कायर / अमित कुमार मल्ल

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपोलो अस्पताल के वेटिंग हाल में मैं अपनी बीमार मा, पत्नी व बच्चों को लेकर पहुँचा। मेरी माँ के ऊपर लकवे का अटैक हुआ था। लोगों ने बताया कि इसका सर्वोत्तम इलाज अपोलो अस्पताल में होता है।इसीलिये मैं पूरे परिवार सहित आज सुबह दिल्ली पहुँचकर होटल में सामान रखकर, तैयार हो कर अस्पताल पहुँचा। रिसेप्शन पर पंजीकरण कराकर, न्यूरो विभाग के डॉक्टर से अपॉइंटमेंट लेकर, दिखाया। डॉक्टर ने माँ को परामर्श दिया,

टेस्ट कराकर, रिपोर्ट लेकर, दो दिन बाद पुनः दिखाए।

कैंटीन में बच्चों को लीना के साथ बैठाकर, माँ के साथ टेस्ट कराने के लिए, पैथोलॉजी लैब पहुँचा। वहाँ सारे टेस्ट कराने के बाद, जब मैं कैंटीन की ओर बढ़ा, तो मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि कैन्टीन के बाहर रुपाली जैसी कोई औरत, एक पुरूष के साथ हँसते बतिया रही है। जोधपुर छोड़े, मुझे कई साल हो गए थे। ऐसे में, अब रुपाली का चेहरा कैसा दिख रहा होगा, यह अनुमान लगाना भारी बोझ लगा। मिडील एज्ड घरेलू आदमी की भांति मैं, रुपाली की सोच को झटक कर, ज़िम्मेदार पुत्र व पति की भांति मा को लेकर, कैंटीन की ओर बढ़ा।

कैंटीन के पास पहुचते हुए, ज्ञात हुआ कि वह रुपाली ही थी, अपने पति के साथ। सामने पड़ते ही, पहले की भांति, मुस्कराते हुए कहा,

गुड़ मॉर्निंग सर्! मीट माय हस्बैंड समीर।

फिर समीर से बोली,

यह विजयंत सर् है। यह जयपुर में, मेरे घर के पास रहते थे और मेरी पढ़ाई में, कई बार गाइड भी किया था, पढ़ाया भी था। सर्,बहुत पढ़ाकू थे।

मैंने हाथ जोड़कर दोनों को नमस्कार करना चाहा, देखा, रुपाली, बिना कुछ बोले,दोनो हाथ जोड़कर मुझे प्रणाम कर रही है।समीर ने हाथ आगे बढ़ाया,

आपसे मिलकर ख़ुशी हुई।

पुनः मैंने अपनी माँ का परिचय कराया,

यह मेरी माँ है। लकवे का अटैक हुआ है। हाथ पैर पर असर है। उसी को दिखाने आये है।

अब दोनों हाथ जोड़कर, सिर झुकाकर रुपाली ने मा को प्रणाम किया, समीर ने भी हाथ जोड़कर मा को प्रणाम किया। इसी बीच, दोनों के चेहरे पर देखने से,अपने को रोक नहीं पाया।दोनो का जोड़ी परफेक्ट लगी। समीर को तो पहली बार देख रहा था, लेकिन रुपाली के चेहरे पर, खूबसूरती के अलावा, आत्म विश्वास, सफलता और संतुष्टि की चमक दिख रही थी।

समीर ने पूछा,

डॉक्टर ने माता जी के लिये, क्या बताया ?

उन्होंने सारे टेस्ट कराकर दिखाने के लिये बोला है आज सारे टेस्ट हो गए हैं। कल तक रिपोर्ट मिल जाएगी तो, फिर डॉक्टर को को दिखाएँगे।

मैंने उत्तर दिया।

चलिये ! एक एक कप कॉफी हो जाय। माता जी को चलने में परेशानी तो नहीं होगी।

हम लोग उधर ही चल रहे थे।

बच्चे कितने हैं ?

रुपाली ने पूछा।

दो

किस उम्र के है?

