कार्डिफ में सिद्दीकी नवाजे जाएंगे / जयप्रकाश चौकसे

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कार्डिफ में सिद्दीकी नवाजे जाएंगे
प्रकाशन तिथि : 26 अक्तूबर 2019


नवाजुद्दीन सिद्दीकी को कार्डिफ में आयोजित अंतरराष्ट्रीय समारोह में गोल्डन ड्रैगन नामक सम्मान दिया जा रहा है। विश्व सिनेमा में उनके योगदान के लिए उन्हें यह सम्मान दिया जा रहा है। उन्होंने लंबे समय तक कठोर संघर्ष किया है। लोकप्रिय कलाकार छवि के अनुरूप कलाकार का पारम्परिक रूप से सुंदर होना आवश्यक माना गया है परंतु यथार्थ यह है कि चिकने, सुंदर चेहरे वाले कलाकारों के समकालीन कुछ खुरदरे चेहरे वाले कलाकार हर दशक में हुए हैं। पृथ्वीराज कपूर, चंद्रमोहन और मोतीलाल के समकालीन शेख मुख्तार के चेहरे पर इतने छिद्र थे कि उन्हें भरने के लिए करोड़ों रुपए के हीरे-मोती लग सकते थे। हीरे-मोती न सही दाल के एक किलो दाने भी उनमें समा सकते थे।

राज कपूर, देव आनंद और दिलीप कुमार के समकालीन बलराज साहनी भी पारंपरिक रूप से हैडसम व्यक्ति की परिभाषा में नहीं गिने जा सकते परंतु अभिनय कला में उनकी ऊंचाई तक पहुंचना असंभव था। धर्मेन्द्र, राजेन्द्र कुमार और मनोज कुमार के समकालीन राजकुमार भी अलग व्यक्तित्व के धनी थे। इसी तरह वर्तमान में नवाजुद्दीन सिद्दीकी भी अपने विश्वसनीय अभिनय के दम पर मिट्‌टी पकड़ पहलवान ही हैं। और अभिनय अखाड़े में उन्हें धोबी पछाड़ देना कठिन है। फिल्मकार कबीर खान की सलमान खान केंद्रित 'बजरंगी भाई जान' में नवाजुद्दीन ने दमदार अभिनय किया था। श्रीदेवी अभिनीत 'मॉम' में उनकी चरित्र भूमिका हमेशा याद रहेगी। इसी श्रेणी के इरफान खान ने विदेश में बनी अनेक फिल्मों में नायक की भूमिका अभिनीत की है। भारतीय बाजार का तथाकथित खोटा सिक्का माने जाने वाले डॉलर बाजार में बड़ा मूल्य रखते रहे हैं।

इसी परम्परा के कलाकार ओम पुरी को हम कभी भूल नहीं पाएंगे। उनके निकटतम मित्र नसीरुद्दीन शाह भी साधारण-सा चेहरा मोहरा लिए अभिनय संसार में 'नटसम्राट' हैं। फिल्मों से अधिक वे रंगमंच जगत में सक्रिय हैं। एक गलत रिश्ते के चुनाव ने ओम पुरी को नैराश्य में डुबा दिया।

मानव शरीर में अनगिनत मांसपेशियां होती हैं और चेहरा भी अनेक मांसपेशियों से बनता है। हर मांसपेशी का स्वतंत्र अस्तित्व है। अभिनेता को अपनी मांसपेशियों पर पूर्ण नियंत्रण रखना होता है। वह अनेक अश्व वाले रथ का सारथी होता है। मजबूत इरादों से ही अश्व समूह पर नियंत्रण प्राप्त किया जाता है। कुलभूषण खरबंदा ने रमेश सिप्पी की 'शान' में अपनी एक आंख को दूसरी आंख से छोटा कर लेने के द्वारा अपने व्यक्तित्व की संकीर्णता को अभिव्यक्त किया था। हिंसा कोड़ों से अधिक आंखों से व्यक्त की जाती है। अभिनय क्षेत्र में खुरदरे चेहरे वाले कलाकारों ने चाकलेटी चेहरों के बीच भी अपना स्थान बनाए रखा परंतु अभिनय क्षेत्र में कुरूप चेहरे वाली महिलाएं कभी सफलता नहीं प्राप्त कर सकीं। यह भी पुरुष शासित समाज की विचारशैली की परिचायक है। शादी के विज्ञापनों में हमेशा सुंदर वधू की कामना की गई है। अपने काले-कलूटे पुत्र के लिए भी गौरवर्ण की सुंदर बहू के लिए ही इश्तेहार दिया जाता है।

सौंदर्य शल्य चिकित्सा के विकास के कारण चेहरे बदले जा सकते हैं। चपटी नाक को नुकीली बनाया जा सकता है। त्वचा प्रत्यारोपण भी किया जाता है। इस शास्त्र के विकास में भी स्वभाव का नकचढ़ापन कभी मिटाया नहीं जा सकता। कहते हैं कि मेक-अप मटेरियल में एक अंश चूने का होता है, जो त्वचा के छिद्र से होता हुआ, विचारशैली तक पहुंच जाता है, जिसे प्राय: आत्मा कहकर संबोधित किया जाता है।

ऑस्कर वाइल्ड द्वारा दिया गया विवरण है कि विचार शैली में परिवर्तन के कारण व्यक्ति की पूर्व में बनाई गई पेंटिंग में अपने आप परिवर्तन होने लगते हैं। डोरियन ग्रे के चित्र के साथ यह अजूबा घटित हुआ है। ज्ञातव्य है कि नूतन के पति बहल ने इसी विषय पर 'सूरत और सीरत' नामक फिल्म बनाई थी। अशोक कुमार अभिनीत 'मेरी सूरत तेरी आंखें' भी कमोबेश इसी पर प्रकाश डालती है।