कानों में प्याज के झुमके, आंखों में प्याज के आंसू / जयप्रकाश चौकसे

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कानों में प्याज के झुमके, आंखों में प्याज के आंसू
प्रकाशन तिथि : 16 दिसम्बर 2019


अक्षय कुमार ने प्याज को काटकर उसे झुमके की शक्ल दी और प्याज के झुमके अपनी पत्नी ट्विंकल खन्ना को भेंट स्वरूप दिए। सितारे अपने घर में लाई सब्जियों या फलों की कीमत नहीं जानते। उनके सेवक ही सारा काम करते हैं। एक टीवी कार्यक्रम में सितारों से कीमतें पूछी गईं तो ज्ञात हुआ कि उन्हें महंगाई की जानकारी ही नहीं है। एक बार ऋषि कपूर ने अपने बैंक स्टेटमेंट को देखा तो उन्हें ज्ञात हुआ कि उनका ड्राइवर उनसे चेक पर हस्ताक्षर कराकर खूब रकम निकाल लेता था। जानकारी मिलते ही दूसरा प्रबंध कर लिया गया। आम आदमी के पात्रों को अभिनीत करने वाले सितारों को आम आदमी की कठिनाइयों का कोई अंदाजा नहीं होता है।

सिनेमा का जन्म ही आम आदमी को मनोरंजन प्रदान करने के लिए हुआ था। अमेरिका में औद्योगिक क्रांति के पश्चात सिनेमा को फैक्ट्री के गोदाम में दिखाया जाता था और चौकीदार के लिए बने बॉक्स से टिकट बेचे जाते थे, इसलिए सिनेमा की आय को बॉक्स ऑफिस कहा जाता है। निरंतर विकास करती फिल्म टेक्नोलॉजी ने वितरण और प्रदर्शन के तौर-तरीकों में भारी परिवर्तन कर दिया है, परंतु आज भी हमारी सफलतम फिल्म को सिनेमाघर में देखने वालों की संख्या मात्र पांच करोड़ है।

फ्रांस की रानी मेरी एंटोनेट के बारे में एक लतीफा बड़ा प्रसिद्ध है कि जब रानी को बताया गया कि आम आदमी डबल रोटी नहीं खरीद पा रहा है तो रानी ने कहा कि आम आदमी को केक और पेस्ट्री खरीदना चाहिए। भारतीय उपन्यासकार भिख्खू ने इस रानी पर अत्यंत विश्वसनीय उपन्यास हिंदी में लिखा है।

आज भारत बच्चों के कुपोषण में अग्रणी देश बन चुका है। कुछ संस्थाएं अपने सीमित साधनों से इस मोर्चे पर डटकर काम कर रही हैं। भावी पीढ़ियों के प्रति उदासीनता भयावह लगती है। शादी के स्वागत समारोह में भोजन का अपव्यय होता है। मेहमान आवश्यकता से अधिक भोजन अपनी प्लेट में लेते हैं। इसे आमिर अभिनीत 'थ्री-ईडियट्स' के एक दृश्य में रेखांकित किया गया है। जिया सरहदी की बलराज साहनी अभिनीत फिल्म 'हम लोग' में कामगार दोपहर का भोजन आपस में आदान-प्रदान करके ग्रहण करते हैं। नरगिस के भाई अख्तर अभिनीत पात्र भोजन कक्ष में केवल नीबू लेकर आता है और सब के भोजन का सहभागी बन जाता है।

इरफान खान अभिनीत 'लंच बॉक्स' अलग मिजाज की प्रेम कथा थी। मुंबई के दफ्तरों में लंच बॉक्स देने का काम एक कंपनी करती है। वे डिब्बे पर अपना कोड लिखते हैं और कभी गलती नहीं होती। उनकी इस व्यवस्था का अध्ययन करने विदेशी भारत आए थे। असमान वितरण से व्यथित कवियों ने भी इसे रेखांकित किया है। 'जिन्हें प्यास है, उन्हें कम से कम, जिन्हें प्यास कम उन्हें दम ब दम।' एक अन्य कवि की रचना है...'हाय! समुंदर पर बरसता पानी, हाय! प्यासों को तरसता पानी।'

खाने-पीने की चीजों में मिलावट के कारण आजकल कुछ लोग अपने घर की छतों पर ही सब्जियां उगाने लगे हैं। बुरहानपुर की माइक्रोविजन शिक्षा संस्था ऑर्गेनिक खेती कर अपने छात्रों को भोजन करा रही है। दरअसल हम हर काम के लिए सरकार पर निर्भर नहीं रह सकते। सामूहिक प्रयास से ही समस्याएं सुलझाई जा सकती हैं। भारत में सबसे कम जमीन पर खेती होती है और सिंचाई सुविधा भी सीमित है। एक वर्ष अमेरिका में बहुत अधिक धान उपजा तो वहां की पूंजीवादी सरकार ने हजारों टन अनाज समुद्र में डुबा दिया, ताकि उनकी कीमतों में कमी न आ जाए। महंगाई कोई दैवीय प्रकोप नहीं है। यह व्यवस्था की असफलता है। सत्यजीत राय ने बंगाल के अकाल पर फिल्म बनाई थी 'अकालेर संधाने'। वह मनुष्य का रचा अकाल था, इसलिए पूरी फिल्म में चारों ओर हरियाली दिखाई गई है। आज तीव्र गति से अनाज एक जगह से दूसरी जगह भेजा जा सकता है। मनुष्य द्वारा निर्मित अकाल पर अमर्त्य सेन ने सारगर्भित लिखा है। प्याज की कमी से सरकार गिर जाने वाला दौर अब संभव नहीं है। प्राचीन अफीम के नशे में ग़ाफ़िल आम आदमी कुछ करना ही नहीं चाहता।