काल चक्र / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
चार-पाँच साल बीतै में देर नै लागलै। दोसरोॅ साल पूरै लागी गेलै घोॅर बनै में। तेसरोॅ साल सीता सोनमनी के गौना करी केॅ मनरुपा केॅ लै लानलकै। मनरुपा के एैतें घोॅर हँसी-खुशी सें गुलजार होय गेलै। घरोॅ के उन्नति के जोॅड़ कारण छेलै गाय मालोॅ केॅ निरन्तर बढ़ती। लक्ष्मी धारनें छेलैं, गाय प्रचूर मात्रा में दूध तेॅ देबेॅ करै, एकरोॅ साथें बाबा विसू रौतोॅ के किरपा सें, एक्को बाछा-बाछी बूड़ै नै। बाछी हर तेसरोॅ-चौथोॅ सालोॅ में गाय होय जाय आरो बाछा बैल। कोरी सें दू कोरी मवेशी होय गेलै। सालोॅ में सात-आठ ठो बाछा बिकै लायक होय जाय। जेकरा सौ देखबोॅ नसीब नै छेलै वें हजार-पन्द्रह सौ रो बाछा ही बेचै छेलै। दूधोॅ रोॅ बिक्री सें जे आबै उ$ अलगेॅ। सब काम नौकर-चाकरें करै। सोनमनी दूनोॅ बापुतोॅ के काम मालिक बनी केॅ देखरेख करना छेलै।
सोनमनी के वेश-भूसा भी बदली गेलोॅ छेलै। साफ उजरोॅ दकदक धोती, मिरजई, गोंड़ोॅ में चमरौधा नोंकदार जूता, माथा पर पगड़ी पिन्ही जबेॅ सोनमनी निकलै तेॅ देखबैया देखतें रहि जाय।
यहेॅ समय छेलै जबेॅ जमींदार राजा बाबू सूर्यमोहन सिन्हा के मरला के बाद खोखा बाबू नया-नया जमींदार होलोॅ छेलै। कलकत्ता में वकालत के पढ़ाय पूरा होलोॅ नै छेलै कि हुनका जमींदारी संभारै लेॅ आबेॅ लेॅ पड़लै। बापोॅ के रूकलोॅ-पड़लोॅ सब टा काम समेटना खोखा बाबू के पैल्होॅ जिम्मेदारी छेलै। हुनका बीमार होय गेला सें एक-एक ज़रूरी काम दू-दू बरसोॅ सें रुकलोॅ छेलै। वै में मिर्जापुर मौजा में एक जमीन छेलै जेकरोॅ रकबा बियालीस बीघा छेलै। तेरह वर्षों सें लगान नै देला के कारण वै जमीन के नीलामी उपर सें सरकार बहादुर द्वारा ही करै केॅ आदेश होय गेलोॅ छेलै। जमींदारोॅ केॅ नीलामी करी केॅ एक महीना के भीतर कागज मूल्य सहित जिला के मालिकोॅ ठियां भेजना ज़रूरी छेलै। सिपाही धनराज तांती ने सोनमनी के बारें में बतैलकै-"अखनी मिर्जापुरोॅ में एक वहेॅ औकात वाला आदमी छै जें ई नीलामी लियेॅ पारै छै।"
खोखा बाबू केॅ बचपन स्मरण होलै आरो सोनमनी केॅ बोलाय वास्तें सिपाही धनराजोॅ के भेजलकै।
जमींदारोॅ के बुलाहट सें सोनमनी सोचलकै कि ज़रूरे कोय केश मुकदमा में गाँव वाला ओझराय देलकै। मनोॅ में डोॅर तेॅ होलै मतुर तकदीरोॅ के खेल समझी केॅ निडर भाव सें जमींदारोॅ नगीच गेलै। सोनमनी केॅ ई जानकारी में नै छेलै कि नया जमींदार खोखा बाबू ही छेकै। वैसें जमींदार के ऐलै, के गेलै, जमींदारें की करै छै, ऐकरोॅ जानकारी नै तेॅ जनता केॅ होय छेलै आरो नै तेॅ जनता बेचारा केॅ ऐकरा सें कोय मतलब रहै छेलै। सब ज़रूरी सीनी काम तहसीलदार, मुंशी आरोॅ सिपाही ही करै छेलै। गंभीर बड़ोॅ कोय अपराध चोरी, डकैती, या कोय खास बड़ोॅ कारणोॅ सें आम लोगोॅ के पेशी होय छेलै जमींदारोॅ ठियां।
