कार बेजार बेकार, मध्यम वर्ग बेकरार / जयप्रकाश चौकसे

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कार बेजार बेकार, मध्यम वर्ग बेकरार
प्रकाशन तिथि : 29 अप्रैल 2021


महामारी के संकट में मारुति कार उद्योग का लाभ लगभग यथावत कायम रहा। महामारी में लोगों की आवाजाही घटी नहीं है, वरन बढ़ी है। गौरतलब है कि जब देश में मारुति कार निर्माण की योजना घोषित हुई थी तो तुकबंदी करने वाले नेताओं ने कहा था- ‘यह मां के रुदन की योजना है।’ दरअसल मध्यम वर्ग के लोग कार खरीदने का सपना लिए ताउम्र तरसते ही रहते थे।

मारुति ने देश में मध्यम वर्ग का कार रखने का सपना सच किया था। कार से जुड़ी ही एक और बात- एक पुराने औद्योगिक घराने ने एक प्रांत से सस्ती कार बनाने के लिए सस्ती जमीन की मांग की जो इस आधार पर अस्वीकृत की गई थी कि हमारी प्राथमिकता रोजी-रोटी और मकान उपलब्ध कराना है।

निर्माता आदित्य चोपड़ा के लिए फिल्मकार हबीब फैसल ने ऋषि कपूर और नीतू सिंह अभिनीत ‘दो दूनी चार’ बनाई। कथा में नायक गणित का शिक्षक है। वह प्राइवेट स्कूल में कम वेतन पर कार्य करता है। वह प्राइवेट ट्यूशन करके किसी तरह गुजारा करता है। उसकी विवाहित बहन के देवर की कन्या के विवाह का निमंत्रण उसे मिलता है। साथ ही पत्र में लिखा है कि ससुराल पक्ष में उसकी शान के लिए यह जरूरी है कि भाई अपनी कार में आए। मास्टर साहब अपने पड़ोसी से उसकी मारुति कार उधार मांगते हैं। उनकी पुत्री को कार चलाना आता है। परिवार सकुशल विवाह स्थल पर पहुंचता है। समारोह के दरम्यान बहन का पड़ोसी कार में रखा रजिस्ट्रेशन कागज देखता है। वह मास्टर साहब को ब्लैकमेल करता है कि वे धन दें अन्यथा मांगी हुई कार का भेद उजागर कर देगा। अपनी पत्नी का एकमात्र गहना गिरवी रखकर मास्टर इस संकट से बचता है। परिवार घर लौटता है तो कार टकरा जाती है। कार का मालिक अपनी झगड़ालू पत्नी के दबाव में पैसा मांगता है।

ईमानदार शिक्षक दुविधा में है कि क्या वह एक अमीरजादे छात्र की उत्तर पुस्तिका में अंक बढ़ाकर अपने पड़ोसी की कार को पहुंची हानि की रकम चुका सकता है? अमीरजादे का पिता उसे अपने पुत्र की उत्तर पुस्तिका लेकर एक रेस्तरां में बुलाता है। जीवन में पहली बार अपने आदर्श के खिलाफ जाने को मजबूर मास्टर रेस्तरां जाता है। रेस्तरां में सौदे के पहले मास्टर द्वारा कुछ वर्ष पूर्व पढ़ाया एक छात्र इत्तेफाक से वहां मौजूद है। वह छात्र शिक्षक से कहता है कि आज वह जीवन में सफल और समृद्ध है तो इसका श्रेय उन्हीं को जाता है। यह जानने के बाद शिक्षक प्रण करता है कि वह अपने आदर्श से नहीं डिगेगा। इसके बाद के भाग में यह प्रस्तुत किया गया है कि अमीरजादे का पिता मास्टर से प्रार्थना करता है कि वह उसके बिगड़ैल बेटे को पढ़ा कर अच्छा इंसान बनाए। इसके लिए वह उन्हें भरपूर धन देता है।

अशोक कुमार अभिनीत फिल्म ‘चलती का नाम गाड़ी’ में 1928 में बनी कार केंद्रीय पात्र है। यह हमारी सर्वोत्तम हास्य फिल्म है। कार रेस धन कमाने का माध्यम है। कार रेस की पृष्ठभूमि पर कई फिल्में बनी हैं। एक दौर में अमेरिका के शहर डेट्रायट को कारों की राजधानी माना जाता था। विगत वर्षों में वह शिक्षा का केंद्र बन चुका है।

ज्ञातव्य है कि इंग्लैंड की कंपनी रोल्स रॉयस कार बनाती थी। कंपनी, कार खरीदने वाले ग्राहक की वंशावली और सामाजिक हैसियत के गहन अध्ययन के बाद ही कार बेचती थी। बहुत दशक पूर्व एक महाराजा को रोल्स रॉयस कंपनी ने कार बेचने से इनकार किया था। उन्होंने किसी तरह कार खरीदी और उन्होंने कार को अपने महल के बाहर रखा। अवाम को निर्देश दिया कि अपने घर का कचरा इसमें डालें। इस तरह उन्होंने रोल्स रॉयस बनाने वालों के गर्व को तोड़ दिया।

गोविंद माथुर की एक कविता है कि ‘पेट्रोल में ही नहीं, आग हर चीज में लगी थी, अगर नहीं थी आग तो चूल्हे में नहीं थी।’