काला सागर. / तेजेन्द्र शर्मा
विमल महाजन ने आज दफ्तर से अवकाश ले रखा था. उन्हें कई दिनों से लग रहा था जैसे उनका शरीर आवश्यकता से अधिक थकता जा रहा है. उन्होंने फ़ैसला किया कि आज केवल आराम ही किया जाए, देर तक सोए. उठकर आराम से सुबह के कामों से निवृत्त हुए, और समाचार-पत्र लेकर बैठ गए. आजकल समाचार-पत्र पढने में उन्हें कोई विशेष रुचि नहीं रही थी. पंजाब में हो रही घटनाओं को पढ़ कर उन्हें एक अजीब-सी बेचैनी होने लगती. उन्हें हमेशा याद आता था अपना वह छोटा-सा गांव जगरांव जहां उनका जन्म हुआ था, लुधियाना के करीब ही. जब कभी बहुत प्रसन्न मुद्रा में होते, तो कहते, इस जगरांव में हिंदुस्तान की दो महान विभूतियों ने जन्म लिया है- एक थे लाला लाजपत राय, और दूसरा! और.. यह कह कर वे अपनी ओर देखते व वह हंस पडते. किंतु आजकल जैसे स्वयं से ही सवाल पूछते रहते थे, क्या हो गया है अपने पंजाब को? एक दिन बहुत भावुक होकर बोले, "रंजना, हम तो एकदम स्टेट-लेस होकर रह गए हैं. यहां बंबई वाले तो नारा लगाते हैं सुंदर मुंबई मराठी मुंबई, यानी हम तो यहां के कभी नहीं हो सकते. और पंजाब जाने का अर्थ है, मौत को दावत देना. इतना बुरा हाल तो सैंतालीस में भी नहीं हुआ था." और फिर वे एक गहरी सोच में डूब गए. कितना भयावह विचार है! आपकी मातृभूमि आपसे छिन जाए, बिना किसी अपराध के. विमल महाजन को एअरलाइन की नौकरी करते तीस वर्ष हो गए थे. बस, चार-पांच वर्ष में रिटायर होने वाले थे. सारी दुनिया ही उनके छोटे से संसार का हिस्सा बनी हुई थी. एक विमान-परिचारक की हैसियत से उन्होंने नौकरी शुरू की थी. परंतु अपनी मेहनत व ईमानदारी के बल पर इस उच्च पद पर पहुंच गए थे. इस बीच उनका विवाह भी हुआ और तीन बच्चे भी. कैसे समय निकलता जा रहा है उनकी मुठ्ठी से! वैसे उन्हें देखकर कोई यह नहीं मान सकता था कि वे दो-दो बच्चों के नाना भी हैं. इसका कारण संभवतः उनका पहनावा था, जिसके प्रति वे अतिरिक्त सचेत थे. इतने ही वे अपनी सेहत के बारे में भी थे. स्पष्टवादिता उनकी एक और विशेषता थी, जिसके कारण वे कभी प्रशंसा तो कभी आलोचना के पात्र बनते थे. विमल महाजन ने समाचार-पत्र को दो-तीन बार उलट-पुलटकर देख लिया था और आरामकुर्सी पर अलसा रहे थे तभी फ़ोन की घंटी बजी. उन्हें काफ़ी कोफ्त हुई. आज का दिन वे आराम से ही बिताना चाहते थे. टेलिफ़ोन या और कोई भी विघ्न उन्हें नहीं चाहिए था. अन्यमनस्क भाव से उन्होंने फ़ोन उठाया, फ़ोन एअरपोर्ट से ही था. वे झुंझलाए से स्वर में बोले, भई, आज तो आराम करने दो. महाजन साहब, गज़ब हो गया. जीरो नाइन वन क्रैश हो गई. लंदन के पास. क्या? मैं अभी पहुंचता हूं. विमल महाजन के जबडे थोडे भिंच गए थे. वे जैसे याद करने का प्रयत्न कर रहे थे कि जीरो नाइन वन, पर