काव्य- आलोचन की एक सशक्त कड़ी / स्मृति शुक्ला
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' हिन्दी साहित्य जगत् के असीम क्षमतावान रचनाकार हैं। हिन्दी साहित्य में उनका योगदान बहुआयामी और विविधवर्णी हैं। वे जितने महत्त्वपूर्ण कवि हैं, उतने ही महत्त्वपूर्ण गद्य लेखक भी हैं। 'अजुरी भर आशीष' , 'कुकडूँ कूँ' , 'हुआ सवेरा' , 'मैं घर लौटा' और 'तुम सर्दी की धूप' आपके प्रसिद्ध कविता-संग्रह हैं। 'मेरे सात जनम' , 'माटी की नाव' और 'बंद कर लो द्वार' , आपके प्रसिद्ध हाइकु संग्रह हैं। 'मिले किनारे' , 'शीर्षक से ताँका और चोका संग्रह डॉ. हरदीप संधु के साथ संयुक्त रूप से प्रकाशित हैं।' धरती के आँसू',' दीपा',' दूसरा सवेरा', आपके लघु उपन्यास तथा' असभ्य नगर'आपका लघुकथा संग्रह है।' खूँटी पर टँगी आत्मा'आपका व्यंग्य संग्रह है। लघुकथा पर आपका बहुत गंभीर काम हैं और' लघुकथा का वर्तमान परिदृश्य शीर्षक से एक आलोचना पुस्तक भी प्रकाशित हुई है। ऐसे बहुमुखी प्रतिभा के धनी रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' अनवरत साहित्य सर्जन कर रहे हैं।
अभी हाल ही में आपकी आलोचना पुस्तक 'सह-अनुभूति एवं काव्यशिल्प' 'शीर्षक से प्रकाशित हुई है। इस पुस्तक में श्रीनरेश मेहता कि कृतियाँ' संशय की एक रात 'और' प्रवादपर्व' से लेकर सूरदास, गिरधर कवि राजेश जोशी और किशन सरोज तक की कविताओं की आलोचना सम्बंधी बाईस लेख हैं। काव्यालोचन का महत्त्व निर्विवाद है। भारतीय काव्यशास्त्रीय आचार्यों से लेकर पाश्चात्य काव्यशास्त्रीय विद्वानों ने काव्यालोचन के महत्त्व को स्वीकारा है।
मैथ्यू आर्नल्ड का मानना है-"आलोचक का कर्त्तव्य है कि वह संसार के सर्वोच्च ज्ञान और सर्वोच्च विचारों को जाने, उन्हें सोचे-समझे और फिर उनका सर्वत्र प्रसार करे, ताकि सच्ची और नवीन भावनाओं की धारा प्रवाहित हो सके। उनके अनुसार आलोचक में तीन गुण होने चाहिए। (1) आलोचक पढ़े, समझे और वस्तुओं का यथार्थ रूप देखे (2) जो कुछ उसने सीखा है, उसे वह दूसरों को हस्तांतरित करें (3) वह रचनात्मक 'शक्ति की क्रियाशीलता के लिये उपयुक्त वातावरण तैयार करें, भावनाओं की ऐसी धारा प्रवाहित करें, जो उच्चतम परिमाण में भावी रचनात्मक प्रतिभा को उत्तेजना और पोषण दें।" इसके साथ ही आर्नल्ड ने आलोचक के लिए निष्पक्ष होना भी एक आवश्यक गुण माना है। रामेश्वर काम्बोज की आलोचना में इन तीनों गुणों का समावेश है। वस्तुतः रामेश्वर काम्बोज' हिमांशु'साहित्य के गंभीर अध्येता भी हैं; इसलिए आलोचना में उनकी बौद्धिकता अध्ययनशीलता और संवेदनशीलता के दर्शन होते हैं।' संशय की एक रात'श्रीनरेश मेहता का प्रसिद्ध गीतिनाट्य है, जो राम की मनःस्थिति को आधार बनाकर लिखा गया है। इस कृति की गंभीर आलोचना रामेश्वर काम्बोज ने की है। यह