तब तक हम लोग लीना व बच्चों के पास पहुँच चुके थे। मैंने परिचय कराया।

यह हैं लीना, मेरी पत्नी। यह है आयुष व रिनी - मेरे दोनों बच्चे। और यह है समीर और रुपाली। जयपुर में, पड़ोसी थे, अब यहाँ नोएडा में रहते हैं।

नमस्कार का आदान प्रदान हुआ। बच्चों ने समीर और रुपाली के पैर छुए। फिर, सबने कॉफी पी। बच्चों ने चिप्स लिए।

आप लोग होटल में रुकने के बजाय मेरे घर चलकर रहिये।

समीर बोला।

हम लोग होटल में सामान रख चुके हैं।एकाध दिन के लिये, क्या शिफ्ट करना ?

मैंने मजबूरी बताई।

ठीक है कोई परेशानी हो तो बताइयेगा। गाड़ी की ज़रूरत हो तो भी बताइयेगा। सब व्यवस्था हो जाएगी। यह मेरा कार्ड रखिये ।

कोई ज़रूरत नहीं है ज़रूरत पड़ेगी तो फ़ोन कर दूंगा अनावश्यक आप लोगों को तकलीफ देना उचित नहीं लगेगा।

बिना ज़रूरत के कुछ काम होते हैं तकल्लुफ मत करिए आप लोग। कल गाड़ी आ जायेगी। गाड़ी से माता जी को आराम रहेगा। अपने होटल का पता बताइए, कल सुबह 8 बजे गाड़ी पहुँच जाएगी।जब आप लोग दिल्ली छोड़िएगा, तो गाड़ी छोड़ दीजिएगा।

पहली बार रुपाली ने हस्तक्षेप किया। मैंने चुप रहकर, स्वीकार किया।

अब समीर ने पुनः कहा,

दिल्ली छोड़ने के पहले आप सभी का डिनर हमारे यहाँ होगा।

समीर ने रुपाली की ओर देखते हुए बोला,

रुपाली कल गाड़ी से इन लोगों के होटल चली जाना। वह से इन लोगों के साथ, माता जी को अस्पताल दिखा देना।

रुपाली ने सिर हिलाकर, मुस्कराते हुए स्वीकृति दी, मानो उसके मन की बात हो गयी।उसे समीर पर, पुनः लाड़ आया।

अस्पताल से हम लोग, टैक्सी से वापस लौटे। बच्चे ख़ुश थे कि दिल्ली में उन्हें बार बार टैक्सी ऑटो से नहीं घूमना पड़ेगा। लीना ख़ुश थी कि गाड़ी रहेगी तो इच्छानुसार शॉपिंग कर सकेगी। मैं ख़ुश था कि माताजी को दिखाने में सहूलियत हो गयी। मैं इस बात से भी ख़ुश था कि इतने दिन बीतने के बाद भी, रुपाली की नज़र में उसका महत्त्व कम नहीं हुआ।

अगली सुबह, रुपाली के साथ, उसकी गाड़ी, मेरे होटल पहुँची,जिससे हम लोग अपोलो अस्पताल पहुँचे।कुछ रिपोर्ट लेकर 12 बजे के आस पास, वेटिंग हाल में पहुँचा तो रुपाली, लीना, मा व बच्चों से बात कर रही थी। मेरे पहुँचने से बातचीत की दिशा बदली।

- रिपोर्ट सारी मिल गयी ?

रुपाली ने पूछा।

कुछ मिल गयी है कुछ 3 बजे तक मिलेगी।

फिर तो डॉक्टर नहीं देख पाएँगे क्योकि ओ पी डी दो बजे बंद हो जाएगी।

फिर डॉक्टर को कल दिखाएँगे।

फिर बातचीत का सूत्र लीना ने अपने हाथ में लिया। कब रुपाली की शादी हुई ? समीर कहाँ का है ? नोएडा में कब घर बनवाया ? घर में कौन कौन है ? बातचीत की दिशा फिर बदली। शॉपिंग सेंटर कहाँ कहाँ है ? कहाँ पर क्या समान सस्ता है ? दिल्ली में देखने के लिये कौन कौन-सी जगह है ? पूरे वार्तालाप में,मैं श्रोता की भूमिका में था। बच्चे कभी कभार बातचीत की दिशा और गति बदल देते थे। इस बीच, बच्चे डोसा खाने की ज़िद करने लगे, लीना बच्चों को डोसा खिलाने के लिये कैंटीन की ओर निकली। अब रुपाली मेरी ओर,बात शुरू की।

तो कब की शादी सर्

नौकरी मिलने के अगले साल।

जयपुर कब छोड़ा ?

