कायाकल्प / ख़्वाजा अहमद अब्बास

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फ़िल्मों की अपनी एक अलग दुनिया होती है, एक अलग जुब़ान होती है। फिल्मों के कैरेक्टर अन्य इंसानों से भिन्न होते हैं।

एक तो ‘हीरो’ होता है। यह या तो लम्बा होता है या ठिगना, या दाढ़ी-मूँछ सफ़ाचट होता है या उसकी मूँछें जेट हवाई जहाज की तरह पतली और लम्बी होती हैं। हीरो की दीढ़ी कभी नहीं होती। वैसे हीरोइन या ‘विलेन’ का धोखा देने के लिए कभी-कभी नकली दाढ़ी लगाकर हीरो हकीम साहब या मौलाना या सरदार जी बन जाता है। हीरो आमतौर पर सिर्फ़ इश्क करता है, काम नहीं करता ! कभी-कभी हीरो डॉक्टर या बैरिस्टर या टैक्सी ड्राइवर भी होता है, लेकिन यह काम भी वह इश़्क की खातिर करता है। डॉक्टर इसलिए बनता है, कि हीरोइन या उसके शौहर यानी रकीब का इलाज कर सके। बैरिस्टर हुआ, तो अदालत में हीरोइन को कत्ल के झूठे इलज़ाम से बचा लेता है, और टैक्सी ड्राइवर तो वह बनता ही इसलिए है कि कोई हसीना उसकी टैक्सी में बैठे और वह मीटर डाउन करता जाए और फिर हीरोइन टैक्सी में अपना बटुआ (और अपना दिल) भूल जाए....

एक ‘हीरोइन’ होती है। यह या तो बहुत दुबली होती है या बहुत मोटी होती है। हीरोइन कभी गरीब नहीं होती। वह इसलिए कि उसे हर सीन में एक नया और महंगा फैंसी ड्रेस पहनना होता है। सीन नम्बर एक में शलवार-कमीज़। सीन नम्बर दो में भारत-नाट्यम् की साड़ी। सीन नम्बर तीन में चूड़ीदार पज़ामा और कश्मीरी चाँदी के बटनों-वाली कमीज़। सीन नम्बर पाँच में राजस्थानी घाघरा और चोली। सीन नम्बर छह में नाफ़ से छह इंच नीची साड़ी और नाफ़ नौ इंच ऊँची बिकनी टाइप की चोली। सीन नम्बर सात में मिनी स्कर्ट और चुस्त स्वेटर....अगर गलती से कभी गरीब बाप की बेटी हुई, तब भी हीरोइन नायलान की ओढ़नी और रेशमी घाघरा और चुस्त शलूका पहने होगी, ताकि दूर से मालूम हो जाए कि हीरोइन के बाप को विलेन का कर्ज़ा देना है और हीरोइन हर कुर्बानी के लिए तैयार है।

एक ‘विलेन’ होता है। यह तो चारखाने की शर्ट, बेजेस और घुटनों तक के राइडिंग बूट पहने होता है और हाथ में एक हण्टर होता है या वह काली शेरवानी और चूड़ीदार पाज़ामा पहने हुए रहता है। उसके सिर पर तिरछी टोपी धरी होती है और उसके मुँह में यह लम्बा सोने का सिगरेट होल्डर होता है। गर्मी में भी ‘विलेन’ हाथों में सफेद दस्ताने पहने होता है और काला ओवरकोट (कालर ऊपर किया हुआ) और काली फैल्ट-हैट, जिसका छज्जा आँखों पर झुका होता है (ताकि पुलिस शिनाख्त न कर सके) विलेन का कोई नाम और कोई मज़हब नहीं होता। उसके छुटभैये उसे सिर्फ़ ‘बॉस’ कहकर पुकारते हैं। यह इसलिए कहा जाता है कि किसी मज़हब या फ़िरके-वालों की दिलशिकनी न हो।

