काल्पनिक पात्र : जीने की तमन्ना है / जयप्रकाश चौकसे

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काल्पनिक पात्र : जीने की तमन्ना है
प्रकाशन तिथि : 18 मार्च 2021


साहित्य और सिनेमा के काल्पनिक पात्र लंबे समय तक पाठक और दर्शक की स्मृति में बने रहते हैं। उस कलाकार को भुला दिया जाता है, जिसने पात्र अभिनीत किया था। कहते हैं कि सारी सृष्टि ही मानव कल्पना का एक रूप है। गल्प, यथार्थ से अधिक मजबूत हो जाता है। खबर है कि एक दर्शक को रेणु और शैलेंद्र की फिल्म ‘तीसरी कसम’ में वहीदा रहमान का अभिनय इतना अच्छा लगा कि उसने अपनी पुत्री का नाम ही वहीदा रख दिया। घटना इतनी पुरानी है कि यह वहीदा अब उम्रदराज हो गई होंगी। यह संभव है कि बंटे हुए समाज में उसने अदालत में अर्जी देकर अपना नाम बदल दिया हो। यह भी हो सकता है कि उसने विजय आनंद की ‘गाइड’ में वहीदा रहमान के अभिनय से प्रभावित होकर अपना नाम ‘रोजी’ रख लिया हो। ‘तीसरी कसम’ की हीराबाई और गाइड की रोजी, दोनों ही समाज के हाशिए पर पड़े हुए पात्र हैं। वहीदा द्वारा गुरुदत्त की ‘प्यासा’ में अभिनीत पात्र गुलाबो भी हाशिए में कुढ़ता हुआ पात्र है? यह एक इत्तेफाक ही है कि वहीदा रहमान ने गुरुदत्त की फिल्म ‘सीआईडी’ में भी हाशिए पर पड़े पात्र को अभिनीत किया था। एक सफेदपोश अपराधी ने उसे विवश करके अपने अपराध-जगत का एक हिस्सा बनाया है। फिल्म के क्लाइमैक्स में वह नायक को अपराधी की पकड़ से बाहर निकलने में मदद करती है और उसे जीवन में दूसरा अवसर मिलता है। फिल्म में गीत है ‘कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना।’ वहीदा ने लंबी पारी खेली है। ‘गाइड’ की ‘रोजी’ से ‘लम्हे’ की ‘दाईजा’ तक और ‘रंग दे बसंती’ में शहीद की मां की भूमिका, ‘दिल्ली-6’ में ‘सहृदय’ दादी मां तक। आज भी वे मुंबई के बांद्रा क्षेत्र में समुद्र तट के निकट रहती हैं। वे सलीम खान की पड़ोसी हैं। वहीदा घर की बालकनी में बैठकर समुद्र की लहरों को देखते हुए गुनगुनाती हैं, ‘वक्त ने किया, क्या हंसी सितम, हम रहे न हम, तुम रहे न तुम।’

खुशी की बात है कि साहित्य अकादमी द्वारा सृजनधर्मी अनामिका को पुरस्कार दिया जा रहा है। अकादमी के अनुशंसा पत्र में अनामिका के काव्य संग्रह ‘टोकरी में दिगंत’ का उल्लेख है। उन्होंने तीन उपन्यास भी लिखे हैं। ‘टोकरी में दिगंत’ की कुछ पंक्तियां हैं, ‘दुर्वचनों की औषधि, मुझे मधुर करो, आएं न आएं मुझे युक्तियां जीवन की, तुम मेरे भीतर के खेत में फूलो, बागड़ पर जैसे दोपहरिया के फूल, इतना फूलो मुझमें कि मैं बन जाऊं औषधि, धरती के घावों की।’ बुरे शब्दों और गालियों से भी घाव किए जाते हैं। दमन करने वाले प्राय:शब्दों से ही चोट करते हैं। उनके पास सृजन क्षमता ही नहीं है। बहरहाल सर आर्थर कॉनन डॉयल ने अपने शिक्षक की प्रेरणा से काल्पनिक पात्र शरलॉक होम्स रचा। उपन्यास में पात्र के पते 10, बेकर स्ट्रीट पर प्रशंसकों के पत्र आने लगे। डाक विभाग परेशान हो गया। कुछ उपन्यासों के बाद थक से गए। डॉयल ने उपन्यास में लिखा कि पहाड़ पर खलनायक से लड़ते हुए दोनों पात्र गिरकर मर गए। प्रशंसकों ने शरलॉक होम्स की मृत्यु पर ऐतराज किया। दबाव इतना बढ़ा कि लेखक को लिखना पड़ा कि दुर्घटना में शरलॉक होम्स एक घने वृक्ष की डालियों में गिरे और बच गए। शरलॉक होम्स अपने घर बैठे ही तर्क के आधार पर शक को एक के बाद एक खारिज करते हुए सत्य तक पहुंच जाता है। तर्क की यह प्रणाली हमारे आदर्श नेति नेति नेति से कुछ समानता रखती है कि ईश्वर यह नहीं, वह नहीं तो, यहां हो सकता है। होम्स की तर्क प्रणाली इसी महान आदर्श का ही एक हिस्सा है। वर्तमान में वैज्ञानिक सोच और तर्क प्रणाली निरस्त कर दी गई है। यह संभव है कि भविष्य में कभी हमारे वर्तमान का आकलन होगा। तब हम सभी काल्पनिक पात्र माने जा सकते हैं। इतिहास की छलनी द्वारा कूड़ा-कचरा फेंक दिया जाता है।