कौन-कौन क्रू-मेंबर होगा. लगभग बदहवासी की सी स्थिति में उन्होंने कपडे पहने और ऑफ़िस चलने को तैयार हो लिए. रंजना, उनकी पत्नी, समझ गई कि कोई गडबड अवश्य है. जब कभी विमल महाजन परेशान होते तो उनके जबडे भिंच जाते थे. क्या बात है? आप तो आज आराम करने वाले थे. फिर एकाएक कहां की तैयारी होने लगी है? रंजू, न्यूयार्क फ्लाइट क्रैश हो गई है. दफ्तर ़ ़ क्या? अरुण भी तो न्यूयार्क ही गया है. अरुण! हे भगवान! सब ठीक हो. देखों, मैं अभी ऑफ़िस जाकर तुम्हें फ़ोन करूंगा ़ ़. विमल महाजन का स्वर भर्रा उठा था और वे अपनी बात पूरी नहीं कर पाए थे. रास्ते-भर अरुण के विषय में ही सोचते रहे. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अरुण की पत्नी को वे कैसे समाचार दे पाएंगे. अरुण उन्हें अपने बेटे के समान प्रिय था. उसके विवाह में वे अपने सारे सिध्दांतों को ताक पर रखकर, सिर पर पगडी बांधकर, घोडी क़े सामने नाचे थे. अनुराधा, अरुण की पत्नी भी उनका बहुत आदर करती थी. उनके हाथ ठंडे हुए जा रहे थे. नास्तिक होते हुए भी, भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि अरुण सुरक्षित हो. दफ्तर के बाहर कुछ लोग जमा थे यानी खबर फैल चुकी थी. सबके चेहरों पर सहमी हुई उत्सुकता थी. सब दुर्घटना के विषय में जानना चाहते थे. पर कैसे पूछें, कौन पूछे. उनके सहायक अफ़जल खान ने ही उन्हें बताया, सर, फ्लाइट जीरो नाइन वन मांट्रियल से लंदन आ रही थी. रास्ते में ही लंदन के करीब सागर के ऊपर ही फ्लाइट में एक धमाका हुआ और फ्लाइट क्रैश हो गई. अभी पूरी डिटेल्स आनी बाकी है. विमल महाजन ने अपने आपको व्यवस्थित किया, और लंदन फ़ोन मिलाने लगे ताकि पूरा समाचार मिल सके और वे आगे की कार्यवाही आरंभ कर सकें. परंतु फ़ोन मिल नहीं पा रहा था. क्रू लिस्ट देखी. अरुण का नाम उसमें नहीं था. उन्हें काफ़ी राहत महसूस हुई. पर ़ ़पर जो लोग फ्लाइट पर थे, वे सभी उनके अपने परिचितों में से थे. रमेश कुमार! जिसका अभी-अभी तीन महीने पहले ही विवाह हुआ था. मां-बाप की इच्छा के विरुध्द एक पारसी एअर होस्टेस से विवाह किया था उसने. दोनों ही इस फ्लाइट पर थे. काश, यह खबर झूठी हो! वे मन-ही-मन प्रार्थना कर रहे थे. खबर फैलने के साथ-साथ लोगों की उत्सुकता बढती जा रही थी. फ़ोन-पर-फ़ोन आ रहे थे. पर विमल महाजन का मन हो रहा था कि वे कानों पर हाथ रखकर बैठ जाएं चुपचाप. किसी के प्रश्नों का कोई उत्तर न दें. पर चिंतित संबंधियों की जिज्ञासा शांत करना उनका कर्तव्य था. यदि विमल महाजन स्वयं इस दुर्घटना से इतने विचलित हो गए हैं तो जिनके भाई-बहन, मां-बाप, पति और न जाने कितने रिश्तेदार उस विमान में आ रहे थे, उनकी चिंता स्वाभाविक थी. और वे बिना अपना धैर्य खोए फ़ोन अटैंड करने लगे. टेलेक्स