कामरेड का मकान / राजा सिंह

Gadya Kosh से
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ग्वाल टोली कानपुर की टेड़ी मेढ़ी गलियाँ। एक ऐसे ही गली के मोड़ पर स्थित था कामरेड बलदेव का मकान। मकान क्या उसे खँडहर या अभिशप्त मकान कहना ज़्यादा ठीक लगता है, जिसमे अब भी कुछ लोग रहते है।कभी यह मकान चहल पहल भरा बहस मुहावसों और गहमा गहमी का केंद्र हुआ करता था।उसमे निकलने वाली आवाजें कभी तेज कभी फुसफुसाहटों से भरी थी।आजकल उस मकान में एक सन्नाटा-सा पसरा रहता है, कभी आवाजें निकली भी तो मरी हुई सी.मकान के पुतले चलते फिरते, उठते बैठते निशब्द दिखाई पड़ते थे, बीच-बीच में एक मरी-सी बिफरने की आवाज सुनाई पड़ती थी, वह थी एक दस साल के बच्चे की। उसे अपनी मांग मनवाने के लिए चीखना ही पड़ता था।परन्तु वह चीख शीघ्र शांत हो जाती थी जैसे किसी ने जबरदस्ती उसे बंद करवाया है या उसकी मांग तुरंत पूरी हो गयी हो।परन्तु किसी भी हालत में दूसरी आवाज नहीं गूंजती थी।

उस तीन कोठरिओं के गरीब और निर्बल मकान से अक्सर पुरानी आवाजे निकलती है, जो इसमे व्याप्त PARCHHAYIघटनाओं का सजीव चित्रण प्रस्तुत करती है...

"आज, अभिहि से कहाँ निकरे जा रहे हो? बिना कुछ खाए पिए." पार्वती टोकती है।

"आज से मिल मा हड़ताल है, तह्के खातिर जल्दी जावेक है।" बलदेव ने कहा।

" काहे?

" मिल मालिक पगार नहीं बढ़ा रहे है।हमारी यूनियन ने इस कारन हड़ताल चालू किया है।

"अरे! ठीक ठाक पैसा तो मिलत है।चार बच्चन और हम दूय मनई, कुल मिलकर छै जाने का काम तो चल जावत है।और हर महीना देर सबेर कुछ न कुछ बिपदा बरे बच भी जात है।"

"नहीं, लूट है लूट! वे सब मख्खन मलाई खाते है और हम सबका सूखी रोटी के भी लाले पड़े है।उन सबन के बच्चा कान्वेंट में पढ़त है और मजदूरों के सरकारी सडियल सकूलन मा।यह अन्याय है अत्याचार है, और गैर बराबरी है।हमारी यूनियन कहती है कि हम हड़ताल करके मालिकों को मजबूर कर देब की वह हम सबकी तनख्वाह बढ़ाए."

"बेकार के पचड़े मा जिन पड़ा।"

"क्यों? तुम्हे ज़्यादा पैसा काटत है का?"


"नहीं! मूला, बिना बात के झंझट मोल लेन की कोई ज़रूरत न है।हम कहे देत है कि उन मालिक लोगन की बराबरी ठीक बात न है।"

"अरे! कुछ नहीं होता है।कोई हम अकेले थोरो है।कम से कम पांच छै हजार मजदूर हमारे साथ है।—जो हमसे टकराएगा चूर-चूर हो जायेगा...हर जोर जुलम की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है..." बलदेव ने एक जोर की हुँकार लगाई.पार्वती सहम गयी।फिर थोड़ी देर चुप रह कर बोली-

"जब हड़ताल है तो मिल जाने की कौन ज़रूरत? काम तो करना नहीं है तो घरे बैठो।"

"तुम तो कुछ समझत नाही हो।हम सब मजदूर वहाँ गेट में एकत्त्ठा हुई कर, धरना, प्रदर्शन, नारेबाजी करेक है।और अगर कोई मजदूर हड़ताल मा शामिल न हिये तो जबर दस्ती शामिल करेक है।सेक्रेटरी साहेब ने सबको समय से पहले आने को कहींन है।"

