कार्यक्षेत्र में पर्दापण (प्रभा का प्रथम संपादकीय) / गणेशशंकर विद्यार्थी

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गहरे विश्राम के पश्‍चात् 'प्रभा' आज फिर कार्यक्षेत्र में पर्दापण करती है। उसका पहला वायुमंडल अत्‍यंत उच्‍च और सात्विक था। इसकी कल्‍पना तक हृदय को शुद्ध और ओजपूर्ण भावनाओं की ओर अग्रसर करती है। हमारा प्रयत्‍न होगा कि हम उन उच्‍च आदर्शों को लक्ष्‍य में रखें, परंतु हम अनुभव करते हैं कि जो स्‍वच्‍छ और पवित्र परिस्थिति 'प्रभा' के तत्‍कालीन प्रधान संचालक श्रीयुत माखनलाल जी चतुर्वेदी ने अपनी मनस्विता और उच्‍चाशयता से निर्माण की थी, 'प्रभा' को उस कोटि में स्थिर रखना हमारे लिए अत्‍यंत कठिन है। हम पुराने पदचिन्‍हों का स्‍मरण रखेंगे और उनका आदर करेंगे और साथ ही उन मार्गों पर चलने का पूरा प्रयत्‍न करेंगे, जिनमें हमारी शक्तियाँ भली-भाँति लग सकें और जिनकी यात्रा देश के लिए आवश्‍यक भी हो। हम अनुभव करते हैं कि संसार की गति को मोड़ने और बदलने के लिए इस समय अगणित प्रबल शक्तियाँ काम कर रही हैं। इस समय रक्‍तपात बंद है, या वह कम है, परंतु घोर संग्राम अब भी हो रहा है। कहीं लिखने और बोलने की स्‍वाधीनता के लिए युद्ध छिड़ा है, तो कहीं व्‍यवहारों और परिस्थिति की विषमता मिटाने के लिए। कहीं विकास के लिए मार्ग माँगा जा रहा है, तो कहीं आत्‍मरक्षा के लिए सुसंघटता की दीवारें खड़ी की जा रही हैं। हर तरफ तैयारी है, जो बढ़े हुए हैं, वे और भी आगे बढ़कर कदम रखना चाहते हैं। संसार-भर में अपनी बात फैलाने और अपनी-सी ध्‍वनि उठाने के लिए लार्ड नार्थ क्लिफ-ऐसे मछुओं का बड़ा भारी जाल फैलाया जाता है और लायड जार्ज के उन शब्‍दों के अनुसार, जो लार्ड मेयर के भोज में कहे गये थे, अपने को आगे चलकर पहले से भी कहीं अधिक शक्तिशाली और धनवान बन जाने का स्‍वप्‍न देखा जाता है। जो नादार हैं, या दबे हुए, वे भी बड़े-बड़े मंसूबे बाँध रहे हैं। बहिष्‍कृत रूस संसार-भर पर अपनी भावनाओं की छाप लगाकर अमीर और गरीब, शक्तिशाली और शक्तिहीनों को एक ही पंक्ति में ला बैठाना चाहता है। पराधीन भारतवर्ष भी अपने असमर्थ बच्‍चों में जागृति और क्रियाशीलता के चिन्‍ह देख रहा है। कर्मण्‍यता और आकांक्षाओं की ये उमंगे सभी ठौर अपना पद-शब्‍द प्रतिध्‍वनित कर रही हैं। सुनने वाले उन्‍हें सुनते हैं और सुनेंगे। जो अचेत हैं, वे पड़े रहें, परंतु यह कठिन है कि वे प्रवाह की उलटी चपेट से बचे रहें। आत्‍मरक्षा और आत्‍मविकास के लिए संसार की घटनाओं की क्रिया और प्रतिक्रिया का ज्ञान आवश्‍यक है। इस देश को ज्ञान की ऐसी ज्‍योतिशिखा की परम आवश्‍यकता है जो नाविक को घटनाओं की घटाओं से आच्‍छादित मार्गों के ढूँढ़ने में सहारा दे, उसे उसकी दिशाओं की सूचना दें, आस-पास के कगारों की ऊँचाई, नीचाई, भयंकरता और सोमता का पता दे, आसपास वालों की घातों और प्रतिघातों का ज्ञान दे और अंत में, दे उसे पार करने के लिए प्रौढ़ मत, शुद्ध संकल्‍प और अदम्‍य उत्‍साह। 'प्रभा' इस क्षेत्र में कुछ कार्य करेगी। उसका प्रयत्‍न होगा कि वह पाठकों को घर और बाहर के अनुकूल और प्रतिकूल सामयिक संघर्षणों का परिचय दे, उन्‍हें अपना मत स्थिर करने में सहायता दे और इस प्रकार उन्‍हें देश के कल्‍याण के लिए अग्रसर होने का निमंत्रण दे। काम उतना ही बड़ा है जितना कि आवश्‍यक। संतोष है कि कई दिशाओं में यह काम हो रहा है। 'प्रभा' भी अपनी अत्‍यंत साधरण शक्तियों को लेकर उस में योग देगी। परमात्‍मा करें कि वह इस मार्ग में कुछ कर सके!