की खटखट शुरू हुई. लंदन से पहला संदेश आयाः अनुमान है कि विमान आतंकवाद का शिकार हुआ है. विमान में क्रू व यात्रियों सहित तीन सौ उनतीस लोग थे. अभी किसी के बचने की कोई सूचना नहीं ़ ़यदि कोई बचा भी तो क्या ठंडे एटलांटिक के बर्फ़ीले पानी में जीवित रह पाएगा? विमल महाजन के मस्तिष्क के घोडे ज़ा रहे थे कहां तो यात्री और क्रू-मेंबर लंदन पहुंचने के बारे में सोच रहे होंगे, और कहां गहरे सागर का काला अंधेरा! 'क्या आतंकवाद का कोई धर्म होता है? सोच जारी थी, क्या एक विमान उडा देने से आतंकवादियों की बातें मान ली जाएंगी? क्या इन तीन सौ उनतीस लोगों को भी शहीद कहा जाएगा? जलियांवाला बाग में भी तो बिल्कुल इतने ही लोग शहीद हुए थे. देश उन्हें आज तक नहीं भुला पाया. क्या इन शहीदों को भी लोग याद रख पाएंगे? मारा तो उन्हें भी गोरी सरकार के आतंकवादी/अफ़सरों ने था. निहत्थे वे भी थे और निहत्थे ये भी. क्या फिर ऊधमसिंह खडा होगा जो कि इन आतंकवादियों का सफ़ाया करेगा? टेलिफ़ोन की घंटी बजी. विमल महाजन की तंद्रा टूटी. फ़ोन घर से था. रंजना भी अरुण के लिए परेशान थी. शाम के सात बज गए थे. यात्रियों के नाते-रिश्तेदारों के टेलिफ़ोनों का तांता लग गया था. अब तो लोग एअरपोर्ट पर इकठ्ठे हो चुके थे. सबके मुंह पर एक ही सवाल था, कोई खबर आई? सब मन-ही-मन अपने संबंधियों की खैर की प्रार्थना कर रहे थे. उन सबकी भावनाओं के तूफ़ान को संभाल पाना एअरलाइन के कर्मचारियों के लिए कठिन पड रहा था. विमल महाजन स्वयं सबको तसल्लियां दे रहे थे. लंदन से विस्तृत समाचार की प्रतीक्षा हो रही थी. पत्नी का फ़ोन फ़िर आया. आप एक बार घर आकर खाना खा जाते. उन्होंने अपनी झुंझलाइट रंजना पर ही उतार दी. ऐसे में भला कोई खाने के विषय में कैसे सोच सकता है? ंकिंतु नहीं, उनके मातहत एक-एक करके अपने पेट को खूब शांत कर आए थे. केवल विमल महाजन स्वयं लोगों को दिलासा देने में व्यस्त थे. टेलेक्स से समाचार आ रहे थे. लंदन से सत्तर मील दूर आकाश में एक धमाका हुआ था और विमान सागर में खो गया था. यह भी कि नौकाएं और पनडुब्बियां खोज के लिए भेजी जा रही हैं. विमल महाजन यंत्रवत् अपना काम किए जा रहे थे. निश्चय हो गया था कि कोई नहीं बचा इस दुर्घटना में. जहाज के प्तान विक्रम सिंह विमल महाजन के मित्र थे. बंबई में जब कभी इकठ्ठे होते तो दोनों खार जिमखाना में शामें बिताया करते थे. ब्रिज दोनों का प्रिय खेल था. पर विमल महाजन कभी पैसे लगाकर ताश नहीं खेलते थे. कप्तान विक्रम सिंह सदा ही उन्हें पोंगा पंडित कहकर चिढाते थे. छः महीने में ही रिटायर होने वाले थे. पर अब जैसे कुछ भी शेष नहीं रहा था! न ब्रिज, न पोंगा पंडित कहने वाला उनका दोस्त. फ्लाइट परसर अनिरुध्द सेन की तो केवल छः महीने की