काम और नाम दोनों साथ-साथ चलते हैं / बालकृष्ण भट्ट
नाम के कायम रखने को आदमी न जानिये क्या-क्या काम करता है। लोग कुआँ खुदाते हैं। बावली बनवाते हैं। बाग लगाते हैं। मोहफिल सजाते हैं। क्षेत्र और सदाबर्त चलाते हैं। नाम ही के लिए लोग लाखों लुटाते हैं। स्कूल पाठशाला और अस्पताल कायम करते हैं। इस तरह पर काम और नाम दोनों को बराबर साथ निभाता चला जाता है। सच कहो तो इस असार संसार में जन्म पाय ऐसा ही काम कर चले जिसमें नाम बना रहे जिन का नाम बना रहता है वे मानो सदा जीते ही रहते हैं। जिस काम से नाम न हुआ वह काम ही व्यर्थ है। काम भी दो तरह के होते हैं नेक और बद। नेक काम से आदमी का नेक नाम होता है प्राय: स्मरणीय होता पुण्य श्लोक कहलाता है। बद काम से बदनाम होता है उसका नाम लेते लोग घिनाते हैं- गालियाँ देते हैं। नाक और भौं सिकोड़ने लगते हैं-
कथापि खलु पापानामलमश्रेयसेयत:,
पुण्य श्लोकयथा
पुण्य श्लोको नलोराजा पुण्यश्लोको युधिष्ठिर:। पुण्यश्लोकाच वैदेही पुण्यश्लोको जनार्दन:।। कर्कोटकस्य नागस्य दमयन्त्या नलस्यच। ऋतुपर्णस्य राजर्षे: कीर्तनं पाप नाशनम्।।
इत्यादि नेकनामी के अनेक उदाहरण हैं केवल अपने-अपने काम ही से लोग नेकनाम हो गये। रणजीत सिंह, शिवा जी प्रभृति शूर वीर, विद्यासागर सरीखे देश हितैषी, लार्ड रिपन से शासन कर्ता, शेक्सपीयर, मिलटन, कालिदास आदि कवि सब अपने-अपने काम ही से हम लोगों के बीच मानो जी रहे हैं और आचन्द्रतारक जीते रहेंगे। काम के जरिये नाम कायम रखने के तरीकों में किसी ठठोल ने एक यह तरीका भी लिखा है।
घटं भिन्द्यात्पटं छिन्द्या द्रर्दभारोहणं चरेत्।
येन केन प्रकारेण प्रसिद्ध: पुरुषो भवेत।।
घड़े फोड़ डाले, कपड़े फाड़ डाले, गदहे पर सवार हो कर चले। किसी न किसी तरह मनुष्य नाम हासिल करे। कितने हलाकू, चंगेज नादिर से जगत शत्रु ऐसे भी हो गये हैं जिनके काम की चर्चा सुन गर्भवती के गर्भ गिर पड़ते हैं। कितने नाम के लिये मर मिटते हैं। जग में मुँह उजला रहे बात न जाये कोई नाम न रखे एक की जगह चाहे दस लूटे पर ऐसा काम न बन पड़े कि सब लोग हँसें-नाम रखते हैं, नाम करते हैं, नाम धरते हैं, नाम धराते हैं, नाम पड़ता है, नाम चलता है, इत्यादि अनेक मुहावरें नाम के हमारी रोजमर्रे की बातचीत में कहे सुने जाते हैं पर इन सबों से नाम का काम ही की तरफ इशारा रहता है। ईश्वर न करे बुरे लोगों के लिये किसी का नाम निकल पड़े। दूसरा भी कोई बुरा काम करे तो भी 'नरक पड़ै को चन्दू चाचा' समाज में उसी की तरफ सबों की ओर से अंगुश्तनुमाई की जायेगी जो बुरे कामों के लिए प्रसिद्ध हो चुका है। पुलिस भी उसी को तके रहेगी। मजिस्ट्रेट साहब जुदा उसकी खोज में रहेंगे। यों ही भले काम के लिए नाम निकल गया तो चाहो दूसरा भी कोई वैसा ही काम करे किन्तु देसी परदेसियों में नाम उसी का लिया जायगा 'कटै सिपाही नाम सरदार का' 'नाम शाह कमा खा, नामी चोर मारा माय' जो बात बिना उस तरह के काम के होती है वह बराय नाम को कही जाती है। जैसा ईसाई मत के मानने वालों में ईशा पर विश्वास बराय नाम की है। इन दिनों के सभ्यों में सच्ची सभ्यता बराय नाम को है। मेनचेस्टर के बने कपड़ों के आगे देशी कपड़ों की कदर बराय नाम को है। इस समय के ब्राह्मणों में द्विवेदी, त्रिवेदी, चतुर्वेदी आदि उपाधि बराय नाम है 'पढ़े लिखे ओनवौ ना ही नाम मुहम्मद फाजिल' चार वेद की कौन कहे चार अक्षर से भी भेंट नहीं है। कोरे लंठदास पर कहलाने को द्विवेदी, त्रिवेदी, चतुर्वेदी। तरह इस साल वर्षा और खेती में उपज बराय नाम को है। दिवालदार रोजगारियों में ईमानदारी बराय नाम है। अंगरेज और हिन्दुस्तानियों के मुकाबिले हाकियों को इनसाफ बराय नाम है। कितनों का नाम दाम के कारण नाम के लायक कोई काम उनसे न भी बन पड़ा हो तो भी दाम ऐसी चीज है कि उनका नाम लेना कैसा वरन खुशामद करना पड़ता है। ऊपर की वर्षा समान गोधन दास तिनकौड़ी मल चिथरू दास के नामों में कौन-सी खूबसूरती है। इत्तिफाक से ऐसों के पास बहुत-सा रुपया जुड़ गया न आप पेट भर खाता है न दूसरों को खाते पहनते देख सकता है न उस रुपये से यह लोक परलोक का कोई काम निकलता है। समाज में यहाँ तक मनहूस समझा गया है कि सबेरे भूल से कहीं नाम जबान पर आ जाय तो दिन का दिन नष्ट हो जाय। ऐसों से सरोकार केवल दास ही के कारण लोग रखते हैं और हाजतरफा करने की भाँति उसके पास जाना पड़ता है इत्यादि काम और नाम का विवरण पढ़ने वालों के चित्त विनोदार्थ यहाँ पर लिखा गया। अंत में इतना और विशेष वक्तव्य है कि काम और नाम दोनों का साथ दाम पल्ले रहने से अच्छा निभ सकता है अर्थात दाम वाला चाहे तो अपने कामों से नाम पैदा करना उसके लिये जैसा सहज है वैसा औरों के लिये नहीं है।
जुलाई-अगस्त,1896 ई.