काळजै रो लोड / रामस्वरूप किसान

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समाज नै ठा हो। अर म्हानै ई ठा हो कै समाज नै ठा है। पण फेर ई म्हे म्हारै असल रिस्तै नै लुकोयां राख्यो। बिल्ली आगै कबूतर ज्यूं आंख मिच‘र म्हारो रिस्तो समाज सूं लुकतो रैयो। औसर-मौसर, बीच-बीच म्हारो व्हालो रिस्तो समाज सूं अरू- बरू ईज हुंवतो रैयो। जद-जद बास-बगड़ री लुगाइयां सूं लड़ी, म्हारो मोतियां रो रिस्तो उघड़तो रैयो। जद-जद म्हैं सासू सूं भिड़ी, म्हारो सिरदारू रिस्तो नागो हुंवतो रैयो।

पण आडै दिन म्हे इण रिस्तै नै लुकोयां ई राख्यो। म्हारी जाण में म्हे समाज री दीठ में देवर-भाभी ई रैया। समाज नै ठा हो बा बात और है। क्यूंकै म्हारै रिस्तै रो समाज सू लुकणो ठीक उण टाबर री गळाई हो जको लुकमिचणी रै खेल में लुक तो जावै, पण दूजै ई पल हेलो मार‘र कैवै-म्हैं तो अठै हूं।’ तो म्हे जठै हा समाज नै ठा हो।

पण आज जद उण री ल्हास म्हारै साम्हीं पड़ी है, म्हैं जुगां रै उण झीणै पड़दै नै कीकर फाडूं। आ बात म्हारो काळजो रांधै कै म्हैं कांईं नांव लेय‘र रोवूं ? किण सम्बोधन सूं बांग मारूं।

‘म्हैं बठै क्यूं हा ?’ इण सुवाल रै पेट सूं ई आ कहाणी जलमै।

बै जद बीमार हुया, म्हे देवर-भाभी बां रै अगाणै-पगाणै अटल रैंवता। बां री सेवा में कोई कसर नीं छोडी म्हे। जकी ई चीज बै मांगता, म्हारो देवर पग जूती ई नीं घालतो। भाज‘र बजार सूं ल्या देंवतो। जित्तो लगाव म्हनैं बां सूं हो उत्तो ई म्हारै देवर नै भाई सूं हो। जद-जद दागदारां खून मांग्यो, उण आप री बांह मांड दी। बरसां री लांबी बीमारी में उण बीसियां बर खून दियो। पण बै तो बैठता ई गया। दुवाई अंगचंग लागी’न खून। छेकड़ दागदरां जवाब दे दियो। अर म्हे बां नै अस्पताळ सूं घरां लेय आया।

बै कमरै में बैड पर सूत्या रैंवता। म्हारो देवर मूढो ढाळ अणमणो-सो बां रै सिराणै बैठयो रैंवतो। म्हैं काम-धंधो कर‘र बां रै पगाणै आ बैठती। कदे-कदे बै म्हानै दोनूवां नै इण भांत जोंवता जाणै कीं कैवणो चावै। अर भळै मूं पर पल्लो लेय‘र सुबकण लाग जांवता। बां नै इण भांत रोंवतां देख‘र म्हारो देवर उठ‘र बीजै कमरै में चल्यो जांवतो। अर जद बारै निकळतो, उण री आंख्यां लाल अर सूज्योड़ी हुंवती। म्हैं काळजै पर पत्थर धर‘र बठै ई बैठी रैंवती। बां नै धीजो बंधांवती। ‘ईंयां दिल काचो ना करो। कीं हौसलो राखो। थांनै इण भांत रोंवता देख बापड़ो देवी....। आं दिनां बीं री आंख सूज्योड़ी रैवै।’

देबी रो नांव लेंवतां ई बै भळै मूं पर पल्लो लेय‘र हाल उठता। म्हैं बात नै गमावण सारू विसै फोरती। बै होळै-होळै सै‘ज हो ज्यांवता।

एक दिन सोवण बगत बै बोल्या-

‘थे देवर-भाभी बीं कमरै में सो ज्यावो। म्हैं एकलो सोवणो चावूं।’

‘क्यूं !?’ म्हैं झिझक‘र बोली।

‘ईंयां ई सनक-सी हुय री है। सोचूं एकलै नैं नींद ठीक आयसी।’

देबी ई कन्नै ई बैठ्यो हो। थूक गिटतो बोल्यो-

‘इण हालत में थानै एकलां नैं ..... किंयां बात करो भाईजी ?’

