किटकेट / सपना मांगलिक

Gadya Kosh से
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हाँ आज ही के दिन तो हमारा तुम्हारा मिलन हुआ था। कुछ भी नहीं भूला हूँ याद है सब कुछ मुझे। जब तुम्हें पहली बार इन हाथों से छूआ था, मन में ख़ुशी की लहर बिजली की गति से से रग-रग को रोमांचित कर रही थी। ऐसा लग रहा था कि पूरी दुनिया मेरी मुठ्ठी में समा गयी हो। हजारों चाहतें मन में उमड़ घुमड़ रहीं थी कि हम दोनों मिलकर अब यह करेंगे वह करेंगे। तुम मुझे एक नयी नवेली दुल्हन की तरह से लग रही थीं और मैं तुम्हारा पूरी तरह से दीदार करना चाहता था मगर ठीक एक नए नवेले अनाड़ी दुल्हे की तरह से समझ नहीं पा रहा था कि शुरुआत कहाँ से करूँ। एक अजीब-सी उहापोह के साथ दिल ऐसे धड़क रहा था जैसे शायद कैश का लैला के लिए और रांझे का हीर के लिए धडका होगा। तुम सामने थे, पूरी तरह मुझे समर्पित मगर मैं असमंजस में, फिर धीरे-धीरे मैंने तुम्हें अनावृत किया तुम्हारी चमक तुम्हारी स्लिम बॉडी सच मैं तो फ़िदा हो गया। क्या कोई इतना खूबसूरत भी हो सकता है। काफी देर तक यूँ ही अपलक निहारने के बाद मुझे याद आया कि अरे मैं वह ख़ास रस्म करना तो भूल ही गया जिसके बिना हमारा रिश्ता अधूरा ही रह जाएगा और फिर वह समय आया जब मैंने तुम्हें अपनी पहचान दी। तुम कुछ देर ऐसे खामोश रहे जैसे कि मैंने कोई गुनाह कर दिया हो मगर इसके बिना हमारा रिश्ता आगे भी तो नहीं बढ़ता। ज़रूरी था हमारे रिश्ते को आगे बढाने के लिए यह सब करना। थोड़ा रुककर मैंने तुम्हें दोवारा हौले से स्पर्श किया। इस बार तुमने भी प्रतिक्रया दी और फिर जैसे - जैसे मैं तुम्हें छूता गया वैसे-वैसे इस पूरी कायनात को भूलता गया। जितनी बार भी तुम्हें स्पर्श करता तुम एक नयी अनुभूति मुझे प्रदान करते, कितने रंग कितनी अदाएं उफ्फ, कभी सोचता तुम्हारी यह खूबी सबसे अच्छी है, फिर तुम एक नयी अदा दिखाते और मैं पहली वाली उस खूबी को भूल उस नयी खूबी का दीवाना हो जाता।तुमने मुझे अपने चंगुल में पूरी तरह से फांस लिया था। कहने को तो मैं तुम्हारा मालिक था मगर मेरी दीवानगी ने मुझे तुम्हारा गुलाम बना दिया। मैंने तुम्हारा अपने तमाम दोस्तों, रिश्तेदारों और ऑफिस के लोगों से परिचय करवाया। दाद दूंगा तुम्हारी याददाश्त की, तुम हजारों लोगों को सिर्फ एक बार मिलीं और सेव कर लिया अपनी मेमोरी में और जैसे एक दक्ष गृहणी अपने प्रिय का ख्याल रखती हुई सबसे रिश्ते बनाती है वैसे ही तुम सबके साथ संपर्क बनाने लगे, कभी व्हाट्स अप्प पर तो कभी फेसबुक और ट्वीटर पर। तुम्हारी नजरों से दुनिया कितनी साफ़ दिखाई देती थी इसलिए अब मैं खुद को और दुनिया की हर एक शय को तुम्हारे कार्ल लुईस लेंस से देखने लगा था। कानों को तुम्हारी संगीत से भरी मधुर आवाज ऐसी सुहानी लगती कि तुम न भी मुझे बुलाते तो भी मैं बार-बार तुम्हें ताकता रहता कि कहीं मैंने कुछ मिस तो नहीं कर दिया। मुझे तुम्हारे साथ केंडी क्रश खेलना खूब भाता। कई दिन से whatsapp पर मेरे कुलीग के नम्बर पर एक लड़की का डीपी अलग अलग अदाओं के साथ दिख रहा था। मैंने कुलीग से घुमा फिराकर पूछा -"क्या बात है दोस्त आजकल बड़ी स्टाईलिश फोटो लगा रहे हो? चक्कर क्या है" दोस्त मेरी बात पर चौंका और मुझसे नम्बर पूछा फिर उसने बताया कि "उसने तो वह सिम इस्तेमाल करनी कबकी बंद कर दी है, इसलिए हो सकता है वह नंबर किसी और को अलॉट हो गया हो"।