काले धन की वापसी / प्रमोद यादव

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‘पापा...काला धन किसे कहते हैं? ‘ नौ वर्षीय बेटे ने अचानक पढ़ते-पढ़ते पूछा.

अखबार पढ़ते पापा ने जवाब दिया- ‘उसे जो सफ़ेद नहीं होता ..’

‘तो सफ़ेद धन किसे कहते है? ‘

‘उसे ..जो काला नहीं होता..’ पापा ने मजाक से कहा.

‘क्या पापा...आप भी घोर-घोर रानी करते हैं..बताइये न..क्या है काला धन..और ये कहाँ होता है? ‘बेटे ने मजाक को समझते हुए गंभीरता से पूछा.

‘पहली बात तो ये बताओ..धन-वन से आपको क्या लेना-देना? और दूसरी बात- ये काला धन आपने कहाँ से सुना? ‘

‘टी.वी. से ....जब भी आप समाचार देखते हैं..अक्सर इसकी बातें होती है.. मैं भी कभी-कभी सुनता हूँ..और एक गेरुआधारी जो बाबाजी हैं न ..वो काले घनी दाढ़ी-मूंछ वाले, वे तो रट्टू तोते की तरह इसका हिसाब भी बार-बार बताते हैं कि दस खरब,चालीस अरब डालर के बराबर काला धन विदेशी बैंकों में जमा है..ये वापस आ जाए तो देश का सारा कर्ज चुकता हो जाए..आदि-आदि.. वे तो जैसे ठाने ही बैठे हैं कि विदेशों से काला धन लाकर रहेंगे..पर एक लम्बे अरसे से वे टी. वी. चैनल्स में ही नहीं दिख रहे.. क्या काला धन लाने बाबा विदेश गए हैं? क्या हमारे देश में इसकी कमी है जो हम दूसरे देशों से लाने की सोच रहे? ‘

‘अरे नहीं बेटा..बाबाजी तो यहीं हैं..उन्हें नई सरकार ने भरोसा दिया था कि सौ दिन के भीतर इस मुद्दे पर ठोस कार्यवाही करेंगे.. विदेशों में जमा काला धन जरूर लायेंगे... और वैसे भी काले धन की वापसी को चुनावी मुद्दा बनाकर ये चुनाव जीते थे..तो कुछ न कुछ तो करना ही था..’

‘पापा...सौ दिन तो हो गए...क्या काला धन वापस आ गया? ‘

‘नहीं बेटा ..सरकार ने एक कमिटी “सिट” गठित कर उन्हें झुनझुना थमा कह दिया – अब और ज्यादा हल्ला नहीं करना..ना ही टी.वी.चैनल्स में दिखना..ना कोई स्टेटमेंट देना....सिट अपना काम करेगी..आप अपना काम करो... पेट को गोल-गोल घुमा जलेबी बनाओ और लोगों को केवल योग सिखाओ.. हिसाब-किताब मत समझाओ..तब से बाबाजी छू मंतर हैं..’

‘पापा..काला धन विदेशों में क्यों जमा है? हमारे देश में क्यों नहीं? ‘बेटे ने सवाल किया.

‘बेटा..अब तो ये हमारे देश में ही रह गया है...विदेशी बैंकों में जिन बड़े चोरों ने जमा कर रखा था..उन सबने तो कब का निकाल लिया.. दो-तीन साल से इस पर हो- हल्ला हो रहा है तो कोई बेवक़ूफ़ थोड़े हैं कि बावजूद इसके वहां काला धन रखे..सबने निकाल लिए..अभी कल का ही समाचार है कि पच्चीस लाख करोड़ रूपये का काला धन निकाल लिया गया ..’

‘ अच्छा..ये बताईये पापा..काला धन को लोग विदेशों में ही क्यों रखते हैं.. और कौन से बैंक में रखते हैं? हमारे यहाँ भी तो सैकड़ों सरकारी और निजी बैंक है.. तो यहाँ क्यों नहीं? ‘

‘वो इसलिए कि यहाँ रखेंगे तो सरकार देर-सबेर सब खंगाल ही लेगी.. और जब्ती बना देगी..जेल जायेंगे सो अलग..विदेशी बैंको में रखने से गोपनीयता बनी रहती है.. बड़े-बड़े नेता, उद्योगपति और प्रशासनिक अधिकारी और डान टाईप के लोग अपना काला धन स्वीस बैंक में रखते हैं ..ये बैंक किसी को भी नहीं बताते कि किसका कितना करोड़ या अरब डालर जमा है...अम्ररीका वाले तो अपने देश के कालाबाजारियों का हिसाब मांगते -मांगते थक गए..तो हमारी सरकार को भला वो क्या घास डालेंगे? ‘

‘तो इसका मतलब है कि काला धन आने से रहा..’ बेटे ने पटाक्षेप के लहजे में कहा.

