किक / महेश कुमार केशरी

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दो लोगों में बहस हो रही थीl ये शादीशुदा जोड़ा थाl

लड़की बोली -"पाल लूँगी मैं इन दोनों बच्चों को चाहे जैसे भी होगाl"

"तुम समझ नहीं रही होl दोनों बच्चे जुड़वाँ हैंl तुम्हें अपना आॅफिस का काम भी देखना हैl हो पायेगा तुमसेl काम हम छोड़ नहीं सकतेl तुम मेरी बात मानो अभी जो समय हैl उसमें हम खाली नहीं हैंl आॅफिस में काम करते - करते ही आठ घँटे निकल जाते हैंl ट्रैफिक की समस्या फिर अलग हैl रोज़ दो घँटे ट्रैफिक में आने जाने में ही निकल जाते हैंl काम पर दो घँटे पहले ही निकलना पड़ता हैl ऐसे में तुम कैसे पालोगी अभी बच्चाl मेरी मानों तो रहने दो ये बच्चा - वच्चा का झमेलाl"

लड़का खीजते हुए बोलाl

"मैं पाल लूँगीl देखो जैसे-जैसे समय बीतेगाl वैसे - वैसे हम काम में व्यस्त होते जायेंगेl फिर वक़्त गुजरते देर थोड़ी ना लगता हैl बूढ़ापे में फिर हमें कौन देखेगाl जब हाथ पाँव काम करना बँद कर देंगेंl फिर एक ग्लास पानी निकालकर कौन देगाl अभी जवान हो सक्षम होl सब काम अपने कर ले रहे होl लेकिन जब शरीर काम नहीं करेगाl तब क्या करोगे ? अरे मरते समय कोई एक लोटा पानी निकालकर भी तो देने वाला होना चाहिएl बच्चों की प्लानिंग हमें आज नहीं तो कल करनी ही हैl वैसे भी उम्र बढ़ने के बाद बच्चा पैदा करने में बहुत सारे काॅम्पलिकेशन आने लगते हैंl हो सकता है , हमारे साथ भी ऐसा ही होlजब भगवान हमें बच्चा देना चाहा रहा है तो भगवान के इस उपहार को हमें नष्ट नहीं करना चाहिए l वैसे भी एक- ना- एक दिन हमें बच्चा पैदा करना ही हैl मैंने किताबों और अखबारों में भी पढ़ा हैl उम्र बढ़ने के साथ ही बच्चा होने में परेशानी होने लगती हैl फिर जिस परेशानी को हमें कल झेलना हैl उसे आज ही निपटा दिया जायेl तो कितना अच्छा रहेगाl है , ना। तुमने सुनी नहीं है क्या वह कहावतl जो काल करै सो आज , करl जो आज करे सो अबl पल में प्रलय आयेगीl बहुरि करोगे कबl फिर हम खाना बनाने के लिये कोई मेड रख लेंगेंl या कोई केयर टेकर रख लेंगेंl जो हमारे बच्चों की देखभाल करेगाl इससे भी नहीं होगा तो दफ़्तर से छुट्टियाँ बढ़वा लूँगीl एक दो जने से ना हुआl तो दो-तीन लोग और रख लेंगेंl तीन-चार साल बाद तो बच्चे धीरे - धीरे बच्चे बड़े हो जायेंगेl फिर आराम से आॅफिस जाकर काम किया जायेगाl वैसे भी बच्चों की परवरिश के लिए बहुत सारे पैसे मैंने बचाकर रख लिए हैंl"

"तुम्हें तीन चार साल चुटकियों में निकलते दिखते हैंl क्या तुम इसे इतना आसान समझती होl तुमको अभी ऐसा लगता हैl इसलिये तुम ऐसा कह रही होl"

"सब हवा कि तरह निकल जायेगाl यूँ चुटकियों मेंl" लड़की ने हवा में चुटकी बजाईl

"तुम्हें ऐसा लगता हैl"

"नहीं ये सच हैl सच में ये समय चुटकियों में निकल जाता है l"

लड़का - "तो तुम नहीं मानोगीl"

लड़की -"बिल्कुल नहींl"

"यानी तुम अबाॅर्शन नहीं करवाओगीl"

"बिल्कुल नहींl"

"ये पाप मेरे से नहीं हो पायेगाl"

फिर लड़की ने अचानक से एक सवाल पूछ लिया -"तुम मेरी हेल्प करोगे नाl मैंने तुम्हारे लिये अपने माँ- बाप , भाई बहन यहाँ तक की घर को भी छोड़ दियाl"

लड़की रुँआसी हो गई थीl

"अरे , हाँ मैं तुम्हारे हर फैसले में मैं तुम्हारे साथ हूँl"

