कालजयी हैं हितोपदेश की कहानियाँ / नारायण पण्डित
समीक्षा लेखिका :अनीता चमोली ‘अनु’
आज दुनिया एक गाँव हो गई है। सूचना-तकनीक की बातें हो रही हैं। ऐसे में जब बच्चा-बच्चा जन्म से ही बेहद चतुर माना जा रहा है। तब भी हितोपदेश की कहानियाँ बेहद कारग़र और आज के संदर्भ में सटीक हैं। आज भी जब किसी भी परिवेश के बच्चों के साथ बैठकर बातें करें तो बच्चे अपने आस-पास के परिवेश के पशु-पक्षियों की चर्चा में बेहद दिलचस्पी लेते हैं। वह ऐसे पशु-पक्षियों के बारे में भी जानना चाहते हैं जो उन्होंने कभी देखे ही नहीं। हितोपदेश के मित्रलाभ में सात कथाएँ हैं। पांचवीं कथा व्यभिचार, स्त्रीनिन्दा और अश्लीलाधारित है। यहाँ हम छह कथाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालेंगे। हितोपदेश बेहद प्राचीन ग्रन्थ है। यह कब रचा गया। इस पर विद्वानों की एक राय नहीं है। अधिकांश विद्वान हितोपदेश का रचनाकाल नवीं से बारहवीं ई. शती के मध्य का मानते हैं। हितोपदेश पंचतंत्र पर आधारित कथा ग्रन्थ है। इसकी लोकप्रियता कल भी थी और आज भी है। पंचतंत्र के रचनाकार विष्णुशर्मा हैं। हितोपदेश को पंचतंत्र का ही एक संस्करण माना जाता है। हितोपदेश को नारायण पण्डित ने लिखा है।
हितोपदेश में सभी कथाएँ अतुलनीय हैं। लेकिन हितोपदेश का मित्रलाभ खंड बेहद लोकप्रिय है। हितोपदेश में बालकों को नीतिपरक शिक्षा दी गई है। नारायण पण्डित ने पंचतंत्र की सभी कथाओं को हितोपदेश में शामिल नहीं किया है। उन्होंने कुछ नई कथाएँ भी जोड़ी हैं। हितोपदेश में कुल कथाएँ और नीतिविषयक पद्य हैं। हितोपदेश में यह पद्य महाभारत, धर्मशास्त्र, पुराण, चाणक्य नीति, शुक्र नीति और कामन्दक नीति से लिए गए हैं। हितोपदेश में मित्रलाभ, सुह्दभेद, विग्रह और सन्धि प्रकरण हैं। मित्रलाभ तो कई विश्वविद्यालयों में पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया गया है।
हितोपदेश की सभी कथाएँ आज भी प्रासंगिक हैं। माना जाता है कि जब मानव ने परिवार में रहना शुरू किया था, तभी बच्चों को शत्रु-मित्र की पहचान के लिए यह कथाएँ मानव ने गढ़ी होंगी। आदिकाल का मानव आखेट करता था। उसका सीमित संसार था। अपने बच्चों को कथा सुनाकर ही वह अपना और उनका मनोरंजन करता होगा। धीरे-धीरे कथा की वाचन परंपरा आगे बढ़ी होगी। पीढ़ी दर पीढ़ी यह हस्तांतरित होती रही होगी। शेर, हिरन, बाघ, बंदर, भालू, सियार, गिद्ध, लोमड़ी, खरगोश, सियार, चूहा, कौवा, कबूतर आदि पशु-पक्षियों के माध्यम से मानव ने नई पीढ़ी को दुनिया के तौर-तरीक़ों से परिचित कराया होगा।
1- पहली कथा लालच पर आधारित है। एक बूढ़ा बाघ था। वह शिकार करने में अक्षम हो गया था। वह तालाब के किनारे बैठ गया। उसने एक हाथ में घास पकड़ ली। दूसरे हाथ में सोने का कंगन था। एक यात्री ने देखा तो वह रूक गया। बाघ ने बताया कि वह जिन्दगी भर मांसाहारी रहा है। अब पुण्य कमाने के लिए वह शाकाहारी हो गया है। वह मरने से पहले किसी को सोने का कंगन दान करना चाहता है। यात्री बाघ की बातों में आ गया। बाघ ने यात्री को तालाब में नहाने के लिए कहा ताकि वह दान लेने के योग्य बन सके। यात्री तालाब में नहाने के लिए घुसा। तालाब में दलदल था। यात्री दलदल में फंस गया। बाघ ने यात्री को अपना आहार बना लिया।
