते हैं। शिकायत दर्ज़ करवाकर भी कोई फायदा नहीं। ऊपर से आये दिन कोई ना कोई स्कीम, सर्विस की सदस्यता दिलवाकर पैसे काट लेते हैं। कहो तो जवाब मिलेगा आपने ही ग़लती से सब्सक्राइब कर लिया होगा। शीट! परेशान होकर उसने फोन ऑफ करके ड्रऑर में रख दिया था- इसके साथ पढ़ना मुश्क़िल! ध्यान भटकता रहता है! माँ ने कहा है रिज़ल्ट ख़राब हुआ तो बुआ के लाये रिश्तों में से चुनकर किसी से फेरे डलवा देंगी! शादी और इतनी जल्दी! कभी नहीं! एकबार शादी की गांठ पड़ी नहीं कि ज़िन्दगी भर के लिये रसोई की काल कोठरी में बंद हो जाना पड़ेगा! अभी तो पढ़ना है, फिर किसी मल्टी नेशनल में नौकरी करनी है, फॉरेन टूर पर जाना है, दुनिया देखनी है, जमकर रोमांस करना है... तब कहीं जाकर शादी! वह भी किसी अंबानी या सिंघानिया से। सोचकर उसके मन में गुदगुदी होने लगी थी।
तीन घंटे पढ़ने के बाद जब उसने मोबाईल खोला था, उसमें धराधर नील के मैसेज आने लगे थे, पूरे १५ मैसेज। साथ में मिस कॉल की सूचना भी। उसने उसे जवाब में एक छोटा मैसेज कर दिया था- 'एक्ज़ाम, पढ़ाई करनी है!'
दूसरी तरफ से एक स्माईली के साथ मैसेज- 'ओक मैडम क्यूरी!'
थोड़ी देर बाद जसिका का फोन आया था। ममता की बात कर रही थी। कह रही थी, सच्चाई खुलते ही वह एकदम विद्रोह पर उतर आई है। किसी से इस विषय पर बात करने को तैयार नहीं। उसके इस नये रुप को देखकर सभी सकते में हैं। ममता की माँ जसिका से कह रही थीं कि हम सब मिलकर ममता से बात करें। ममता हमारी अच्छी सहेली है। उन्होंने यह भी कहा था कि सबके आग्रह पर उसने आज खाना खाया तो था, मगर बाद में बाथरूम जाकर उल्टी कर आई थी। लम्बे समय से वह यही करती आई थी, टेबल में सबके साथ खाते हुये अपनी जेब में या रुमाल में खाना छिपाकर रख लेती थी। सुनकर ममता की अलमारी में रखे हुये प्लास्टिक बैग का राज़ उसे समझ आया था। ममता की माँ ने उन्हें बुलाया था। कल जाने की बात कहकर उसने फोन रख दिया था।
कमरे से निकलते हुये उसने सुना था, बुआजी माँ से दबी जुबान में कह रही थीं- 'बेटी की किताब, अलमारी को बीच-बीच में चेक कर लिया करो। हो सकता है कोई प्रेम पत्र-वत्र मिल जाये।'
सोने से पहले बुआ और माँ कई बार कमरे में झांक गई थीं। उनके सोने के बाद क़िताब के बीच मोबाईल छिपाकर उसने फ़ेसबुक खोला था। शीट! नेट पैक भी लेना था! माँ भुनभुनाती रहती हैं कि इस लड़की के खर्चे बढ़ते ही जा रहे हैं! ऐसे ही फिजूल खर्ची करती रहेगी तो उसके दहेज के लिये कहाँ से पैसे जुड़ेंगे! मैसेज बॉक्स में दस मैसेज। उनमें नील के पांच। बाकी राहुल, नैना और प्रीति के. रसेल का पोस्ट देखकर उसे धक्का लगा था... अस्पताल के बिस्तर पर! पूरे बदन पर पट्टी! दोनों पैर टूट गये हैं। लिखा है- फ़्रेंडस! तीन महीने की छुट्टी! दो दिन पहले ही नई बाईक ख़रीदी थी। सबके सामने शो मार रहा था। इतनी ज़ोर से चला रहा था! उसे भी एक राइड दे रहा था। थैंक्स गॉड! उसने मना कर दिया था। लो, अब हो गई छुट्टी! राहुल ने अपने पेज में कई फनी पिक्स लगाये थे। उसे फोटो शॉप का अच्छा तज़ुर्बा है। तस्वीरों को क्या से क्या बना देता है! जेनोभी ने फिर अपना प्रोफाइल पिक्चर बदला है। हूँ! खुद को प्रियंका चोपड़ा समझती है। हर दो दिन में नया फोटो... मोटी कहीं की! इसे सबक सिखाती हूँ! उसने अपने दूसरेवाले फ़ेक अकाउंट से उसकी तस्वीर के नीचे कमेंट डाल दिया था- 'आंटी दिख रही हो, वजन घटाओ!' ये नकली अकाउंट बड़े काम की चीज़ है। जिसे चाहो लतियाओ! झूठ का सहारा लेकर ही सच बोला जा सकता है। कितनी अजीब बात है!
दूसरे दिन कैंटिन में घुसते ही नादिया ने उसे बुला लिया था। पूरा गैंग वहाँ जमा था। नरेंद्र बेंच बजाकर गा रहा था- "जलेबी बाई..." ऐसली का आज जन्मदिन था। इसलिये सबको ट्रीट दे रहा था। उससे केक का टुकड़ा लेकर उसने उसे विश किया था। किसी ने राहत के बारे में पूछा था।
"और कहाँ होगा! वही लायब्रेरी में क़िताब में सर डालकर बैठा होगा! ... आइंस्टाइन की औलाद!" तेजपाल ने मुंह बिचकाकर कहा था। राहत पढ़ाई में बहुत तेज़ है। हमेशा क्लास में अब्बल आता है।
"हमसे तो इतना पढ़ा नहीं जाता!"