बेटी है जब उनकी पत्नी को यह समाचार मिलेगा तो वह कैसे सहन कर पाएगी इस वज्रपात को? कई क्रू-मेंबर एअरपोर्ट पर इकठ्ठे हो गए थे. विमल महाजन ने कुछ लोगों को घरों में जाकर सूचना देने का काम सौंपा. बहुत कठिन काम था, वे जानते थे. समाचार सुनकर घर के सदस्यों की प्रतिक्रिया सोचकर उनका दिल बैठा जा रहा था. कैसे कहेंगे एक पत्नी को कि उसका पति अब कभी नहीं लौटेगा? कैसे कहेंगे एक बच्ची को कि तुम्हारे पापा अब कभी भी तुम्हारे लिए मिकी माउस और डोनाल्ड डक के खिलौने नहीं लाएंगे? तीन-चार दिन सब कुछ अस्त-व्यस्त रहा. एअरपोर्ट पर संबंधियों का तांता लगा रहा. विमल महाजन भी पिछली कई रातों से सो नहीं पाए थे. समाचार-पत्रों में भी एक ही समाचार सुर्खियों में था. विमान-दुर्घटना के कारणों का पता लगाना था, ब्लैक बॉक्स की चर्चा थी, जांच-समिति का गठन, और बहुत-सी औपचारिकताएं. दो दिनों से फाका करते, सडक़ के किनारे पर बैठे ननकू को भी कहीं से खबर लग गई थी. पोलियो ग्रस्त हाथ से सींगदाना चबाते हुए उसने अपने साथी पीटर को खबर सुनाई थी, यार, यह विमान अगर गिरना ही था, तो साला समुद्र में क्यों गिरा? सोच, कितनी बढिया-बढिया चीजें-वीसीआर, टीवी, सोना, साडियां सब-के-सब बेकार! यहीं कहीं अपने शहर के आसपास गिरता तो कुछ तो अपने हाथ भी लगता. ए मैन, अभी धंधे का टाइम है. खाली पीली टाइम वेस्ट करने का नहीं ़ ़क्या ़ ़हां भाई, गॉड का वास्ते इस गरीब को भी कुछ दे दो. जीजस क्राइस्ट भला करेगा. ़ ़ विदेश के कई आतंकवादी गुटों ने इस दुर्घटना का उत्तरदायित्व ओढा. जैसे कोई बहुत महान कार्य किया गया हो और वे उसका श्रेय लेना चाहते हों. बीमार, विकृत मानसिकता के लोग, जो निर्दोष लोगों को मौत की नींद सुलाकर गर्वान्वित अनुभव कर रहे हैं. विमल महाजन का मन वितृष्णा से भर गया. एअरलाइन के हेड क्वार्टर में कई मीटिंगें हुई. तय हुआ कि विदेशी नागरिकों का वहां के कानून के अनुसार मुआवजा दिया जाएगा और भारतीयों को भारतीय कानून के अंतर्गत. रंगभेद का यह भी एक रूप था, चमडी-चमडी में फ़र्क जो है. विमल महाजन ने प्रस्ताव रखा कि एक विमान चार्टर किया जाए और मरने वालों के निकटतम संबंधियों का लंदन भेजा जाए, जिससे वे अपने प्रियजनों की लाशें तो पहचान सकें. उच्च अधिकरियों ने स्वीकृति दे दी. 'क्रू यूनियन ने प्रत्येक मृतक क्रू-मेंबर के परिवार के लिए एक-एक लाख रुपया देने का फ़ैसला किया था. विमल महाजन को झटका-सा लगा जब रमेश कुमार के पिता उनसे मिलने दफ्तर पहुंचे. मिस्टर महाजन, मैं रमेश का पिता हूं. आजकल मैं और मेरी पत्नी तलाक लेकर अलग-अलग रह रहे हैं. आपको याद होगा कि पिछले क्रैश में मेरी बेटी नीना की मौत हो गई थी. उस समय भी एअरलाइन और क्रू-यूनियन ने मुआवजा मुझे ही दिया