2- दूसरी कथा में हिरन और कौआ की मित्रता थी। सियार ने हिरन को चिकनी-चूपड़ी बातों में फॅसा लिया। हिरन ने कौआ से कहा कि सियार उसका दोस्त बन गया। कौआ ने हिरन से कहा कि अपरिचित और कुलशील से मित्रता नहीं की जाती। तब कौआ ने हिरन को एक कथा सुनाई। एक बड़े पेड़ में बूढ़ा गिद्ध रहता था। उसे असहाय देख कर पेड़ में रहने वाले पक्षियों ने निर्णय लिया कि गिद्ध पक्षियों के बच्चों की देखभाल किया करेगा और बदले में सभी पक्षी अपने भोजन का कुछ हिस्सा गिद्ध को दे दिया करेंगे। ऐसा ही हुआ। गिद्ध भी निष्ठा और लगन से पेड़ में बने घोंसलों में रह रहे बच्चों की देखभाल करने लगा। जंगल में एक बिलाव भी था। उसकी नज़र पक्षियों के बच्चों पर थी। उसने गिद्ध की चापलूसी की और वृक्ष के कोटर में शरण ले ली। धीरे- धीरे उसने पक्षियों के बच्चों को खाना शुरू कर दिया। जब पक्षियों ने शोर मचाया तो बिलाव भाग गया। पक्षियों ने कोटर में अपने बच्चों के पंख और हड्डिया देख लीं। पक्षियों ने गुस्से में आकर गिद्ध को चोंच मार-मार कर मार डाला।
3-तीसरी कथा धोख़ेबाज़ सियार पर आधारित है। कौआ और हिरन दो दोस्त थे। भोले हिरन को धूर्त सियार अपना दोस्त बना लेता है। सियार हिरन को एक हरे-भरे खेत में ले जाता है। हरी घास के लालच में आकर हिरन किसान द्वारा फैलाए जाल में फंस जाता है। जब हिरन सियार से मदद की गुहार करता है तो सियार व्रत धारण का बहाना बनाकर चमड़े के जाल में मुँह लगाने से इन्कार कर देता है। तभी हिरन का मित्र कौआ वहाँ आ जाता है। कौआ हिरन को मर जाने का स्वांग करने को कहता है। तभी वहाँ किसान लाठी लेकर आता है। कौआ भी हिरन के शरीर में चांेच मारने का नाटक करता है। किसान हिरन को मरा हुआ समझ कर जाल खोल देता है। हिरन झट से उठ कर भाग पड़ता है। किसान हिरन पर लाठी फेंकता है। लाठी झाड़ी में छिपे सियार पर जा लगती है। सियार दम तोड़ देता है।
4-चौथी कथा अधिक धन संग्रह पर आधारित है। एक सन्यासी का मित्र उसके घर आता है। सन्यासी बात-बात पर ज़मीन पर लाठी चलाता है। पूछने पर सन्यासी बताता है कि एक चूहा दीवार की खूंटी पर टँगे भिक्षा पात्र में रखा भोजन खा लेता है। उसे डराने के लिए वह लाठी जमीन पर पटक रहा है। सन्यासी का मित्र संदेह करता है कि नन्हा चूहा उछलकर खूँटी का भोजन कर लेता है तो वह साधारण चूहा नही हो सकता। मित्र चूहे के बिल को खोदता है तो वहाँ संचित गड़ा हुआ धन मिलता है।
5-पाँचवी कथा में एक शिकारी हिरन का शिकार कर लौटता है। तभी शिकारी को एक जंगली सुअर दिखाई देता है। वह सुअर पर तीर चलाता है। सुअर पलट कर शिकारी पर हमला करता है। दोनों लड़ते हैं और मर जाते हैं। उनकी लड़ाई में एक साँप भी कुचल कर मर जाता है। तभी वहाँ एक सियार आता है। सियार मरे हुए हिरन, शिकारी, सुअर और साँप को देखकर ख़ुश हो जाता है। उसका कई महीनों के भोजन की जो व्यवस्था हो जाती है। सियार शिकारी के धनुष पर चमड़े की डोर को देखता है। वह सोचता है कि आज केवल चमड़े की डोर को चाट कर ही गुज़ारा किया जाए। जैसे ही वह डोर पर मुँह लगाता है वह टूट जाती है और धनुष से चोटिल होकर सियार मर जाता है।