"अच्छा! जाय से पहले कुछ खाय जाव।"

"नाही, देर हुए जाय।"

पार्वती नहीं मानी और जल्दी-जल्दी से दो मोटी रोटी बना कर नमक आचार से उसे परस दिया।बलदेव उतावले पन से जल्दी-जल्दी उन्हें गटक कर रफूचक्कर हो गया।वह अपनी तीनो लड़कियों को स्कूल भेजने की तैय्यारी में जूट गयी।तीनों लड़कियाँ क्रमशः चौथे, तीसरे और दूसरे में पढ़ती थी।सबसे छोटा लड़का था करीब एक साल का, वह माँ के साथ बना रहता था।

आज हड़ताल का सत्रहवा दिन है।यह मकान जो गारे मिट्टी की चूने की नीव पर खड़ा है, गवाही दे रहा है-अपने वजूद के साथ कि उस समय उठते हौसलों और हिम्मत की जंग जारी थी।घर के सारे पैसे चुक चुके थे।अब उधार पर ज़िन्दगी आ गयी थी।परन्तु दरों दीवार से अफ़सोस और सिसकियों की जगह पर सफल हो जाने की लालसा अपने चरम पर थी।उम्मीद पूरी तरह से तारी थी की अंतिम विजय मजदूरों की होना निश्चित है।

हड़ताल तोड़ने की तमाम कोशिशे नाकामयाब हो चुकी थी।मजदूरों की एकता बदस्तुर जारी थी।नेता एस.ऍम।बनर्जी का आदेश सभी के सर पर भूत की तरह सवार था, कुछ भी हो झुकेंगे नहीं।मिल के सेक्रेटरी बनर्जी को पकड़ने के प्रयाश किये जा रहे थे, जिससे कि हड़ताल को तोड़ा जा सके परन्तु वह पकड़ में नहीं आ रहे थे।वे भागे-भागे फिर रहे थे और मजदूरों को संगठित करने का कोई मौका चूक नहीं रहे थे।मिल की हड़ताल जारी थी।आगे की कार्यवाही की रुपरेखा बनानी थी।यूनियन के ऑफिस पर मीटिंग करना सम्भव नहीं था।पुलिस द्वारा सभी को पकड़ लिए जाने की आशंका थी और मीटिंग फिस्स।कोई गुप्त जगह, बलदेव का घर चुना गया।सारी व्यवस्था बलदेव को करने थी। सभी के लिए चाय नास्ते की


व्यवस्था भी देखने थी और पैसे कहाँ से आयें यह भी देखना था।फिर उधार का सहारा लिया गया, जिसमे बलदेव कामयाब रहा।कुल जमा दस बारह लोग थे।मिल मैनेजमेंट के साथ तीन वार्ताएँ फेल हो चुकी थी।प्रवंधन पहले हड़ताल वापस लेने की शर्त रख रहा है।और यूनियन पहले मांगे माँने जाने पर तुली है।इस मीटिंग में निर्णय लिया गया कि हड़ताल जारी रखी जाये।भीतरघात के खतरे से बचने के लिए निर्णय लिया गया कि सादे कपड़ो में कुछ विश्वश्नीय मजदूर गेट पर तैनात किये जाय जिनका लीडर बलदेव होगा।ये लोग गद्दारी करने वाले मजदूरों को सबक सिखायेगे।गद्दार मजदूरों को हर हॉल में मिल में प्रवेश करने से रोका जायेगा।