दुष्यंत कुमार के' एक कंठ विषपायी'और धर्मवीर भारती के' अंधायुग'की तरह ही पुराणों के आधार पर रची गई वह कृति है, जो आधुनिक युग और जीवन के अनेक प्रश्नों को उठाती है। राम के संशयग्रस्त मन का चित्रण करते हुए श्रीनरेश मेहता आज के प्रज्ञावान द्वन्द्वग्रस्त मनुष्य के तनाव का ही चित्रण कर रहे हैं। अंतर केवल इतना है कि आज का मनुष्य अपने हितों के विषय में सोचता है लेकिन राम का जो संशय है वह उनके उत्तरदायित्व का संशय है। उनके मन में प्रश्न है कि सीता को पाने के लिए क्या यह युद्ध आवश्यक है? क्या इस युद्ध को टाला जा सकता है? क्योंकि राम सत्य की खोज में लगे हुए हैं, वे केवल' मानव का सत्य चाहते हैं, इस सत्य को वे युद्ध और खड्ग के माध्यम से खोजना नहीं चाहते। यह संशय राम के मन में इसलिए उत्पन्न होता है क्योंकि वे व्यक्तिगत हित के लिए जनसंहारकारी युद्ध को टालना चाहते हैं। नरेश मेहता ने राम के प्रज्ञावान मन-मस्तिष्क में उठने वाली सोच को कुछ इस तरह व्यक्त किया है-"व्यक्तिगत मेरी समस्याएँ क्यों ऐतिहासिक कारणों को जन्म दें"। रामेश्वर काम्बोज ने इस कृति की अन्तरात्मा में पैठकर अपने आलोचकीय विवेक की मथानी से मथकर जो निष्कर्ष रूपी नवनीत निकाला है, वह उनके सफल आलोचक होने की गवाही देता है। रामेश्वर काम्बोज ने 'प्रवाद पर्व' के सर्ग विभाजन का महत्त्व, कथोपकथन, बिम्बविधान प्रतीक विधान और काव्यभाषा पर गहराई से विचार किया है। इस कृति का महत्त्व निरूपित करते हुए उन्होंने लिखा है-"राम मानव सत्य की खोज करना चाहते हैं। रक्तपात किसी भी खोज का समाधान नहीं हो सकता वह समाधान मानवीय गुणों के द्वारा मानव के भीतर से ही उपजेगा।"
किशन सरोज के गीत संग्रह 'चंदन वन डूब गया' की समीक्षा करते हुए रामेश्वर काम्बोज ने किशन सरोज के गीतों में निहित अनुभूति के मर्म को स्वयं अनुभूत किया है। प्रेम उनके गीतों का प्रमुख तत्त्व है। रामेश्वर काम्बोज लिखते हैं कि किशन सरोज के गीत एक सच्चे प्रेमी के संकल्पित मन की तीर्थ-यात्रा है। तीर्थयात्री, नदी, पर्वत, घाटी सभी बाधाओं को नंगे पैरों पार करके भी तपिश का अनुभव करता है। वही तपिश इन गीतों को प्राणशक्ति देती रही है। जीवन की यह तृप्ति स्व में नहीं पर में है। पर ही जीवन का सबसे बड़ा विधायक तत्व है, मुनष्य के मानव होने की पहचान है। "रामेश्वर काम्बोज ने 'चंदनवन डूब गया' संग्रह में संकलित 45 गीतों के भाव और शिल्प को अपनी समीक्षा में जिस काव्यात्मक विवेक की सूक्ष्म पहचान के साथ उभारा है, वह पाठक को इन गीतों के भाव और शिल्प को समझने में सहायता करती है। रामेश्वर काम्बोज ने लिखा है कि-" कवि सरोज के गीत किरणों की वे वल्गाएँ हैं, जो प्रमाता के हृदय को रस-रज्जु से बाँधने का वीणा उठाये हुए हैं।