‘‘एक ‘विम्प’ होती है ! जिसे ‘लेडी विलेन’ भी कहा जाता है, और कभी-कभी कहा जाता है ! पहले ज़माने में हीरोइन सीधे-सादे कपड़े पहनती थी और उसके मुकाबले में ‘विम्प’ चुस्त और शोखे और फ़ैशनेबुल कपड़े पहनती थी, मगर आज के ज़माने में जब हीरोइन और ‘विम्प’ की पहचान करना मुश्किल हो गया है। आमतौर पर ‘विम्प’ ‘डांसर’ होती है, लेकिन आजकल हीरोइनें भी डांस करने लगी हैं (और मौके पर नहीं, तो अपनी सालगिरह की पार्टी ही में डांस पेश करती हैं) ऐसी हालत में ‘विम्प’ की अहमियत कम होती जा रही है, मगर फिर भी ‘विम्प’ वह होती है, जो हीरो को लुभाने के लिए नाज़-नखरे और आँखों के इशारे से- ‘‘आ जा, आ जा, गले लग जा’’ किस्म का गाना गाती है। ‘विलेन’ से तनख्याह लेती है, लेकिन दिल से हीरो को चाहती है और आखिर में ‘विलेन’, जिस गोली से हीरो को मारना चाहता है, उस गोली से ‘विम्प’ की मौत होती है, मगर हीरो की आगोश में। ‘आखिरकार मैंने तुम्हें पा ही लिया।’ वह आखिरी साँस के साथ कहती है और उसकी आँखें सदा के लिए बन्द हो जाती हैं।

वैसे फ़िल्म में अन्य कैरेक्टर भी होते हैं, मसलन, ‘साइड हीरो’ जो आमतौर से हीरो का दोस्त होता है और ‘साइड हीरोइन’ जो हीरोइन की सहेली होती है और ‘साइड हीरो से मोहब्बत करती है। इनके अलावा ‘साइड-विलेन’, का ‘विलेन’ या असिस्टेण्ट होता है। फिर एक ‘कामेडियन’ होता है और एक उसकी माशूका।

मगर इस वक्त हम एक ‘विम्प’ की कहानी सुनाना चाहते हैं। उसका नाम रानी बाला था। कभी वह हीरोइन हुआ करती थी, मगर इधर कोई आठ-दस बरस से वह ‘विम्प’ का कैरेक्टर कर रही थी। हीरोइन तो वह मामूली थी। कभी ‘सी’ क्लास फिल्मों से आगे नहीं बढ़ी, लेकिन ‘विम्प’ बनकर उसने बड़ा नाम कमाया था। थी बला की खूबसूरत। उसका जिस्म किसी मूर्तिकार का तराशा हुआ लगता था। उसपर कपड़े इतने चुस्त पहनती थी, कि लगती थी कि कपड़े उसने पहने नहीं, बल्कि उसके शरीर को उनके अन्दर ढाल दिया गया है। आँखें बड़ी-बड़ी और खूबसूरत थीं। बाल घने और घुँघराले, आकृति अजन्ता-एलोरा की किसी मूर्ति की याद दिलाती थी।

रानी बाला कितनी ही हीरोइनों से ज्यादा खूबसूरत थी। इसीलिए वे उसके साथ काम करना पसन्द नहीं करती थीं, लेकिन डायरेक्टर और प्रोड्यूसर उसे अपनी फ़िल्मों में लेना कामयाबी की जमानत समझते थे। कहा जाता था कि ‘बी’ क्लास हीरोइन के साथ रानी बाला को ले लो, तो फ़िल्म ‘ए’ क्लास की कीमतों पर बिकती है। हीरों भी उसके साथ काम करना पसन्द करते थे, क्योंकि उसकी शख्सियत इतनी दिलकश थी कि सेट पर उसके होते हुए कोई हीरोइन की तरफ़ आँख उठाकर कभी नहीं देखता था। इसके अलावा वह बड़ी खुशमिज़ाज थी। बातें बड़ी दिलचस्प करती थी और फ़िल्मी दुनिया के बारे में उसको हज़ारों लतीफ़े और चुटकले याद थे।


