कानपुर टु कालापानी / भाग 2 / रूपसिंह चंदेल

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सरजू जब भी पुराना कानपुर के अपने उस घर में रहता, जिसे उसके पिता ने मरने से कुछ पहले बनवाया था, वह प्रतिदिन सुबह-शाम गंगा स्नान किया करता। रानी घाट उसके घर से अधिक दूर नहीं था, जिसके विषय में उसने सुना था कि उसे किसी सुक्खा मुल्ला ने बनवाया था। वैसे वहाँ नौ घाट थे। फर्रुखाबाद के दीपचंद अग्रवाल ने वहाँ पांच घाट बनवाए थे और एक घाट सोनादासी बैरागी ने बनवाया था। ये पुराने घाट थे। बाद में हरप्रसाद मिसिर और भवानीदीन बुप्पल ने भी घाट बनवाए थे।

त्यौहार और अन्य अवसरों पर सभी घाटों में भीड़ रहती, लेकिन शेष दिनों में रानी घाट में ही अधिकांश लोग स्नान किया करते। बचपन से ही सुबह जल्दी उठ जाने का उसका अभ्यास था। मुंह अँधेरा रहते वह स्नान कर लौट आया करता था। लेकिन जिस दिन उसे लखनऊ जाना होता वह सुबह बहुत जल्दी स्नान करके लखनऊ के लिए प्रस्थान कर देता। माह में एक बार वह ऎसा करता। कुछ परिचित इसे उसकी सनक कहते, लेकिन इसमें उसे आनन्द आता। वह स्वयं नहीं जानता था कि वह ऎसा क्यों करता है। कोई धार्मिक उद्देश्य भी नहीं था उसका इस सबके पीछे। बस मन में एक तरंग उठती और वह गोमती में स्नान करने के लिए चल देता।

उस दिन भी जब उसने घर से प्रस्थान किया सुबह के पांच बज रहे थे। हालांकि उसके पास समय देखने का कोई साधन नहीं था और रास्ते में जो लोग मिले उनके पास भी घड़ी नहीं थी और होती भी तो भी पूछने का कोई अर्थ वह नहीं समझता था। लखनऊ जाना है और वह भी पैदल तो किसी से समय पूछकर भी क्या लाभ। समय पूछते ही तो वह गोमती के किनारे उपस्थित नहीं हो जाएगा। वह सोचता।