‘कुछ बचे तो आये..सबने तो निकाल लिए..अब क्या आएगा-बाबाजी का ठुल्लू? ‘

‘पापा... अब तो बताओ..काला धन किसे कहते है?’

‘नंबर दो की जो कमाई होती है उसे काला धन कहते हैं..’

‘नंबर दो की कमाई क्या है पापा? ‘

‘अपनी कमाई के बारे में वास्तविक विवरण न देकर , कर की चोरी करना ,रिश्वतखोरी-कमीशनखोरी, जुआ-सट्टा, रेस, रंगदारी जैसे गलत कार्यों से जो धन संग्रह किया जाता है, उसे काला धन कहते हैं.. इसे ही नंबर दो की कमाई कहते हैं..’

‘तो नंबर एक की कमाई किसे कहते हैं पापा? और इस पर कभी क्यों चर्चा नहीं होती? ‘

‘वो इसलिए कि ये चर्चा के लायक होता भी नहीं..तुम्हारी मम्मी जानती है कि नंबर एक की कमाई से (मेरे वेतन से) से पूरा महीना भी नहीं चल पाता..’

‘तो आप क्यों नहीं करते नंबर दो की कमाई..आपको किसने रोक रखा है? ‘अचानक निशा की आवाज ने चौंका दिया-’ और बच्चे को क्या नंबर एक – नंबर दो का पाठ पढ़ा रहे हो...पड़ोसियों को देखो..क्या बेहिसाब कमा रहें हैं....सामान रखने को मकान छोटा पड़ रहा है..और एक आपका घर है कि कमरे तो कमरे, बच्चों के गुल्लक तक खाली पड़े हैं...’

‘अरे यार..तुम कहाँ से आ टपकी? मैं तो बस यूं ही बेटे का नालेज बढ़ा रहा था..’

‘आपका नालेज तो पच्चीस साल में भी नहीं बढ़ा.. तो बेटे का क्या ख़ाक बढ़ाएंगे?..अरे..झूठ-मूठ ही सही..कभी तो ऐसा कुछ करते कि पास-पड़ोस में मेरी भी शान बढ़ जाती ..सखी-सहेलियां मेरे नसीब पर जलती-भुनती ..’ निशा हुंकार भरते बोली.

‘मसलन? ‘

‘मसलन कि एकाध खाता स्विस बैंक में ही खोल देते .. कितनी चर्चा है आजकल इस बैंक की...मैं भी गर्व से सबको बताती कि हम अपना सारा धन विदेशी बैंकों में रखते हैं..सुनकर लोग कितने इम्प्रेस्ड होते .. वैसे सुनोजी.. अभी भी क्या बिगड़ा है..जब जागे तभी सबेरा.. आजकल तो आनलाईन का ज़माना है.. आप आनलाईन स्विस बैंक में एक खाता खोल लीजिये ना..’

‘अरे भगवान्..तुम्हें मालूम भी है कि स्विस बैंक में खाता खोलने के लिए न्यूनतम राशि कितनी जमा करनी होती है? ‘

‘कितनी? ‘निशा ने ऐसे सहजता से पूछा जैसे अभी अंटी से निकाल दे देगी.

‘कम से कम पचास करोड़ रूपये..’

‘क्या..? ‘पति की बातें सुन निशा को गश -सा आ गया.. कुछ पल के लिए एकदम चुप्पी साध गई..फिर विस्फारित आँखों से देखते बोली- ‘तो रहने दीजिये जी ..बाद में देखेंगे इसे ..पहले दूध को जाकर देखूँ..शायद जल रहा है..’ और वो तेजी से किचन की ओर भाग गई.

बेटे ने मम्मी-पापा के संवाद को सुन इस विषय को कन्क्लूड करते कहा- ‘पापा.. मुझे आज तक केवल स्विस घड़ियों के बारे में ही पता था कि पूरे विश्व में प्रसिद्द है..आज जाना कि स्विस बैंक भी उतने ही मशहूर हैं.. पापा.. स्विस बैंक में जब भी खाता खोलना, मेरी भी एक खोल देना..’

इतना कह बेटा बस्ता ले भाग गया..

पापा मुस्कुराते हुए फिर से अखबार के उस समाचार को पढने लगे जिसमें काले-धन की वापसी के लिए स्विस बैंक से पत्राचार होने की बात कही गई थी.. वे.मन ही मन बुदबुदाने लगे- ‘अब पांच साल तो केवल यही कुछ भर होना है...पत्राचार और पत्राचार..तब तक जनता ये भी भूल जायेगी कि सरकार किस बात के लिए पत्राचार कर रही है और तब काले धन की वापसी का मुद्दा स्वमेव ही काल-कलवित हो जाएगा..’