94 में।

नौकरी में ख़ुश हैं

जीवन कट रहा है

क्यो ? जॉब सैटिस्फैक्शन नहीं है ?

नही

ऐसा क्यों सर् ? आप तो बुद्धिमान है, मेहनती है,संयमी है, दूरदर्शी है,, इसी जॉब के लिये तो आपने इतनी मेहनत की त्याग किया क्या निर्णय ग़लत हो गया या सच ही बदल गया।

निर्णय भी ग़लत हो गया और सच भी बदल गया खैर तुम सुनाओ। तुमने बहुत तरक्क़ी की।

कुछ विशेष नही।

विशेष तो है अच्छा लगा।तुम लोगों की तरक्क़ी और तुम लोगों का व्यवहार। तुम्हारा व्यवहार तो पहले से ही अच्छा था उतना ही अच्छा तुम्हारे हस्बैंड का व्यवहार है। दिल्ली में, अधिकतर लोग रिश्तेदारों को नहीं बरदाश्त कर पाते हम लोग तो रिश्तदार भी नहीं है। तुम लोग बहुत केयर कर रहे हो, बहुत बहुत धन्यवाद।

वह मुस्कराई,

इसकी ज़रूरत नहीं है।

तब तक लीना भी बच्चों के साथ आती हुई दिखी। रुपाली मा से बातचीत में व्यस्त हो गयी। अब, हम लोगों ने तय किया कि रिपोर्ट लेकर, अस्पताल से निकल जाएँगे। कल डॉक्टर को दिखा कर सीधे स्टेशन निकल जाएँगे।

रुपाली ने कहा,

समीर ने डिनर के लिए कहा है। आप लोग आज डिनर पर आए।बल्कि पहले ही आये। गप करेंगे। मैं समीर को बता देती हूँ, वह भी जल्दी घर पहुँच जाएगा।

ठीक है।

मैं और लीना एकसाथ बोले।

रुपाली की गाड़ी से, उसके नोएडा स्थित कोठी पर, हम लोग सायं छ साढ़े छ तक पहुँच गए। मकान शानदार था और साज सज्जा भी उतनी ही अच्छी थी। सब लोग ड्राइंगरूम में बैठकर बाते कर रहे थे।रुपाली कभी किचन में तैयारी देखती, कभी बच्चों को कम्फर्ट करती और कभी हमारी बातचीत में शामिल हो जाती।

थोड़ी बाद समीर ने कहा,

सर् ! रूपाली आपको सर् कहती थी तो मैं भी सर् कहूँगा। यदि आप ड्रिंक करते हो और अन्यथा न ले तो, डिनर के पहले, एक एज पैग ड्रिंक हो जाय।

जैसी आपकी इच्छा।

स्ट्रेंज। आप और ड्रिंक।

मैं ख़ामोश रहा।

मेरी ओर आश्चर्य से देखते हुए रुपाली बोली। फिर बात को आगे बढ़ाई,

छत पर आप लोगों की व्यवस्था करती हूँ।

छत पर हम दोनों धीरे धीरे ड्रिंक की सिप लेने लगे। तब तक समीर की उदारता, व्यवहार और कोठी - गाड़ी का प्रभाव मुझ पर छा चुका था।

समीर जी, आप जैसा अच्छा, केयरिंग, व्यवहार कुशल आदमी मैंने आज तक नहीं देखा।

सर्, आप के डेडिकेशन, सिन्सियरिटी, संयम, लक्ष्य के प्रति एक निष्ठ होने के चर्चे तो मैंने भी सुने है।

सही है मेहनत तो मैने बहुत किया लेकिन मिला क्या ? एक नौकरी। पता है, जयपुर में 10 साल रहकर हवा महल नहीं देखा बाज़ार नहीं देखा, त्यौहार छोड़ दिया, घर परिवार छोड़ दिया, रिश्तेदार छोड़ दिया, मिली तो एक ऐसी नौकरी, जिसमे अधिकतर समय कुर्सी को पकड़े रखना पड़ता है क्या इसके लिये इतने वर्ष गवाएँ।

नौकरी का सुख तो है, सर् !