"ज़रुरत भी क्या है तुम आरक्षणवालों को मेहनत करने की! बैठ-बैठकर ही सब मिल जाता है..." अरुण की बात पर जेसन ने सबकी ओर आँख मारते हुये कहा था। उसकी बात पर चारों तरफ एक दबी-दबी हंसी फैल गई थी।
सुनकर अरुण का चेहरा लाल हो उठा था। एक पल के लिये वहाँ चुप्पी पसर गई थी। फिर राका ने बढ़कर सबको डपटा था - "जी हां! इन्होंने बहुत मेहनत कर ली है, अब इन्हें आराम ही करना है! मेहनत करने की बारी अब आपसब कामचोरों की, जबतक ना इनके सारे नुकसान की भरपाई कर दें! समझे? अब उठिये और रिहर्सल में लग जाइये, ड्रामा कॉम्पीटिशन में ज़्यादा दिन नहीं रह गये हैं!"
इसके बाद भीड़ तीतर-बितर हो गई थी। दूसरे लेक्चर की घंटी भी बज गई थी। हिया जल्दी-ज्ल्दी अपनी कक्षा की ओर बढ़ गई थी। उसे ये आरक्षण आदि की राजनीति से घबराहट होती है। विद्यार्थियों को इनसे दूर ही रहना चाहिये। रेसेस के बाद आधा क्लास खाली था। को खाली क्लास देखकर मिस इफा आईं का मुंह बन गया। कितनी मेहनत से आज उन्होंने फंडामेंटल साइकॉलोजी का लेक्चर तैयार किया था। हिया सामने की बेंच पर अकेली बैठी थी। उसे याद आया आज शुक्रबार है और आइनॉक्स में 'चेन्नई एक्स्प्रेस' लगी है। सब क्लास बंक करके वहीं गये होंगे। वैसे भी टिफिन के बाद आधा क्लास अक़्सर खाली ही होता है। जब टीचर रोल नम्बर लेते हैं, स्टुडेंटस एप्लीकेशन पर हस्ताक्षर करवाने उनके ईर्द-गिर्द जमा होते हैं। इस मौके का फायदा उठाते हुये कई लड़के-लड़कियां क्लास से बाहर खिसक लेते हैं।
जब मिस सलदाना ने पर्सनालिटी डिसऑर्डर पढ़ाते हुये अनोरेक्सिया तथा बुलेमिया अर्थात ना खाने की और बहुत खाने की मानसिक बिमारी के विषय में पढ़ाना शुरु किया तो वह चौंककर ध्यान से सुनने लगी- हाल तक ये पश्चिमी देशों की समस्या मानी जाती थी, मगर आर्थिक सम्पन्नता के साथ भारत जैसे देशों में भी अब उच्च तथा उच्च मध्यम वर्ग में इसका प्रभाव दिखने लगा है। लक्षण... वही सारे जो ममता में हैं। ईलाज बहुत मुश्क़िल क्योंकि बीमार इसमें सहयोग नहीं करता। सबकी आंखों में धूल झोंखने की उसकी तमाम क़ोशिशें- खाना छिपाकर फेंक देना, खाकर गले में उंगली डालकर उल्टी कर देना, अस्पताल में मशीन पर वजन देखते हुये जेबों में कोई वजनी चीज़ छिपा लेना ताकि सही वजन का पता ना चल सके... सुन-सुनकर हिया का दिल बैठता रहा था- सहयोग ना करने की स्थिति में ईलाज के लिये ऐसे बीमारों के हाथ-पैर बांधकर रखना पड़ता है, प्रतिरोध कम करने के लिये उन्हें सेडेटेड भी किया जाता है, नली के सहारे शरीर में पोषक तत्व भेजे जाते हैं। दवाई के साथ-साथ काउंसिलिंग की ज़रुरत होती है...
उसदिन घर लौटते हुये उसे बार-बार ममता का ख़्याल आता रहा था। परीक्षा के बाद उससे मिल आयेगी सोचकर खुद को तसल्ली दी थी। गांधी चौक के पास उसने नील और जेनोभी को बाईक पर मीरामार बीच की तरफ जाते हुये देखा था मगर उसने उन्हें पुकारा नहीं था। एक अजीब-सी विरक्ति का भाव पैदा हुआ था मन में- भांड़ में जाये सब!
परीक्षा से पहले के दो दिन उसने खूब मन लगाकर पढ़ा था। फोन उठाकर अलमारी में रख दिया था, फेस बुक भी खोला नहीं था। बुआ चली गई थीं इसलिये घर में शांति थी। उसके सारे पर्चे अच्छे गये थे। आखिरी पेपर इतिहास का था। कॉलेज गई तो सबको यहां-वहां क़िताब में सर डाले हुये पाया। आंखों में जगार, उड़े हुये बाल, लड़कियों के बिना मेक अप के चेहरे... सब के हाल कमोबेश एक जैसे! मगर जेनोभी का स्टाईल बरकरार था। वही स्नग फीट टॉप, फेडेड जींस और ऊंची एड़ी का जूता! सबके साथ फादर आन्तिम भी उसे घूर कर देख रहे थे। हिया को देखकर टोनी ने उसे पास बुलाया था- "अच्छा! ज़रा ये बताओ बालिके! नेपोलियन का हाईट जानना हमारे लिये क्यों ज़रुरी है? इससे किसी का क्या भला होगा? कल सारी रात जगकर रीति काल की नायिकाओं का नख-शिख वर्णन पढ़ रहा था... यही सब पढ़-पढ़ाकर इंडिया सुपर पावर बनेगी क्या? बुल शीट" उसकी बात सुनकर हिया को हंसी आ गई थी। टोनी के बालों में आज जेल नहीं लगा था, इसलिये उसके हमेशा साही की तरह तने रहनेवाले नुकीले बाल आज चेहरे पर पस्त गिरे हुये थे। रतन एक कोने में बिना एकबार भी सर उठाये पढ़े जा रहा था। ग़रीब मां-बाप का एकलौता बेटा, उसे तीन बहनों की शादी करनी है। रात दिन इसी फिक़्र में घुला रहता है। उसे चार-पांच प्रतियोगिता परिक्षाओं में भी बैठना है। कॉलेज के बाद कई जगह ट्युशन पढ़ाता है। जाने सबकुछ कैसे मैनेज करता है!