जखनी सोनमनी पहुँचलै तेॅ कचहरी लागलोॅ छेलै। सीधे सोनमनी दरबार में हाजिर होयकेॅ सामना-सामनी खाड़ोॅ होय गेलै। लंबा चार हाथोॅ रोॅ जवान, कड़ा-कड़ा करीना सें कटलोॅ, संवरलोॅ मोंछ, मिरजई धोती आरो पगड़ी में केकरोह अपना तरफ खींचै वाला मोहक, आकर्षक चेहरा। खोखा बाबू गोड़ोॅ सें माथा तक टकटकी लगाय केॅ पैन्हेॅ देखलकै आरो फेरू अपना आसन सें खाड़ोॅ होय केॅ बोललै-"हम्में तोरोॅ खोखा ।"
सोनमनी मुस्कुरैलेॅ-"हम्में सोनमनी। सरकारोॅ केॅ एक ठो अदना रैयत।"
"दूनोॅ भाय-भाय। एक दोसरा के मित्रा।" खोखा बाबू हँसतें हुअेॅ बोललै आरोॅ बैठेॅ लेली आसन देलकै।
सोनमनी के पहनावा-पोशाक आरोॅ चेहरा-मोहरा सें खोखाबाबू बड्डी प्रभावित होलै। सुनवाई रोकी केॅ भीतर एकान्त कोठरी में लै गेलै आरो ढेर सीनी दुक्खोॅ-सुक्खोॅ के किस्सा एक दोसरा के बीचोॅ में होलै। हाँसतेॅ हुअें खोखा बाबू कहलकै-"हम्में खाय-पीवी केॅ मोटोॅ, थुलथुल, गेंडा होय गेलियै आरो तोंय विराट व्यक्तित्व के स्वामी, तोरा कोय देखतैं तोरोॅ होय जैतेॅ। कारोॅ, समता, श्याम वरनोॅ के होयकेॅ भी कोय अतना सुन्नर लागेॅ सकेॅ छै, ई तोरा देखी केॅ लागलै।" "बात गोल-गोल, मढ़ि-मढ़ितेॅ तोंय तखनियो बोलै छेल्होॅ।" सोनमनी हाँसी केॅ कहलकै।
"की खाय छोॅ तोंय सोनमनी जे ई रंग गठलोॅ, छरहरोॅ शरीर छौं।"
"आपनोॅ कारी गाय रो दूध, जंडोॅ, कुरथी रोॅ मोटका रोटी आरोॅ दतखानी चौेॅरोॅ के भात।"
"हम्में तेल, घी, माँस, मछरी खाय केॅ बर्बाद होय गेलियोह सोनमनी भाय"।
"हमरोॅ बथानी रोॅ दूध आरोॅ फोॅल-फलेरी खा, दू-तीन महीना में पातरोॅ-छरहरोॅ होय जैभेॅ। भियानी भोरे उठी केॅ एकाध घंटा आपन्हेॅ बगीचा में टहलोॅ, हलका व्यायाम करोॅ, सब ठीक होय जैतौं।"
"मतुर चाहियोॅ वहेॅ कारी गाय के दूध।" कहि केॅ जमींदार खोखाबाबू हाँसलै।
"एक ठो नै दस-दस कारी गाय छै तोरा किरपा सें। कत्तेॅ भेजी दिहों। पाँच-दस पाथा, कत्तेॅ भेजिहों।"
"पाँचेॅ काफी छै। ऐकरा सें बेशी पचावेॅ नै पारबै। दाम कत्तेॅ भेजी देलोॅ करभौं।"
"दाम तेॅ फेरू दोस्ती की।" आभरी सोनमनी के हाँसै रोॅ पारी छेलै-"ओकरा सें बेशी दूध तेॅ हमरोॅ नौकरेॅ-चाकरें पियै छै।"
"माय केॅ पूछिहोॅ, टाका छौं।" खोखा बाबू बातोॅ के प्रसंग बदललकै।
"कैन्हेॅ की बात छै?" सोनमनी चौंकलै।
