कारदार की 'होली' से इम्तियाज अली की 'हाइवे' तक / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 20 फरवरी 2014
इम्तियाज अली अलग किस्म की फिल्में बनाते हैं और उनकी फिल्मों में पात्र प्राय: यात्रा पर रहते हैं गोयाकि 'चलना' जीवन की कहानी, रुकना मौत की 'निशानी'। इसके साथ ही इम्तियाज अली बाहरी यात्रा के माध्यम से मनुष्य की भीतरी यात्रा पर भी प्रकाश डालते हैं। एक विद्वान ने महाभारत की परिभाषा इस तरह की है कि यह महाकाव्य रिश्तों के माध्यम से स्वयं की पहचान की गाथा है। गोयाकि हर मनुष्य का हृदय कुरुक्षेत्र है। जहां एक युद्ध अनवरत चलता है। जीवन एक यात्रा है। 'चलते चलते थक गया मैं और सांझ भी ढलने लगी, तब राह खुद मुझे अपनी बांहों में लेकर चलने लगी'। इम्तियाज अली की इस शुक्रवार को प्रदर्शित होने वाली 'हाइवे' भी पात्रों की यात्रा के माध्यम से स्वयं को जानने की कोशिश हो सकती है। यह कहना मुश्किल है कि क्या इम्तियाज अली हाइवे को उस आयात किए विकास का प्रतीक मान रहे हैं जिसके लिए आजकल लोग बड़े बेकरार हैं। इसके साथ ही हाइवे इसका भी प्रतीक है कि केवल मनुष्य ही हाइवे से नहीं गुजर रहे हैं वरन विचार भी महानगरों से गांवों तक जा रहे हैं। हाइवे पर स्थापित टोल टैक्स भी राजनैतिक विवाद का विषय है कि अगर जनता के पैसे से सरकार ने हाइवे बनाए हैं तो कर लेने का ठेका प्राइवेट कंपनियों को क्यों दिया गया है और टोल टैक्स लेने वाली कंपनियों में नेताओं की भागीदारी कितनी है।
बहरहाल कहा जा रहा है कि इम्तियाज अली की 'हाइवे' में युवा आलिया को हुड्डा ने किडनैप किया है और अपहरण की गई लड़की का अपहरणकर्ता से प्रेम हो जाता है। और उसने जिस व्यक्ति से सगाई की थी। उससे उसे प्यार का भ्रम हो गया था। अपहरणकर्ता से प्रेम हो जाना हमें नई कहानी लग सकती है। परन्तु फिल्मकार एआर. कारदार ने स्वाभाविक अभिनय के पुरोधा मोतीलाल के साथ 1937 में 'होली' नामक फिल्म बनाई थी। जिसमें अपहरणकर्ता मोतीलाल को कन्या से प्रेम हो जाता है। इस तरह भारतीय सिनेमा के इतिहास में 'होली' का नायक पहला एंटी नायक है, न कि अशोक कुमार। फिल्म 'किस्मत' में जैसा कि लोकप्रिय रूप से स्थापित है। अगर हम हाइवे की कथा के सार को इस तरह लें कि युवा कन्या को पहले प्रेम का भ्रम हुआ था। और असल प्यार बाद में हुआ है तो यह फिल्म इम्तियाज अली की पहली दो फिल्मों की तरह है 'सोचा न था' और 'जब वी मैट' सच तो यह है कि इस तरह की कहानियों का प्रारंभ हॉलीवुड की 'एन अफेयर टू रिमेम्बर' से होता है। जिसे फिल्मकार ने 1942 में बनाया और 1958 में पुन: इसे बनाया तथा इससे प्रेरित फिल्म 'चोरी चोरी' में राजकपूर नरगिस ने अभिनय किया था और शंकर-जयकिशन के मधुर गीतों ने इसे अमर कर दिया है।
इसके एक युगल गीत में शैलेंद्र लिखते हैं 'जो दिन के उजाले में न मिले, दिल ढूंढे ऐसे सपने को, इस रात की जगमग में मैं ढूंढ रही हूं अपने को'। लता-मन्ना डे का यह मधुरतम युगल गीत है। उस दौर में शैलेंद्र ने सोचा भी न होगा कि एक दिन बाजार की जगमग में खरीदार यह समझ ही नहीं पाएगा कि वह स्वयं एक सिक्के की तरह खर्च हो रहा है। महेश भट्ट ने भी इस कथा पर आमिर खान के साथ 'दिल है कि मानता नहीं' बनाई थी। इन बातों का यह तात्पर्य नहीं कि इम्तियाज अली ने नकल की है। कथा एक ही हो परन्तु सब कुछ प्रस्तुतीकरण पर निर्भर करता है।
सच तो यह है कि अपनी पहली फिल्म 'सोचा न था' के समय ही इम्तियाज अली ने 'हाइवे' की कथा को टेलीविजन के लिए छोटे स्केल पर बनाया था। इस सृजन प्रक्रिया पर कुछ आश्चर्य नहीं होता क्योंकि जहाज का पंछी बार-बार जहाज पर आता है। पुनरावृति सृजन प्रक्रिया का एक हिस्सा है, बशर्ते कि हर बार ज्यादा गहराई तक पहुंचा जा सके। यह लेख फिल्म का आकलन नहीं है क्योंकि मैंने फिल्म देखी नही है परन्तु इम्तियाज अली इस दौर के महत्वपूर्ण फिल्मकार हैं, इसलिए आकलन पूर्व आकलन प्रस्तुत है।