था. मैं चाहता हूं कि अब भी मेरे बेटे और बहू की मृत्यु का मुआवजा मुझे ही मिले. इससे पहले कि मेरी पत्नी इसके लिए अर्जी दे, मैं आपके पास अपने क्लेम की यह अर्जी छोडे ज़ा रहा हूं ताकि आप इन्साफ़ कर सकें. ़ ़मैं तो अब बूढा हो चला हूं. कमाई का अब और कोई जरिया है नहीं. ठीक है, आप अर्जी छोड ज़ाइए. समय आने पर उस पर विचार किया जाएगा. बडी क़ृपा होगी आपकी. नहीं तो इस उम्र्र में कोर्ट कचहरी जाने की तो शरीर में ताकत नहीं रह गई. चलता हूं. विमल महाजन ंकिंकर्तव्यविमूढ से कुर्सी पर बैठे थे. शिनाख्त के लिए संबंधियों को लंदन ले जाने की पूरी जिम्मेदारी विमल महाजन को ही सौंपी गई. लंदन जाने के लिए संबंधियों का तांता लग गया था. विमल महाजन तय नहीं कर पा रहे थे कि किसे भेजें, किसे रोकें. हर रिश्तेदार अपना रिश्ता अधिक नजदीकी बताता था . लंदन जाने के लिए विमान तैयार था. रोते-कलपते रिश्तेदारों के बीच विमल महाजन को स्वयं को संयत रख पाना काफ़ी मुश्किल लग रहा था. मिसेज वाडेकर की हिचकियां अभी भी जारी थीं. उनका बेटा विदेश से बंबई केवल विवाह करने के लिए आ रहा था. उन्हें क्या पता था लंदन जाना पडेग़ा, डोली के स्थान पर अर्थी लेने. मैं तो अपने बेटे को दूल्हा बनाकर ही विदा करूंगी. मिसेज वाडेकर विक्षिप्त अवस्था में बडबडाए जा रही थीं. मगनभाई की बीस वर्षीया पोती विदेश से अकेली आ रही थी. उसके पिता को छुट्टी नहीं मिल पाई थी उसके साथ आने के लिए. खिडक़ी के पास बैठे हुए वे जैसे शून्य में देख रहे थे. दो-दो मौतों का बोझ लिए दीपिंदर विमान में बैठा था. पिछले सप्ताह ही उसके पिता का देहांत हो गया था और उन्हीं के अंतिम संस्कार के लिए उसका भाई सुक्खी अमेरिका से आ रहा था. दुःख में सब एक थे. किसी का भी कोई धर्म, मजहब नहीं था. सुख में था भी तो आतंकवादियों को उससे कोई लेना-देना नहीं था. वह हर धर्म वाले को अपनी पशुता का शिकार बना लेते हैं. विश्व-भर से अलग-अलग एजेंसियों ने एटलांटिक में खोजबीन शुरू कर दी थी. पहले विमान के कुछ क्षतिग्रस्त हिस्से मिले. फिर विक्षिप्त लाशें मिलनी शुरू हुई. लाशों को जैसे किसी ने उधेड दिया हो, चिंदी-चिंदी हुए शरीर. लाशें पहचानना भी बहुत कठिन काम था. लंदन में सभी रिश्तेदारों के रहने, खाने-पीने की व्यवस्था एयनलाइन की ओर से मुफ्त की गई थी. विमल महाजन सभी कार्य बडी तत्परता से निभा रहे थे. स्वयं उन्हें अपने खाने-पीने और सोने का भी ध्यान नहीं था. वंचित लोगों की सेवा करके संभवतः वे स्वयं को संतुष्ट करना चाहते थे. उनका यही प्रयत्न था कि किसी भी यात्री को कोई शिकायत या असुविधा न हो. एक यात्री विमल महाजन तक पहुंचा, मिस्टर महाजन, खाना-पीना तो ठीक है, पर हमें आप कुछ अलाउंस वगैरह भी दिलवाने का प्रबंध करवा दें तो