मिल की हड़ताल को तीन महीने से ज़्यादा बीत चुके थे कोई भी पक्ष झुकने को तैयार नहीं था।एक और वार्ता फेल हो चुकी थी।मैनेजमेंट ने थोड़ी बहुत बढ़ोतरी का आफर दिया था, और हड़ताल के समय का पैसा देने को भी मना कर दिया।जिसे यूनियन ने ठुकरा दिया था। हड़ताल जारी रही, वार्ता भंग हो गयी।बनर्जी नेता गिरफ्तार हो गए मिल के गेट पर नोटिस चस्पा कर दिया गया कि हफ्ते भर के भीतर सभी मजदूर काम पर लौट आयें नहीं तो गैर हाजिर मजदूरों की सेवा समाप्त।इस धमकी का असर हुआ।कुछ मजदूर काम पर लौट आयें परन्तु इतने कम मजदूरों से काम शुरू नहीं किया जा सका...सरकार के बीच बचाव के तहत मैनेजमेंट और यूनियन के बीच फिर वार्ता हुए किन्तु नतीजा रहा शुन्य।अंततः मिल मालिकों ने तालाबंदी की घोषणा कर दी।

सभी मजदूर बेरोजगार हो गए.भूखों मरने लगे तो नये-नये घंधे पकड़ लिए.कोई रिक्सा चलाने लगा, पल्लेदारी, ईटा भट्टा में लग गया और कोई खेतिहर मजदूरी के लिए निकल गया।कोई मकान निर्माण की मजदूरी में।बलदेव मकान की पुताई का काम पकड़ लिया।क्योकि उसके पड़ोस में इसी काम को करता एक मजदूर साथी मिल गया था।सभी बच्चो की पढाई छूट गयी।जब भोजन की समस्या आ गयी तो पढाई कौन पूछे।अब बिल्लू का दूध छूटा।इसके साथ ही पार्वती ने भी घर का खर्चा चलाने के लिए घरों का चौका बर्तन का काम पकड़ लिया।उसे किस्मत को कोसने का काम सबसे आसान लगता, वही काम वह अक्सर खाली बैठने पर किया करती। मिल मालिको को मिल बंद करने की क्या ज़रूरत ऑन पड़ी थी? यूनियन वालों को हड़ताल करने की क्या ज़रूरत थी?

आज बलदेव को बुखार है।इसलिए कुछ-कुछ ढीला और लस्त है।जाने का मन नहीं है परन्तु जाना मज़बूरी है।पार्वती ने रोटिया बांध दी है, जिसे वह दोपहर के आधा घंटा की छुट्टी पर खाता है।रोज रोज की मजदूरी से घर चलता है।पार्वती को महीने पर पैसे मिलते है।पार्वती की बड़ी बेटी भी काम करने लगी है उसे माँ ने दो चार घर दिलवा दिए है।रीता बाद में काम पर जाती है।मझली बेटी बबिता और छोटी सपना बिल्लू के देखभाल और अपने घर का काम देखने के लिए घर पर रहते है।इस महगाई के ज़माने पर इतने लोग काम करते है तो रोटी दाल का जुगाड़ हो पाता है।बिल्लू अभी दो साल का हुआ है।वह माँ को बड़ी मुश्किल से छोड़ता है।सपना और बबिता किसी तरह से बिल्लू को मार,


डांट, बहला फुसला कर अपने साथ रोकती है।सपना और बबिता में भी काम काज और बिल्लू को लेकर लड़ाई झगडा बहस और तकरार दिन भर चलती रहती है।फिर भी वे दोनों लड़ते झगड़ते रोते पीटते उलझते और बिल्लू को खिलाते, काम निपटा ही लेती है।पार्वती जब आती है तो सबकी शिकायते सुनते समझाते मामला सुलटाती है।कुछ ही देर में शाम के चार बज जाते है वह दोनों सेकंड राउंड काम के लिए निकल पड़ती है।

शाम के सात बज गए है।सभी लोग बलदेव का इंतज़ार कर रहे है।वह आता है तो कुछ न कुछ खाने का ज़रूर लाता है।घर में हुडदंग मची है।चिल्ल्चौथ है।

अचानक घर सहम जाता है।सब शांत हो जाते है।और भौचक उस आगुन्तक को देखने लगते है जो मरा चेहरा लिए उनके बीच दाखिल हो जाता है।वह बलदेव का साथी कल्लू है।

