काफी-कुछ / दीपक मशाल

Gadya Kosh से
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यूँ तो आज तक उसने दसियों लड़कियों के साथ नैन-मटक्का किये, गलबहियां कीं और कितनों के साथ सीमाओं को लाँघा लेकिन किसी में भी वो बात नहीं थी जो इस लड़की में दिखी। क्या गोरा रंग, गज़ब के तीखे नैन-नक्श, मानो अप्सरा के साँचे में ढाल ज़मीं पर उतारा गया हो उसे। उसने एक बार देखते ही हाँ कर दी, लड़की से पूछने की जरूरत भी ना समझी। लड़के और लड़की वालों ने एक दूजे का मुँह मीठा कराया, तुरत-फुरत अंगूठियाँ बदली गईं और तारीखें निकलने की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई।

ये परसों की बात थी।। आज सुना है उसने लड़की वालों को अंगूठी वापस भिजवा दी, मोहल्ले के मुन्ना ने कल रात उसे बताया था, “अरे उसका तो प्यार का चक्कर था किसी के साथ, जिसने इसे छोड़ दिया। सुना है दोनों के बीच 'काफी-कुछ' हो चुका था।”