बचपन से लेकर जवानी आ गयी मगर कसम परवरदिगार की, आज तक एक लड़की को भी नहीं पटा पाया और वजह थी, मेरा शर्मीलापन और रिजर्ब नेचर जिसकी वजह से मुझे लोगों से बात शुरू करने और मेलजोल बढाने में खासी दिक्कत होती थी। ऐसा नहीं है कि मुझमें पुरुषों वाली फीलींग नहीं थी, अरे भाई पुरुष हूँ तो जाहिर है बंदियों को देखकर कुछ-कुछ तो मुझे भी होता ही था, पर सोच कर ही रह जाता था, और मेरा कोई न कोई कमीना दोस्त बंदी को पटाकर मेरे ही कान में फुसफुसा जाता "साले भाभी है तेरी"।

उस रोज ऑफिस से आते ही दिल और दिमाग मुझे डार्विन के सिद्धांत को समझा रहे थे "प्रकृति विकास चाहती है, इसलिए अपने साथ उन्हीं जीवों को रखती है जो उसके विकास में मददगार हो सकते हैं, कमजोर जीवों को वह निकाल फैंकती हैं"। मैं कमजोर रहकर प्रकृति से बाहर नहीं होना चाहता था बल्कि उसके विकास में मददगार बनना चाहता था और इसके लिए मुझे एक अदद सहयोगी की आवश्यकता थी मेरे दिमाग मैं दोस्त के नम्बर पर नयी-नयी डीपी लगाने वाली वही लड़की घूम रही थी। कहते हैं कि क्लियोपेट्रा सांवली थी, नाटी थी, मगर विश्व का सबसे शक्तिशाली सम्राट जूलियट सीजर फिर भी उसका दीवाना हो गया था। मैं सम्राट नहीं था मगर उस सांवली लड़की की फोटो मुझे उससे बातचीत करने और जान पहचान बढाने के लिए उकसा रही थी। मैंने हिम्मत करके उसके inbox में "हाय अनुज" टाइप किया जानते हुए भी कि वह सिम अब अनुज की नहीं है। कुछ देर बेसब्री से जवाब का इंतज़ार करता रहा मगर कोई जवाब नहीं आया। लड़की ऑनलाइन थी मगर लाइन पर नहीं आ रही थी। रात गहराती जा रही थी मगर मेरा पोस्ट उसने पढ़ा ही नहीं। झपकियाँ आ रहीं थी पर रिप्लाई नहीं आ रहा था। मैं सो गया मगर हर करवट पर फोन उठा उठाकर देखता कि कुछ रिप्लाई आया या नहीं। सुबह होने वाली थी और मेरे जैविक विकास के सपने भी टूटकर चकनाचूर होने वाले थे। मैंने इसी डर से फोन को सुबह उठाकर नहीं देखा। नाश्ते के वक्त हिम्मत करके whatsapp के मेसेज देखने लगा तो सबसे ऊपर उसका ही डीपी एक मेसेज के साथ दिखा "हू इज अनुज? दिस इज टीना।"मेरे सौंठ जैसे सूखे भूरे होंठ, हरी अदरक की तरह खिल उठे। अब मैंने उससे माफ़ी मांगते हुए बताया कि यह नंबर पहले मेरे कुलीग का था, साथ मैं अपना नाम और अच्छे वेतन वाली नौकरी का पद भी टाइप कर दिया। वो भी शायद फुर्सत में थी, उसने "इट्स ओके" कहकर मुझे क्षमा दान कर दी। में उसे अब जोक्स और शेरो शायरी पोस्ट करने लगा था, उसके भी पोस्ट मेरे inbox को सजाने लगे थे, संक्षेप में कहूँ तो दो दिल करीब आने लगे थे। फिर बातें और मुलाकातें भी शुरू हो गयीं। अब