"भौजी! जल्दी चलो, बलदेव का एक्सीडेंट हुए गया।हॉस्पिटल मा भरती है।"

"कहाँ, कैसे?" चीख उठी पार्वती।

उसने बताया शाम को काम ख़तम करने से पहले ही।वह तीन मंजिला बल्लियों में बंधी पाड़ पर चढ़ कर बिल्डिंग की पुताई काम समाप्त करके उतरने ही वाला था कि बेध्याने में वह से फिसिलकर गिर पड़ा, बलदेव। "उसे बहुत चोट लगी है।हम सब उसे उठाकर पास के सरकारी अस्पताल में भरती कर आए है।चलो, जल्दी करो!" पार्वती ने छोटे को गोंद में उठाया और निकल पड़ी, भागती हुई, कल्लू के साथ हॉस्पिटल को।

घर में रह गयी है तीन बेबस, निरीह, भयाक्रांत और आशंकित तीन बेटियाँ।घर आशंका से काँप रहा है।किसी को कोई होश नहीं है।भूख प्यास सब खो गयी।रात धीरे-धीरे उतर रही थी, परन्तु तीनो लड़कियाँ खो गयी है।माँ और छोटे के साथ अस्पताल में बिचर रही है।तीनो लडकियाँ भी अपने बापू का चोटिल चेहरा और शरीर को तलाश रही है, अस्पताल के प्रांगण में अपने मन मष्तिष्क के अनुरूप।अँधेरे ने पूरी तरह घर को अपने आगोश में ले लिया था।तीनो अधेरे में बिलींन थे कि बड़ी चिहुकी और झटके से उसने बिजली का स्विच ओंन कर दिया।तीनो के सफ़ेद पड़े चेहरे घर के चूने से पुते मकान की सफ़ेद दीवालों से एकाकार कर उठे।छोटी सुबकी, फिर रो उठी।उसे देखकर मझली रोने लगी।दोनों को चुप कराती बड़ी भी सिसक उठी।घर में रुदन का अलाप गूंज उठा।घर की सभी कोठारियाँ एक साथ सिसक उठी, एक बेतरतीब क्रम में।

तीन रात और चार दिन बलदेव अस्पताल में रहा।सफ़ेद पट्टियों से टूटे फूटे शरीर और लहू लुहान चेहरे के साथ।मानो कफ़न को सफ़ेद पट्टियों में तब्दील करके पूरे बदन में लपेट दिया गया हो।बेहिसाब


रोती पार्वती, आर्तनाद करती तीनों बेटिओं और मासूम अनभिग्न छोटे की क़ातर पुकार भी बलदेव को मौत के मुंह से वापस न ला सकी।सरकारी अपताल के आधे-अधूरे या शायद पूरे प्रयास भी नाकाफी सिध्य हुए.

मकान ने मायूशी दुःख और बेबसी से अपने मालिक बलदेव को पहली बार अजीवित प्रवेश दिया।जहाँ से उसके शरीर की अंतिम बिदाई संपन्न की गयी।इस घर के बाशिंदों के साथ मकान भी फूट-फूट कर रो उठा, जिसने बलदेव के साथ सुख दुख और उत्साह उमंग और नेतागीरी के कई लम्हे जिन्दा जियें थे।मकान भी आखिर कब तक दर्द सहता।दस-बारह दिन भी ढंग से न बीते थे की तेहरवे दिन घर का दरवाजा गलकर गिर गया।जब दरवाजा लड़खड़ा कर गिरा तो पता चला की दरवाजे की चौखट को घुन खा गयी थी।

घर खुल गया था।कोई भी बेरोक टोक आ जा सकता था।तुरंत भरपाई के लिए टाट के पर्दे का इंतज़ाम किया गया।उससे पर्दा तो हो गया परन्तु सुरक्षा नहीं थी। रीता जहाँ काम करती थी वहाँ से कुछ उधार मांग लायी।आम की लकड़ी के दरवाजे का इन्तेजाम किया गया और शीशम के दरवाजे को आग के हवाले किया गया। जो घुन खाया वैसे ही तार-तार हो रहा था जैसे कि चौखट थी।पुराने ऐसे ही ख़तम होते है और नए ऐसे ही आते है।