रॉनी ने आकर टोनी से दो सौ रुपये उधार मांगे थे- "फॉर गॉड्स सेक! इज्ज़त बचा ले यार! गर्ल फ्रेंड कैंटिन में बैठी ऑडर पर ऑडर दिये जा रही है- मैक्सिकन पिज्ज़ा विथ थिक क्रस्ट एंड एक्सट्रा चीज़! मोटी बहुत खाती है! नहीं खिलाया तो जेम्स की बड़ीवाली बाईक में बैठकर अभी चली जायेगी..." उसका चेहरा यह कहते हुये रुआंसा हो आया था।
टोनी ने उसे उधार देने से मना कर दिया था - "गर्ल फ्रेंड अफोर्ड नहीं कर सकता तो रखता क्यों है?"
'ना' सुनकर छुहारे-सा मुंह बनाकर वह एक और लड़के की तरफ बढ़ गया था।
पर्चा देकर हिया बाहर आई तो उसका मन बहुत हल्का हो आया। उसका पर्चा बहुत अच्छा गया था। आज घर जाकर खूब सोना है... कितने दिन से पूरी नींद सोई नहीं। गुलमोहर के नीचे चलते हुये हिया ने सोचा था। कॉलेज कैम्पस में रास्ते की दोनों ओर कतार से गुलमोहर के पेड़ लगे हुये हैं, इस मौसम में सुर्ख फूलों से भरे हुये। झरे हुये हुलमोहर से रास्ता भी दूर-दूर तक लाल दिख रहा है। एक अच्छी बारिश के बाद चमकीली धूप निकली है। सबकुछ धुला-धुला, निखरा! हल्की चलती हवा में बोगन बेलिया के पौधे झूम रहे हैं। यह कॉलेज एक पहाड़ी पर है। ऊपर से एक तरफ मापुसा शहर दिखता है तो दूसरी तरफ पहाड़ की ढलान पर बसी झोपड़ पट्टी! मापुसा गोआ का एक छोटा और खूबसूरत शहर है। यहाँ आये हुये हिया के परिवार को दस साल हो गये हैं। जब वे यहाँ आये थे, हिया बहुत छोटी थी। स्कूल में थी। अब तो इतने सालों में यही की होकर रह गई है। हालांकि माँ बार-बार याद दिलाती हैं, यह हमारा समाज नहीं है! तेरी शादी भी यहाँ नहीं होनी है। सोचते हुये वह कैम्पस के पिछले गेट तक पहुंच गई थी। उसकी आहट पाकर एक जोड़ा दायीं तरफ बने टेनिस कोर्ट की सीढ़ियों से झांककर देखा था और हड़बड़ाकर अपने कपड़े झाड़ते हुये उठ खड़ा हुआ था। लड़की के होंठ फीके थे और लड़के के रंगे हुये। देखकर उसे हंसी आ गई थी जिसे दबाते हुये वह अनजान बनकर आगे बढ़ गई थी। चारों तरफ यही हाल है। कोई गुलमोहर के पीछे छिपा है तो कोई प्रयोगशाला में दुबका बैठा है। लायब्रेरी में भी प्रेमी युगल घंटों अलमारियों के पीछे अंधेरे कोनों में घुसे किताबें ढ़ूंढ़ते रहते हैं। जाने वह कौन-सी किताब है जो उन्हें इतना ढूंढ़ने के बावजूद आज तक नहीं मिल सकी! सोचते हुये वह गेटतक पहुंची थी जब पीछे से जसिका ने उसे आवाज़ दी थी। पास आकर उससे कहा था, चल ममता के यहाँ चलते हैं, उसकी माँ ने बुलाया है। हिया तैयार हो गई थी। वह तो खुद ही जाने की सोच रही थी कल से।
जब जसिका और हिया ममता के घर पहुंची थी, ममता सो रही थी। ममता की माँ ही उनके साथ देर तक बोलती रही थीं। ममता की आंटी की दी हुई हिदायतों पर वे पिछले दिनों से अमल करती रही थीं और उन्हें अपनी क़ोशिश में कुछ कामयाबी मिलती भी नज़र आ रही थी। उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी थी। ममता के साथ ज़्यादा से ज़्यादा समय भी बिता रही थीं। यह ज़रुरी था कि ममता का अपने मां-बाप पर पूरा विश्वास रहे और वह उनके सामने स्वयं को खोल सके. शाम को जब मां-बेटी टहलने निकलतीं, उसकी माँ उससे अपनी तथा घर की समस्यायें डिस्कस करतीं, उसकी राय मांगतीं ताकि ममता को लगे कि उसी में नहीं, सभी में कमज़ोरियां हो सकती हैं और सभी को किसी ना किसी बात में मदद की ज़रुरत होती भी है। इसमें कोई शर्म की बात नहीं। वह अब सहज होने लगी थी। उसका प्रतिरोध भी कम पड़ने लगा था। दो दिन पहले ही वह अस्पताल से लौटी थी। इस बीच उसका वजन भी तीन किलो बढ़ा था।
ममता जगी तो उन्हें देखकर बहुत खुश हुई. उसे परीक्षा ना दे पाने का बड़ा मलाल था। गुलदान में सजे सावनी के बैंजनी फूलों की तरफ देखते हुये उसने खोई-खोई आवाज़ में कहा था - "मां चाहती हैं मैं आई.ए.एस. ऑफिसर बनूं, क्योंकि कभी वे आई.ए.एस. ऑफिसर बनना चाहती थीं। लेकिन मैं तो फैशन डिजाइनर बनना चाहती हूँ। मां-बाप अपने अधूरे सपनों को अपने बच्चों में पूरा करना चाहते हैं, मगर बच्चों के अपने सपनों का क्या! पैंट पहनकर मुझे परेड करना भी अच्छा नहीं लगता, लड़के फब्तियां कसते हैं, मगर पापा को स्पोर्टस पसंद है तो मुझसे एन.सी.सी. ज्वायन करवाया। कोई मेरी मर्ज़ी क्यों नहीं पूछता? थक गई हूँ मैं एक अच्छी लड़की बनकर सबकी इच्छायें ढोते-ढोते..."
हिया ने उसकी दुबली बांहें सहलाई थी - "उन्हें अपनी पसंद-नापसंद से अवगत कराओ, आई एम श्योर, वे तुम्हारी ही ख़ुशी चाहते हैं!"
"हूँ!" सुनकर ममता मुस्कराई थी। लगता था, सबकी बातें उसतक अब पहुंचने लगी थी। शुभ संकेत था। जब वे वहाँ से निकलने लगे थे, ममता ने झिझकते हुये कहा था - "मां से कह दो मैं काउंसिलिंग के लिये डॉक्टर के पास जाने के लिये तैयार हूँ!"