"लेकिन, कैसे होगाl" लड़के ने पहलू बदलाl

" तुम्हें मालूम है , एक बेबी केयर दूध के पैकेट की क़ीमत चार - पाँच सौ रूपये हैl बेबी आॅयल तीन - चार सौ रूपये का

आता हैl फिर , आजकल के बच्चे बीमार भी बहुत पड़ते हैंl डाॅक्टर की फीस पाँच सौ हज़ार से कम नहीं हैl छोटे -बच्चे का एक सिरप और एक टिकिया की पत्ती भी लो तो पाँच सौ का बिल आसानी से बन जाता हैl आम आदमी के पहुँच से आज के समय में इलाज और दवाई बहुत बाहर होता जा रहा हैl अभी पिछले महीने ही जब तुम बीमार पड़ी थीl पाँच हज़ार तो जाँच और दवाईयों में ही निकल गया था l वह तो मेरा दोस्त अनिल बहुत ही बढ़िया लड़का हैl उससे मैंने पाँच हज़ार की उधार ली थीl तब जाकर तुम्हारा मैं इलाज करवा पाया थाl

फिर इन नवजात बच्चों को महीने-दो-महीने में डाॅक्टर के यहाँ लेकर दौड़ते रहोl आज खाँसी हुई हैl कल बुखार हुआ हैl परसों सर्दीl नाक में दम हो जाता हैl बच्चों को पालने मेंl इतना आसान नहीं हैl बच्चों को पालनाl तुम समझ नहीं रही होl और हमारी आमदनी पँद्रह दूनी तीस हज़ार रूपये हैl इतने मँहगे शहर में तो अपार्टमेंट का किराया ही दस हज़ार रूपये निकल जाता हैl पेट्रोल दो - तीन हज़ार रूपये का निकल जाता हैl राशन और दूध में पाँच सात हज़ार निकल जाते हैंl दवा-दारू और ऊपर के खर्चे अलगl महीना ख़त्म होते- होते बीच में ही किसी से उधार लेना पड़ता हैl हाथ में भला बचता ही क्या हैl तुमसे शादी करने के बाद घर वाले अलग से चिढ़े हुए हैंl वहाँ भी तुम्हें ले जाकर नहीं रख सकताl "

"क्यों नहीं रख सकतेl क्या वह तुम्हारा घर नहीं हैl वहाँ जो प्राॅपर्टी हैl वह तुम्हारी नहीं हैl तुम दो भाईयों में से तुमको कुछ भी नहीं मिलेगा क्याl बहुत महीन खाने की मुझे भी आदत नहीं हैl साग - सतुआ ,माड- मडुआ तो होगा ना खेत मेंl तुम्हारे घर में तो गाय भी हैl मेरे बच्चों के लिये इतना बहुत हैl मोटा महीन जो मिलेगा सब जने मिलकर खा लेंगेंl ज़रूरी नहीं है कि रोज़ तरपुए और छत्तीस भोग ही मिले खाने कोl पेट भर खाना और तनाव रहित वातावरण मिले तो आदमी की देह लगने लगती हैl यहाँ शहर में देखो लोग लाखों कमा रहें हैंl लेकिन सैंकड़ों बीमारियों से ग्रसित हैंl"

"क्या है , वहाँ परl पिताजी किसान हैंl बहुत मुश्किल से खेती बाड़ी होती हैl रोपाई के बाद खाली समय में मैंने देखा है कि पिताजी शहर जाकर मजदूरी करते हैंl जब मैं दसवीं में थाl तो ख़ुद गाँव से बाहर जाकर मजदूरी करता थाl और भाई मेरा बहुत छोटा है , अभी l वहाँ कि ज़मीन में मैं कोई हिस्सा नहीं माँगूगाl मेरे कलेजे का टुकड़ा है मेरा भाईl"

"तुम मत माँगना ज़मीन में हिस्साl लेकिन अगर मैं दो बच्चों को लेकर वहाँ रहूँगी तो माँ-बाबूजी मुझे भगा थोड़ी ना देंगेंl आख़िर वह भी तो मेरे सास ससुर हैंl आख़िर वह मेरा भी तो घर हैl"

"हाँ इसमें कहाँ दो राय हैl कि वह तुम्हारा घर नहीं हैl"

"फिर तो ठीक है नाl"

"हूँ ,मैं खर्चों की बाबत सोच रहा हूँl बेबी केयर दूध , बेबी आॅयल , बेबी पैडl हमारी इतनी कमाई नहीं हैl तुम समझने की कोशिश करोl जब अभी इस मँहगाई में सैलरी कम पड़ रही हैl तो आगे कैसे होगा ?"