रीता बड़ी हो गयी थी।वह साँवली मगर खुबसूरत थी।वह ज्यादतर समय उपर के कमरे में रहती और अपने बनाव शृंगार में मगन रहती।खाली समय में वह-वह छज्जे बालकनी में टिकी रहती और गली में आने जाने वालों को निहारा करती।उसे काम काज के लिए एक ऐसा घर मिल गया था कि उसमे काम कम और पैसा और सुविधाएँ ज़्यादा थी।उस घर के मालिक और मालकिन दोनों सर्विस में थे और उनके एक छोटा बच्चा था जो करीब एक डेढ़ साल का था।वे दोनों सुबह दस बजे सर्विस के लिए निकलते थे तो उनके बच्चे की देखभाल के लिए रीता को वही रुकना पड़ता था जब तक वे दोनों सर्विस से लौट नहीं आते।यहाँ रीता सुबह आठ बजे जाती थी और लौट कर करीब छै के बाद ही घर आ पाती थी।इस एक घर से ही उसे तीन चार घरों से ज़्यादा पैसा तो मिलता ही था और खाने पीने को भी सारा दिन अच्छा मिलता रहता था।मेम साहेब उसे अपने रिजेक्ट किये कपड़े देती थी जो आधुनिक फैशन के होते थे।रीता यह घर पाकर काफी प्रसन्न थी।इसलिए वह यही एक घर का काम करती थी।महीने के पैसे घर में दे देने का बावजूद उसे अपने खर्च के लिए भी वह दोनों उसे अलग से भी पैसे देते रहते थे।और उनके प्रसन्न हो जाने पर गिफ्ट आदि भी मिल जाया करते थे, जिसे वह घर पर ले आया करती। फैशनेबुल कपडे पहनने के कारण उसमे खूबसूरती का अहसास ज़्यादा भरता रहता।इलाके के शोहदों में वह चर्चित हस्ती थी।परन्तु वह किसी को भाव नहीं देती थी।सिर्फ अपने काम से काम रखती थी।इस कारण भी वह ईर्षा की पात्र थी।


मकान का छज्जा हिल रहा है।शाम के सात से ज़्यादा बज चुके है और रीता ने अभी तक छज्जे में कदम नहीं रखा है।वस्तुतः बड़ी अभी तक घर में आयी ही नहीं है।छज्जा उदास है।उसकी उदासी पसर-कर सारे घर में फ़ैल गयी है।सबको चिंता होने लगी है।पार्वती परेशांन है।सपना बबिता बिल्लू पुछ पूछ कर उसे हलकान किये है।बबिता अक्सर बीमार रहती है।वह बड़ी मुस्किल से एक घर का काम कर पाती है।वह जल्दी थक जाती है।परन्तु वह घर के काम काज और खाना बनाने में माँ का सहयोग ज़रूर करती, अपनी सामर्थ के अनुसार।

रात के आठ भी बज चुके है और रीता अभी तक नहीं आयी है।पार्वती ने बिल्लू को बबिता के सहारे छोड़ा और खुद सपना को लेकर रीता की खोज में निकल पड़ी।रीता के काम वाले घर जाकर पता किया तो वह वहाँ से छै बजे निकल चुकी थी।फिर कहाँ गयी? वह सीधे घर ही आती है।वह और सपना रास्ते भर इधर उधर देखती पूछते पाँछते आ रही थी।कहाँ गयी? कुछ पता न चला।जमीन खा गयी या आकाश में खो गयी।थक हार कर वह वापस लौटी, शायद अब वह घर आ गयी हो।परन्तु वह नहीं आई.