"बियालिस बीघा जमीन रोॅ नीलामी सोलहवाँ दिन छै। गुलाबी मंडल रोॅ सोलबिघ्घी तोरा घरोॅ सें एकदम सटलोॅ छै। बारह बीघा हरसू चौधरी के, ठीक गोचर परती के पछियें शेखा डांड़ी बगलोॅ में, आरो चौदह बीघा बढ़ौना मौजा में महाशय नदी के उपर पूरब में घोलटू सिंहोॅ के. देखोॅ दॉव लगावोॅ, हिम्मत करोॅ।" खोखा बाबू आपनोॅ नांकी समझाय केॅ कहलकै।
"टाका कत्तेॅ दै लेॅ पड़तै।"
"नीलामी जमीन सस्ता होय छै। बांकी जतना लगान किसानोॅ पर गिरै छै ओतनेॅ टा में नीलामी होय जाय छै। सोलह बीघारोॅ तेरह सौ टाका आरो छब्बीस बीघा पर उनेस सौ, कुल बत्तीस सौ के देनगी छै।"
बत्तीस सौ के देनगी सुनी केॅ सोनमनी के माथोॅ घूमै लागलै। कत्तोॅ कुछु करला पर भी अतना पैसा रोॅ ठहार आँखी तरोॅ में नै आबी रेल्होॅ छेलै। ओनां केॅ जमीनोॅ के वास्तविक दामोॅ रोॅ ई आधोॅ भी नै छेलै लेकिन टाका रहला पर न। बचलोॅ-खुचलोॅ दू चार बैल-बाछा बेची केॅ घोॅर बनाय लेनें छेलै आनोॅ पर माय नें।
सोनमनी केॅ चूप देखी केॅ खोखा बाबू बूझी गेलै। ई उ$ समय छेलै जबेॅ आदमी केॅ दस-बीस टाका देखबोॅ मुश्किल होय छेलै। सौ टाका जौं होय जाय छेलै तेॅ अपना केॅ नसीब वाला समझेॅ लागै छेलै। जिनीस अनाज सेथरोॅ, टाका के पूरे टायठोॅ।
खोखा बाबू हिम्म्त देलकै-"घबड़ावोॅ नै सोनमनी तोंय जाय केॅ पैन्हेॅ माय सें बात करोॅ। घटती-बढ़ती कुछ्छु हम्मूं मदद करभौं।"
बात खतम होलै। सोनमनी रोॅ सच्चेॅ में सब टा दिमागेॅ भुतलाय गेलोॅ छेलै। रास्ता भर टगलोॅ-झुकलोॅ केन्होॅ केॅ घोॅर पहुँचलै। ई मौका छेलै पूरे-पूरी संभरै के. ई मौका कोय भी हालतोॅ में चुकै लेॅ नै चाहै छेलै सोनमनी। आभी तांय वसोवास जमीन छोड़ी केॅ कट्ठोॅ-डंटा नै खरीदेॅ पारलेॅ छेलै। गाइये-मालोॅ के सेवा में रहि गेलोॅ छेलै; परिस्थिति ये तरफोॅ में सोचोॅ लेॅ नै देलै छेलै। हाथ एैलोॅ लक्ष्मी छूटी जाय केॅ दुख सें दुखी सोनमनी के खैबोॅ हराम होय गेलै।
कभी बथानी परकोॅ पचासोॅ रास मवेशी बेची लै वासतें सोचै तेॅ कभी मामू या ससुरारी सें मदद के बात सोचै मतुर अंत में निराशा ही हाथ लागै। अत्तेॅ जलदी मवेशी बिकना संभव नै छेलै आरो सभ्भेॅ बिकलौ पर टाका नै पूरै छेलै। मामू रोॅ आसेॅ करना बेकार छेलै। गाइये-माल देखी केॅ आँख चढ़ी गेलोॅ छेलै ननिहरा लोगोॅ के. ... आरो ससुराल। ससुराल तेॅ आपन्हेॅ खंगट छेलै। अंतोॅ में हियो-हाथ हेराय जाय सोनमनी के, हियाव फाटी जाय। कनमुँहोॅ होय केॅ दुआरी पर जायकेॅ बिछैला खटिया पर चुपचाप गुमसुम बैठी रहै सोनमनी। लंबा सांस लै आरोॅ कहै-" हे राम! तोरे आसरा ।