कितने घायल हैं, कितने बिस्मिल हैं / पंकज सुबीर
'घूम चरखड़ा साँइया दा तेरी कत्तन वाली जीवै, कत्तन वाली जीवै नलियाँ वट्टन वाली जीवै, घूम चरखड़ा साँइया दा तेरी कत्तन वाली जीवै' शाह हुसैन का कलाम आबिदा परवीन पूरी तन्मयता के साथ गा रही हैं। गा रही हैं मोबाइल के इन बिल्ट स्पीकर पर। पाँचवे माले के वन बीएचके के बेडरूम में खिड़की की एल्यूमीनियम की चौखट पर रखे हुए मोबाइल पर। एक लय है जो अपनी रिद्म से आनंदित कर रही है, वरना शब्दों को या उनके अर्थों को कोई समझ भी पा रहा है या नहीं, ये कहा नहीं जा सकता। ये रिद्म का युग है, अर्थों का नहीं। एक ऐसा वाइब्रेशन चाहिए जिसकी वेव लैंग्थ अपने साथ आलोड़ित करवा ले। वाइब्रेशन के पास शब्द नहीं होते और यदि हों भी तो उनके होने न होने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। वाइब्रेशन को केवल ध्वनि चाहिये। किसी ख़ास तरंग दैर्ध्य पर आलोड़ित होती ध्वनि तरंगें। ये शब्दों और उनके अर्थों से मुक्ति का युग है। पलंग के खिड़की के पास वाले सिरे पर अधलेटी है आपगा। दूसरे सिरे पर सो रहा है अजिंक्य। आपगा और अजिंक्य, ये नाम नहीं ध्वनियाँ हैं, जो इनके माता पिता को अच्छी लगीं और उन्होंने यही नाम रख दिये। हालाँकि जब ये नाम रखे गये थे तो बाकायदा हिन्दी का शब्दकोश खंगाल कर निकाले गये थे। हिन्दी का शब्दकोश इसलिये कि भले ही इस समय तक हर चीज़ का अंग्रेज़ीकरण हो चुका है, लेकिन, बच्चों के नाम आज भी शुद्ध हिन्दी में ही रखे जाते हैं। अंग्रेज़ी नामों को आज भी घर के पालतू कुत्ते, बिल्लियों के लिये सुरक्षित रखा गया है। तलाश के दो मानदंडों पर ये नाम खरे उतरे थे। पहला कुछ यूनिक होना और दूसरा साउंड्स गुड। हिन्दी का शब्दकोश खंगाल कर निकाले गये थे इसलिये ज़ाहिर-सी बात है कि इनके अर्थ भी रहे होंगे। लेकिन आज किसी को कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता कि इनका अर्थ क्या है। वैसे भी यहाँ तक आते-आते ये अपा और अजि हो चुके हैं।
आपगा और अजिंक्य, जो सात आठ घंटे पहले आपगा और अजिंक्य नहीं थे। वे केवल दो देह थे। समान तरंग दैर्ध्य से एक ही आवृत्ति में आलोड़ित होती दो देह। आपगा और अजिंक्य उस समय में हैं जो लिव इन से भी कुछ और आगे की स्वतंत्रता तलाश कर रहा है। पारिभाषिक रूप से दोनों लिव इन में ही हैं, किन्तु, ये समय लिव इन से आगे मल्टीपल लिव इन जैसी किसी और आगे की चीज़ की आहट सुन चुका है।
संडे होने के बाद आपगा आज कुछ जल्दी जाग गई है और छुट्टी की सुबह का आनंद बिस्तर पर ही अधलेटे होकर गाने सुनने में ले रही है। लगातार दो दिन की छुट्टी है संडे और संडे के ठीक दूसरे ही दिन क्रिसमस। दो दिन की छुट्टी का पहला दिन होने के कारण कुछ अधिक रिलेक्स है वो।
'क्या सुबह-सुबह से लगा दिया अपा। सोने दो यार आज तो संडे है।' कुनमुनाते हुए चादर को आँखों पर खींचते हुए अजिंक्य ने कहा।
'संडे से क्या होता है? सुबह का मतलब तो सुबह ही होता है। सूरज को थोड़े ही पता है कि आज संडे है।' आपगा ने कुछ लापरवाही के साथ उत्तर दिया।
'तुम्हें तो पता है न, क्यों संडे की सुबह ख़राब कर रही हो मेरी?' खीज के स्वर में कहा अजिंक्य ने। खीज, जो रात की किसी घटना विशेष के कारण उपज रही है। अजिंक्य द्वारा कही गई बात पर कोई ध्यान नहीं देते हुए आपगा उसी प्रकार लापरवाही से गाना सुनती रही।
'तुम्हें गाना सुनना है तो अपने इयरफोन पर सुन लो न, पूरी दुनिया को सुनाने की क्या ज़रूरत है।' अजिंक्य ने झल्लाते हुए कहा।
'इयरफोन पर वह मज़ा नहीं आता जो सीधे स्पीकर से सुनने में आता है और फिर मेरा सर दर्द होता है ज़्यादा देर तक इयरफोन लगाने से।' आपगा अभी भी उसी प्रकार बेपरवाह बनी हुई है।
कुछ देर तक अजिंक्य वैसा ही रहा फिर उठा और अपनी चादर लेकर हॉल की तरफ़ बढ़ गया।
आपगा और अजिंक्य, ये दोनों दो अलग-अलग दुनियाओं से आकर यहाँ बसे हुए हैं। बसे हुए हैं पिछले छः महीनों से। बाहर से देखने पर एकदम पति-पत्नी का आभास देते हुए, किन्तु, अंदर दो अलग-अलग रास्तों पर चलते हुए। रास्ते जो रात भर के लिये बेडरूम में पड़े डबल बेड पर आकर मिलते हैं और सुबह फिर से अलग हो जाते हैं। एक समझौता दोनों ने इस लिव इन को शुरू करते समय किया था। उस समझौते का सबसे मुख्य बिन्दु था कि दोनों में से कोई भी एक दूसरे से प्रेम, लव, मोहब्बत, प्यार, इश्क़ जैसी किसी भी चीज़ के हो जाने जैसी फ़िज़ूल की बात में नहीं पड़ेगा। यदि किसी प्रकार का अफेक्शन किसी एक को महसूस भी होता है तो उसे समय रहते दूर कर लेगा। इस लिव इन में केवल और केवल शरीर है। इसके अलावा कोई भी दूसरी चीज़ नहीं है। एक दूसरे की ज़िंदगी में किसी भी प्रकार का कोई हस्तक्षेप नहीं।
'चाय।' आपगा ने डोरेमान के एम्बोज़्ड चित्र वाला बड़ा-सा मग हॉल की सेंटर टेबल पर रखते हुए कुछ तेज़ आवाज़ में कहा। उत्तर में चादर के अंदर से अजिंक्य का केवल हूँ आया।
'उठ जाओ अजि, आज बहुत काम हैं करने को। लेट हो गये तो ये दिन भी यूँ ही निकल जायेगा।' आपगा ने स्वर को कुछ नरम रखते हुए चादर के एक कोने को हल्का-सा खींचते हुए कहा। चादर का कोना खींचने के कारण अजिंक्य का चेहरा चादर से बाहर आ गया। चेहरा जिसमें ब्यूटीशियन द्वारा करीने से सजी हुई भोंहें, ब्लीच और फेशियल की हुई क्लीन शेव त्वचा, संतुलित आकार के हल्के गुलाबी होंठ और वह सब कुछ है जो आकर्षक कहा जा सकता है।