अब पार्वती क्या करे? रात के दस बज गए थे।यह बात गली मोहल्ले में फैल गयी थी।जितने मुंह उतनी बाते हो रही थी...कोई कह रहा था कि किसी प्रेमी के साथ भाग गयी होगी? ...खुबसूरत थी उसका अपहरण हो गया होगा...कही रेपित होकर बेहोस न पड़ी हो? ...कही हत्या न हो गयी हो...एक्सीडेंट भी हो सकता है।? ...अनुमानों का बाज़ार गर्म था...आत्महत्या भी कर सकती है...नहीं वह आत्महत्या वाली नहीं थी...लोगो ने कहा कि पुलिस में रिपोर्ट गुमसुदकी की लिखा दो...किसी ने कहा सुबह तक इंतज़ार कर लो...अपने मन से गयी होगी तो सुबह तक लौट कर आ जाएगी।

अगले दिन पार्वती पुलिस चौकी पहुंची रपट लिखवाने।उसकी रपट नहीं लिखी गयी और धमका कर भगा दिया गया।-किसी के साथ भाग गयी होगी, मौज मस्ती करके आ जायेगी।कई दिन पुलिस के चक्कर लगाने के बाद रपट नहीं लिखी गयी।उसने रीता के मालिक जहाँ वह काम करती थी उनसे रिपोर्ट लिखवाने में मदद का अनुरोध किया।यह सोच कर बात उनके ऊँपर भी आनी है, उन्होंने उसके साथ जाकर रीता की गुमसुद्की की रिपोर्ट दर्ज करवायी।

अब पार्वती का रोज का काम यह भी हो गया कि पुलिस थाने जाना और रीता के विषय में पूछताछ करना।वहाँ से डांट फटकार और अपने बेइज्जती कराकर बिना किसी जानकारी के वापस आ जाना।वह थाने तीन चार घरों का काम निपटने के बाद करीब एक से डेढ़ बजे के बीच, नियम से जाती थी।परन्तु वहाँ से उसे कोई जानकारी ना मिलनी थी न मिली।शायद उन्होंने कोई प्रयाश भी न किया।

घर पूरी तरह निराश और हतास हो चूका था।रीता को गायब हुए छै माह से ज़्यादा बीत चुके थे।घर और निवासी पूरी तरह न उम्मीद हो चुके थे।सपना बिल्लू और बबिता पूंछ-पूंछ कर रो धो कर त्रस्त हो चुके थे।सबसे ज़्यादा मानसिक और शारीरिक रूप से त्रस्त पार्वती थी।जिसके आंसू रो-रो कर सूख गए थे।धीरे धीरे रीता घर की स्मृति में ही संजोय के रह गयी थी।हर बार रीता अपने मूर्त रूप में फिर


खड़ी हो जाती जब पार्वती थाने से पुनः-पुनः दुत्कार के भगाई जाती और वह दुनिया और अपने को कोसते हुए घर आकर जार-जार रोते हुए पूरा दुखड़ा बयाँ करती। उसके साथ पूरा घर भी पुनः आँसूओं में डूब जाता।

रीता की अनुपस्थिति में मकान का वह कोना सबसे ज़्यादा उदास था जिसे बालकनी या छज्जा कहते है।उसकी खबर और देखभाल करने वाला कोई नहीं रहा था।छज्जा बीरान हो गया था।महीने दो महीने बीमार बबिता कभी-कभी आती तो वह और उदासी से घिर जाता।वह सोचता इससे बेहतर तो वह न आती तो ज़्यादा बेहतर होता।छज्जा नीरस, हतासा, उदासी और इंतज़ार को झेलते-झेलते गम से लटक गया।उसने ख़ुदकुशी कर ली।एक दिन रीता के गायब होने की वर्षी पर वह टूटकर गिर पड़ा और गली पर क्षत बिक्षत होकर बिखर गया।

