कार्पोरेट / हरीश बी. शर्मा

Gadya Kosh से
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सब जानते हैं सपना कभी सच नहीं बन सकता लेकिन पता नहीं क्यों हम सपनों की तरफ दौड़ते हैं। पाने के लिए हांफने की हद तक कोशिश करते हैं और फिर साकार होने के सपने भी देखने लगते हैं। पता नहीं एक सपने में कितने-कितने सपने पैदा कर लेते हैं। हां, सपनों की संतानें नहीं होती। सपनों के सपने ही होते हैं। हजार-हजार सपनों का वंश और एक दिन जब अचानक पहला सपना टूट जाता है तो वंश भी खत्म हो जाता है। बचता नहीं कुछ भी। लोगों का भ्रम तब भी नहीं टूटता और कहते हैं सारे सपने टूट गए।

सारे सपने ? शरमनी की तंद्रा अचानक भंग हुई। क्या सारे सपने कहना सही है। एक ही सपने से पैदा हुए और फिर एक के बाद एक पैदा होते रहे को सारे कहें या एक। एक कहें या अनेक? सोचते-सोचते शरमनी की उंगलियां की-बोर्ड पर तेजी से दौड़ने लगी। शरमनी के काम करने का तरीका यही था। वह जितना ज्यादा सोचती, उसकी उंगलियां उतनी ही तेज दौड़ती और कंम्प्यूटर स्क्रीन पर शब्द बिखरने लगते। कर्कश आवाज देने वाला की-बोर्ड भी जब रफ्तार में आता है तो यूं लगता है जैसे घोड़े दौड़ रहे हैं ओर फिर जब दिल, दिमाग, उंगलियां और स्क्रीन के बीच टयूनिंग बैठ जाती है तो ऐसा लगता है जैसे पेंटिंग रची जा रही है। कर्कश की-बोर्ड ऑर्गन बन जाता है मानो। उभरने लगता है संगीत। शरमनी काम-करते-करते इस हद तक पहुंचकर ही दम लेती। लेकिन अचानक उसे रुकना पड़ा। स्क्रीन पर उभरने लगी थी लहरें। शरमनी का फ्लो टूटा। उसने मोबाइल को देखा, बुदबुदाई- कौन हो सकता है। शायद... लेकिन दिमाग से झटकना चाहा विचार। इस बीच मोबाइल पर मीठी धुन बजने लगी थी। पता चला एसएमएस था। देखा तो बॉस का निकला। शरमनी की रूह एक बार फिर कांप गई। लिखा था मिलकर जाना। शरमनी को पता था ऐसा होगा लेकिन ऐसा होगा तो करेगी क्या। यह नहीं जानती थी और इस बीच हो गया। बॉस का एसएमएस था और वह जानती थी कि अगर आज भी बॉस से मिलकर नहीं गई तो उसका प्रोजेक्ट बिगाड़ा जा सकता है और अगर बॉस से मिलने चली गई तो ....।

शरमनी के पास कोई जवाब नहीं था। क्या हो जाएगा। ...यही ना कि मुझे यह काम छोड़ देना पड़ेगा। मन के किसी कोने से आवाज आई। ... हां, इससे ज्यादा तो कुछ नहीं और इतने में दिमाग ने ताव खाते हुए कहा - कुछ क्या नहीं, सब कुछ। इस रिक्रूटमेंट का मतलब सब जानते हैं लेकिन अगर यह मिलने के बाद छूट गया तो...। ऐसा अवसर फिर कभी नहीं मिलेगा। फिर मिल भी गया और वहां भी ऐसे ही लोग हुए तो। ऐसे क्यों, यही लोग हुए तो। क्या करेगी शरमनी।

शरमनी को एक-एक करके कनिका की सारी बातें याद आ रही थी। कल का सारा वाकया जब उसने कनिका से कहा तो कनिका ने ने कंधे उचकाते हुए कहा, होता है यार...। उसकी नजर में यह सब नॉर्मल था। यहां तो ऐसा ही होता है। कहते हुए कनिका बिल्कुल भावहीन थी लेकिन शरमनी हैरान। कनिका के लिए यह हैरानी की बात नहीं थी। उसने उल्टे चुहल करते हुए शरमनी से पूछा, मैं तो सोच रही थी अब तक यह सब हो चुका होगा। कनिका की बातों से उसे हर्ट भी किया। कनिका के कहे शब्द उसे याद आ रहे थे। शरमनी, जिस तरह बॉस तुम्हारी तारीफें करते हैं तो हमने सोचा कि...
क्या ? ...क्या सोचा तुम लोगों ने? मतलब क्या है तुम्हारा? शरमनी का अंदाज गिरेबान पकड़ने वाला था।
अरे भई मतलब-वतलब कुछ नहीं। ये कार्पोरेट जगत है। यहा शर्ट के बटन खोले बगैर कुछ भी नहीं मिलता। ... अगर तुम वास्तव में ऐसा नहीं कर रही हो और आगे भी नहीं करना चाहती हो तो टिक नहीं पाओगी।