6-छठी कथा में एक हाथी था। वह जानवरों को बहुत सताता था। सभी उससे परेशान थे। एक बूढ़ा सियार संकल्प लेता है कि वह हाथी का नाश करेगा। वह हाथी के पास जाता है। वह हाथी से कहता है कि जंगल में एक बैठक हुई है और सबने आपको आम राय से अपना राजा बना लिया है। सभी आपका राजतिलक करना चाहते है। आप मेरे साथ ज़ल्दी चलिए। हाथी सियार के साथ चल पड़ता है। सियार हाथी को दलदल वाले रास्ते से ले जाता है। सियार तो आसानी से दलदल पार कर लेता है, लेकिन विशालकाय हाथी दलदल में फँस कर मर जाता है। इस कथा में एक और कथा मित्रता पर आधारित है। कछुआ,चूहा,हिरन और कौआ आपस में मित्र थे। कछुआ एक तालाब में रहता है। हिरन ने बताया कि शिकारी तालाब में जाल फैलाने वाले हैं। कछुआ यह सुनकर परेशान हो जाता है। वह अपने मित्रों से कहता है कि यदि तालाब नहीं छोड़ा तो वह मारा जाएगा। वह अपने मित्रों से कहता है कि प्रयास करने से ही सफलता मिलती है। चारों मित्र पैदल चल पड़ते हैं। तभी वहाँ एक शिकारी आ जाता है। वह कछुए को पकड़ कर जाल में लपेट कर कंधे में रखकर चल पड़ता है। हिरन,कौआ और चूहा उपाय खोजते हैं। जैसे ही दूसरा तालाब निकट आता है। हिरन कुछ दूरी पर मरने का स्वांग करता है। कौआ हिरन पर चोंच मारता रहता है। शिकारी सोचता है कि हिरन मरा हुआ है वह कछुए को छोड़कर हिरन की और दौड़ पड़ता है। तभी चूहा जाल काट कर कछुए को मुक्त कर देता है। कछुआ दौड़कर तालाब में छिप जाता है। जैसे ही शिकारी हिरन के पास पंहुचता है। हिरन दौड़ कर जंगल में छिप जाता है। कौआ उड़ जाता है और चूहा किसी बिल में छिप जाता है।
मित्रलाभ खंड की सभी कथाएँ कमज़ोर और असहाय आकार में छोटे जानवरों पर आधारित हैं। पशु-पक्षियों के माध्यम से कथाएँ मित्रता, सहायता, प्रेम, शत्रुओं की पहचान की सूझ-बूझ, अत्यधिक लालच न करना, धन संचय न करना, बुद्धि की महत्ता, संकट में धैर्य न खोना आदि गुणों एवं मानवीय मूल्यों की ओर इशारा करती हैं। इन कथाओं में आए कई श्लोक जीवन पद्धतियों के आदर्श उदाहरण हैं।
आज जब मानव व्यवहार हिंसक पशुओं से भी बदतर हो गया है। तब नौनिहालों में मानवीय मूल्यों के विकास के लिए ये कथाएँ अचूक औषधियों से कम नहीं। आज ज़रूरत इस बात की है कि हम बच्चों को अपने प्राचीन ग्रन्थों की कथाओं से अवश्य परिचित कराएँ। ये कथाएँ भारत में ही नहीं समूचे विश्व के बच्चों के लिए उपयोगी है। यही कारण है कि हितोपदेश की कथाओं का कई देशों ने अपनी भाषाओं में अनुवाद कराया है।
सूचना तकनीक ने बच्चों से उनका बचपन छीन लिया है। गला-काट प्रतिस्पर्धा ने बच्चों के कधों पर भारी बस्ता लाद दिया है। पढ़ाई और प्रतियोगिता के पाट पर पिसता बचपन आज खो-सा गया है। ऐसे समय में इन कथाओं का मूल्य और अर्थ दोनों बढ़ जाते हैं। जागरुक माता-पिता इन कथाओं को अपने शब्दों में ख़ाली वक़्त में या रात को सोते समय बच्चों को सुनाना नहीं भूलते। आख़िर सुविधाओं से और आर्थिक संसाधनों से संस्कार तो नहीं ख़रीदे जा सकते हैं। बच्चों में मानवीय मूल्य और सीख तो क़िस्सा-कथा-कहानियाँ ही देती हैं।
अनीता चमोली 'अनु'अनीता चमोली 'अनु' द्वारा-श्री भगवान वर्मा काण्डई, पौड़ी, जनपद पौड़ी गढ़वाल 246001, उत्तराखण्ड anitachamolianu@gmail.com