मझली बबिता पिता बलदेव की दुलारी थी।उसका रंग सबसे खुला हुआ था।पढ़ने में भी वह जहीन थी।परन्तु पिता के मरते ही, बीमारी उसकी साथी बन गयी।पिता का अभाव उसे सबसे ज़्यादा छील गया और वह दिन प्रतिदिन सूखती जा रही थी।बाहर के घरों का काम छुट गया था परन्तु घर में रहकर घर का सारा काम वह निपटा दिया करती।रीता के जाने के बाद घर का खर्च खाली पार्वती की कमाई से नहीं चल सकता इस कारण छोटी सपना को बाहर के काम के मैदान में उतारा गया।रीता के छोड़े घर एक-एक करके सपना ने पकड़ लिए.बबिता घर का काम किसी तरह घिसट-घिसट कर निपटा लेती थी।बबिता का इलाज भी चलता रहता परन्तु वह ठीक होने का नाम नहीं ले रही थी।

जब सुबह सात बाजे पार्वती और सपना काम करने के लिए बाहर निकलने वाले थे तो देखा, सपना अभी तक सो कर नहीं उठी है।यह अप्रत्याशित और अविश्वनीय था।वह अक्सर छै से पहले ही उठ जाती थी।आज क्या हुआ? माँ ने उठाने की कोशिश की।उसने आँख खोली परन्तु उठने में असफल रही।उसने बोलने की कोशिश परन्तु जबान लड़खड़ा गयी।आवाज निकल नहीं पाई.बेबसी में सिर्फ़ आंसू निकले।उसके शरीर का एक हिस्सा स्पन्दनहीन हो चूका था।उसने बताना चाहा कि रात में उसका शरीर एक बार झटके लेकर कांपा था फिर एक तरफ से वह सुन्न हो गयी, परन्तु यह बात भी वह बताने में नाकाबिल रही।वह बेबस थी।वह असहाय थी।एक बार फिर घर हाहाकार कर दुःख से चीत्कार उठा।

किसी तरह से पड़ोसिओ की मदद से बबिता को सरकारी हॉस्पिटल पहुचाया गया।डाक्टरों ने बताया की उसे लकवा मार गया है।सरकारी इलाज शुरू हुआ अपनी मंथर गति से, माह दर माह।बबिता हॉस्पिटल बेड पर और पार्वती उसकी तीमारदारी के लिए.हॉस्पिटल दोनों का अस्थायी घर हो गया।सरकारी हॉस्पिटल में मरीज की देखभाल के लिए घर के एक सदस्य का रहना ज़रूरी है।बीमार के साथ में कोई न रहने पर वहाँ मरीज को लावारिश घोषित कर दिया जाता और उसका ट्रीटमेंट फिर लावारिश की तरह होता है।वह किस तरह से होता है यह पता नहीं? होता है भी कि नहीं कुछ कहा नहीं जा सकता।भगवान


बेहतर जानते होंगे या फिर हॉस्पिटल वाले।वैसे हॉस्पिटल में किसी लावारिस की ठीक होकर लाश ही निकलती है।

सपना बहुत मजबूत निकली।उसने घर बाहर के अपने और माँ के दोनों काम सम्हाल लिए और पार्वती को हॉस्पिटल की ड्यूटी के लिए फ्री कर दिया।बिल्लू का स्कूल छूट गया और वह माँ के साथ अस्पताल के चक्कर लगाने लगा।थोड़े ही दिनों की बात है यह सोच कर दोनों पूरी तन्मयता के साथ अपने दायित्यों को पूरा करने जुट गए.उलझ गए.

शहर का वह सरकारी अस्पताल कुख्यात था कि जो कोई भर्ती हुआ वह वहाँ से सही सलामत वापस नहीं आ पाता था।माना यह जाता था कि वहाँ मरणशील व्यक्ति ही भर्ती होते है। वहाँ सारी सुविधाएँ थी शहर का सबसे बड़ा हॉस्पिटल और साथ में मेडिकल कॉलेज से सम्बद्ध।वहाँ ऐसे केस भर्ती होते थे जहाँ और कही इलाज होना संभव नहीं था, अंतिम ईलाज की शरणस्थली।और ऐसा ही हुआ।बबिता की चार माह की अनवरत चिकित्सा उपरांत भी उसे बचाया न जा सका।पार्वती और बिल्लू उसे निर्जीव लेकर ही घर ला सके ।सारे प्रयाश निरर्थक सिध्य हुए.बबिता को सशरीर गंगा मैया की गोद में प्रवाहित कर दिया गया।