कॉलेज में फेट हुआ था, सालाना जलसा, सोशल... हिन्दी विभाग ने हिन्दी दिवस मनाया था। हिया ने सब में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। इन मौकों में पढ़ाई की बोरियत और तनाव से कुछ निज़ात मिल जाती थी। दोस्तों के साथ मिलकर हर जगह घूम-घूमकर प्रोग्राम के टिकट्स बेचना, बैनर तैयार करना, डांस आदि का रिहर्सल... उसे हर बात में बहुत मज़ा आता था। फेट के दौरान उसने फैशन शो में भी हिस्सा लिया था और दूसरा ईनाम जीता था। 'मांडो'- विशेष पुर्तगाली गीत के लिये भी उसके ग्रुप को ईनाम मिला था।
दिसंबर का तो पूरा महीना ही त्यौहार और कार्यक्रमों का महीना होता है। तीन दिसंबर को सेंट ज़ेवियर्स के जन्मदिन के अवसर में पूरे गोआ में छुट्टी रहती है। उसदिन ओल्ड गोआ में बम जीसस चर्च जाने के बहाने वह नील के साथ आइनॉक्स में एक फ़िल्म भी देख आई थी। जेनोभी अचानक पढ़ाई छोड़कर अपनी माँ के पास दुबई चली गई थी। उसके बाद नील उसके पास लौट आया था। आख़िर थोड़े दिनों के ना-नुकुर के बाद वह भी मान गई थी। दोनों का साथ-साथ घूमना, समय बिताना फिर से शुरु हो गया था। मन में एक कसक तो थी, मगर नील से दूर रहना उसके लिये आसान नहीं था। फिर वह ज़्यादा भाव दिखाती तो नील किसी और के पास चला जाता। उसके लिये लड़कियां लाईन लगाकर खड़ी रहती हैं। जसिका ने भी समझाया था - "मर्दों की छोटी-छोटी बातों को इग्नोर करना सीख। वफा इनके डी.एन.ए. में नहीं होती। तुझपर मरने की क़समें खायेंगे मगर नज़र दूसरों पर लगी रहेगी। वह तो गनीमत हुई, ऊपरवाले ने इन्हें कुत्तों की तरह एक अदद पूंछ से नहीं नवाज़ा, वर्ना लडकियों के सामने लगातार हिलती ही रहती!" सुनकर रोते हुये भी उसे हंसी आ गई थी।
लायब्रेरी में पढ़ने का बहाना बनाकर इन दिनों वह नील के साथ उसकी बाईक में बैठकर घूमती रहती है। पिछली सीट में उसे बैठाकर जब नील अपनी बाईक तेज़ गति से दौड़ाता, वह रोमांच से भरकर उसकी पीठ से लग जाती और अपनी आंखें मूंद लेती। उसे लगता दोनों किसी घोड़े पर सवार होकर बादलों के बीच उड़े जा रहे हैं। सबकुछ स्वप्नवत प्रतीत होता, मांसल भी और स्पर्श से परे भी- देहातीत! अधिकतर वे शामों को वाघातोर या कलंगुट बीच पर सूर्यास्त देखने जाते। गीली रेत पर दूरतक नंगे पैरों साथ-साथ चलना, नमकीन हवा में सूखी मछली और खर-पतवार की उग्र, मादक गंध, जल पक्षियों का उदास शोर... कासनी आकाश की पृष्ठभूमि में क्षण-क्षण रंग बदलता समंदर, उसकी बेचैन लहरें... सबकुछ उसे किसी और दुनिया में खींच ले जाता। उसे प्रतीत होता वे 'एक दूजे के लिये' के 'सपना-वासु' हैं। नील गोवा का है। उसे वासु की तरह बहुत अच्छी हिन्दी नहीं आती। वह खुद बिहार की। शुरु-शुरु में उसे भी अंग्रेज़ी में दिक्कत होती थी। कभी रुमानियत से भरकर वह सोचती क्या वे इस समंदर में 'सपना-वासु' की तरह डूबकर जान नहीं दे सकते! सोचते हुये कल्पना की आंखों से उसे अपनी और नील की लाशें समंदर की सुनहरी लहरों में उभती-चुभती हुई नज़र आने लगतीं और आंखों में आंसू भर आते। नील कहता- 'तुम पागल हो!' वह रेत पर दोनों के नाम लिखती हुई उदास मुस्कराती- 'हूँ...' दूर तक बिखरी काली चट्टानों और काजू के महकते जंगलों के बीच पहली बार नील ने उसे प्यार किया था। उसने सिहरकर कहा था - 'जानते हो नील! कहीं पढ़ा था, मरते हुये एक औरत को उसका पहला चुम्बन याद आता है! तुम्हारा ये स्पर्श मुझे मेरे आख़िरी पल तक याद रहेगा!' इसके बाद दोनों के बीच एक खूबसूरत-सा मौन देरतक के लिये पसर गया था। बस माथे के ऊपर नारियल के लम्बे, चीरे पत्ते सरसराते रहे थे चढ़ते ज्वार की तेज़ हवा में। नील के साथ थोड़े दिन घूमकर उसे पता चला था, गोआ कितनी खूबसूरत जगह है। यहाँ की नाईट लाईफ- पब, डिस्कोथेक, मांडवी नदी पर तैरते रंग-बिरंगे कसिनोज़... पिछले साल पहली बार नये वर्ष की पार्टी में वह दोस्तों के साथ यहाँ के मशहूर शिस्कोथेक 'टिटोज़' में गई थी, वह भी घर में झूठ बोलकर कि उसकी सहेली का एपेंडिक्स का ऑपरेशन हुआ है, उसे उसके साथ अस्पताल में रहना है। उसे झूठ बोलना अच्छा तो नहीं लगता, मगर क्या करे! मां-बाप ही इसके लिये मजबूर करते हैं। अगर आप सच सुन नहीं सकते तो अपको झूठ ही मिलेगा! मन पसंद चीज़ों को ताले में बंद करके रखोगे तो बच्चे चुराकर ही खायेंगे! पता नहीं क्यों हमारे यहाँ लोग हमेशा नकार में जीते हैं। हर वह चीज़ जो अच्छी लगे उसीसे दूर रहो! हंसना नहीं, जीना नहीं! बस