काजोल प्रजाति बनाम भेड़ें / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :29 जनवरी 2016
काजोल ने इस आशय का बयान दिया है कि उन्हें 'दिलवाले' की जगह 'इंसपेक्टर रानी दुर्गावती' फिल्म करनी चाहिए थी, जो 'मर्दानी' या 'मेरीकॉम' की तरह नायिका प्रधान फिल्में हैं और उसमें उन्हें पूरा अवसर मिलता। बहुसितारा 'दिलवाले' में उनके अवसर भी कम थे और भूमिका भी प्राणहीन थी। काजोल मन में आई बात बोलने से कभी नहीं चूकतीं, भले ही इससे उन्हें नुकसान हो। यह खुलापन और साहस उनकी चारित्रिक विशेषताएं हैं। आजकल यह बहुत कहा जाता है कि 'डिप्लोमैटीकली करेक्ट' बात करनी चाहिए, जिसका अर्थ है कि 'ठाकुर सुहाती' बात करनी चाहिए और लोगों की 'हां' में 'हां' मिलाना चाहिए। यह बात बहुत मामूली नज़र आती है परंतु समाज में कितनी ही कमियों के लिए यह दृष्टिकोण उत्तरदायी है। इसकी जड़ में तो गणतंत्र व्यवस्था के विनाश की बात छुपी है। आज सारे राजनीतिक दलों में किसी एक आका के खिलाफ कोई बोलने का साहस नहीं करता। कांग्रेस में सोनिया गांधी और राहुल के खिलाफ अनेक लोग हैं परंतु कोई बोलने का साहस नहीं करता। इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ उनके दल में बहुत लोग हैं परंतु कोई बोलने का साहस नहीं जुटाता। भय का वातावरण अपने चमचों की सहायता से तैयार किया जाता है। यह तानाशाह निर्माण प्रक्रिया का हिस्सा है। हर एक के पास कुछ व्यावसायिक हुड़दंगी और कातिल होते हैं, जो भय फैलाते हैं। राजकुमार संतोषी की फिल्म 'घातक' में खलनायक नायक से कहता है कि उसे डर का हव्वा खड़ा करने में कई वर्ष लगे और उसने बस्ती में आते ही वर्षों के परिश्रम पर पानी फेर दिया। इस क्लासिक के एक दृश्य में एक मासूम अबोध है, जिसके पिता की हत्या कराई गई है और जो अभी पिंडदान से फारिग हुआ है, शक्तिशाली खलनायक के सामने जांघ को ठोंकते हुए आ खड़ा होता है। नेहरूजी ने भारत में गांधीजी के प्रथम प्रभाव के वर्णन में लिखा है कि डर का हव्वा अपने आपको विराट करते हुए डर के मूल कारण से बहुत बड़ा हो जाता है।
बहरहाल, दिलेर काजोल को इसकी कोई चिंता नहीं है कि अनेक सुपर सफल फिल्मों में उनके नायक शाहरुख एवं काजोल के पति अजय देवगन के मित्र निर्देशक रोहित शेट्टी उनके बयान से कितने नाराज हो सकते हैं। रोहित शेट्टी का विकास तो अजय देवगन के आंगन में हुआ है। दोनों के पिता एक दौर में सफल एक्शन डायरेक्टर हुए हैं।
काजोल की माता तनुजा अपने दौर में बड़ी साफ बात करने वाली महिला रही हैं और संभवत: इसी कारण उन्हें उतनी फिल्में नहीं मिलीं, जितनी कि वे हकदार थीं। तनुजा और नूतन की मां शोभना समर्थ अपने दौर मंे साहसी रहीं हैं और उन्होंने सितारे मोतीलाल से अपने अंतरंग संबंध कभी छुपाए भी नहीं। प्रेम अदीब के साथ बनी रामायण में सीता का पात्र अभिनीत करके शोभना समर्थ रातोरात पूरे देश में पूजनीय बन गईं परंतु इस लोकप्रिय छवि के भीतर दबकर उन्होंने अपनी स्वाभाविक जीवनशैली में कोई परिवर्तन नहीं किया।
अनेक वर्ष पूर्व मैं दोपहर चार बजे आरके नैयर से मिलने मुंबई की पहली बहुमंजिला इमारत उषा-किरण गया। उन दिनों नैयर और मैंने एक पटकथा बनाई थी, जिसका आधार 1941 की हॉलीवुड फिल्म 'एन अफेयर टू रिमेंबर' थी। शोभनाजी ने बैठक में प्रवेश किया और उनके पीछे-पीछे सवेक भांति-भांति की शराब की ट्रॉली लेकर आया। नैयर ने कहा, 'यह तो चाय का वक्त है।' शोभना समर्थ ने कहा कि चाय का वक्त तय हो सकता है परंतु वाइन, कम्पारी, बीयर कभी भी पी जा सकती है।
बहरहाल, कम्पारी (कुनैन आधारित अल्कोहल ड्रिंक) का दौर शुरू हुआ और जैसे ही हमने 'एन अफेयर टू रिमेंबर' का जिक्र किया, शोभना समर्थ ने हमें पूरी कहानी सुना दी और यह बताना भी नहीं भूलीं कि यह फिल्म उन्होंने मोतीलाल के साथ दर्जन बार देखी है। सिनेमाघर में उनका एक बॉक्स आरक्षित होता था। कॉजोल इन्हीं शोभना समर्थ की पोती हैं। उनके जीन्स में ही साहस है और अपने जीवन को उन्होंने खुली किताब की तरह रखा है। रहस्य के आवरण में अपराध बोध छिपाया जाता है। आज शोभना समर्थ की प्रजाति लोप होने की कगार पर है और मनुष्य के नाम पर भेड़ें बढ़ती जा रही हैं, जिन्हें एक दिशा में हांका जा सकता है।
'एन अफेयर ू रिमेंबर' पर अशोक कुमार, प्रदीप और मीना अभिनीत 'भीगी रात' तथा साधना अभिनीत 'अारजू' बनी थी। नैयर की यह फिल्म संजय दत्त के टाडा में पहली बार जेल जाने के कारण निरस्त हो गई।