काव्य का वास्तविक निकष / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
‘उद्धव शतक’ में कवि जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ की ये पंक्तियाँ देखिए- ‘नैंकु कही बैननि, अनेक कही नैननि सौं, रही-सही सोऊ कहि दीनी हिचकीनिं सौं।’ यह कथन काव्य पर भी लागू होता है। काव्य का छन्दोबद्ध होना या मुक्तछन्द में होना, उसका निकष नहीं। वास्तविक निकष है- उसकी व्यापक ग्राह्यता। गेय हो या भावपूर्ण वाचन हो, दोनों का महत्त्व है। मुख्य है- उसमें भाव-प्रवणता हो। रचना का अर्थ केवल उसकी शब्दावली तक सीमित नहीं होता; बल्कि शब्द-प्रयोग से बनी भाव छवियों, भाव-छवियों में निहित गहन अनुभूतियों एवं अनुभूतियों से निःसृत व्यंजना में प्रकट होता है। अर्थ की प्रतीति रसज्ञ के अनुभव और चिन्तन पर आधारित होती है। कभी –कभी प्रबुद्ध पाठक का अर्थ कवि कल्पना से भी आगे जा सकता है। वचनों / शब्दों में जो प्रत्यक्ष रूप से कहा जाता है, वह नैंकु (तनिक/ अल्पमात्र) होता है। इससे जो अधिक होता है, वह नैननि सौं (नेत्रों से-संकेत मात्र से) कह दिया जाता है। जब भावातिरेक होता है,वह हिचकीनिं सौं(उन भावानुभूतियों से)व्यंजित हो जाता है, जिन पर रसज्ञ का वश नहीं है। बहुत -सी छन्दोबद्ध रचनाओं में भी शुष्कता या प्रसंगविहीनता का आडम्बर सजा होता है, जिसकी मधुर स्वर में प्रस्तुति कुछ पल के लिए मुग्ध कर सकती है; लेकिन गहन चिन्तन के बाद अनुभव होता है कि कवि भाव-सम्प्रेषण में असफल हो गया। मुक्तछन्द (छन्दमुक्त नहीं) में भी वह त्वरा हो सकती है, जो आद्यन्त पाठक/ श्रोता को आनन्द-विभोर कर सकती है। कवितांक में छन्द और मुक्तछन्द के धनी निराला से लेकर नए रचनाकारों तक का समावेश किया गया है। आशा है, आपको यह लघु प्रयास पसन्द आएगा।
सम्पादकीय-पुष्पांजलिः जुलाई 2025