मुंह लटकाकर, मन मारकर जीते रहो! शायद इसीसे सब कुंठित और ग्रंथियों के शिकार हैं। खुद मन मुताबिक जी नहीं पाते तो दूसरों को भी जीने नहीं देते। उसी दिन 'टिटोज़' की पार्टी में उसने पहली बार लिमका में मिलाकर 'बोदका' पिया था। और भी क्या-क्या- बकार्डी रिज़र्वा के व्हाईट रम में मिलाकर ज़माइकॉन फ्लेवर का ब्रीज़र, टकिला, कॉकटेल ब्लडी मैरी, व्हाइट मिस्ट, पिना कोलाडा... पहली बार, वह भी इतना कुछ! थोड़ा-थोड़ा चखकर ही नशा हो गया था। उसे तब कहाँ पता था रम, बोदका, व्हिस्की आदि कभी एकसाथ मिलाकर नहीं पीते! गनीमत थी कि उस रात घर नहीं लौटना था। लेकिन जो भी हो, मज़ा बहुत आया था- ठहाके, रोशनी, म्युज़िक... काश वह ऐसी जगहों में अक़्सर आ-जा सकती! कितने दकियानुस हैं उसके परिवारवाले! ख़ासकर मां! उनका एक ही ध्येय है जीवन में- किसी तरह घेर-घारकर उसकी शादी करवा दे! मगर वह अपने जीवन को पूरी तरह से एंज्वाय करना चाहती है। एकबार शादी हो गई तो बस हो गई छुटटी! पहले-पहल तो दोस्तो की ज़िद्द की वजह से उसने शराब पी थी मगर अब उसे चस्का लग गया है। जब भी मौका मिलता है, पी लेती है। 'पीअर प्रेशर' में बहुत कुछ करना पड़ता है। वर्ना आप भीड़ से अलग-थलग पड़ जाओगे। नील ने भी दोस्तों के कहने में आकर सिगरेट पीना शुरु किया है। ईसाइयों की शादी में जाना हिया को इसलिये भी पसंद है कि वहाँ शराब सर्व की जाती है और डांस भी जमकर होता है। अब वह भी बॉल डांस, बालट्ज़, टेन्गो, चा-चा, ट्वीट्स, राम्बा-साम्बा- सब कर लेती है। सारा दिन घूम-घूमकर वह इतना थक जाती कि शाम को घर लौटकर उससे और कुछ नहीं होता। बस किसी तरह खा, नहाकर सो जाती। क्लासेज़ भी वह रोज़ बंक कर रही थी। नील का प्रेम उसके सर चढ़कर बोल रहा था। उसके साथ सारा दिन घूमना, देर रात तक फेसबुक पर चैट करना, मिल्स एंड बून्स सीरिज के रोमानी उपन्यास पढ़ना... कभी-कभी मन में ग्लानि के भाव भी उत्पन्न होते मगर वह अपने दिल के हाथों मजबूर हो गई थी। उसे नील के सिवा कुछ सुझ नहीं रहा था।
इस बीच ममता स्वस्थ होकर कॉलेज लौट आई थी। अब वह सबसे हंसने-बोलने लगी थी। काफी ख़ुश भी नज़र आ रही थी। शीतल और अशोक ने अचानक से सामंतवाडी भागकर शादी कर ली थी। गोआ में पुर्तगाली कानून होने की वजह से रजिस्ट्री मैरिज करने में काफी दिक्कतें आती है इसलिये यहाँ के प्रेमी युगल अक़्सर महाराष्ट्र के सामंतवाडी में जाकर विवाह कर आते हैं। वहाँ पंडित थोड़े-से पैसों के बदले में कहीं भी बैठाकर शॉर्टकट में शादी करा देते हैं और वह वैधानिक मानी जाती है। शीतल यहाँ के एक बड़े मंदिर के पुरोहित की बेटी है और अशोक दलित। शीतल के माता-पिता शीतल की शादी करना चाह रहे थे, अंत: दोनों को यह आकस्मिक निर्णय लेना पड़ा था। अब दोनों को उनके घरवाले घर से निकाल चुके थे और वे यहां-वहां भटकते फिर रहे थे। आठ-दस दिन तो दोस्तों ने चंदा करके उनका खर्च उठाया था इसके बाद अशोक ने एक शाइवर काफे में नौकरी ढूंढ़ ली थी। शीतल भी कुछ बच्चों को ट्युशन पढ़ाने लगी थी। शादी के बाद दोनों की ज़िन्दगी एकदम से बदल गई थी। घर से खा-पीकर कॉलेज के कैंटिन और पार्क में इश्क लड़ाने में और ज़िन्दगी की हकीकतों का सामना करने में बहुत फर्क होता है। थोड़े ही दिनों की मुफलिसी ने दोनों की सिटटी-पिटटी गुम कर दी थी। उनका हश्र देखकर दूसरे प्रेमियों के माथे भी ठनकने लगे थे।
बारहवीं के बोर्ड से पहले प्रीलियम्स एकदम सर पर आ गये थे। सारे टीचर्स विद्यार्थियों के पीछे उनका हौसला बुलंद करने में लगे हुये थे। प्रिंसिपल बार-बार कक्षा में आकर सरमन झाड़ते। इन सब में मिस सलदाना की बात जुदा थी। उनकी साड़ी, लिपस्टीक, गहने- सब मैचिंग होते। बिल्कुल 'मैं हूँ ना' की नायिका की तरह। सब उन्हें पीठ पीछे सुस्मिता सेन कहकर बुलाते थे। उन्हें भी इस बात का अहसास था कि वे सुस्मिता सेन की तरह दिखती हैं तभी हर बात में उनकी नकल उतारती रहती थी। मिस सलदाना के क्लास में विद्यर्थियों की उपस्थिति हमेशा सौ प्रतिशत रहा करती थी। उन्हें सब सुनते कम और देखते ज़्यादा थे। दूसरे क्लास के विद्यार्थी भी उनके लेक्चर में आ बैठते थे। उन्होनें भी एकदिन हिया को स्टाफ रुम में बुलाकर बहुत समझाया था। बताया था कि नील उसके लिये ठीक लड़का नहीं है। वह उसकी संगति छो़ड़कर पढ़ाई में मन लगाये। उनके सामने तो हिया चुपचाप सर हिलाती रही थी मगर बाहर आकर मुंह बनाया था- ऊंह! बड़ी आई समझाने!
