किडनी / गोवर्धन यादव
शादी के तीन दिन ही बाद बहू ने घोषणा कर दी थी कि वह अपनी सास के साथ नहीं रहेगी, वह नहीं चाहती थी कि उसका अफ़सर पति अब भी अपनी माँ का पल्लु पकड़ कर पीछॆ-पीछे डोलता फ़िरे, वह यह भी नहीं चाहती थी कि उसका पति माँ की बातों में रीझ की तरह नाचता रहे, वह तो यह भी नहीं चाहती थी कि उसका पति ईंट-गारे से बने कच्चे मकान में रहे, वह तो यह चाहती थी कि उसे अपने स्टेटस के अनुरुप किसी बड़े बंगले में रहना चाहिए, एक लक्जरी गाड़ी में उसे घूमना चाहिए और नौकर चाकर की एक बड़ी फ़ौज रहनी चाहिए,
मां ने लाख समझाने की कोशिश की लेकिन बेटे की चुप्पी देखकर उसने मौन धारण कर लेना ही उचित समझा, बेटा और बहू एक आलीशन बंगले में रहने चले गए थे,
, काम की व्यस्तता के चलते न तो बेटे को फ़ुर्सद मिली कि अपनी माँ से मिल आए और न ही बहू को ही समय मिल पाया, इसी तरह दिन पर दिन कटते रहे,
एक दिन ऎसा भी आया कि बेटे की एक किडनी खराब हो गई, अपने अफ़सर पति को बचाना उसकी प्राथमिकता थी, सो एक दिन सास के घर जा पहुँची और गिड़गिड़ाते हुए कहा–"मांजी, बचा लीजिए अपने बेटे को, उसकी एक किडनी फ़ेल हो गई है, यदि समय रहते उन्हें किडनी नहीं मिल पायी, तो अनर्थ होते देर नहीं लगेगी" ,
"अरे इसमें घबराने की क्या बात है, तुम अपनी किडनी दे दो, जब तुम सुख में उसके साथ सहभागी बनी रहीं तो दुख में साथ तो तुम्हें ही देना चाहिए," सास बोली,
"मांजी, मैं जल्दी मरना नहीं चाहती, मैं अभी जवान हूँ, मुझे तो और भी जीना है, आपका क्या, ख़ूब जी चुकीं आप, अगर अपने बेटे को अपनी किडनी दे दोगी तो आसमान नहीं टूट पड़ेगा, जान तो आपके बेटे की ही बचेगी न,"
दरअसल वह अपनी मौकापरस्त बहू की नीयत परखना चाहती थी, दुनिया में भला ऎसी कौन-सी माँ होगी तो अपने बेटे-बेटियों के लिए अपनी जान तक की बाजी लगाने में पीछे हटी हों, आगे कुछ न कहते हुए उसने अपनी बहू से कहा-"चल, देर मत कर, बता कौन से अस्पताल में मेरा बेटा भर्ती है" , कहते हुए वह आगे बढ़ गई.