रानी बाला के बारे में मशहूर था कि जैसी वह सिनेमा के पर्दें पर नज़र आती है, अपनी प्राइवेट ज़िन्दगी में बिलकुल उसके प्रतिकूल है। जो डायरेक्टर या हीरो उससे ज़रूरत से ज्यादा बेतकुल्लुफ़ होने की कोशिश करते थे, उनसे वह कह देती थी, ‘‘आपने मेरे शौहर को नहीं देखा। वह बॉक्सिंग का चैम्पियन है और पहलवान भी। सत्तर इंच का सीना है उसका !’’ और फिर कोई उसके साथ दस्तजराजी करने की हिम्मत नहीं कर सकता था। वैसे उसका कहना था कि ‘‘कैमरे के सामने मुझसे जो चाहे करा लीजिए, उस वक्त मैं आपकी नौकर हूँ, मगर उसके बाद मेरे जिस्म का मालिक मेरा शौहर है।’’

उसका शौहर बॉक्सिंग चैम्पियन था या पहलवान था, कहा नहीं जा सकता, क्योंकि किसी ने उसको देखा नहीं था। रानी बाला ने कभी किसी से उसका परिचय ही नहीं कराया था। उसका कहना था, कि ‘‘मैं स्टूडियो को घर नहीं ले जाती, न घर को स्टूडियो में लाती हूँ।’’ सभी फ़िल्म-आर्टिस्टों में वह एक थी, जिसके साथ किसी ने नानी, दादी, बाप, माँ, मामू भाई, बहन या आया- किसी को स्टूडियो में आते नहीं देखा था, न वह स्टूडियो वालों को कभी अपने घर आने की दावत या इज़ात देती थी। जब शूटिंग हो, टेलीफ़ोन कर दो। वक्त पर मोटर भेज दो। मोटर का हार्न सुनते ही रानी बाला अपना मेकअप-बॉक्स और अपना टिफ़िन कैरियर दोनों हाथों में लिए हुए बाहर आ जाएगी और मोटर में सवार हो जाएगी। उसके घर में कौन रहता है, कितने आदमी रहते हैं- यह किसी को नहीं मालूम था। लोगों को यह मालूम था कि उसका एक शौहर है। शायद एक बच्चा या बच्ची भी है, क्योंकि एक स्टूडियो ड्राइवर ने एक अन्दर से बचकाना आवाज़ को ‘बाई-बाई मम्मी’ कहते हुए सुना था, मगर किसी पब्लिक समारोह में- मुहूर्त हो या प्रीमियर....किसी ने उसके शौहर या औलाद को उसके साथ न देखा था।

अब इन बातों को बरसों बीत चुके थे और रानी बाला के घर का राज़ राज़ ही रहा था। लोग कभी-कभी रानी बाला की उम्र का अन्दाज़ा लगाते थे कि उसको फ़िल्मों में काम करते हुए कम-से-कम पन्द्रह बरस हो गए हैं। अब उसकी उम्र तीस-बत्तीस बरस हो गई होगी, मगर कमबख्त अब भी जवान बल्कि नौजवान लगती थी। एक बार जर्नलिस्ट ने इण्टरव्यू लेते हुए सवाल कर ही डाला, ‘‘मिस रानी बाला, आपकी उम्र क्या है ?’’ ‘‘आपको कितने बरस की लगती हूँ ?’’