प्रीलियम्स के लगभग सारे पर्चे उसके ख़राब गये थे। वह तो गनीमत थी कि माँ गांव गई हुई थीं वर्ना उसकी अच्छी-ख़ासी मरम्मत हो जाती। माँ परीक्षा के समय उसे इस तरह कभी छोड़कर नहीं जातीं, मगर दादी की बिमारी की ख़बर आ गई थी। घर में उनके ना होने की वजह से उसे और ज़्यादा छूट मिल गई थी। पापा सारा दिन दफ्तर में रहते। उनके पीछे अब नील छिप-छिपकर घर में भी आने लगा था। उसकी मांगों के साथ-साथ उसकी हिम्मत भी बढ़ती जा रही थी। हिया उसके सामने बेबस होकर रह जाती। उसे किसी बात के लिये ना करना उसके वश की बात नहीं रह गई थी।
परीक्षा के बाद फिर एक दुर्घटना घटी थी। बी. ए. दूसरे वर्ष में में पढ़नेवाली काम्या महाजन अपने तीन-चार दोस्तों के साथ एक पार्टी में गई थी जहां उसके कोल्ड ड्रिंक में कोई नशीली चीज़ मिलाकर कुछ लड़को ने उसके साथ बलात्कार किया था। यही नहीं, बलात्कार के बाद गला घोंटकर उसे जान से मार भी दिया था। आंजुना बीच में दूसरे दिन उसकी लाश पाई गई थी। इस घटना से कॉलेज के बच्चों में सनसनी फैल गई थी। किस बेरहमी से उसकी जान ली गई थी। बाद में उसकी हत्या के ज़ुर्म में जिन तीन लड़कों को पकड़ा गया था वे सभी ब्राउनी याने ड्रग लेनेवाले पाये गये थे। कॉलेज के ही नहीं, स्कूल के बच्चे भी आजकल ड्रग के शिकार होते जा रहे थे। स्कूल के आसपास आइसक्रीम, चाट आदि बेचनेवाले बच्चों में पहले ड्रग की आदत डालते फिर उन्हें ड्रग बेचते। कुछ दिन पहले ही प्रिंसिपल ने कॉलेज हॉस्टल से दो लड़कों को इस वजह से निकाल बाहर किया था। वे रातों को किसी सुनसान जगह में या हॉस्टल की छत पर बैठकर ड्रग लेते थे। हॉस्टल से निकाले जाने के बाद उनमें से एक लड़का अपना मानसिक संतुलन खो बैठा था और अब उसका ईलाज चल रह था। इन सारी घटनाओं ने हिया को बेहद परेशान कर दिया था। लेट नाईट पार्टियों के प्रति वह सशंकित हो उठी थी। वहाँ भी उसने अपने दोस्तों को ड्रग सिगरेट में डालकर पीते हुये या रुपहली पन्नियों में लेकर उसे नश्वार की तरह सूंघते हुये देखा था। नील ने बहुत जिद की थी मगर उसने नहीं ली थी। सबने कहा भी था- लेकर देख, एकदम जन्नत में पहुंच जायेगी!
इन दिनों उसकी परेशानी का एक कारण और भी था। उसका पीरियड दो महीने से मिस हो रहा था। कॉलेज में मिस इवॉन के फेयरवेल पार्टी में उसने दूसरी लड़कियों के साथ मिलकर एक मणिपुरी नृत्य प्रस्तुत किया था जिसके लिये उसे बांस की लाठियों के बीच बहुत कूदना पड़ा था। उसे लगा था इस वजह से उसके पीरियड में देर हो रही है। मगर देखते-देखते जब दूसरा महीना भी आकर गुज़र गया, वह चिन्तित हो उठी। अब रह-रहकर जी भी मिचलाने लगा था। मन कच्चा हो रहा था। हमेशा गुस्सा और रोना आता रहता। बात-बेबात चिढ़ भी जाती। जब भी घर में या कहीं तलने या भुनने की गंध आती उसे उल्टी हो जाती। इसी चक्कर में वह कई दिनों तक कॉलेज लायब्रेरी भी जा नहीं पाई थी। थोड़े दिन बाद उसकी खोज-ख़बर लेने जसिका उनके घर चली आई थी। उस समय वह चुपचाप बिस्तर में लेटी हुई थी। उसे देखकर जसिका को बहुत हैरत हुई थे - "अरे! ये क्या हाल बना रखा है! कुछ लेते क्यों नहीं?"
जसिका ने तो मज़ाक में कहा था मगर उसकी बात सुनकर हिया एकदम से भरभराकर रो पड़ी थी। उसे इस तरह रोते देख जसिका घबरा उठी थी- "अरे रे... रोती क्यों है! मैं तो मज़ाक कर रही थी!" मगर फिर उसकी सारी बातें सुन वह भी गंभीर हो गई थी - "मुझे तो कुछ ठीक नहीं लग रहा है!"