सन्न रह गई थी शरमनी। उसे खुद को नॉर्मल करने में काफी समय लगा। ...तो ठीक है, मुझे नहीं मंजूर यह सब। छोड़ दूंगी कंपनी।

फिर क्या करोगी ?

दूसरी कंपनी में...। कहीं ओर काम कर लूंगी। जैसे शरमनी के पास जवाब तैयार था।

वहां भी ऐसे ही मिले तो। चलो छोड़ा,े ऐसे नहीं मिलेंगे लेकिन अगर इस कंपनी ने तुम्हारी अगेंस्ट-रिपोर्ट कर दी तो।
ऐसा क्यों करेंगे भला ?

क्यों नहीं करेंगे। तुम उन्हें कर जा रही हो।

शरमनी भौंचक्की सी देख रही थी उसे और वह अपनी ही रौ में बोले जा रही थी। लड़ाइयां हम लड़ते हैं शरमनी। अपने आपसे, अपने वजूद से, अपने आसपास से। बड़े लोग लड़ाइयों में वक्त को जाया नहीं करते। कंपनियां सिर्फ फायदे का सौदा करती है।

फिर कार्पोरेट-जगत में तो लड़ाइयां होती ही नहीं है। बिजनस की भाषा में लड़ना मूर्खता है और तोड़ना कल्चर है। यहां एक-दूसरे के आदमियों को तोड़ने का जश्न मनाया जाता है। राइवल-गु्रप भी आपस में जाम टकराते समय भूल जाते हैं कि वे व्यावसायिक प्रतिद्वंदी हैं। ऐसे में दो हजार रुपए के ज्यादा पैकेज के चक्कर में बैनर बदलने में देर नहीं लगाने वाले इन लोगों का क्या पता। कल उसी कंपनी में चले आएं जहां तुम हो। फिर बॉस का एसएमएस आए।
देखो तुम मुझे डरा रही हो।

कनिका ने प्यार से कहा, मैं तुम्हे समझा रही हूं। शरमनी, हो सकता है। बाद में तुम्हे समझाने वाला भी नहीं मिले। इस दौर में सबकुछ संभव है शरमनी और तुम उस टिपीकल इंडियन मेंटेलिटी को ढो रही हो। जमाना बदल रहा है शरमनी। इस फ्रेम में ढलना ही वक्त की मांग है।

यानी मैं बदल जाऊं?

अभी बनी ही कहां हो? फिर जैसा देस, वैसा वेश। हर्ज ही क्या है यार। कनिका की साफगोई थी लेकिन बात दिल को लग गई। शरमनी का फैसला था समझौता नहीं करूंगी।

अब तक कनिका उसे क्रूर लगने लगी थी। शब्द कसे हुए थे - तो फिर जान लो शरमनी, अगर यही हालात रहे तो जाना ही पड़ेगा।