मुझे लगा समीर मुस्कराया।

क्या सुख है सिवाय इसके कि हर महीने की पहली तारीख को वेतन मिल जाता है।

जॉब सैटिस्फैक्शन नहीं है या जितना मेहनत किया, उतना न पाने का मलाल है?

दोनों है। नौकरी के तैयारी के दौरान 10 साल तक त्योहारों में घर नहीं गया। अपने कमरे में बंद रहा। किसी रिश्तेदार के दुख सुख में शामिल नहीं हुआ। कभी सजा सवरा नही। कभी गहरा फिरा नही। किसी की तरफ़ देखा नही। अपनी इच्छा का दम घोट दिया कि पढ़ाई का डायवर्जन न हो जाय। अपने पढ़ाई के अलावा, दूसरे आदमी के दुख सुख के प्रति क्रूरता के हद तक तठस्थ रहा। कई बार ऐसा हुआ, मुझे लगा कि यहाँ बढ़ना चाहिए, मदद करना चाहिए किंतु दिमाग़ ने कहा, इसमे समय ख़र्च होगा, पढ़ाई से ध्यान भटकेगा और मैं फिर पीछे हो लिया।

रुपाली ने बताया था कि उसका परिवार आपके कमरे के सामने के मकान में रहते थे। उसने आपसे पढ़ाई में मदद करने व कभी कभार पढ़ाने के लिये कहा लेकिन आप नहीं माने। उसके पापा ने भी कहा। तब आप 10 - 15 दिन पढ़ाकर, व्यस्तता की आड़ में पढ़ाना बंद कर दिये। शायद इसी वजह से।

शायद।

शायद नही, शत प्रतिशत इसी कारण से आप पीछे हो गए। सर्। आप बहुत अच्छे थे, बहुत पढ़ाकू थे, बहुत सीधे थे, आप बहुत चरित्रवान थे

एकाएक मुझे लगा कि समीर की आवाज़ में तल्ख़ी आ गयी या सच का कड़वापन आ गया।समीर बोल रहा था।

आपके इस व्यवहार से रुपाली का बहुत नुक़सान हुआ। उसे पढ़ाई में आगे जाना था,वह आपसे मदद मांग रही थी। आप आत्म केंद्रित होने के कारण, आदर्श बनने के कारण, आपने रुपाली को नहीं पढ़ाया। मजबूरन पढ़ाई में मदद के लिये, राजेश के पास गई। राजेश को तो आप जानते होंगे कोचिंग में आपके साथ था। उस बदमाश ने धोखा देकर रुपाली को,अपने जाल में फंसा लिया। कितना मानसिक, आर्थिक शोषण किया उसने।वह तो किसी तरह उसके पिता को यह बात पता चली,तब उन्होंने अपने पुलिस इंस्पेक्टर मित्र के माध्यम से राजेश के चंगुल से रुपाली को छुड़ाया। लेकिन तब तक रुपाली टूट चुकी थी। ,रुपाली और उसके पापा इतने परेशान हुए की उन्होंने जयपुर छोड़ दिया और दिल्ली आ गए।अपने पापा के बहुत कहने पर रुपाली ने दिल्ली के एक कोचिंग में एडमिसन लिया केवल कहने के लिये।खामोश और निर्जीव सी। यही मेरी मुलाकात हुई। रुपाली को सामान्य स्थिति लाने में पूरे साल लगे। उस दौरान हम सब कितने तनाव, दुख, पीड़ा से गुजरे - वह हम लोग ही जानते हैं। अच्छा होना बहुत अच्छा है, एकनिष्ठ होना बहुत अच्छा है, पढ़ना बहुत अच्छा है लेकिन इंसानी तकाजे होते हैं उनके प्रति तटस्थता दुसरो के लिये नुक़सान दायक होती है। बुरा मत मानियेगा सर्।

मेरा सारा सरूर उड़ गया। मेरा चेहरा सच व ग्लानि की आग में तप रहा था। मैंने समीर को न फेस करने के लिये, आसमान की ओर देखने लगा। एकाएक लगा, हवाएँ फुसफुसाई कायर। छतपर देखा तो सीढ़ी की पहली पायदान पर रुपाली खड़ी थी।