उसके बिना जीना नामुमकिन लगने लगा था तो फ़िल्मी अंदाज में एक फाइव स्टार होटल में घुटनों के बल बैठकर मैंने उसे प्रोपोज कर दिया और जैसा की सेल के आखिरी दिन औरतों में जल्दबाजी होती है, उसने भी बिना किसी देर दार के सहर्ष स्वीकृति दे दी। घोड़े पर बैठकर जूलियट सीजर वाली फीलिंग आ रही थी और दुल्हन के वेश में वह भी तो क्लियोपेट्रा से कम नहीं लग रही थी। सोनिक मेरे चचेरे भाई ने हनीमून के लिए नैनीताल और मंसूरी का पैकेज गिफ्ट किया था। शादी होते ही हम तुरत-फुरत पैकिंग करके हनीमून ट्रिप पर रवाना हो गए। मन में ख़ुशी के लड्डू फूटे ही जा रहे थे। पहाड़ों की खूबसूरती और उसका साथ, मेरी दुनिया इतनी खूबसूरत कभी नहीं थी और अपने इन्हीं खूबसूरत और निजी पलों को जीवन भर महफूज रखने के लिए मैंने तुम्हारा इस्तेमाल किया और तुमने भी एक अच्छे दोस्त की तरह मेरी हर एक विश को अलादीन के जिन्न की तरह बिना "जो हुक्म मेरे आका" कहे पूरा किया। हनीमून का सुनहरा वक्त बीता तो मैं ऑफिस में व्यस्त हो गया और वह आये दिन मुझसे शोपिंग, क्लब और पार्टीयों में चलने की जिद करती और मैं उसे टाल देता क्योंकि इस तरह की चीजों मैं मेरा रुझान कभी था ही नहीं। अब उसके और मेरे दरमियान थोड़े फासले बढ़ने लगे। मैं थक हार कर ऑफिस से आता तो वह कभी घर पर मिलती, कभी नहीं और जब नहीं मिलती तो मैं तुम्हारे साथ वक्त बिताता ठीक वैसे ही जैसे जब वह मेरी ज़िन्दगी में नहीं थी। मगर न जाने क्या आदत थी उसकी वह मुझसे कितना भी दूर रहे मगर तुम्हारे साथ मेरा समय बिताना उसे रास नहीं आता था। उसके पास भी तुम्हारे जैसा एक साथी था और वह भी उसके उतना ही करीब था जितना कि मेरे करीब तुम, फिर भी उसे शिकायत थी। एक दिन तुमने ही तो मुझे दुनिया जाल पर ढूंढकर पत्नियों को खुश रखने के उपाय बताये। जिनमे से एक था सोशल साइट्स पर अपनी पत्नी की फोटो लगा, जग ढिंढोरा पीटकर उसको अहसास दिलाना कि हम उसे कितना प्यार करते हैं। हालांकि प्रेम का दिखावा मेरी आत्मा को सही नहीं लग रहा था मगर मैं उसे खुश देखना चाहता था इसलिए मैंने यह किया।

अगली सुबह उसने चीखते-रोते मुझे कोसते हुए जब झिंझोड़कर जगाया तो मैं उसके इस रूप को देखकर हैरान था। कहाँ मैं कल्पना कर रहा था कि वह मेरे पास आएगी और मेरे गले में दोनों बाजूओं का घेरा बना आँखों में आँखें डाल कहेगी "इतना प्यार करते हो मुझसे" मगर मैं सोचता कुछ और हूँ और हो जाता कुछ और है। उसके सर पर काली माता सवार थी वह मुझे जेल भेजने की धमकी दे रही थी और कमरे में टंगी हमारी शादी की तस्वीरों को उतार कर फैंक रही थी अपने क़दमों तले कुचल रही थी। मैं नहीं जानता उन तस्वीरों पर क्या बीत रही थी उन्हें दर्द हो रहा था या नहीं मगर मुझे हो रहा था। "क्या... हुआ।"मैंने हकलाते हुये पूछने की हिम्मत जुटाई। वो अपनी आँखों फैलाते हुए मुझे अपना मोबाइल दिखाने लगी। मेरी फेसबुक टाइमलाईन पर उसके और मेरे नैनताल वाले प्राइवेट पिक्स, उफ्फ यह क्या हो गया और कैसे? मैंने यह नहीं किया। मैं चीखा।