'सुबह की इतनी चिंता थी जो रात को जल्दी सो जाने दिया होता।' अजिंक्य ने हलके से मुस्कुराते हुए कहा। कहते हुए उसकी आँखें भी मुस्कुरा रही थीं और मुस्कुराने के क्रम में उसके चमकदार सफेद दाँत भी चमक उठे।
'हाऊ चीप अजि..., तुम्हें मालूम है मुझे इस प्रकार की चीप बातें बिल्कुल पसंद नहीं हैं।' आपगा ने चेहरे पर नागवारी के भाव लाते हुए कहा। आपगा के कहते ही अजिंक्य के चेहरे की मुस्कुराहट बुझ गई। आपगा के लिये अजिंक्य केवल एक देह है। एक पुरुष देह, उसके अलावा कुछ और होने देने का मौका वह अजिंक्य को नहीं देना चाहती। हालाँकि पिछले छः महीनों के साथ के कारण अजिंक्य कुछ-कुछ खुल गया है, लेकिन, आपगा इस 'कुछ-कुछ' को बहुत कुछ नहीं होने देती। एक विचित्र प्रकार का सम्बंध पाल कर बैठे हैं दोनों। एक विशुद्ध डिप्लोमेटिक सम्बंध। दो शरीर हैं जिनको एक दूसरे की आवश्यकता है। आवश्यकता के अलावा और कुछ नहीं। दोनों एक दूसरे के रिक्त स्थानों की पूर्ती करते हैं बस।
'कल भी छुट्टी है...आज तो थोड़ा आराम कर लें।' अजिंक्य ने बात का सिरा फिर से पकड़ लिया।
'नो अजि आज नहीं, आराम कल कर लेंगे, बिना किसी टेंशन के और फिर कल क्रिसमस भी सेलीब्रेट कर लेंगे शाम को।' आपगा ने उत्तर दिया।
अजिंक्य उठ कर सोफे पर बैठ गया और अपने फेवरेट डोरेमान के प्रिंट वाला कप उठा कर हाथ में ले लिया। अजिंक्य का डोरेमान के प्रिंट वाले कप में चाय पीना भी आपगा को चीप लगता है। फूलिश, इमोशनल, नास्टेल्जिक-चीप। मगर वह कुछ भी नहीं बोलती है इस बारे में। वही समझौते वाली बात। कोई किसी की पर्सनल लाइफ में तब तक दखल नहीं देगा जब तक वह बात उसे परेशान न करने लगे। दोनों चुपचाप चाय पी रहे हैं।
'अपा, अगर तुमको सचमुच किसी से प्रेम हो गया तो?' अजिंक्य ने कप पर एम्बोज़ किये हुए डोरेमान पर उँगलियाँ फिराते हुए कहा। संडे की सुबह का एक छोटा-सा वक़्फ़ा दोनों के बीच होता है, जब वे इधर-उधर की बातें कर लेते हैं। इधर-उधर की, पर्सनल कुछ नहीं। अजिंक्य ज़रूर गाहे-बगाहे इस प्रकार की बात भी छेड़ देता है जैसी आज छेड़ी है।
'प्रेम...? वह उन्नीसवीं सदी का टिपिकल सेंटी ड्रामा और मैं? अजि तुम्हारे पास बात करने के लिये कुछ और नहीं है क्या आज।' आपगा ने बात को मज़ाक में टालते हुए कहा।
'टालो मत अपा, बात का सही जवाब दो। ये कोई पर्सनल क्वेश्चन नहीं है। बस एक क्यूरेसिटी है।' अजिंक्य ने कहा।
'टाल नहीं रही हूँ, जो चीज़ एक्ज़िस्ट ही नहीं करती हो उसके बारे में क्या उत्तर दूँ।' आपगा ने उत्तर दिया।
'क्या चीज़ एक्ज़िस्ट नहीं करती?' अजिंक्य डोरेमान को अँगूठे और तर्जनी से पकड़ने की कोशिश करते हुए बोला।
'यही जिसके बारे में तुम पूछ रहे हो, प्रेम।' आपगा का स्वर लापरवाही से भरा है। 'केवल और केवल शरीर होता है उसके अलावा कुछ और नहीं है। यदि शरीर को हटा दो तो क्या बचा रहेगा प्रेम।'
'हम्मममम।' अजिंक्य ने गहरी निगाहों से आपगा को देखा और अपनी चाय के धीरे-धीरे सिप भरने लगा। अजिंक्य उम्र में कुछ छोटा है आपगा से। बहुत छोटा नहीं, कुछ छोटा। आपगा का ये दूसरा लिव इन पार्टनर है, जबकि, अजिंक्य का पहला अनुभव है। इस पार्टनरशिप के लिये आपगा ने स्ट्रेट प्रस्ताव रखा था अजिंक्य के सामने। सारी शर्तों के साथ। थोड़ा-सा हेज़िटेट हुआ था वो, लेकिन प्रस्ताव ठुकराने योग्य भी नहीं था। पहले लिव इन के ख़त्म होने के बाद आपगा को जिस प्रकार का पार्टनर चाहिए था, अजिंक्य उस पर ख़रा उतरता था। उस मापदंड की तीन शर्तें थीं गुड लुकिंग, गुड लुकिंग और गुड लुकिंग। आपगा का मानना है कि जब आप अपनी ड्रेस, अपने जूते, अपनी एसेसरीज़, सारी इस्तेमाल की वस्तुएँ गुड लुकिंग ख़रीदते हैं तो फिर ये क्यों नहीं। ये भी तो उपयोग की ही वस्तु है। अजिंक्य का जिम में टोन किया हुआ शरीर, ब्यूटी पार्लर की नियमित विज़िट से निखारा गया चेहरा, उसकी हेयर स्टाइल, कपड़े पहनने का सलीक़ा, डियो, परफ़्यूम सब कुछ आपगा को भा गया था और उसने इन सबका उपयोग करने के लिये प्रस्ताव रख दिया था। अजिंक्य को बता दिया था उसने कि इस प्रस्ताव के पीछे वास्तव में क्या कारण है। ये भी कहा था कि ब्यूटी पार्लर, जिम जैसी चीजें अजिंक्य को रिलेशन में आने के बाद भी जारी रखनी होंगीं, ताकि, ये गुड लुकिंग डिश इसी प्रकार गुड लुकिंग बनी रहे। अजिंक्य के ये पूछने पर कि डिश का टेस्टी होना ज़्यादा ज़रूरी है बजाये अच्छा दिखने के, आपगा ने हँसते हुए कहा था डिश टेस्टी तो सभी होती हैं, लेकिन, टेस्टी होने के साथ गुड लुकिंग भी होनी चाहिये।
'अब तो साइंस भी प्रूव कर चुका है कि प्रेम-व्रेम जैसा कुछ नहीं होता, जो कुछ होता है वह शरीर होता है। शरीर में निकल रहे हार्मोन होते हैं। तुम्हारे अंदर टेस्टोस्टेरान तो मेरे अंदर एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरान निकलते है। ये टेस्टोस्टेरान और एस्ट्रोजन ही प्रेम होता है।' आपगा ने अजिंक्य द्वारा बात को आगे बढ़ाये नहीं जाते देख कर ख़ुद ही बात को आगे बढ़ाया।
'हम्मम तुम्हें तो बहुत जानकारी है।' अजिंक्य ने कुछ प्रशंसात्मक स्वर में कहा।
'अपने आप को हर विषय पर अपडेट रखना चाहिये, ये जैक ऑफ ऑल का ही युग है, मास्टर ऑफ वन का नहीं। पता है ये सारा खेल इन्हीं हार्मोन्स का है। ये ही साले हमें नचाते रहते हैं बास्टर्ड्स और हम समझते हैं कि हम प्रेम में हैं। असल में तो हम इनके इशारे पर नाच रहे होते हैं। ये हमारे दिमाग़ को अपने क़ाबू में ले लेते हैं और वह सब कुछ करवाते हैं, बार बार, कई बार, लगातार।' आपगा ने अपनी चाय ख़त्म करके कप को सामने टेबल पर रखते हुए कहा। अजिंक्य ने कुछ उत्तर नहीं दिया बस मुस्कुराते हुए उसे देखता रहा।