"तुम बहुत सोचते रहते होl और बेकार में अपने दिमाग़ को दौड़ाते रहते होl बेबी केयर दूध नहीं पियेगाl तो गाय का दूध खरीद लेंगेंl बेबी आॅयल ना खरीद सकेl तो सरसों का तेल खरीदकर लगायेंगे l बेबी पैड की ज़रूरत नहीं रहेगीl बिस्तर के नीचे प्लास्टिक बिछा लेंगेंl मेरी माँ को कपड़ों के छोटे -छोटे बिछावन बनाना बढ़िया से आता हैl वैसे दीदी को फ़ोन करके पूछूँगीl हो सकता है , वैसे बिछावन दीदी के घर पर ही रखें होंl दीदी से फ़ोन करके मँगवा लूँगीl और तुम इतना मत सोचो दुनिया में मैं अकेले थोड़ी ही बच्चा पैदा कर रही हूँँl और लोग भी तो बच्चे पैदा करतें हैंl फिर उनके बच्चे कैसे पलते हैंl बिल्कुल आराम - आराम से पलते हैंl बल्कि बेबी केयर दूध और बेबी आॅयल से मसाज पाये बच्चों की तुलना में वे कुछ ज़्यादा ही मज़बूत होते हैंl वह कुछ भी खा लेते हैंl और मजे से तंदरूस्त भी रहते हैंl"

"यानी तुम अपनी माँ के घर जाकर रहोगी ! तुम्हारे माँ - बाप हमारे इस रिश्ते और इन होने वाले बच्चों को स्वीकार करेंगें ?"

"क्यों नहीं करेंगेंl उनको दुश्मनी होगी , तुमसे दुश्मनी होगी

मुझसे होगीl l लेकिन हमारे बाल - बच्चों से थोड़े ना दुश्मनी होगीl देखना वह बच्चों को देखते ही हमें माफ़ कर देंगेंl कहा भी गया हैl असल से ज़्यादा आदमी को सूद प्यारा होता हैl "

"मैं तुम्हें नहीं जाने दूँगाl तुमने देखा नहीं थाl जब हम लोग शादी करने जा रहें थेंl तो तुम्हारे घर से तुम्हारे पुराने नंबर से कैसी - कैसी धमकियाँ हमें मिल रहीं थींl"

"हूँ ,सो तो हैl"

"फिरl"

"फिर , क्या तुम्हारे घर चलेंगेl"

लड़का - "नहीं मैं , किस मुँह ,से घर जाऊँगाl मेरे घर वाले कहेंगे कि इसको जब काम पड़ा तो वापस आ गयाl"

लड़की - "तो , फिर मेरे घर चलोl मेरे पिता बहुत ही अमीर आदमी हैंl घर खाने - पीने , पहनने-ओढ़ने की कोई कमी नहीं है मेरे घर मेंl हम चार भाई बहन थेl खाने - पीने , पहनने - ओढ़ने की कभी कोई कमी महसूस नहीं हुईl"

"नहीं मेरा भी स्वाभिमान हैl मैं , घर जमाई बनकर थोड़े ही रहूँगाl मैं यहीं रह जाता हूँl यहीं शहर में रहकर काम करूँगाl और तुमलोगों को पैसे भेज दूँगाl"