‘‘बस, तो आप उन्नीस-बीस बरस की समझ सकते हैं। एक्ट्रस की कोई उम्र नहीं होती। वह इतनी जवान या बूढ़ी होती है, जितनी सिनेमा के पर्दे पर नज़र आती है।’’

रानी बाला सदा मेकअप करके स्टूडियो आती थी। बग़ैर मेकअप किसी ने उसको आज तक नहीं देखा था। इस सिलसिले में भी वह अपने विशिष्ट फ़लसफ़े को प्रकट करती थी, ‘‘औरत घर में रहती है। स्टूडियो में जो आती है, वह एक्ट्रेस होती है। एक्ट्रेस को सदा अपनी शक्ल-सूरत का खयाल रखना चाहिए। मुझे उन एक्ट्रेसों से सख्त नफ़रत है, जो रात-भर पार्टियों में मारी-मारी फिरती हैं और सुबह को ऊल-जलूल मनहूस सूरत बनाए स्टूडियो में आती हैं- बाल बिखरे हुए, आँखों में कीच, दाँत गन्दे, होंठ सूखे हुए। फिर उनका मेकअप करने और बाल बनाने में दो-दो तीन-तीन घण्टे लगते हैं। उसके बाद वो इस काबिल होती हैं कि उनको कैमरे के सामने खड़ा किया जा सके।’’

एक दिन जो सीन लिया जानेवाला था, उसमें हीरो और हीरोइन एक तालाब के किनारे प्यार-मोहब्बत की बातें कर रहे हैं। ‘विम्प’ वहाँ चोरी-छुपे आती है और एक पेड़ के पीछे छिपकर उनकी बातें सुनकर जल रही है कि गुस्से में पीछे हटती है और धड़ाम-से पानी में गिर जाती है। डायरेक्टर इस तरह ‘विम्प’ को कामेडी सीन में पेश करना चाहता था और उसके कहने के अनुसार यह एक अछूता और अनोखा ‘टच’ था।

‘‘मिस रानी बाला, क्या आपको तैरना आता है ? पानी पाँच फुट गहरा है...’’ डायरेक्टर ने स्टूडियो में बने हुए तालाब की तरफ़ इशारा करते हुए कहा।

‘‘मैं डूबूँगी तो आपको साथ लेकर !’’ रानी ने तत्काल जवाब दिया और इस पर स्टूडियो में कहकहाँ गूँज उठा।

रानी बाला को गर्व था कि आज तक उसने कोई सीन करने से इन्कार नहीं किया, चाहे वह कितना ही मुश्किल हो। जहाँ जान का ख़तरा हो, वहाँ भी वह किसी दूसरी एक्ट्रेस को ‘डबल’ के तौर पर काम करने की इज़ाजत न देती थी। आग का सीन हो या दीवार पर से कूदना हो या घोड़े पर सवार होकर उसे सरपट दौड़ाना हो, हर सीन वह ख़ुद ही करती थी। वह फ़िल्म लाइन में उस वक़्त आई थी, जब हीरो हीरोइन को तैरना, तलवार चलाना, मोटर चलाना और घूँसा चलाना-सब कुछ सीखना लाज़िमी था। वह पानी में गिरने के लिए फौरन तैयार हो गई।

सीन से पहले डायरेक्टर ने ड्रेस-मैन से कहा, ‘‘मिस रानी के ऐसे ही दो-चार ड्रेस और तैयार रखो। शायद पहला शॉट ओ.के. न हो।’’

सीन लिया गया। रानी बाला बड़े अन्दाज़ से पीछे हटीं। चेहरे पर गुस्से और जलन की अवस्था थी और यह अवस्था आखिरी लम्हें तक बाकी रही जब तक वह पानी में गिरी नहीं। गिरते-गिरते उसने अपने कैरेक्टर के अनुसार बनावटी, हास्यास्पद अन्दाज़ से चीख मारी। तालाब में गिरने के बाद जब उसका सिर पानी से बाहर निकला तो उसने मुँह से कुल्ली का एक फव्वारा निकाला और हीरो-हीरोइन की तरफ़ गुस्से से मुक्का उठाया। डायरेक्टर ने कहा, ‘‘कट।’’