'हम बार-बार कहते हैं कि बड़ी अजीब प्यास है जो बुझने का नाम ही नहीं ले रही, बुझेगी तो तब जब ये हार्मोन्स बुझने देंगे। एक और सीक्रेट बताऊँ तुम्हें? ऐसा नहीं है कि पुरुष के शरीर में एस्ट्रोजन और स्त्री के शरीर में टेस्टोस्टेरान नहीं निकलता। निकलता है पर कम मात्रा में निकलता है। दूसरा उस पर हावी हो जाता है। मगर हम ये तो कह ही सकते हैं कि हर पुरुष के अंदर एक दबी हुई स्त्री और हर स्त्री के अंदर एक दबा हुआ पुरुष होता है। बारह साल की उमर तक तो चाहे लड़का हो या लड़की, उसके शरीर में दोनों ही हार्मोन निकलते हैं, बारह की उमर के बाद एक हार्मोन दूसरे को सुपरसीड कर लेता है और उसके बाद ही लड़के या लड़की का शरीर वह हार्मोन तैयार कर देता है।' आपगा सोफे पर दोनों पैर मोड़ कर बैठ गई है। लम्बी बातचीत करने के मूड में है। अजिंक्य ने भी कुशन को एक के ऊपर एक रख कर हाथ टिकाने का टिकोना बना कर उस पर टिक गया है।
'और जो बारह की उम्र के बाद भी मुख्य हार्मोन दूसरे पर सुपरसीड न कर पाये तो?' मुस्कुराते हुए पूछा अजिंक्य ने।
'तो...? तो या तो स्त्री के शरीर में पुरुष या पुरुष के शरीर में स्त्री का विकास हो जाता है या कभी-कभी दोनों का। डिस्बेलेंस ऑफ हार्मोन्स से ही बनते हैं होमोसेक्सुअल्स या बायसेक्सुअल्स और बेलेंस ऑफ हार्मोन्स से बनते हैं हेटरोसेक्सुअल्स, नार्मल पीपल्स। ये सब हार्मोन्स का ही खेल है टेस्टोस्टेरान और एस्ट्रोजन का खेल।' आपगा ने मुस्कुराते हुए ही उत्तर दिया।
'जय हो, गुरूजी की जय हो।' अजिंक्य ने नाटकीय अंदाज़ में हाथ जोड़ कर सिर झुकाते हुए कहा। उसके इस अंदाज़ पर आपगा भी खिलखिला उठी।
'मतलब प्रेम जैसा कुछ नहीं है, जो कुछ है वह एस्ट्रोजन और टेस्टोस्टेरान ही है?' अजिंक्य ने बात को घुमा कर वापस मूल पर ही पहुँचाने के लिये कहा।
'स्त्री और पुरुष के बीच तो प्रेम का मतलब यही है। बाक़ी मामलों में हम प्रेम का मतलब एक लगाव से ले सकते हैं। लगाव जो हमें किसी से भी हो सकता है, फिर चाहे वह कोई व्यक्ति हो या फिर हमारे पाले हुए पालतू जानवर ही क्यों न हों। तुम उसे ज़रूर प्रेम कह सकते हो। वह प्रेम न होकर एक प्रकार का मोह है। ये मोह तो किसी के भी प्रति हो सकता है, लोगों को अपने पुश्तैनी घरों से भी होता है, जबकि वह तो बेजान चीज़ें हैं। अपने शहर से होता है। किसी से भी हो सकता है। ठीक वही मामला स्त्री और पुरुष के बीच भी होगा।' आपगा ने उत्तर दिया।
छः माह हो गये हैं दोनों के बीच सम्बंधों को चलते हुए। अजिंक्य को ये रिलेशन कम्फर्टेबल भी महसूस होता है। किसी प्रकार के इमोशनल अटैचमेंट की कहीं कोई गुँजाइश ही नहीं है।
'दरअसल तो ये हार्मोन्स ही तय करते हैं कि हम किस तरफ़ आकर्षित होंगे। प्रेम और दिल को यदि वैज्ञानिक रूप से परिभाषित किया जाये तो बात ही अलग हो जायेगी। मेरा दिल तुम्हारी तरफ़ खिंच रहा है जैसा न कह कर हमें कहना होगा कि मेरा हार्मोन तुम्हारे हार्मोन की तरफ़ खिंच रहा है और जिसे अब तक प्रेम कहा जाता रहा है वह एक विशुद्ध रासायनिक प्रक्रिया कहलायेगी। रसायनों के उद्दीपन से होने वाली प्रक्रिया। जिसे तुम दिल कहते हो विज्ञान उसे हार्मोन कहता है। दिल तो एक पम्प है जो खून साफ़ करने के लिये शरीर में लगा है उसका इस प्रक्रिया से क्या लेना देना।' आपगा की आवाज़ अब गम्भीर हो गई है।
'मतलब ये कि स्त्री और पुरुष के बीच इमोशनल अटैचमेंट का मतलब प्रेम होना नहीं है?' अजिंक्य ने भी उतनी ही गम्भीरता के साथ प्रश्न किया।
'ना... बिल्कुल नहीं है। मैंने कहा न कि शारीरिक आकर्षण तो हार्मोन ही तय करते हैं। यदि तुम्हारे शरीर में एस्ट्रोजन का लेवल टेस्टोस्टेरान से अधिक होता तो तुम मेरी तरफ़ थोड़े ही आकर्षित होते, फिर तो तुम होमासेक्सुअल होते। तुम्हारा आकर्षण पुरुष शरीरों के प्रति होता। तुम्हारा हार्मोन तुम्हें महिलाओं की तरफ़ आकर्षित ही नहीं होने देता। क्योंकि हार्मोन अपने से अपोज़िट नेचर वाले हार्मोन की तरफ़ ही आकर्षित होता है। पुरुष के शरीर में यदि फीमेल हार्मोन सुपरसीड कर रहा है तो वह बट नेचुरल मेल बॉडी की ही तरफ़ आकर्षित रहेगा। आपका ओरिएण्टेशन आपका शरीर नहीं तय करता आपके हार्मोन करते हैं। आप भले ही पुरुष का शरीर लेकर पैदा हो गये हों उससे कुछ नहीं होने वाला, आप पुरुष हो या नहीं ये तो रसायन तय करेंगे। यही तो है असली केमिकल लोचा।' मुस्कुराते हुए कहा आपगा ने। अजिंक्य ने तुरंत कुछ नहीं कहा, वह बस अपने कप पर बने डोरेमान से खेलता रहा। डोरेमान उसके लिये एक नास्टेल्जिक पेशन है।
'मगर ऐसा है क्यों? क्यों पुरुष के अंदर महिला और महिला के अंदर पुरुष के अंश को रखा गया है?' अजिंक्य ने आपगा की आँखों में आँखें डालते हुए पूछा।
'साइंस कहता है कि इंसान भी पहले केंचुओं, घोंघों और कुछ मेंढकों की ही तरह उभयलिंगी था। एक ही शरीर में स्त्री भी और पुरुष भी। अर्द्धनारीश्वर की तरह। विकास के क्रम में धीरे-धीरे दो अलग-अलग जेंडर स्त्री और पुरुष हो गये, लेकिन दोनों जेंडरों में एक दूसरे के ट्रेसेस अभी भी बचे रह गये हैं, ये ट्रेसेस बढ़ जाते हैं तो कॉम्प्लेक्स स्पीशीज़ पैदा हो जाती हैं होमोसेक्सुअल्स और बायसेक्सुअल्स की तरह। एक्चुअल में साइंस की कुछ थ्योरीज़ तो ये भी कहती हैं कि कम्प्लीट जेंडर तो है ही नहीं वास्तव में तो स्त्री और पुरुष दोनों ही बायसेक्सुअल हैं, परसेंटेज कम या ज़्यादा हो सकता है।' आपगा ने उठते हुए बात को पूरा किया।
