काश्मीर के पीछे का सच / जीतेन्द्र वर्मा
काश्मीर में मोदी सरकार जो कदम उठा रही है उसके पीछे भारत का अमेरिका का बड़ा बाज़ार बनना है। संयुक्त राष्ट्र संघ, अमेरिका सहित सभी पश्चमी देश भारत के खिलाफ कोई बड़ा कदम उठाने में असमर्थ हैं क्योंकि इससे उनका ही आर्थिक नुकसान होगा। जबतक भारत सोवियत संघ के पक्ष में था और अमेरिका का बाज़ार नहीं बना था तबतक अनगिनत मानवाधिकार संस्थाएँ रोज-रोज मानवाधिकार का प्रश्न उठाकर भारत को परेशान करती थी। जब से भारत अमेरिका का बाज़ार बना तब से ये संस्थाएँ न जाने कहाँ गायब हो गई.
काश्मीर सहित पूरी दुनिया में जहाँ भी आतंकवाद विशेषकर मुस्लिम आतंकवाद है वह अमेरिका प्रायोजित रहा है। ईरान में पहले राजाशाह पहलवी का शासन था। उन दिनों ईरान आधुनिक राष्ट्र था। वह सोवियत संघ के पक्ष में था, वहाँ सोवियत संघ की सेना थी। तब अमेरिका ने ख़ुमैनी को पैदा किया। ख़ुमैनी ने अमेरिका के बल पर इस्लाम के नाम पर रजा शाह पहलवी का तख्ता पलट दिया और उन्हें राजाशाह फाँसी दे दी। फिर ईरान को कूपमंडूक बना दिया।
सद्दाम हुसैन को अमेरिका ने ही पैदा किया। उनदिनों अफगानिस्तान सोवियत संघ के साथ था, वहाँ सोवियत संघ की सेना थी। इसके खिलाफ अमेरिका ने तालिबान को पैदा किया। इस्लामिक क्रांति के नाम पर तालिबान ने सत्ता पर कब्जा कर लिया। सोवियत संघ के हटने के बाद अमेरिका ने ख़ुमैनी और तालिबान से अमेरिका के लिए बाज़ार खोलने के लिए कहा। ऐसा नहीं करने पर वह इन्हें आतंकवादी घोषित कर युद्ध छेड़ दिया। आज कुछ मुसलमान ख़ुमैनी और तालिबान को इस्लाम का आदर्श मानते हैं।
काश्मीर का आतंकवाद भी अमेरिका का ही पैदा किया हुआ है जो पाकिस्तान के माध्यम से आया है। अमेरिका काश्मीर के आतंकवादियों को नैतिक और आर्थिक मदद देता रहा है। तथाकथित मानवाधिकार संस्थाएँ काश्मीर में मानवाधिकार का मुद्दा जोर । शोर से उठाती थी। उस समय भारत रूस के नजदीक था। अब भारत स्वयं अमेरिका के साथ है। अब अमेरिका को पाकिस्तान और काश्मीरी आतंकवादियों की ज़रूरत नहीं है। उसका मकसद पूरा हो गया है।
विभाजन के समय का इतिहास
भारत और पाकिस्तान के विभाजन का आधार इस्लाम था। यह तय हुआ था कि मुस्लिम बहुल्य क्षेत्रों को मिला कर अलग देश पाकिस्तान बनेगा। काश्मीर मुस्लिम बहुल्य क्षेत्र है। उसे भारत में लाने का श्रेय भारत के भावी धर्मनिरपेक्ष स्वरूप, वगाँधी । नेहरू पटेल का धर्मनिरपेक्षता में विश्वास, शेख अब्दुल्ला का धर्मनिरपेक्षता में विश्वास को जाता है। शेख अब्दुल्ला कभी जिन्ना या पाकिस्तान की तरफ नहीं झुके. यहाँ एक घटना का जिक्र प्रासंगिक होगा। तत्कालीन कानून के मुताबिक किसी देसी रियासत में कोई पार्टी अपनी शाखा नहीं खोल सकती थी। जब शेख अब्दुल्ला काश्मीर के लिए पार्टी बना रहे थे तब उन्होंने अपने दल का उद्घाटन के लिए जवाहरलाल नेहरू को बुलाया। वे चाहते तो जिन्ना को भी बुला सकते थे। नेहरू जब उदघाटन भाषण के