और उसने "यूं ब्लडी स्वाइन", कहते हुए एक तामाचा मेरे गाल पर रसीद कर दिया। वो तमाचा मेरे गाल पर नहीं मेरे सीने में धड़कते उस दिल पर लगा जो उसे बहुत प्यार करता था और हमेशा खुश देखना चाहता था। मैंने उसे समझाने की बहुत कोशिश की मगर वह नहीं रुकी और मुझपर केस कर दिया। दुनिया मुझे शक की निगाहों से देख रही थी। मीडिया"एक वहशी पति की कारगुजारी" के शीर्षक से नमक मिर्च लगाकर दिखा रही थी छाप रही थी। लोग ऐसे चटखारे ले रहे थे जैसे यह कोई खबर न हो मुम्बैया चटपटा बड़ा पाव हो। महिला मंडल और नारी मुक्ति वाली बहनजी मुझे चप्पलों की माला पहनाकर, काला मुंह करके गधे पर बैठा सरे बाज़ार घुमाने की तैयारियां कर रहीं थीं। पुलिस वाले मेरी कॉलर पकड़कर भद्दे-भद्दे सवालों की झड़ी लगा रहे थे, शुरू मैं तो उनके गोलमोल सवाल ही समझ नहीं आ रहे थे। प्रश्न "क्यों बे, कब से कर रहा है यह धंधा?" उत्तर दिया "पांच साल से ही लगा हूँ" प्रश्न "कितना वसूलता है?" उत्तर "बारह लाख साल के"।अब मेरी कॉलर को कसकर पकड़ते हुए पुलिस वाले ने बुरी तरह से झिंझोड़ा "साले बीवी की नंगी तस्वीर बेचकर पैसे कमाता है और शान से बता रहा है? तुझपर तो इतनी धाराएं लगाउंगा कि तू क्या तेरा पूरा गैंग याद रखेगा" मैं हडबडाते हुए बोला "कैसा गैंग? मैं तो अपनी जॉब के बारे में बता रहा था सर"। पुलिस वाला "तेरी माँ की...प्रोमोशन तो तेरा अब थाने में ले जाकर करूंगा हरामी" और वह मुझे वास्तव में पकड़ कर ले गया। जेल जाने का धब्बा भी मेरे चरित्र पर लग ही गया।केस सायबर क्राइम का था इसलिए यह केस सायबर सेल प्रमुख टंडन के पास गया। उसने मुझसे तमाम सवाल पूछे और मेरे मोबाइल को पूरी तरह से चेक किया। मोबाइल चेक करते समय वह भी मुझे अजीब-सी नजरों से देख रहा था जैसे कि अपनी नजरों से मेरे पूरे वजूद का एक्सरे निकाल रहा हो, मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि मुझे निर्वस्त्र सबके सामने बैठा दिया गया हो और हर कोई मेरे शरीर के एक एक हिस्से का जायजा ले रहा हो। मेरी आँखों में आंसू थे और मैंने अपनी रुलाई बड़ी मुश्किल से दबा रखी थी। कुछ देर बाद टंडन मुस्कुराते हुए बोला "तुमने वाकई कुछ नहीं किया सिवाय एक बेवकूफी के" मैंने हकलाते हुए पूछा "कैसी...बेवकूफी, मैंने कुछ नहीं किया" टंडन ने दोहराया "किया है महाशय, तुमने अपने फोन की गैलरी सोशल साइट्स से सिंक्रोनाईज कर दी है इसलिए तुम्हारे पर्सनल फोटो fb पर शो हो गए हैं, और fb पर भी तुमने शो पोस्ट इन पब्लिक आप्शन लगा रखा है"। मैं थोड़ा हँसते और थोड़ा रोते हुए बोला "इसका मतलब मैंने जानबूझकर कुछ नहीं किया, प्लीज बताओ उसे, मैं ऐसा नहीं कर सकता, मैंने जानबूझकर कुछ नहीं किया" और इतनी देर से जो दबा रखा था दिल का लावा आंसुओं के रूप में बह निकला और मैं बच्चों की तरह से फूट फूटकर रो पडा। वो आई उसे सब कुछ समझाया गया। सोनिक हमें अकेले छोड़ बहार चला गया जिससे की हम अपने मतभेद सुलझा सकें मगर वह कुछ नहीं बोली और मेरे पास तो कुछ भी कहने को अब बचा ही नहीं था। हम दोनों बाहर निकल अलग-अलग रास्तों पर मुड गए, उन रास्तों पर जो कभी नहीं मिलते।