जसिका फार्मेसी जाकर प्रेगनेन्सी कीट खरीद लाई थी। टेस्ट का नतीजा पॉज़िटिव आया था। हिया के होश उड़ गये थे। जसिका भी चिन्तित हो उठी थी। मामला संगीन था। हिया को शांत करना कठिन हो गया था उसके लिये। वह रोते हुये बांस के पत्ते की तरह थरथरा रही थी। माँ कुछ ही दिनों में वापस आनेवाली थीं गांव से। साथ में बुआ भी आ रही थी। बोर्ड परीक्षा में भी ज़्यादा दिन नहीं बचे थे। बहुत सोच-विचार कर जसिका ने सलाह दी थी कि पहले नील से बात की जाय। देखे वह क्या कहता है। मगर हज़ार क़ोशिश के बाद जब हिया ने किसी तरह उससे फोन पर बात की थी, सारी बातें सुनकर वह देर तक चुप रह गया था और फिर किसी तरह खांसते हुये कहा था वह जल्द ही इस समस्या को सुलझाने के लिये कोई रास्ता निकाल कर उसे फोन करेगा।
हिया इसके बाद बेसब्री से उसका इंतज़ार करती रही थी मगर नील ने दुबारा मुड़कर उसे फोन नहीं किया था। वह जब भी उसे फोन करने की क़ोशिश करती उसका फोन स्वीच ऑफ ही मिलता। दिन बीतने के साथ-साथ उसकी घबराहट बढ़ती ही जा रही थी। उसकी पढ़ाई-लिखाई भी एकदम बंद पड़ गई थी। उसे कुछ भी सूझ नहीं रहा था कि वह क्या करे। बस एक जसिका का ही सहारा था। और एक दिन जसिका ने ही आकर बताया था कि आंजुना के बीच पार्टी में ड्रग बेचते हुये नील गिरफ्तार हो गया था। हिया को पता था अच्छी बॉडी के कारण नील ऐसी पार्टियों में बाउंसर की हैसियत से जाया करता है। मगर वह ड्रग भी बेचता था! सुनकर हिया को गश ही आ गया था।
आखिर जसिका ने कोई और रास्ता ना देख अपने ब्यॉय फ्रेंड शिवेन से बात की थी। शिवेन की कोई मुंहबोली भाभी एक प्राईवेट क्लीनिक में नर्स थी। उस क्लीनिक का डॉक्टर चुपचाप अबॉर्शन करने के लिये तैयार हो गया था। उसने दो-चार दिन के भीतर अबॉर्शन करवा लेने के लिये कहा था क्योंकि गर्भ तीन महीने से ज़्यादा का हो गया था। अबॉर्शन के लिये दस हज़ार रुपये की ज़रुरत थी। हिया के पास सिर्फ हज़ार रुपये ही थे। बाबूजी उसे जेब खर्च के लिये रोज़ बीस रुपये देते थे जो उसके लिये कम पड़ते थे। उसने अपनी गुल्लक तोड़कर देखी थी। ढेर-सी रेज़गारी गिनकर सात सौ रुपये और मिले थे। और कोई रास्ता ना देख उसने अपने कान की सोने की बूंदे उतारकर शिवेन को बेचने के लिये दे दी थी। माँ के सामने इसके लिये क्या बहाना बनाना है ये बाद में सोचा जाएगा। उन्हें बेचकर और पांच हज़ार का बन्दोबस्त हो गया था। जसिका ने भी हज़ार रुपये उधार दिये थे। शिवेन की भाभी के कहने पर डॉक्टर बाकी पैसे बाद में लेने को तैयार हो गया था।
बोर्ड की परीक्षा में सिर्फ सात दिन रह गये थे। माँ और बुआ गांव से आ गई थी। हिया की हालत देखकर दोनों चौंके थे। हिया ने पढ़ाई के टेंशन का बहाना बनाया था। वह अक़्सर अपने कमरे में बंद रहती। उसे बुआ की भेदती नज़रों से डर लगता। उसे प्रतीत होता जैसे बुआ उसे आर-पार देख रही हैं। अपने कमरे के एकांत में पड़ी-पड़ी वह चुपचाप रोती रहती थी। उसे ऐसे में नील की बहुत याद आती थी। उसने उसे एकबार मुड़कर फोन नहीं किया था। अकेली मरने के लिये छोड़ दिया था। गिरफ्तार तो वह इसके कई दिनों बाद हुआ था। आख़िर वह भी दूसरे मर्दों की तरह निकला! उसे उससे प्यार नहीं था, बस जिस्म की भूख थी। वह जितना सोचती उतना ही उसके दुख बढ़ जाते। जसिका ने इस बीच आकर बताया था डॉक्टर कहीं बाहर गया हुआ है। सात तारीख की सुबह तक ही लौटेगा। उसी दिन दोपहर को उसका अबॉर्शन हो पायेगा। सुनकर हिया परेशान हुई थी। आठ तारीख से उनकी बोर्ड परीक्षा शुरु होनेवाली थी। मगर क्या किया जा सकता था। अबॉर्शन तो करवाना ही था। तय हुआ था, जसिका के घर जाकर पढ़ाई करने का बहाना करके वह घर से निकलेगी और डॉक्टर के क्लीनिक जाकर अबॉर्शन करवा लेगी। शिवेन की भाभी ने बताया था, ऐसी चीज़ें बहुत आसान होती हैं और दो-चार घंटे आराम करके वह घर जा सकती है।
सात तारीख को वह सुबह जसिका के साथ घर से निकली थी। माँ ने बहुत बुरा माना था। मना भी किया था। बुआ भी उनका साथ दे रही थीं मगर किसी तरह उन्हें मनाकर वह घर से निकली थी। गली के मोड़ पर शिवेन उनके लिये इंतज़ार कर रहा था। तीनों साथ क्लीनिक पहुंचे थे। क्लीनिक में शिवेन की भाभी ने उनका स्वागत किया था। हिया बुरी तरह घबराई हुई थी। उसे रह-रहकर रोना आ रहा था। जसिका ने उसका हाथ पकड़ा हुआ था। उसकी हथेलियां पसीने से भीगी हुई थी। जसिका और शिवेन को पढ़ाई के लिये लौटना था। भाभी ने उन्हें आश्वासन दिया था कि वे सब संभाल लेंगी और हिया का ध्यान रखेंगी।
जसिका और शिवेन के जाते ही हिया का दिल बुरी तरह से घबराने लगा था। ना जाने क्यों अचानक उसे माँ की याद आने लगी थी। जी चाह रहा था किसी तरह वह अपनी माँ तक पहुंच जाये और उनकी गोद में छिप जाये। यह क्लीनिक एक निहायत गंदी, अंधेरी गली में था। वहाँ का वातावरण भी बहुत दमघोंटूं और उदासी भरा था। बीमार मरीज़ों की भीड़, चिड़चिड़ी नर्से, बदतमीज़ वार्ड ब्यॉयज़, दवाई, डेटॉल, फिनाइल की गंध और इधर-उधर से यदा-कदा आती कराहने की आवाज़ें। शायाद ओ. टी. में किसी की डिलीवरी हो रही थी। रह-रहकर उसकी तेज़ चीखें सुनाई पड़ रही थी। एक कोने में कोई सिसक-सिसककर रो रहा था। नर्सों की बातों से लग रहा था किसी का नवजात बच्चा मर गया है। "ये बच्चे होते क्या हैं, भीगे हुये रूई के नर्म गोले! आग़ लगाते ही भाप बनकर उड़ जाते हैं या गर्मी में ओस की बूंद की तरह पिघल जाते हैं, बस..." सुनकर उसने अनायास अपने तलपेट पर हाथ रख दिया था। थोड़ी ही देर बाद सफेद तौलिये में लपेटकर एक खिलौने-से बच्चे को कुछ लोग रोते-सिसकते हुये ले गये थे। हिया दुपट्टे से अपना चेहरा छिपाकर किसी तरह बैठी रही थी।
जाने कितनी देर बाद आकर शिवेन की भाभी उसे ओ. टी. में बुला ले गई थी। नीला गाउन अहनकर ऑपरेशन टेबल पर लेटकर वह अपने आसपास चलती गहमा-गहमी को महसूस करती रही थी। उसे अबॉर्शन के लिये तैयार किया जा रहा था। युनिफॉर्म में नर्से, बगल की मेज़ पर सजे तरह-तरह के औज़ार, चाकू-छुरियां, बर्तन, दवाइयां, सर के ऊपर स्पॉट लाईटस... फुसफुसाती आवाज़ें, दवाई की उग्र गंध... देखते-सुनते हुये उसकी आंखों से अनायास आंसू बहने लगे थे। जाने क्या-क्या याद आया था उसे उस पल- अपना बचपन, अपनी प्रिय गुड़िया, बाबूजी, मां, नील, उसका पहला चुम्बन, समंदर की सुनहरी लहरों पर उभती-चुभती 'सपना-वासु' की- उनकी लाशें...