"हाँ ,ये ठीक रहेगाl" इस बार , लड़की हुलस रही थीl

"चाचा , ये लीजिए दवाईl" जब नर्स ने टोका तब जाकर रघुनाथ बाबू को होश आयाl करीब घँटे भर से रघुनाथ बाबू उस जोड़े की बातचीत को सुन रहे थेl रघुनाथ बाबू को उन लोगों की बातचीत से अपने पुराने दिन याद आ गयेl वह , शिक्षा विभाग में क्लर्क के पोस्ट से कुछ वर्षों पहले रिटायर हुए थेl पत्नी (शुभदा) को मरे करीब चार - पाँच साल हो गये थेl जो शादीशुदा जोड़ा अभी बातचीत कर रहा थाl बिल्कुल ऐसी ही कहानी थी , रघुनाथ बाबू कीl उन्होंने भी प्रेम विवाह किया थाl वह भी बाल - बच्चों की बहुत चाह रखे हुए थेl ईश्वर ने उन्हें भी बहुत प्यारे -प्यारे तीन लड़के और एक लड़की दिया थाl बच्चों को उन्होनें बहुत प्यार से पाला-पोसा थाl सबको उच्च शिक्षा दिलाईl बड़ा लड़का जुगेश अमेरिका के किसी मेडिसिन फर्म में काम करता थाl वहीं किसी जर्मन लड़की से उसने शादी कर ली थीl उस जर्मन लड़की के पिता कोई अमेरिकन थेl जिनका नाम रिचर्ड थाl इसलिये रूबिया को अमेरिकी नागरिकता मिली हुई थीl उनके बडे लड़के को ग्रीन -कार्ड मिल चुका थाl जुगेश को बहुत तरक्क़ी चाहिए थीl वह लड़का रातों - रात अमीर बनना चाहता थाl जुगेश अमेरिका क्या गयाl वहीं का होकर रह गयाl दूसरा लड़का संतोष थाl वह भी दिल्ली में रहकर अपना काम करता थाl उसकी भी शादी हो गई थीl वह कभी - कभी पर्व-त्योहारों में घर आताl हर बार लक्ष्मी पूजा परl या कभी - कभार होली मेंl या कभी कभार दूर्गा- पूजा परl कभी - कभी ज़्यादा ज़िद करता तो रघुनाथ बाबू गर्मियों में महीने भर के लिये हो आतेl लेकिन, दिल्ली में उनका दड़बे की तरह वाले मकान में दम घुटता रहता थाl भाग आते महीना - पँद्रह दिन रहकरl उन्हें तो अपना गाँव पसंद थाl उनका पहाड़ी गाँव रतनपुरl रतनपुर तीनों ओर से नदियों से घिरा हुआ थाl नदियों के किनारे बड़े - बड़े ऊँचे पहाड़l जिनकी चोटियाँ आसमान से बातें करतीl ताल - तलैये , गाँव - चौपालl फिर रघुनाथ बाबू के संगी -संगतिये भी तो उसी गाँव के थेl मरनी- जीनी , शादी -ब्याह सब में गाँव वालों का साथ उन्हें मिलताl सबसे ज़्यादा मज़ा तो उनके गाँव के नहर के किनारे के चौपाल पर के मेघू हलवाई की दुकान पर आती थीl जहाँ दुनिया जहान के किस्से और गप पसरे होते थेंl दिल्ली जाते तो किससे बातचीत करतेl किससे बोलते बतियातेl बच्चे छोटे - छोटे थेl जिनका अधिकांश समय स्कूल - टयूशन में ही बीत जाताl उनका एक तीसरा बेटा राकेश थाl जो बैंग्लोर में रहकर शराब बनता थाl और उसका शराब बनाने का छोटा मोटा काम था l इतना ही कमा पाता था कि उसकी बमुश्किल रोज़ी - रोटी चल सकेl इतनी कम कमाई में वह माँ - बाप को भला क्या पूछताl सब नसीब नसीब की बात हैlआपस में बाँटकर खाने वाले एक रोटी को ही चार हिस्सों में बाँटकर खा लेते हैंl चोर के आगे ताला और बेईमान के आगे केवाला भला कब चला हैl उसकी शादी वहीं के एक लड़की से हुई थीl उसको हमेशा ही पैसों की तँगी रहती थीl जब तक रघुनाथ बाबू नौकरी में रहे जब आता दस बीस हज़ार खींच लेताl फिर , दो तीन महीने के लिए ग़ायब हो जाताl फिर पैसे घटते तो फिर दौड़कर रघुनाथ बाबू के पास आ जाताl एक बार रघुनाथ बाबू बिगड़ गये तो बाप -बेटे में बोलचाल बँद हो गईl तब से बाप बेटे में बोलचाल बँद हैl रघुनाथ बाबू बहुत सीधे- साधे आदमी थेl तीन को पाँच कहने का ऐब उनमें नहीं थाl इसलिये उनको उनके अपने ही लोग खासकर बेटे अलग - अलग बहाने से हमेशा लूटते रहतेl बड़ा बेटा जुगेश पहले - पहल जब अमेरिका जाने की तैयारी कर रहा थाl तो उसने बाप से कहा बाबूजी पासपोर्ट

बनवाना हैl इस तरह उसने बाप से हजारों रूपये ऐंठ लिएl फिर एक दिन अमेरिका जाने के लिये उसको वीजा की ज़रूरत आन पड़ीl तब उसने बाप से दो लाख रूपये ऐंठ लिएl संतोष भी कभी अपनी बीमारी , तो कभी बच्चों के एडमिशन , तो कभी बच्चों के ड्रेस , तो कभी काॅपी किताब के लिए रघुनाथ बाबू को ठगता रहताl कुल मिलाकर बाप से सारे बच्चे स्वार्थ से जुड़े हुए थेl सबके जुड़ने में उनका अपना - अपना मतलब थाl एक बेटी ज्योति ही थीl जो जब - जब पर्व -त्योहारों में घर आती तो बाप की सेवा करतीl नहीं तो तीनों लड़के नालायक थेंl जब शुभदा की मौत हुई तो तीनों लड़कों ने काम का बहाना बनायाl आजकल करके टालते रहेl रघुनाथ बाबू को वैसे तो तीनों लड़कों से बहुत उम्मीद थीl लेकिन