हस्तीमल 'हस्ती' हिन्दी कविता के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम है। हस्ती जी पर 'अनभै' पत्रिका के संपादक रतन कुमार पांडेय ने कुछ वर्ष पूर्व 'अनभै' का एक विशेषांक भी प्रकाशित किया है। उनके ग़ज़ल संग्रह 'क्या कहें किससे कहें की समीक्षा भी' सह-अनुभूति एवं काव्यशिल्प'पुस्तक में है। रामेश्वर काम्बोज की गहन और तीक्ष्ण अन्तर्दृष्टि इन ग़ज़लों में निहित सभी तत्त्वों को भेद जाती है। वे लिखते हैं-" इन ग़ज़लों का फलक बहुत व्यापक है। इनमें कहीं परिवर्तन की प्रतिध्वनि है, तो कहीं गुमराह करने वाली प्रतिगामी' शक्तियों पर प्रहार'है। कहीं रास्ते में' शक्ति परीक्षण करती चुनौतियाँ हैं' , तो कहीं पंगु व्यवस्था है, कहीं सामाजिक विडम्बनाएँ हैं तो कहीं स्वपोषी छिद्रान्वेषी क्रूर संस्कृति है। कवि ने सांसारिक छल, छद्म-त्याग-समर्पण की भूमिका को सूक्ष्मता से परखा है। बड़ी से बड़ी बात को भी सादगी से कहने की क्षमता इन ग़ज़लों की प्राणशक्ति है।
चर्चित लघु कथाकार सतीशराज पुष्करणा जी की कविताओं की सघन पड़ताल रामेश्वर काम्बोज जी अपने आलोचनात्मक लेख 'सतीशराज पुष्करणा' के 'काव्य सरोकार' में की है। सतीशराज पुष्करणा कि काव्य संवेदना और शिल्प की सारी विशेषताओं पर गहराई से प्रकाश डालते हैं।
हरे राम समीप की 42 कविताओं का 'संग्रह' मैं अयोध्या'और डॉ. स्वामी' श्यामानंद सरस्वती 'रौशन' के संग्रह 'मै कितने जीवन जिया' की समीक्षा भी सह-अनुभूति एवं काव्यशिल्प में ' शामिल हैं।
रामेश्वर काम्बोज जी एक ऐसे आलोचक हैं जो किसी भी रचनाकार की कृति पर लिखने के पूर्व उस कृति का सांगोपांग अध्ययन करने के साथ कवि की अन्य कृतियों का भी अध्ययन करते हैं। चूँकि उनकी आलोचना पुस्तक 'सह-अनुभूति एवं काव्य शिल्प' काव्य कृतियों पर केन्द्रित हैं; अतः उन्होंने कविता के भावपक्ष और शिल्पपक्ष पर गंभीरतापूर्वक विचार करते हुए कृतियों में निहित भावगत और शिल्पगत सौन्दर्य को प्रस्तुत किया है। डॉ. शील कौशिक के काव्य-संग्रह 'खिड़की से झाँकते ही' , कीर्ति केसर के काव्य-संग्रह 'अस्तित्व नये मोड़ पर' , डॉ. 'शैलजा सक्सेना के काव्य संग्रह' क्या तुमको भी ऐसा लगा 'रश्मि' शर्मा का काव्य संग्रह 'वक्त की अलगनी पर' डॉ. कविता भट्ट के काव्य संग्रह 'घुँधरी' , अनिता ललित का क्षणिका संग्रह 'बूँद-बूँद लम्हें' , मंजु मिश्रा के संग्रह 'जिंदगी यूँ तो' की समीक्षा करते हुए रामेश्वर काम्बोज इन कविताओं को आत्मसात् करते हैं फिर उन तत्त्वों को खोजते हैं, जो इन कविताओं को विशिष्ट बनाते हैं। उन्होंने भूमिका में स्पष्ट किया है-" इस पुस्तक में संकलित सभी के क्षेत्र अद्वितीय हैं। इनकी भावानुभूति भावविभोर करती है, अद्भुत कल्पना अनुरंजित करती है, इनका गहन विचार-बोध मंत्रमुग्ध करता है। भावों और कल्पना का यह नितांत निजी कोश इतना मुग्धकारी है कि इनकी कुछ रचनाएँ और अधिक विस्तृत व्याख्या कि माँग करती हैं।