घर में बिल्लू है।वह कभी ऊँपर कमरे जाता कभी नीचे कमरे आता।वह दौड़ धूप कर रहा है कि कोई दिख जाय।मगर वहाँ कोई नहीं है।माँ काम करने गयी है, अभी तक नहीं लौटी.एक बजे दोपहर तक आयेगी? मगर जब वह आता है सपना छोटी बहन ज़रूर मिलती है।आज वह भी नहीं दिख रही है? वह स्कूल से आ गया है।दस का हो गया है परन्तु पढ़ता है कच्छा दो में।उसका मन पढ़ने में नहीं लगता।उसका मन लगता है, लट्टू नचाने में, कंचे खेलने में और संगी साथी मिल जाय तो गिल्ली डंडा चटकाने में।

सुबह सुबह सात बजे सपना काम पर निकल जाती है, लौट कर दस बजे तक आ पाती है।वह तीन घरों का काम निपटाती है।काम वही, घरों का चौका बर्तन और झांडू पोंछा।सपना है तो उससे छै साल बड़ी पर वह जीजी या दीदी नहीं कहता है, बिल्लू उसे सपना ही कहता है।पार्वती देर से काम पर जाती है।वह सुबह पांच बजे से उठकर खाना बनाने में जुट जाती है और बिल्लू मास्टर की स्कूल भेजने की जद्दोजहद में जुट जाती है।बिल्लू कभी अपने मन से स्कूल जाने में राजी नहीं होता है।लाड़ मनुहार डांट डपट और मारपीट करके ही आँठ साढ़े आँठ तक जबरजस्ती पार्वती घसीट कर स्कूल पंहुचा पाती है।फिर वह नौ बजे घरों का काम करने निकल पाती है।

बिल्लू क्या करें? सपना है नहीं।माँ भी नहीं है।अकेला वह मकान में नहीं रह सकता।वह कोठरी में ताला जड़ता है और निकल जाता है, उन घरों की ओर जहाँ उसकी माँ और बहन काम करती है।बहन अपने घरों में नहीं मिलती है।वह वहाँ से जा चुकी है।वह माँ के घरों को देखता और पूछता है।अंत में एक घर में उसे दोनों मिल जाती हैं।


उस घर में भगवान सत्य नारायण की कथा पाठ का आयोजन था।उसमे काफी काम था।इस कारण पार्वती ने सपना को भी अपने साथ काम पर लगा लिया था।यहाँ पर तीनों को प्रसाद मिलता है और भोजन अदि की व्यवस्था हो जाती है।बिल्लू को ऐसे घर और ऐसे घरों के आयोजन बहुत भातें हैं।

मकान का हर कोना, कोठरी, छज्जा और यहाँ तक की दरवाजा भी अभिशप्त हो उठे है बलदेव, रीता और बबिता की यादों और उसकी ब्याप्त गंध से।नीचे कमरे की वह जगह जहाँ बबिता लेटी रहती थी ऐसी हो गयी जहाँ जाने से तीनो बचने लगे है...ऐसा लगता था कि बबिता तख़्त में बैठी उन्हें ही घूर रही है।एक महीन-सी पतली आवाज गूंज रही है।बिल्लू को न जाने क्यों लगता की दीदी अभी भी वही बैठी है और उसे इशारे से बुला रही है।सिर्फ सपना वहाँ जाने से नहीं डरती थी।उसे लगता अपने कभी किसी का अहित नहीं कर सकते।कोई हवा है भी तो वह निरीह, अपंग और असहाय है।वे सब दहशत में जी रहे थे।कौन, कहाँ, कब इस घर को छोड़ देंगा अनुमान लगाना दुष्कर है।