अपने बड़े लड़के से कुछ ज़्यादा ही उम्मीद थीl बड़े लड़के पर शुभदा को भी बड़ा नेह थाl उनका बड़ा लड़का अमेरिका में थाl उसकी अच्छी खासी कमाई थीl शुभदा भी सबसे ज़्यादा प्यार जुगेश से ही करती थीl अपने क्लर्क रहते हुए रघुनाथ बाबू को पैसे की कभी कोई कमी महसूस नहीं हुई थीl लेकिन जब शुभदा की हार्ट की सर्जरी होनी थीl तो तीन -चार लाख रूपयों की ज़रूरत आन पड़ीl उन्होंने जुगेश के सामने हाथ फैलाया तो जुगेश बोलाl बाबूजी अभी अभी तो अमेरिका में सेटल ही हुआ हूँl घर और फर्नीचर खरीदने में फिलहाल व्यस्त हूँ l संतोष को शुभदा के आप्रेशन की बाबत बताया तो संतोष बोला कि बाबूजी अभी कारख़ाना बँद हैl हाथ बिल्कुल खाली हैl ना हो तो आप ही कुछ मदद करेंl राकेश से तो बोलचाल बिल्कुल भी बँद थाl फिर भी एक दिन रघुनाथ बाबू ने फ़ोन कर हालचाल लिया तो बोला शराब का बिजनेस इस बार बहुत मँदा हैl अभी कुछ नहीं कर सकताl इस तरह शुभदा बिन मदद और दवाओं के ही इस दुनिया से चल बसीl लेकिन शादीशुदा उस जोड़े का प्रेम देखकर रघुनाथ बाबू का मन भीतर से द्रवित हो गया थाl शुभदा की तरह ये लड़की भी त्याग की मूर्ति हैl शुभदा भी जीवण भर मोटा -झोटा खाती रही थीl ये लड़की भी वैसी ही है l गाँव - देहात में रहने को तैयार हैl साग - सत्तू , खाने को तैयार हैl आख़िर किसके लिएl अपनी आने वाली औलादों के लिएl अपने बूढ़ापे के भरण- पोषण के लिएl धन्य है , रे स्त्रीl तू धन्य हैl ऐसे ही तू सर्वशक्तिमान नहीं हैl ऐसे ही तू दुर्गा काली नहीं हैl ऐसे ही संसार तेरा यश नहीं गाता ! इस त्याग की मूर्ति के आगे औलादों का दिया जाने वाला दु:ख तो बहुत छोटा था l

रघुनाथ बाबू को उमेश टेंपो वाले ने टोका "बाबूजी चलेंl"

"हूँl"

"कहाँl"

"घरl"

"किसके घरl"

"आपके घर , आपके गाँव , रतनपुर l"

"घर तो लोगों से बनता हैl मेरे घर में लोग कहाँ हैंl वह तो महज़ मकान हैl ईंट गारों काl"

उनको उटपुटाँग तौर पर बोलते देखकर शादीशुदा जोड़ा रघुनाथ बाबू के पास सरक आयाl शादीशुदा जोड़े में से लड़की ने आगे बढ़कर पूछा -"क्या , हुआ बाबा ? आप क्या बड़बड़ा रहें हैंl"

" यही बोल रहा हूँ ; बेटा कि आत्मनिर्भर बनो , किसी से उम्मीद मत रखोl

आखिरी समय में सचमुच कोई पानी देने वाला भी नहीं बचता है बेटा l आखिरी समय में आदमी फुटबॉल बन जाता है , फुटबॉल ! और बच्चे उसको किक मारते हैंl

आदमी की बेबसी देखो बेटा कि वह इस किक का विरोध भी नहीं कर पाताl "

रघुनाथ बाबू अपनी आपबीती उस शादीशुदा जोड़े को सुनाते चले गये l

शादीशुदा जोड़े के पैरों के नीचे से जैसे ज़मीन खिसक गई थीl लगा जैसे दो जोड़ी पैरों को लकवा मार गया होl उनके पैर काँपने लगेl अचानक से शादीशुदा जोड़ा वहीं बेंच पर धम्म से गिर गयाl उनकी चेतना जैसे धीरे - धीरे ख़त्म होती जा रही हो !