'नाट एग्री विद दिस थ्योरी, आय नेवर फील एनी एट्रेक्शन टुवर्डस एनी मेल...नेवर मीन्स नेवर।' अजिंक्य ने प्रतिरोध के स्वर में कहा।
'नाट एग्री होने से थ्योरीज थोड़े ही डिस्कार्ड होंगी, कहा जाता है कि पृथ्वी पर कम्प्लीट मेल जेंडर केवल घोड़ा ही है।' आपगा ने अजिंक्य बात को काटते हुए कहा।
'कैसे...?' अजिंक्य ने पूछा।
'बिकॉज़ देयर आर नो रेसेड्यू ऑफ ब्रेस्ट इन मेल हार्स, जबकि बाक़ी अधिकांश नर प्रजातियों में वह अवशेष किसी न किसी रूप में हैं और सबसे स्पष्ट तो मानव की नर प्रजाती में हैं। क्यों हैं, ये भी साइंस पता नहीं कर पाया है अभी तक। क्या ज़रूरत है पुरुषों को उनकी, पर हैं तो हैं। द साइन ऑफ ए लिटिल बिट वुमेन इन एव्हरी मेन। यू आर नाट ए कम्प्लीट मेन माय ब्वाय। हा-हा हा।' आपगा ने असहज लगने वाली बात को नाटकीय अंदाज़ देकर सहज करने का प्रयास किया।
'ठीक है इव्होल्यूशन में कुछ लोचा हुआ होगा, लेकिन, मैं उसे नहीं मानता कि हर पुरुष के अंदर स्त्री होती है।' अजिंक्य ने आपगा के द्वारा कही बात का विरोध किया।
'हो सकता है तुम सच कह रहे हो, मगर मेरे पास तो उदाहरण है कि तुम भी वैसे ही हो।' आपगा की मुस्कुराहट रहस्यमय हो गई थी।
'व्हाट डू यू मीन।' अजिंक्य उछल के खड़ा हो गया।
'आय मीन यू आल्सो लव्स डोरेमान एंड डोरेमान इज ए मेल।' कहती हुई आपगा हँसती हुई अंदर चली गई। अजिंक्य के तनाव भरे चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गई।
आपगा के अंदर जाते ही डोरबेल बज उठी। अजिंक्य ने दरवाज़ा खोला तो मीनू मुस्कुराती हुई अंदर आ गई। मीनू इनका सारा काम करती है। सुबह का नाश्ता बनाती है, दोपहर के लंचबाक्स तैयार करती है, जिनको लेकर ये दोनों निकल जाते हैं। पीछे से मीनू घर की साफ़ सफाई, दोनों के कपड़े धोकर और रात का खाना बना कर रखने का काम करके फ़्लैट को लॉक करके चली जाती है। फ़्लैट की तीन चाबियाँ हैं एक मीनू के पास रहती है और एक-एक इन दोनों के पास। रात को आकर ये खाना माइक्रोवेव में गरम करते हैं और खा लेते हैं। घर में काम के नाम पर ये दोनों चाय बनाने का काम करते हैं उसके अलावा सारा काम मीनू का है। बदले में मीनू को दोनों की तरफ़ से अच्छी खासी तनख़्वाह मिलती है। अच्छी ख़ासी, मतलब सचमुच अच्छी ख़ासी। संडे दोपहर का खाना ज़रूर ये दोनों मिलकर बनाते हैं। संडे को मीनू का बड़े काम करने का दिन होता है। बिस्तर की चादरें, गिलाफ़ धोना, प्रेस करना, हॉल की अच्छी तरह से सफ़ाई करना और पूरे घर को हफ़्ते भर के लिये व्यवस्थित करना। खाना बनाने के बाद दोनों अपने-अपने कवर्ड अपने सामान, अपने कपड़े व्यवस्थित करते हैं। ये वही काम है जिसको लेकर दोनों में बहस हो रही थी। संडे को दिन का खाना मीनू भी यहीं इनके साथ में खाती है। संडे की रात को दोनों या तो बाहर चले जाते हैं या घर पर ही पिज़्ज़ा ऑर्डर कर देते हैं। मीनू का पति संजय किसी बिजली ठेकेदार के पास मेन इलेक्ट्रीशियन का काम करता है। दिन भर कॉल अटैंड करता है, घरों के। अभी दोनों के कोई बच्चा नहीं है। पिछले साल ही शादी हुई है दोनों की।
अजिंक्य जब नहा धोकर किचन में पहुँचा तो आपगा बेजीटेबल पुलाव के लिये गोभी को गरम पानी में धो रही थी। अजिंक्य ने मटर उठाईं और छीलने बैठ गया। किचन कम डायनिंग रूम में एक तरफ़ छोटी-सी प्लास्टिक की टेबल और दो कुर्सियाँ रखी हैं। अजिंक्य वहीं बैठ कर मटर छीलने लगा।
'अपा कल रात मुझे ऐसा लगा कि तुम, तुम नहीं थीं।' अजिंक्य ने मटर छीलते हुए बिना आपगा की तरफ़ देखे हुए कहा।
'मतलब...?' आपगा के गोभी धोते हाथ रुक गये।
'मतलब मुझे समझाना पड़ेगा क्या? तुम, तुम नहीं थीं, ऐसा लग रहा था कि तुम सुख के आगे का सुख तलाश रही हो। प्लेज़र बियांड प्लेज़र। तुम मेरे शरीर से आगे कुछ तलाश रही थीं।' अजिंक्य ने बिना नज़र मिलाये ही उत्तर दिया।
'यू फील सो...?' आपगा के हाथ अभी भी रुके हुए हैं।
'हूँ।' अजिंक्य की नज़रें मटर पर ही हैं।
'हूँ।' आपगा ने भी समान उत्तर दिया और गोभी धोने लगी।
'माय क्वेश्चन इज स्टिल अन आन्सर्ड।' अजिंक्य मटर के दानों से खेल रहा है।
'होता है अजि, मोनोटोनी के आगे जाने का मन करता ही है।' आपगा ने गोभी के टुकड़ों को एक बड़ी प्लेट में रखते हुए जवाब दिया।
'इट मीन्स अब मैं भी।' बात को कहते-कहते अधूरा छोड़ दिया अजिंक्य ने।
'नो नो नो, डोंट टेक इट लाइक दिस। मैं तो ये कह रही थी कि बस कुछ अधूरापन-सा छूट जाता है। ऐसा लगता है कि बस एक मोनोटोनस रिपिटेशन हो रहा है। वही तुम वही मैं।' आपगा ने उत्तर दिया।
'वो तो होगा ही, क्योंकि शरीर थका देते हैं। शरीर उबा देते हैं। हम बस एक दूसरे के शरीरों का खेल-खेल रहे हैं, वी आर नाट इमोशनली इन्वाल्व्ड, वी आर जस्ट ए फिज़िकल पेयर।' अजिंक्य ने मटर के दानों को बाउल में रखते हुए कहा। आपगा ने कोई उत्तर नहीं दिया वह चुपचाप गोभी के छोटे-छोटे टुकड़े करती रही। अजिंक्य ने अपने मोबाइल को उठाया और उसमें कुछ करने लगा। कुछ देर बात जब उसने मोबाइल रखा तो उसमें संतूर की आवाज़ आने लगी और कुछ ही देर में रज़िया सुल्तान का गाना बज रहा था 'ऐ दिले नादाँ आरज़ू क्या है, जुस्तजू क्या है...?'