महीनों में दुनिया से छिपता रहा, मुंह ढांपे घर में पडा रहा, सूरज की रौशनी चुभने लगी थी और चाँद तपता हुआ महसूस होने लगा था। मगर कहते हैं न कि वक्त हर घाब को भर देता है। दोस्तों की कोशिशें और तुम्हारे साथ से मैं वापस उसी दुनिया में लौट आया जिससे भाग रहा था। अकेलापन काटता था मगर तुम्हारा साथ मुझे टूटने नहीं देता था और एक दिन मैंने निर्णय ले लिया। मैंने सोनिक को बताया तो उसके हाथ से कॉफ़ी का कप छूट गया, मान्यता दीदे फाड़-फाड़ कर मुझे घूरने लगी, अर्चन थोड़ा बुद्धिमान था, तो बुद्धि बघारते हुए बोला "देख यार, आजकल ज़िन्दगी में इतना तनाव है कि छोटी मोटी बीमारियाँ लग ही जाती हैं, मेरा एक दोस्त बहुत अच्छा मनोरोग विशेषज्ञ है तू कहे तो, मैंने द्रढ़ता से कहा "आय अम अब्सोलूट्ली फाइन" मान्यता के फटे मुंह से भी बोल फूटे "लिम्का बुक में नाम लिखाना है तो कुछ और कर ले, शादी करनी है तो शादी डॉट कॉम पर सर्च कर ले" सौनिक जो अबतक चुप था झुंझलाते हुए बोला "बच्चे कैसे पैदा करेगा? है कोई जवाब?"मैंने मुस्कुराते हुए कहा "नन्ही नन्ही एप्लीकेशन मेरे घर आँगन खेलेंगी" सबने मुझे घूर कर देखा और ताली पीट-पीटकर हँसने लगे, जैसे कि मैं मजाक कर रहा हूँ। मगर हकीकत तो यह थी कि मैंने आज तक कभी मजाक नहीं किया हाँ मगर मेरी ज़िन्दगी एक मजाक ज़रूर बन चुकी थी। मैंने उठते हुए कहा "अगले शुक्रवार को मेरी शादी है, कोर्ट में आ जाना, दो गवाह चाहिए होंगे। मान्यता "उसी कोर्ट में न जहां..." सौनिक और अर्चन ने उसे घूरा तो वह चुप हो गयी और मैं वहाँ से निकल गया।

शुक्रवार को मुझे यकीन था कि कोई नहीं आयेगा मेरे इस निर्णय में साथ देने और मुझे किराए के गवाह लेने पड़ेंगे मगर कहते हैं ना कि दोस्त कमीने होते हैं तीनो कमीने हाथों में थेले लिए समय पर पहुँच गए। मान्यता ने मेरे किटकेट का कवर चेंज किया, बोली "लहंगा पहना रही हूँ तेरी दुल्हन को" अर्चन ने अनलिमिटेड फोर जी का पैक दिया बोला "ले साले घूम ले दुनिया अपनी दुल्हन के साथ" सौनिक ने पीठ पर धौल जमाते हुए कहा "अपग्रेड भले ही कर लियो, बदलियो न भाभी को"। रजिस्ट्रार हम सब को और दुल्हन को मुंह खोले अजीब नजरों से देख रहा था। मगर उसे जो कहा गया वह उसने किया और हम दोनों बन गए जन्मों जन्मों के साथी वह साथी जो एक दूसरे पर भरोसा करते हैं और तन्हाई में मन भी लगाते हैं। यह क्या घर लौटकर देखा तो कैट (फोन) में कुछ फाइलें सौनिक ने भेजीं थी। मेसेज में लिखा था शादीशुदा जोड़े के लिए और नीचे विंकी स्माइली बना हुआ था।

साहब उठिए आज ऑफिस नहीं जायेंगे क्या? अलसाई आँखें खोलने की कोशिश की तो एक बूढा चेहरा नजर आया। "अरे रामू काका, उफ़ नौ बज गए" और मैं स्प्रिंग की तरह बिस्तर से उछलकर बाथरूम की ओर दौड़ पडा। नहाते हुए रात का सपना याद आया तो खुद पर हँसते हुए बुदबुदाया "केट माय ब्राइड, हाउ सिल्ली"।