‘जरूरत पड़यां हेलो मार लेस्यूं। म्हनैं नींद कोनी आवै कई दिनां सूं। सोचूं एकांत में आयज्यै।’

म्हे घणी जिद कोनी करी। क्यूंकै बां रै सभाव रो ठा हो। जको लांबी बीमारी रै कारण और ई चिड़चिड़ो हुग्यो हो। म्हे म्हारा दोनूं मांचा बीजै कमरै में लेयग्या। घर में फगत दो ई कमरा। एक में बै अर दूजै में म्हे सोयग्या। देबी रा घरड़का बाजण लागग्या। पण म्हनैं नींद कोनी आयी। सोवण रा सो जतन करया, पण आंख किसी लागज्यै। फगत एक ई सुवाल गेड़ा काटै मगज में-‘म्हानै न्यारा किंयां सुवाया ?’ पण ईं रो हल नीं लाधै। फगत अंदाजो ई अंदाजो। ऊंधा-सूंधा सौ धरूवा धरया। पण दिनगै तांईं सुवाल नीं सुळझ्यो। छेकड़ बां री बात पर जी टिकायो-सनक ई हो सकै। बीमार आदमी रै सौ भांत री सनक हुज्यै।

दिनूग्यै जाय‘र बां नै सम्भाळया। म्हारै अचंभै रो ठिकाणो नीं रैयो। आज बां रो चेळको न्यारो ई हो। म्हारै मगज में भळै गेडियो खड़यो हुग्यो। भीतर ई भीतर जवाब खोजण लागी। माथै में बिलोवणो-सो बिलोईजण लागग्यो। अलेखूं जवाब मंडै। पण तातै बिलोवणै पर झागां ज्यूं पाछो ई मिरमिराज्यै। छेकड़ ईं बात पर ई ने‘चो करणो पड़यौ कै एकांत री सनक ही। अर एकला सोंवतां ई आछी नींद आयगी। ईं सारू ई आज चेळको है।

दूजी रात ई म्हे न्यारा सोया। देबी नैं सोंवता ई नींद आयगी। पण म्हारी आखी रात तो बींयां ई आंख्यां मांकर निकळी। म्हैं दो-तीन बार सम्भाळण ई गई। चैन सूं सूत्या देख पाछी ई म्हारै मांचलै पर आय‘र पड़गी। म्हनै लाग्यो, म्हारी नींद बां रै नांव चढ़गी। अर इण सोच रै साथै ई हरख रो एक भतूळियो-सो म्हारै काळजै सूं होय‘र गुजरग्यो। दिनगै जाय‘र देख्यो तो बां रै मूं पर का‘ल सूं बेसी चेळको हो। अर बां म्हारै साथै भोत देर तांई हौसलै सूं बात करी। बां रै चै‘रै री रूणक देख म्हारो भीतर बाग-बाग हुग्यो। ऊजड़तो सुहाग ऊबरतो-सो दिख्यो। सोच्यो, जे ईंयां थोड़ो-थोड़ो फरक ई जे पड़तो गयो तो हो सकै ए बचज्यै। दागदरां री कैबा कूड़ी पड़ज्यै।

म्हैं भीतर ई भीतर राम सूं अरदास करी- ‘हे सांवरा, आं नै जीवण जेवड़ी देयी।’

ईंयां करतां-करतां दिन-रात बीतता गया। बै एक कमरै में, म्हे देवर-भाभी दूजै में सोंवता रैया। पछै तो मेरी ई आंख लागण लागगी। पण तर-तर बै पाछा ई फीका रैवण लागग्या। चैरे रो चेळको गायब होवण लागग्यो। अर जद-जद म्हनै एकली पांवता, आप री सुवालिया दीठ म्हारी आंख्यां में रोप देंवता। म्हनैं लागतो, ए कीं पूछणो चावै, पण पूछ नीं सकै।

एक रात बां रै पगाणै बैठतै थकां म्हैं बोली-

‘लारलै दिनां थे चेळकै में हा अर अब पाछा ई ...?’