'डोंट बी मेलोड्रामेटिक अजि।' आपगा ने गाना सुना तो बोली।
'व्हाट मेलोड्रामेटिक...?' अजिंक्य ने प्रतिरोध किया।
'यही इस बहस के बीच में जान बूझ कर ये ही गाना बजाना। डोंट यूज़ दिस काइंड ऑफ नाइनटीन्थ सेंचुरी टूल्स फार मी अजि।' आपगा ने उत्तर दिया। उसके उत्तर के बाद दोनों कुछ देर चुप रहे, बैकग्राउंड में गीत गूँज रहा था। अजिंक्य ने आपगा की बात के बाद भी उस गाने को बंद नहीं किया।
'पता है राहुल क्या कहता है?' अजिंक्य ने चुप्पी को तोड़ा।
'क्या...?' आपगा ने पूछा।
'वो कहता है कि पुरुष का प्लेज़र पाइंट तो मोर ऑर लेस एक ही है लेकिन स्त्री के लिये तो पूरा शरीर प्लेज़र पाइंट है। ईच एंड एव्हरी पाइंट ऑफ हर बॉडी इज ए प्लेज़र पाइंट। राहुल का कहना है कि पूरी प्रोसेस को स्त्री पूरी तरह रिलेक्स होकर इन्ज्वाय करती है, जबकि पुरुष उस प्रोसेस के शुरू होने से लेकर ख़त्म होने तक एक सेकेंड के लिये भी रिलेक्स नहीं रहता।' अजिंक्य ने टुकड़ों-टुकड़ों में अपनी बात को पूरा किया।
'व्हाट ही मीन बाय रिलेक्स...? पुरुष पर कौनसा प्रेशर होता है उस समय जो वह रिलेक्स नहीं हो पाता?' आपगा ने असहमती के स्वर में कहा।
'परफार्मेंस प्रेशर।' कहने के बाद अजिंक्य कुछ देर के लिये चुप हो गया फिर बोला 'जो स्त्री पर नहीं होता है। पूरी प्रोसेस के दौरान पुरुष परफार्मेंस प्रेशर के टेंशन को झेलता है। दिज़ इज़ नाट ए पॉवर पाइंट प्रज़ेन्टेशन कि की-बोर्ड पर एण्टर मारो और चालू हो जाये। देन सेकेंड थिंग दैट अवर बॉडी इज़ रेडी फार दैट आर नाट, अनलाइक यू हमारी बॉडी को रेडी होना पड़ता है, इट इज़ नाट रेडी टू ईट टू मिनट नूडल्स। लाट ऑफ थिंग्स, लाट ऑफ रीसन्स, आय केन नाट एक्सप्लेन यू आल ऑफ देम, लेकिन, ये सच है कि पुरुष उस दौरान रिलेक्स नहीं रहता है।' अजिंक्य ने मटर के कुछ दाने उठा कर मुँह में डाल लिये और उनको चबाने लगा।
'बैड मेनर्स अजि, काम के दौरान खाना नहीं चाहिये।' आपगा ने अजिंक्य की बात का सीधा उत्तर नहीं देते हुए बात को दूसरी तरह से ख़त्म करने की कोशिश की। आपगा को लगा कि अजिंक्य की बात उस पाइंट पर आ गई है जहाँ से आगे कुछ कहने पर बात सहज नहीं रह पायेगी।
'डोंट ट्राय टू टर्न द टॉपिक अपा।' अजिंक्य ने आपगा की आँखों में आँखें डालते हुए कहा।
'हूँ।' आपगा ने गोभी के टुकड़ों को कुकर में डालते हुए कहा 'तुम नेशनल ज्योग्रॉफिक देखते हो अजि?'