उठे तो उन्होंने देखा कि पार्टी का नाम मुस्लिम कांफ्रेंस रखा गया है। बस नेहरू बिगड़ गए. उन्होंने अपना पूरा भाषण इस नामकरण के खिलाफ ही दिया। शेख अब्दुल्ला सहित वहाँ उपस्थित किसी मुस्लिम ने नेहरू के बात का बुरा नहीं माना। उन्होंने नेहरू के बात पर विचार किया और पार्टी का नाम मुस्लिम कांफ्रेंस से बदल कर नेशनल कांफ्रेंस कर दिया।
जब नेहरू गए
भारत में विलय के बाद जवाहरलाल नेहरु ने श्रीनगर में गए. वहाँ उन्होंने आम सभा की। उन्हें देखने सुनने के लिए बड़ी संख्या में महिलाएँ बच्चे आए थे। यह सब काश्मीर की जनता का धर्मनिरपेक्ष स्वभाव, नेहरू के प्रति विश्वास दर्शाता है। अनुच्छेद 370 में बदलाव
इसके पहले भी अनुच्छेद 370 में बदलाव हुए हैं। इंदिरा गाँधी ने भी अनुच्छेद 370 में बड़ा बदलाव किया परंतु हल्ला नहीं हुआ। यह बदलाव काश्मीर की जनता को विश्वास में ले कर हुआ था।
अतीत का सच
श्रीनगर को अशोक ने बसाया था। काश्मीर से शेष भारत का संपर्क मैदानी इलाकों की तरह नहीं था। भौगोलिक स्वरूप के वजह से वहाँ यातायात दुर्गम था। इससे वह मानसिक रूप से कटा-कटा रहा। मध्यकाल में महम्मद बिन तुगलक ने सेना भेज कर काश्मीर को मिलाने की कोशिश की थी। उसकी सेना ने आसानी से काश्मीर को जीत भी लिया परंतु वहाँ आई आँधी में सारी सेना मारी गई. इसके बाद अकबर ने इसे जीता। मुगल साम्राज्य कमजोर होने इससे संपर्क कायम नहीं रह पाया। फिर यह महाराजा रणजीत सिंह के खालसा राज्य का हिस्सा बना। रणजीत सिंह के नहीं रहने के बाद उनके राज्य का मंत्री गुलाब सिंह अंग्रेजो से मिल गया। लगातार चार युद्ध हारने के बाद खालसा राज्य का अंत हो गया। अंग्रेजो ने इनाम में काश्मीर का राज्य गुलाब सिंह को दिया।
अतिवादी विचार
काश्मीर के अलगाववादी नेताओं के कारनामों से भाजपा को ही लाभ हुआ। अलगाववादी नेताओं ने कांग्रेस एवं अन्य उदारवादी सरकारों के शांतिपूर्ण प्रस्ताव को ठुकराया। शांतिपूर्ण वार्ता के द्वार को बंद रखा। पूरे देश में हिंसा और आतंक का माहौल बनाया। पाकिस्तान और अमेरिका के इशारे पर हरदम नाचते रहे। जब अनुच्छेेेद 370 लागूू था तब भी वे आतंकवादी कार्यवाई करते थे। इससे पूरे देश में सन्देेेश गया कि वे भारत के खिलााफ हैं।
आज पाकिस्तान में उदारवादी सरकार है जबकि भारत में कट्टरवादी सरकार है। ऐसा पहली बार हुआ है। इसके पहले पाकिस्तान में कट्टरवादी सरकार रहती थी। वे भारत के हर शांति प्रस्ताव को ठुकराती रही। भारत की जनता में अपनी उदारवादी सरकार को कमजोर समझ बैठी। इसका लाभ भी भाजपा को मिला।
वर्तमान स्थिति
जम्मू काश्मीर से सिर्फ़ अनुच्छेद 370 नहीं हटा है बल्कि काश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा भी नहीं मिला है। वहाँ के मुख्यमंत्री अन्य राज्यों की तरह शक्तिवान नहीं होगें। लद्दाख को अलग कर ही दिया गया है।
जम्मू और कश्मीर पहले भी भारत का अभिन्न अंग था। सिर्फ़ भारत के अन्य क्षेत्र के लोग वहाँ जमीन नहीं खरीद सकते थे और वहाँ की लड़की से शादी करने पर लड़की को पिता की संपत्ति में अपने अधिकार से वंचित होना पड़ता था। इससे मिलते-जुलते कानून कई राज्यों में आज भी लागू हैं परंतु भाजपा इसे ही प्रचारित करती थी।