बां बोलणो चायो। पण कंठां में डूजो-सो आयग्यो। खंखार‘र कंठ साफ करया। पण बोलीज्यो कोनी। जीभ ताळवै रै चिपगी। पसीनो आयग्यो। भळै उखड़ती-सी जबान में बोल्या-

‘थानै बीजै कमरै में सोवण रो कैंवतां ई म्हारै काळजै रो लोड-सो उतरग्यो। जकी बात म्हनै घणै दिनां सूं काटै ही, बारै आंवतां ई जी-सोरो हुग्यो। सोच्यो, म्हैं म्हारै मिशन में कामयाब हुग्यो.....पण म्हैं रोज किवाड़ां री झीरी मांकर देखूं, थे तो अजे न्यारा-न्यारा ई .....!?’

अचाणचकै म्हारै काळजै में गूमड़ो-सो उठयो अर सिर में जाय‘र फूटयो। म्हैं बां रा पग पकड़ रोवण लागगी। भळै बै म्हारी पीठ पर आपरो निजोरो हाथ फेरतै थकां काळजै रो आखो लोड उतारण लागग्या। बै कैवतां गया। म्हैं सुणती गई। पूरी राम-कहाणी म्हारै आगै पेस कर‘र बै फूट पड़या।

म्हैं बां रै मुरदै बाळां में हाथ फेरतै थकां बोली-

‘देबी तो म्हनै मां समान .....’

‘नां चांदू, थूं भोळी है। देबी थां सूं प्यार करै। उण री आंख्यां में याचना रो भाव बांच थूं। बो थनै थां सूं मांगै है।’

‘समाज के कैयसी ? अर फेर आपणो समाज तो और ई करड़ो है।’

‘समाज री दीठ सूं लकोय‘र नीं राख सकै थूं इण रिस्तै नैं ? किणी री खुसियां खातर चोरी करणी अपराध कोनी चांदू ! थूं म्हारै भाई नै समाज सूं चोर ले। इण रै सूखै डील में प्यार रो रस भर दे। मरती वेळा इत्तो सुख दे दे म्हनै।’ बां रा धूजता हाथ म्हारैं साम्हीं जुड़ग्या।

म्हैं कमरै में जाय‘र देबी नै बांथां में जकड़ लियो। उण छूटावण री कोसीस करी। पण म्हारी जकड़ करड़ी हुंवती गयी। बरस पर बरस बीतता गया। म्हारै हाथां री कांगसी ढीली नीं हुयी। पण आज जद विधाता ई म्हारी आंगळयां मरोड़‘र कांगसी खुला दी तो म्हैं के करूं।

आज रो दिन म्हारै सारू कै‘र रो दिन। उण दिन सूं ई बेसी जद बै सुरग सिधारया हा। म्हनै लागै जाणै ओ दिन म्हारी परीक्षा लेवण आयो है। करड़ी परीक्षा। म्हारै साम्हीं देबी री खोड़ पड़ी है। अर म्हैं टकटकी बांध्यां देखूं। मून। जाबक मून। रोवणो चावूं। बांग मार‘र रोवणा चावूं, पण संबोधन नीं लाधै। कांई नांव लेय‘र रोवूं। देबी नै ? किण नांव री बांग मारूं ? म्हारा आंसूं ऊंधै गेलै काळजै कानी जावण लागग्या। म्हारै काळजै रो लोड कुण उतारै ?