'बहुत नहीं कभी-कभी देखता हूँ, मुझे पसंद नहीं आता वह सब। अभी तो हम इन्सानों के बारे में ही पूरी तरह से नहीं जान पाये हैं तो जानवरों के बारे में जानकर क्या करेंगे।' अजिंक्य ने लापरवाही से उत्तर दिया।
'उसमें एक बार बताया था कि केवल इनसान, डॉल्फिन और बानोबो बंदर ही इस काम को प्लेज़र के लिये करते हैं बाक़ी केवल जनरेशन बढ़ाने के लिये ही करते हैं। इस लिस्ट में शायद पेंगुइन भी आते हैं। तो जब इन्सान को इस सब में प्लेज़र दिया गया है तो वह क्यों प्लेज़र न तलाशे। अब पुरुष क्यों आनंद नहीं ले पाता, उसकी क्या परेशानियाँ हैं, प्रिपरेशन है, प्रेशर है, क्या है, इसको लेकर मैं कोई बहस नहीं करना चाहती। मगर हाँ ये तो सच है कि फीमेल बॉडी को इस प्रकार ही बनाया गया है कि वह उस दौरान हर पाइंट पर प्लेज़र को महसूस करती है, टच एंड ग्लो। बाक़ी तुम्हारी तुम जानो।' आपगा ने उत्तर दिया। अजिंक्य ने कोई उत्तर नहीं दिया वह टेबल पर बैठा मटर के छिलकों से खेलता रहा।
'अजि, जीवन समय के उस टुकड़े का नाम है जिसे हम जी रहे हैं। उसके अलावा और कुछ भी नहीं है। न आगे कुछ है और न पीछे। ये शरीर भी समय के साथ-साथ बीतता जाता है। इसके बीत जाने से पहले इसमें से अपने हिस्से का सुख, अपने हिस्से का प्लेज़र निकाल लो।' आपगा ने आवाज़ को गहरा करते हुए कहा।
'गुड फिलासफी इन लिसनिंग, लेकिन प्रेक्टिकल में देखें तो जीवन और भी बहुत कुछ है।' अजिंक्य ने कहा।
'उससे मैं कब मना कर रही हूँ। लेकिन हरदम खुश रहना...उसकी कोशिश तो की ही जा सकती है। पता है कभी-कभी आइ फील जेलस विथ मीनू।' आपगा ने बहुत शांत स्वर में कहा।
'क्यों...?' अजिंक्य ने पूछा।
'उसकी ख़ुशी को देखकर। मैंने कई बार उससे बात की है, हर बार उसका उत्तर एक ही होता है कि वह अपने पति से बहुत संतुष्ट है। उसको कहीं एकरसता या मोनोटोनी जैसा नहीं लगता। मैंने ख़ूब कुरेद-कुरेद कर भी पूछा है लेकिन उसका जवाब नहीं बदला कभी भी। ये कैसे हो सकता है भला।' आपगा ने उत्तर दिया।
'हो क्यों नहीं सकता जब हम फिजिकल लेवल से ऊपर उठ कर इमोशनल लेवल पर जुड़ते हैं तो यही होता है। फिर मोनोटोनी नहीं होती फिर प्रेम होता है। पता है लैला बहुत सुंदर नहीं थी बल्कि लोग तो ये भी कहते हैं कि वह बदसूरत थी उसके बाद भी मजनू जैसा सुंदर नौजवान उससे प्रेम कर बैठा था और वह भी ऐसे कि पत्थरों से पिटता रहा, सज़ा पाता रहा मगर प्रेम करता रहा। यदि प्रेम कुछ नहीं होता और केवल शरीर होता तो क्या हो सकता था ये? नाट पासिबल।' अजिंक्य मटर के छिलकों को डस्टबिन में डालते हुए कहा। कुकर में वेजीटेबल पुलाव चढ़ा दिया गया है।
'डोंट गिव मी रिफरेंस फ्राम स्टोरीज़, फैक्ट्स पर बात करो।' आपगा ने विरोध किया।
'दैट इज़ ए रियल स्टोरी, प्रेम की सबसे पापुलर स्टोरी, विच प्रूव्स द एक्ज़िस्टेंस और लव।' अजिंक्य ने फिर कहा।
'नाट अगेन अजि, इस प्रेम वाले विषय पर हम सुबह ही काफ़ी बहस कर चुके हैं। ये प्रेम नहीं है कुछ और है। कुछ और जो लेबर क्लास और लोवर मिडिल क्लास के मर्दों के पास होता है। तुम्हारे इन जिम, ब्यूटी पॉर्लर, डीओ, कोलोन, परफ़्यूम, आपफ़्टर शेव से परे, केवल पसीने की देहगंध से महकता हुआ। समथिंग डिफरेंट, जो तुम बिजनेस क्लास वालों में नहीं होता है।' आपगा ने आखिरी वाक्य न चाहते हुए भी बोल दिया। अजिंक्य के साथ उसके जिस प्रकार के खुले रिलेशन हैं उसमें इस प्रकार के वाक्य सामने वाला पचा लेता है।
'हूँ। तुम्हारा मतलब है कि मैं।' अजिंक्य ने बात को अधूरा छोड़ा।
'नहीं वह मतलब नहीं है, लेकिन कुछ तो ऐसा होता है जिसके कारण मीनू जैसी महिलाएँ खुश रहती हैं। कहीं कोई फ्रस्टेशन नहीं, कहीं कोई ऊब नहीं।' आपगा अब हाथ में एक छोटा-सा वायपर लेकर किचन का प्लेटफार्म साफ़ कर रही है।
'नथिंग स्पेशल अपा, बस प्रेम या तुम्हारे शब्दों में कहें तो मोह होता है एक दूसरे के प्रति। ये मोह ही एक प्रकार की एक्स्ट्रा बॉन्डिंग करता है, बाक़ी का काम तो शरीर कर ही देता है। तुम्हारे नकारने से प्रेम के एक्ज़िस्टेंट पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला। वह है और रहेगा। शरीर अपना काम करता है, प्रेम अपना काम करता है। तुम दोनों काम केवल शरीर से लेना चाहती हो, इसलिये तुमको परेशानी होती है।' अजिंक्य ने समझाने के अंदाज़ में कहा।
'नो अजि, मैं नहीं मानती इस प्रेम-व्रेम को। कुछ और है जो मीनू को ख़ुश रखता है।' कुछ सोचते हुए कहा आपगा ने।
'देन।' कुछ कहते-कहते रुक गया अजिंक्य, फिर सोचते हुए बोला 'देन गो एंड ट्राय हर हसबैंड।'
आपगा का हाथ रुक गया 'सचमुच कह रहे हो या...'
'सचमुच कह रहा हूँ अपा, मन से कह रहा हूँ, अगर तुमको ऐसा लगता है कि उसमें कुछ ऐसा ख़ास है जो मुझमें नहीं है तो जस्ट ट्राय हिम। या तो तुम ग़लत साबित हो जाओगी या मैं और सबसे बड़ी बात ये है कि तुम्हारा एक डाउट भी क्लियर हो जायेगा। हो सकता है उसके बाद हमारी रातों में स्मूथनेस आ जाये।' अजिंक्य ने कुछ मुलायम स्वर में कहा।
'बट कैसे अजि, मीनू थोड़े ही मानेगी उसके लिये।' आपगा ने उलझन भरे स्वर में कहा।
'उसे बतायेगा ही कौन, वह तुम मुझ पर छोड़ दो। पहले ये बताओ आर यू रेडी फार देट?' अजिंक्य अपने स्वर को मुलायम रखे हुए है ताकि आपगा को ये न लगे कि वह कहीं अंदर से इन सबको लेकर नाराज़ है।
'हूँ... आइ एम रेडी।' आपगा ने कुछ सोचते हुए कहा।
'तो ठीक है जो होना है आज ही हो तो बेहतर है। क्यों फ़िज़ूल में बात को बढ़ाया जाये।' कहता हुआ अजिंक्य उठ कर खड़ा हो गया।
'कहाँ जा रहे हो?' आपगा ने पूछा।
'प्लानिंग तो करनी पड़ेगी न? डोंट वरी आइ विल मैनेज एव्हरी थिंग। तुम रिलैक्स रहो मैं कुछ प्लान करता हूँ शाम का।' कहता हुआ अजिंक्य बाथरूम की तरफ़ बढ़ गया। कुछ देर बाद बाथरूम से निकला तो हॉल की ओर चला गया जहाँ मीनू साफ़ सफ़ाई कर रही है।
'मीनू, संजू कितने बजे फ्री होता है शाम को?' अजिंक्य ने हॉल में घुसते हुए पूछा। संजय का निक नेम संजू है।
'कोई तय नहीं है अजि भैया, कभी सात तो कभी साढ़े सात बज जाते हैं। घर आते-आते आठ बजते हैं।' मीनू ने हाथ के-के कुशन को सोफे पर रखते हुए कहा।
'पर आज तो संडे की छुट्टी होगी न?' अजिंक्य ने पूछा।
'नहीं भैया ठेकेदार का काम चल रहा हो तो काहे की छुट्टी, जाना ही पड़ता है। लेकिन आप क्यों पूछ रहे हो, क्या बात हो गई?' मीनू ने उत्तर दिया।
'कुछ नहीं वह बाथरूम का गीज़र आज काम नहीं कर रहा है। सुबह-सुबह ही तुम्हारी दीदी को परेशानी हो जाएगी। अगर संजू घर जाते समय इधर से गीज़र देखते हुए चला जाये तो अच्छा रहेगा। हो सकता है कोई मामूली-सी ही खराबी हो। अगर बड़ी होगी तो भी करना तो उसीको है।' अजिंक्य ने भूमिका बाँधी।
'आने में क्या परेशानी है भैया, इधर से ही तो जाना होता है घर की तरफ। मैं अभी मोबाइल लगा कर बोल देती हूँ।' कहते हुए मीनू अंदर के कमरे में चली गई जहाँ उसका पर्स और मोबाइल रखा है। अजिंक्य सोफे पर बैठ गया और छत की तरफ़ देखते हुए कुछ सोचने लगा। अंदर से मीनू के मोबाइल पर बात करने की आवाज़ आ रही है।
'मैंने शाम का बोल दिया है भैया, आठ बजे का। गीज़र के अलावा बिजली का और भी कोई काम हो तो करवा लेना।' मीनू ने कमरे में आते हुए कहा।
और भी कोई काम... अजिंक्य धीरे से मुस्करा दिया। अजिंक्य को मुस्कुराते देखा तो मीनू बोल पड़ी 'हँस क्यों रहे हो अजि भैया?'