उसकी भरी हुई आंखों में एक परी का सफ़ेद अक्स लहराया था। उसे एनेस्थेशिया का इंजेक्शन देते हुये वह गुनगुनाकर कह रही थी- रो मत, सब ठीक हो जायेगा, अब तुम एक अच्छी बच्ची की तरह सो जाओ... और हिया सचमुच एक अच्छी बच्ची की तरह अपने सारे सपनो और दुख के साथ चुपचाप सो गई थी!
आज बोर्ड परीक्षा शुरु हो रही है। कॉलेज कैम्पस में चारों तरफ चहल-पहल है। सभी के हाथों में खुली क़िताबें हैं, आंखों में जगार और चेहरे पर तनाव। राहत को गोआ बोर्ड में प्रथम आना है। वह पूरी तरह से तैयार है फिर भी तनाव में है। रतन नर्वस हो रहा है। वह किसी भी तरह ख़राब रिजल्ट नहीं कर सकता। उसपर उसकी तीन बहनों की जिम्मेदारी है। रोशन अपनी स्पोर्ट्स कार में आया है और कैंटिन में बैठा मस्ती कर रहा है। पढ़ाई का उसे कोई टेंशन नहीं। आगे चलकर उसे अपने बाप का जमा-जमाया बिजनेस सम्हालना है। ऋतु की आंखें उसके मोटे चश्मे के फ्रेम के पीछे पढ़-पढ़कर सूज गई हैं। उसे बहुत पढ़ना है, आई. ए. एस. ऑफिसर बनना है। मौज-मस्ती के लिये तो उम्र पड़ी है। अभी आलतू-फालतू चीज़ों में समय नहीं बर्बाद करना है उसे।
परीक्षा शुरु होने में थोड़ी ही देर रह गई है मगर एक कोने में बैठी हुई जसिका अपने सामने फैली हुई क़िताब में किसी भी तरह ध्यान नहीं लगा पा रही है। उसकी आंखों के सामने रह-रहकर हिया का चेहरा घूम रहा है। जाने कैसी है वह!
दूसरी तरफ हिया के बाबूजी और माँ हिया की डायरी में जसिका का फोन नम्बर ढूंढ़ते फिर रहे थे उसे फोन करने के लिये। हिया ने उसके साथ जाने के बाद कल दोपहर के बाद एकबार भी फोन नहीं किया था। जसिका का घर कॉलेज के पास था। हो सकता है हिया वही से कॉलेज चली जाये परीक्षा देने के लिये। ऐसा उसने पहले भी किया है। मगर उसे फोन तो करना चाहिए था एकबार। सुबह देरतक रास्ता देखने के बाद अब वे परेशान हो रहे थे और हिया के बाबूजी हिया की माँ को यह कहते हुये डांट रहे थे कि उन्होनें जसिका का फोन नम्बर कहीं लिखकर क्यों नहीं रखा!
...और इन सब से दूर एक अंधेरी गली के छोटे-से क्लीनिक के ऑफिस में शिवेन की भाभी कांपते हाथों से जसिका का नम्बर डायल कर रही थी। कलतक तो उसने किसी तरह उसे ये बोलकर बहला लिया था कि हिया को ज़्यादा रक्तपात हो जाने की वजह से ऑबजर्वेशन में रखा गया है और उसे आने की ज़रुरत नहीं, वे सब सम्हाल लेंगी। मगर अब उसे बताना ही पड़ेगा कि अपने अजन्मे बच्चे के साथ हिया भी मर गई है। वह जाकर हिया के परिवार को सूचित कर दे! इसी क्लीनिक के एक तरफ सीलन और गहरे सन्नाटे भरे अंधेरे कॉरीडोर के आखिरी छोर पर स्ट्रेचर पर सफ़ेद कपड़े से ढकी एक ठंडी, लावारिश लाश पड़ी है- सर से पांव तक निचुड़ी हुई- एकदम ज़र्द, रक्त शून्य! उसकी कोख के साथ उसके सीने का पिंजरा भी खाली हो गया है! अब ना उसमें सांसें हैं, ना जीवन है, ना कोई सपना! सब रीत गया है। शेष कुछ नहीं अब यहां- ना बसंत और ना उसकी प्रतीक्षा ही! किसी को अबतक पता नहीं, इस साल की गिनती में एक मौसम कम पड़ गया है, बसंत बिना जीवन की देहरी उतरे दबे पांव वापस चला गया है- शायद फिर कभी ना लौटने के लिये... मगर मृत्यु की इस अडोल, अझेल चुप्पी के बीच जाने कैसे किशोर हिया की दो खूबसूरत आंखें अभी भी जिन्दा हैं और उनमें मचलते समंदर की सुनहरी लहरों में वह स्पष्ट देख रही है दो उभती-चुभती लाशें... एक उसकी और दूसरी... वह अपने पहले चुम्बन को अब भी भूली नहीं है! वह उसके मृत होंठों पर जीवित है!