कांटे की नोंक / गिजुभाई बधेका / काशीनाथ त्रिवेदी

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कांटे की एक नोक।

उस पर बसे तीन गांव। दो ऊजड़ और एक बसा ही नहीं,

बसा ही नहीं।

उनमें बसे तीन कुम्हार। दो अनगढ़, और एक गढ़ता ही नहीं,

गढ़ता ही नहीं।

उसने गढ़ी तीन कड़ियां। दो कच्ची और एक पक्की ही नहीं,

पक्की ही नहीं।

उसमें पकाए तीन मूंग। दो कच्चे और एक पकता ही नहीं,

पकता ही नहीं।

वहां आए तीन मेहमान। दो रसिक, और एक खाता ही नहीं,

खाता ही नहीं।

उसने दिए तीन रुपए। दो खोटे और एक सच्चा ही नहीं,

सच्चा ही नहीं।

वहां आए तीन पारखी। दो अन्धे और एक देखता ही नहीं,

देखता ही नहीं।