'कुछ नहीं, कुछ नहीं, बस इसलिये हँस रहा था कि शादी के बाद पत्नियों का ऑर्डर सबसे बड़ा ऑर्डर होता है, कोई भी पति उसे टाल नहीं सकता।' अजिंक्य ने बात को तुरंत संभाल लिया।
'अभी शादी नहीं हुई है इसलिये ऐसा कह रहे हो, शादी के बाद देखूँगी कि अपा दीदी के ऑर्डर आप भी ऐसे ही मानते हो कि नहीं।' मीनू ने मज़ाक की बात का मज़ाक से उत्तर दिया। शादी...? अजिंक्य एक बार फिर से मुस्कुरा दिया।
'आठ बजे तक आ जाएगा न संजू यहाँ...?' अजिंक्य ने समय कन्फर्म करने के लिये पूछा।
'आठ या बहुत से बहुत सवा आठ।' मीनू ने उत्तर दिया।
'ठीक है।' अजिंक्य ने बात को ख़त्म करने के लिये संक्षिप्त-सा उत्तर दिया। रात आठ बजे... अजिंक्य मन ही मन रात के आठ बजे का प्लान करने लगा। आठ से कम से कम दस बजे तक का प्लान। वैसे तो एक सीधा-सा ऑप्शन है राहुल के घर का, मगर उसके अलावा और क्या ऑप्शन हो सकते हैं अजिंक्य उस पर विचार करने लगा। जब बहुत देर तक सोचने पर भी कुछ समझ नहीं पड़ा तो वह मोबाइल पर राहुल का नंबर सर्च करने लगा कॉल करने के लिये। धीरे-धीरे गुनगुना रहा था वह 'कितने घायल हैं, कितने बिस्मिल हैं इस ख़ुदाई में एक तू क्या है, एक तू क्या है।' राहुल से बात करने के बाद वह अंदर किचन की तरफ़ बढ़ गया।
रात साढ़े सात बजे वह बाहर जाने के लिये तैयार होने लगा। आपगा उस समय शॉवर ले रही थी। अजिंक्य जब तैयार होकर हॉल में आया तो आपगा भी शॉवर लेकर आ चुकी थी। दोनों एक दूसरे की तरफ़ देखकर मुस्कुराये। अजिंक्य की मुस्कुराहट सहज थी किन्तु आपगा कुछ असहज थी।
'मैं जा रहा हूँ, डोंट बी नर्वस...जस्ट डू इट...' अजिंक्य ने पास आ कर आपगा का गाल थपथपाते हुए कहा। उसकी आवाज़ मुलायम हो रही थी।
'हूँ।' आपगा ने धीमे से कहा और अजिंक्य से लिपट गई। अजिंक्य उसके बालों में उँगलियाँ फिराने लगा। 'जाऊँ...?' कुछ देर बात अजिंक्य ने कहा। अजिंक्य के कहते ही आपगा उससे अलग हो गई। अजिंक्य ने एक बार फिर आँखों ही आँखों में जाने की इजाज़त माँगी, आपगा ने गरदन हिला कर स्वीकृति दे दी। अजिंक्य ने एक बार फिर से आपगा का गाल थपथपाया और बोला 'जब मुझे वापस बुलाना हो तो कॉल कर देना, ओके... ?' आपगा ने केवल गरदन हिला दी। 'ओके आइ एम लीविंग नाउ, आठ बजने वाले हैं। ओके... ?' कह कर अजिंक्य मुस्कुराया और बाहर निकल गया।
रात क़रीब सवा आठ बजे संजू आया। डोर बेल पर जब आपगा ने दरवाज़ा खोला तो संजू ने बहुत अदब के साथ नमस्कार किया। दरवाज़ा खोलते ही पसीने की देहगंध आपगा की साँसों में समा गई। संजू फेडेड जीन्स और ब्लैक कलर की हाफ स्लीव्स की टीशर्ट पहने हुआ था। हल्की बढ़ी हुई शेव, एक कान में छोटी-सी बाली, गले में काले धागे में लटकता कपड़े में लिपटा ताबीज़ और कंधे पर टूल्स का बैग। आपगा ने उसके नमस्कार का मुस्कुरा कर उत्तर देते हुए अंदर आने का इशारा किया।
'संजू बाथरूम उस तरफ़ है, तुम गीज़र देखो मैं तब तक तुम्हारे लिये चाय बना कर लाती हूँ ।' आपगा ने दरवाज़े को लॉक करते हुए कहा।
'अरे चाय तो रहने दीजिये, अब तो घर जाकर खाना खाने का टाइम है।' संजू ने मुस्कुराते हुए कहा।
'नहीं नहीं, रहने कैसे दूँ, मीनू आकर लड़ेगी मुझसे कि मेरे पति को चाय तक का नहीं पूछा और तुम्हारे बहाने मैं भी चाय पी लूँगी। आज मैंने भी शाम की चाय नहीं पी है, अजि किसी दोस्त के घर गया है नहीं तो शाम की चाय उसीके साथ होती है।' आपगा ने अजिंक्य के बाहर गये होने की बात जान बूझ कर बात में शामिल की। संजू ने कोई उत्तर नहीं दिया वह अपना बैग लेकर बाथरूम की तरफ़ बढ़ गया। आपगा उसे जाता हुआ पीछे से देखती रही। कामन बॉय ऑफ लोवर मिडिल क्लास। संजू चला गया लेकिन उसका पसीना अभी भी हॉल में महक रहा है। आपगा किचन की तरफ़ बढ़ गई।
फ़्लैट में एक कॉमन स्पेस है जहाँ हॉल, किचन, बेडरूम और बाथरूम के दरवाज़े खुलते हैं। बाथरूम से टूल्स के चलने, कुछ खोले जाने, कुछ कसे जाने की खटर पटर आने लगी। कुछ ही देर में आपगा किचन से उस कॉमन स्पेस में आई और कामन स्पेस की लाइट बंद करके बाथरूम की तरफ़ बढ़ गई। कॉमन स्पेस में अँधेरा हो गया। केवल बाथरूम के उढ़के दरवाज़े से छनकर आ रही हल्की-हल्की रौशनी थी। आपगा के बाथरूम में जाने के बाद कुछ देर तक तो वहाँ से खटर पटर की आवाज़ें आती रहीं फिर अचानक एकदम से वह आवाज़ें आनी बंद हो गईं। कुछ देर बाद बाथरूम की लाइट भी बंद हो गई। कॉमन स्पेस और ज़्यादा अँधेरे में डूब गया। आवाजें बहुत देर तक बंद रहीं। थोड़ी देर बाद बाथरूम का दरवाज़ा खुला और एक साया वहाँ से निकला। कॉमन स्पेस में अँधेरा था मगर ऐसा लग रहा था कि उस साये ने अपने हाथों में कोई बड़ी-सी चीज़ उठा रखी है। साया बेडरूम के दरवाज़े की तरफ़ बढ़ा। दरवाज़ा खुलने और उसके बाद बंद होने की आवाज़ आई। कॉमन स्पेस अँधेरे के साथ शांति में भी डूब गया था। घड़ी पौने नौ बजने का इशारा कर रही थी।