रामेश्वर काम्बोज ने अपनी इस पुस्तक में जहाँ आधुनिक कवियों की कविताओं को काव्यसम्मत दृष्टि से परखा है, वहीं दूसरी ओर सूरदास और अपनी कुंडलियों के कारण प्रसिद्ध हुए गिरधर कवि पर भी लिखा है। श्रीनरेश मेहता और 'जिस तरह हम बोलते हैं, उस तरह तू लिख' कहने वाले भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य के मर्म को समझ कर उनकी कविताओं का विशद विवेचन किया है।
प्रख्यात कवि राजेश जोशी के कविता संग्रह 'दो पंक्तियों के बीच' की बड़ी विशद और गंभीर समीक्षा इस पुस्तक में है। रामेश्वर काम्बोज ने राजेश जोशी के कई कविता-संग्रह की कविताओं को पढ़ा है, इसलिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत संग्रह 'दो पक्तियों के बीच की समीक्षा जब प्रस्तुत करते हैं, तो वे कवि की काव्ययात्रा कि मुकम्मल पड़ताल करते हैं और लिखते हैं–"कवि एक अन्तर्यात्रा कर रहा है। वह कविताओं में से फर्राटे भरता नहीं निकल रहा है, वरन् सबके साथ खरामा-खरामा चलते हुए भी अपने में कहीं गहरे डूबा है।" राजेश जोशी की इन कविताओं की विषयवस्तु के साथ इन कविताओं में निहित सामाजिक सरोकारों की गहराई से पड़ताल' दो पंक्तियों के बीच भरता अंतराल शीर्षक से लिखे समीक्षात्मक लेख में की गई है।
रामेश्वर काम्बोज ने दिओल परमजीत के काव्य-संग्रह हवा में लिखी इबारत (मूल पंजाबी) जिसका अनुवाद सुभाष नीरव ने किया है, उसकी भी समीक्षा कि है तथा उनकी छोटी कविताओं में निहित भावगत त्वरा कि प्रशंसा कि है।
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' एक सहृदय कवि भी है, इसलिए उनकी आलोचना भी संवेदनाओं से आपूरित हैं। सह-अनुभूति एवं काव्यशिल्प में उन्होंने आलोचना के भारतीय और पाश्चात्य दोनों मानदंडों का उपयोग किया है; इसलिए रामेश्वर काम्बोज आचार्य विश्वनाथ, आचार्य मम्मट और भरत मुनि के साथ वड्र्सवर्थ और मैथ्यू आर्नल्ड के कविता सम्बंधी विचारों को भी उद्धृत करते हैं। रामेश्वर काम्बोज जी का साहित्यिक ज्ञान विशद है और भाषा पर उनकी गहरी पकड़ है, जो उन्हें एक श्रेष्ठ आलोचक के रूप में प्रतिष्ठित करती है। चूँकि वे स्वयं एक सहृदय कवि हैं, इसलिए उनका काव्यालोचन एक सहृदय कवि और एक तीक्ष्ण बुद्धि आलोचक और एक भाषाविद् की दृष्टि के संश्लेष से जन्मे रसायन से उपजा है इसलिए सभी आलोच्य कवि और उनकी रचनाओं का मर्म इस रसायन में आकंठ निमग्न होकर ही निकला है। निश्चय ही रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ की कृति 'सह-अनुभूति एवं काव्यशिल्प' हिन्दी काव्य आलोचना कि एक सशक्त कड़ी है जो 22 काव्य संग्रहों और कवियों को अपने में समेटे हुए है।
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