अच्छा होगा. हम सब इतनी जल्दी में आए हैं कि एफ़टीएस का प्रबंध नहीं हो पाया. कम-से-कम इतना रोजाना भत्ता तो हमें मिलना चाहिए, जिससे हमें कहीं बाहर आने-जाने में मुश्किल न हो. विमल महाजन हैरान! शीला देशमुख के पिता किसी सरकारी महकमे में उच्च अधिकारी थे, महाजन साहब, हमारी बेटी ने तो एअरलाइन के लिए जान दे दी. उसके बदले में आप हमें क्या देंगे? चंद रुपए. इस बुढापे में हम उन रुपयों का क्या करेंगे? हमारी दूसरी बेटी अमेरिका में रहती है. हम चाहते हैं कि जब तक हम जिएं, मुझे व मेरी पत्नी को हर वर्ष अमेरिका आने-जाने का मुफ्त टिकट मिले, मैं मिनिस्टर साहिब से भी इस विषय में बात करूंगा. विमल महाजन की इच्छा हुई कि सब काम-धाम छोडक़र वापस चले जाएं. इंसान इतना स्वार्थी भी हो सकता है! ये भावनाविहीन लोग इस हादसे से अपना-अपना स्वार्थ सिध्द करने की कोशिश में लगे हैं. ़ ़पर वे तो यह सारा काम अपने सहयोगियों को श्रध्दांजलि के रूप में कर रहे थे. उन्हें यह सब करना ही होगा. धैर्य के साथ ़ ़ लंदन के विक्टोरिया अस्पताल का एक हिस्सा. वहां लाशें इकठ्ठी की गई थीं. लाशें! लाशें!! गहरे नमकीन पानी में से निकाले गए विकृत शरीर. कौन कैसे पहचान कर पाएगा! भगवान ने कितनी दर्दनाक मौत लिखी थी कुछ इन्सानों के लिए! नवजात शिशु से लेकर सत्तर वर्ष तक की बूढी लाशें. कहीं हाथ गायब है तो कहीं टांग नदारद. कहीं केवल धड ही है-ऊपर और नीचे के दोनों ही हिस्से गायब. किसी की अंगूठी पहचानने की कोशिश की जा रही थी, तो किसी का लॉकेट. केवल एक लाश साबुत मिली थी. अपने मासूम चेहरे पर अपार दर्द लिए नैंसी, मां और तीन छोटी बहनों का पेट भरने वाली नैंसी. चेंबूर की झोंपडपट्टी से ऊंची उठी नैंसी. बिन बाप की बेटी नैंसी. कमजाेर नारी होते हुए भी बलवान पुरुषों से कहीं अधिक पौरुषपूर्ण नैंसी. अब कभी भी खडी न हो पाएगी. मां पछाड ख़ाकर गिर पडी अौर संभली. एक सच्चे ईसाई की भांति वीरता दिखाई. बेटी की लाश को चूमा. बूढी क़ोख में हलचल हुई. अपना पराया हो गया. किंतु अभी तीन बेटियां और घर में हैं. एक ने इसी साल बीए किया है, बाकी दोनों स्कूल में हैं. उनके लिए मां को मजबूत बनना है. बेटी को घर ले जाने की तैयारी करने लगीं. चेहरों पर निराशा साफ़ दिखाई देने लगी थी. किसी भी और लाश को पहचानना लगभग असंभव-सा लग रहा था. फ़ैसला किया गया कि सभी लाशों का सामूहिक क्रिया-कर्म किया जाए. यह भी तय किया गया कि क्रिया-कर्म सागर-तट पर ही होगा और वहीं मरने वालों की याद में एक स्मारक भी स्थापित किया जाएगा ताकि विश्व को चेतावनी मिले कि आतंकवाद क्या कर सकता है. विमल महाजन धम्म से कुर्सी पर बैठ गए. रिश्तेदारों की दिक्कतें दूर करते, ब्रिटिश सरकार व एअरलाइन अधिकारियों से संपर्क व बातचीत