कनिका की ये सारी बातें शरमनी को एक-एक कर के याद आ रही थी।

अगर ऐसा नहीं कर कर सकती तो लौट जाओ।

होगा इतना ही कि इस रिक्रूटमेंट के बाद जितने घरों में मिठाइयां बांटी गई थी, वे सवाल करेंगे। मम्मी की सहेलियों और पापा के दोस्तों के बीच जितनी भी मिसालें दी गई थी उन्हें झुठलाना पड़ेगा। ...कुछ दिन लोग पूछेंगे फिर घर वाले शादी कर देंगे। बच्चे हो जाएंगे। ज्यादा नहीं तो अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम में पढ़ाने का काम तो कर ही सकती हो। शरमनी, सीखा हुआ ज्ञान कुछ न कुछ तो काम आता ही है। कनिका की भाषा में व्यंग्य महसूस हुआ था उसे।
कनिका, तुम ओवर हो रही हो। देखो मैं बहुत परेशान हूं। अगर तुम मुझे रास्ता नहीं दिखा सकती तो अकेला छोड़ दो। मैं तुमसे अपनी परेशानी शेयर करने आई थी। कनिका ने सिर्फ इतना ही कहा, सॉरी शरमनी। मैंने तो सच्चाई बताने की कोशिश की। मैं जानती हूं तुम्हारे जैसी लड़की के यह सब सोचना भी कितना मुश्किल होता है। सच, शरमनी। ... यहां लोग बहुत गंदे हैं। अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकते हैं। ...एक बार कीचड़ में पैर पड़ जाए तो फिर संभलना मुश्किल है।
शरमनी को भी कुछ नहीं सूझ रहा था। शरमनी घर आ गई लेकिन बॉस का एसमएस और कनिका की बातों से पीछा छोड़ा ही नहीं। जाने कब उसे नींद आ गई और सुबह हुई तो ऑफिस जाने की जल्दी लग गई। ऑफिस में गई तो बॉस ने देखा तो फिर से विचलन हुआ लेकिन काम में मन लगाने की कोशिश की। मन लगा भी लेकिन नहीं भी लगा और इससे पहले की कुछ अच्छा होता। एक और एसएमएस सामने था।
क्या करेगी शरमनी। यह शरमनी भी नहीं जानती थी और इस जानने, नहीं जानने के द्वंद्व में उसने तय कर ही लिया कि कुछ भी हो उसे बॉस के पास जाना ही चाहिए। यह समझना चाहिए कि आखिर वो चाहता क्या है। जाने से पहले उसने सिर्फ इतना ही किया कि एक बार कनिका को फोन कर दिया।
शरमनी नहीं जानती थी उसने ऐसा क्यों किया लेकिन उसे यह लगने लगा कि इस समय में उसका साथ देने के लिए सिर्फ कनिका ही है जो सारे हालात को समझती है। हालांकि उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कर रही है। अगर जैसा कनिका ने कहा है वैसा हो गया तो उसका जवाब क्या होगा लेकिन सच्चाई यह थी कि स्थितियों से सामना करने के अलावा उसके सामने कोई चारा नहीं था।
आखिर वह समय आ भी गया जब उसे बॉस के रूम में जाना था। ऑफिस टाइम खत्म हो चुका था। बॉस बैठे थे। कुछ और एम्प्लॉई जिनका काम बचा हुआ था वे अपने काम में लगे थे। शरमनी ने अपना बैग संभाला और बॉस के कमरे की ओर बढ़ गई।
आओ शरमनी, अच्छा किया जो तुम आज आ गई वरना हम इससे ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते थे। ऑफिस में एंट्री करते हुए बॉस का यह कहना शरमनी के लिए झटके जैसा था लेकिन वह इसे झेल गई।
बॉस ने शरमनी को देखा और कहा, बैठो। देखो शरमनी, दो दिन तुमने क्या सोचने में बिता दिए यह तो मैं नहीं जानता लेकिन अगर तुम आज भी नहीं आती तो शायद एक बड़ी अपोर्च्युनिटी से चूक जाती। दरअसल, हमारी कंपनी को अपने नए प्रोडक्ट की लांचिंग के लिए कुछ अच्छे लोगों की तलाश है। तुम्हारे काम करने के तरीके को कंपनी ने देखा है। हमें लगता है तुम्हारे अंदर क्षमता है और अगर तुम्हारी इच्छा हो तो इस प्रोडक्ट के लिए तुम्हें बतौर प्रोजेक्ट लीडर के रूप में रखा जा सकता है।
शरमनी के लिए यह समय रोमांचित होने का था लेकिन कनिका की बात उसके कानों में गूंज रही थी। उसे लग रहा था बॉस अब वही कहेगा जैसा कनिका ने कहा था। शरमनी ने खुद को संयंत करते हुए पूछा। बट, सर इसके लिए मुझे क्या करना होगा।
करना क्या होगा? भई काम करना होगा। जैसा यहां कर रही थी, उससे कुछ ज्यादा। लीडर के मायने तो समझती हो ना...? अगर मंजूर है तो बोलो। इतनी जल्दी नहीं है। गार्जियन से पूछकर कल तक जवाब दे देना।