रात साढ़े दस बज रहे थे जब अजिंक्य के मोबाइल पर रिंग के साथ आपगा का नंबर चमका। राहुल और वह दोनों डिनर ले चुके थे। हॉल की सेंटर टेबल पर पिज़्ज़ा की खाली प्लेटें और बीयर के खाली केन बिखरे हुए थे। अब दोनों चैनल बदल-बदल कर टीवी देख रहे थे। आपगा का कॉल अटैंड करने के कुछ देर बाद उसने आपगा के लिये पैक करके रखा हुआ डिनर पैकेट उठाया और राहुल को गुड नाइट कह कर बाहर निकल गया।
दरवाज़ा खोलकर जब अजिंक्य अंदर पहुँचा तो देखा आपगा हॉल में सोफे पर ही सोई हुई है। अजिंक्य ने उसका कंधा हौले से हिलाते हुए कहा 'उठो आपगा खाना खा लो, मैं डिनर पैकेट ले आया हूँ।'
'हाँ...' आपगा ने आँखें मलते हुए कहा और उठ कर सोफे पर बैठ गई। कुछ देर तक दोनों एक दूसरे को देखते रहे। अजिंक्य ने हल्के से मुस्कुराते हुए भौंहें उचकाईं। आपगा ने भी मुस्कुराते हुए गरदन को एक तरफ़ झुकाते हुए केवल पलकों को विशेष अंदाज़ में झपका दिया। अजिंक्य ने एप्रिसिएशन में होंठों को अंदर भींचते हुए, आँखों को फैला कर भौंहों को ऊपर उठा दिया। फिर कुछ देर चुप्पी रही। दोनों एक दूसरे की तरफ़ देखते रहे। फिर अजिंक्य ने डिनर पैकेट आगे बढ़ाया, आपगा ने हाथ के इशारे से मना करते हुए कहा 'नहीं अजि डिनर की तो बिल्कुल इच्छा नहीं है, फ्रिज में रख दो, कल खा लूँगी ब्रेकफास्ट में।' कहते हुए वह उठ कर अंदर बेडरूम की तरफ़ बढ़ गई। अजिंक्य कुछ देर तो वहीं खड़ा रहा फिर किचन की तरफ़ बढ़ गया।
अगले दिन सुबह अजिंक्य की नींद मोबाइल पर गाने की आवाज़ से खुल गई। गाना वही बज रहा था, उसके ही मोबाइल पर 'हम भटकते हैं, क्यों भटकते हैं, दश्त-ओ-सेहरा में, ऐसा लगता है मौज प्यासी है अपने दरिया में...कैसी उलझन है क्यों ये उलझन है, एक साया-सा रूबरू क्या है...'।
'हैप्पी क्रिसमस...' अजिंक्य ने लेटे-लेटे ही मुस्कुराते हुए कहा।
'हैप्पी क्रिसमस...' कहते हुए आपगा अजिंक्य की चादर में समा गई। अजिंक्य की देह के स्पेस में समा कर आँखें बंद कर ली आपगा ने। अजिंक्य ने मुस्कुराते हुए अपने हाथों को हरकत दी। 'नो अजि...आज कुछ नहीं बस यूँ ही रहने अपने नज़दीक, ऐसे ही सारा दिन...बस ऐसे ही।' आपगा ने कहा।
'क्यों क्या हो गया?' अजिंक्य ने पूछा।
'कुछ नहीं, बस आज यूँ ही अच्छा लग रहा...आज वह सब कुछ नहीं, बस यूँ ही।' आपगा ने तकिये पर रखे अजिक्य के बायसैप्स पर सर रख दिया और प्रयास कर कुछ और सट गई उससे। अजिंक्य ने हाथ को कोहनी पर से मोड़ कर आपगा के सर को हाथ के घेरे में ले लिया और धीमे से उसके माथे को चूम लिया और आँखें बंद कर लीं। दोनों उसी मुद्रा में कुछ देर बने रहे। 'ये ज़मीं चुप है आसमाँ चुप है, फिर ये धड़कन-सी चार सू क्या है' गाना मद्धम-मद्धम स्वर में पीछे बज रहा था।
'अजि...' आपगा का स्वर आया तो अजिंक्य ने आँखें खोलीं।
'हूँ...' अजिंक्य ने उत्तर दिया।
'क्या लैला सचमुच बदसूरत थी...?' अजिंक्य के बायसैप्स पर गालों को धीरे से रगड़ते हुए पूछा आपगा ने।
'हाँ कहते तो यही हैं।' अजिंक्य ने आपगा के बालों को दूसरे हाथ से सँवारते हुए कहा।
'और मजनू बहुत सुंदर था...?' आपगा ने दूसरा प्रश्न किया।
'हाँ कहने वाले तो यही कहते हैं।' अजिंक्य ने कुछ मुस्कुराते हुए कहा।
'और फिर भी वह लैला से बहुत प्रेम करता था?' आपगा ने पूछा।
'हाँ, कहानी में तो यही लिखा है।' अजिंक्य का स्वर कुछ गहरा हो गया। आपगा ने अब कोई प्रश्न नहीं किया उसने आँखें बंद कर लीं।
'क्या बात है? आज सुबह-सुबह लैला मजनू क्यों याद आ रहे हैं?' अजिंक्य ने आपगा को चुप होता देख शरारत से पूछा। आपगा ने कोई उत्तर नहीं देकर अपना चेहरा और आगे सरकाते हुए अजिंक्य के कंधे और गरदन के बीच स्पेस में रख दिया और एक हाथ से चादर को ऊपर तक खींच कर दोनों चेहरों को ढाँक दिया। चादर के अंदर अँधेरा और शांति थी, चादर के बाहर लता का स्वर 'कितने घायल हैं, कितने बिस्मिल हैं, इस ख़ुदाई में एक तू क्या है, एक तू क्या है।'