करते उनका शरीर व दिमाग दोनों की थक गए थे. उस पर इतनी सारी लाशों का सामूहिक क्रिया-कर्म, उन्होंने आंखें मूंद लीं. मिस्टर महाजन! जी. उन्होंने आंखें मूंदे ही पूछा. आपसे एक सलाह चाहिए. कहिए. नेत्र खुले. जिस काम के लिए आए थे, वो तो हो गया. जरा बताएंगे, यदि शापिंग वगैरह करनी हो तो कहां सस्ती रहेगी? नए हैं न ़ ़ उसके आगे बात सुनने की ताकत विमल महाजन में नहीं थी.
हाउंसलो हाइ स्ट्रीट पर पचास-सौ की गिनती बढने से कोई विशेष अंतर नहीं पडता. हर काम यथावत जारी है. डिक्संज, बूट्स, मार्क्स, वुलवर्थ हर जगह कुछ अनजाने चेहरे दिखाई दे रहे थे. कल सुबह तो वापस बंबई चले जाना है. सभी यथासंभव सामान बटोरने में लगे थे.
लंदन में गर्मियों में भी सूर्य-देवता आंख मिचौली खेलते रहते हैं. आज उन्होंने पूर्ण विश्राम करने का निर्णय ले लिया है. बादल आसमान में चहलकदमी कर रहे थे. एअरपोर्ट पर एअरलाइन के काउंटर पर भी जो नजारे थे, वे कुछ कम क्षोभ पैदा करने वाले नहीं थे. सभी यात्री अधिक-से-अधिक सामान के साथ चेक-इन करने की कोशिश कर रहे थे. काऊंटर क्लर्क शौकत अली जी को समझा रहा था. मिस्टर, पच्चीस किलो का तो आपका टीवी ही है. कुल मिलाकर साठ किलो वजन है आपके सामान का. और हैंडबैग अलग. आप केवल बीस किलो सामान ले जा सकते हैं.
मगर मैं तो यहां अपने भाई की लाश पहचानने आया हूं. हमारा केस फ़र्क है ़ ़ यह भाई की मौत का वजन से क्या संबंध है? एक बार फिर विमल महाजन को ही जा कर अनुरोध करना पडा. क्षुब्ध विमल महाजन जैसे-तैसे सबको समझाकर यात्रियों को चेक-इन करवा पाए. विमान ने उडान भरी. सीट-बेल्ट बांधने के संकेत बंद हुए, तो केबिन में हलचल बढने लगी. विमल महाजन अपनी रिपोर्ट लिखने में व्यस्त थे. यात्रियों को खाना दिया गया. विमल महाजन केबिन का मुआयना कर रहे थे. मिसेज वाडेकर ने खाने को छुआ तक नहीं था. वह अपने बेटे की लाश को दूल्हा नहीं बना पाई थीं. लाश की शिनाख्त ही नहीं हो पाई. दीपिंदर दस दिन में दो-दो लाशों के क्रियाकर्म के गम से उबर नहीं पाया था. कुछ यात्री गम गलत करने के लिए पेग-पर-पेग चढा रहे थे. यार, पी ले आज, जी भरके. हमें कौन-से पैसे देने हैं. यह काम अच्छा किया है एअरलाइन ने. विमल महाजन थोडा और आगे बढे. क्यों ब्रदर, आपने कौन-सा वीसीआरलिया? मुझे तो एनवी450 मिल गया. बडी अच्छी किस्मत है आपकी. मैंने तो कई जगह ढूंढा. आखिर में जो भी मिला, ले लिया. हमें कौन-सा बेचना है! ... ़ ़ ़ आपने सोनी ढूंढ ही लिया. कितने इंच का लिया? 27 इंच का. और आपने? हमारे भाग्य में कहां जी! जेवीसी का लिया है. पर देखने में अच्छा लगता है. फिर च्वाइस कहां थी! मौसम में थोडी ख़राबी हुई, यात्रियों को एक झटका सा महसूस हुआ. विमान "ब्लैक सी" के नजदीक उडान भर रहा था.