शरमनी के सामने कहने के लिए कुछ नहीं था। अगर बॉस की बात को माने तो वास्तव में बड़ी अपोर्च्युनिटी थी और कनिका की बात माने तो अभी तक असली बात बाहर आनी बाकी थी लेकिन इससे पहले बॉस ने कह दिया, कल सोचकर बता देना। हालांकि, सोचने के लिए वास्तव में तो कुछ था ही नहीं। ... उसने तय कर लिया था कि उसका जवाब क्या होगा। अभी जो काम कर रही है वही ठीक है। कह दूंगी गार्जियन ने मना कर दिया।
शरमनी उठकर जाने लगी तो बॉस ने कहा, शरमनी, मैं जानता हूं तुम तीन दिन क्यों नहीं आई। कनिका तुम्हारी सहेली है ना। मैं तुम्हे सिर्फ एक बात बता देना चाहता हूं कि जिस प्रोडक्ट के लिए तुम्हे ऑफर किया जा रहा है उसके लिए कनिका ने खुद चलकर अप्लाई किया था क्योंकि उसे पता है कंपनी में कहां क्या चल रहा है।
उसे जब यहीं पर काम करने के लिए कहा गया तो उसके पास कंपनी की बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं था। हां, वो तुम्हे आने से रोक सकती थी। उसने ऐसा किया भी लेकिन रोक नहीं पाई और तुम यहां पहुंच गई। मुझे इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम मेरी बात को झूठ मानो लेकिन फिर भी मैं चाहूंगा कि तुम यह देखती जाओ।
बॉस के हाथ में एक पेपर था। शरमनी ने देखा, कनिका की एप्लीकेशन थी जिस पर साफ-साफ रिफ्यूस्ड लिखा दिख रहा था। शरमनी के पास कहने के लिए कुछ भी नहीं था। बॉस ने कहा। शरमनी, हमारे से ऊपर भी कोई होता है और हम भी अपने घर-परिवार के लिए काम करते हैं। मैं अच्छे या बुरे की बात नहीं करता लेकिन सभी को अच्छा या बुरा कहकर सिरे से खारिज करना ठीक नहीं है। मैं जानता हूं कि अगर तुम्हे आगे बढ़ने के अवसर दूंगा तो कंपनी मुझे अच्छे लोग देने के लिए पीठ थपथापाएगी। ... लेकिन यह भी सच है कि जिस तरह कंपनी के पास मेरे जैसे लोगों की कमी नहीं है, उसी तरह तुम्हारे जैसे भी मिल ही जाएंगे। कंपनी को अपना प्रोजेक्ट चलाना है तो वह लीडर बनाएगी ही। चाहे वो तुम हो या कोई और। देट्स ऑल, अब तुम जा सकती हो।
शरमनी के लिए यह सुनना आसमान से जमीन पर गिरने जैसा था। वह बॉस को सिर्फ थैंक्स कह पाई पाई और निकल गई। हालांकि उसे अपनी सोच पर पछतावा हो रहा था लेकिन इस सोच का सबक उसके जेहन में अभी तक गूंज रहा था। वह बाहर आई तब तक ऑफिस लगभग खाली हो चुका था। उसे जल्दी से जल्दी घर जाना था। बाहर निकली तो बाइक पर कनिका बैठी दिखी। शरमनी को देखते ही उतर कर उसकी ओर दौड़ी आई। क्या हुआ, एवरीथिंग इज ऑलराइट?
हां, लेकिन तुम ठीक थी। शरमनी एक-एक शब्द को चबा-चबाकर बोल रही थी। बॉस ने कहा, अपोर्च्युनिटी ऐसे ही नहीं मिलती। सोच लो, लाइफ-स्टाइल बदल जाएगी। सबकुछ कंपनी देगी लेकिन...
... लेकिन क्या? कनिका सबकुछ जल्दी-जल्दी जानने के लिए उतावली हो रही थी।
शरमनी ने कहा, बॉस बोले, लेकिन फिर मुझे भूल जाओगी। यह गलत होगा न। बस, तुम्हे मेरी याद रहे, ऐसा कुछ करना होगा।
कनिका चिल्लाई, ऐसा कहा उसने? बास्टर्ड।
क्या गलत कहा कनिका? मैं तो प्रिपेयर थी। थोड़ा आगा-पीछा सोचा और फिर अपोर्च्युनिटी को ध्यान में रखा। यहां तो पांच इंक्रीमेंट में भी इतना नहीं मिल पाता। मैंने कह दिया, आप जैसा कहेंगे वैसा होगा।
कनिका अचंभित थी। उसने पूछा, लेकिन वो अपोर्च्युनिटी? क्या करेगा वो तेरे लिए।
पता नहीं कनिका, लेकिन मुझे उसकी बातों पर विश्वास हो गया। सच बताऊं कनिका, इस वक्त अगर तेरा सबक मेरे साथ नहीं होता तो शायद मैं हां नहीं कर पाती। कार्पोरेट जगत में तो ऐसा होता ही है, है ना? अगर यहां टिके रहना है तो सब करना ही पड़ेगा।
यह कहते हुए शरमनी ने कनिका का कंधा दबा दिया। कनिका पागलों की तरह शरमनी को देख रही थी जो तेजी से आगे बढ़ते हुए ओझल हो गई।