किताब / पद्मजा शर्मा

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शहर में आतंकवादियों के हमले की आशंका थी। संदिग्ध व्यक्तियों की धरपकड़ चल रही थी। एक शाम पुलिस ने पुस्तकालय के एक चौकीदार को पकड़ा। उसे आशंका थी कि इस व्यक्ति ने आतंकवादियों को अपने घर में शरण दी है और पिछले हमले में उन्हें शस्त्र भी सप्लाई किए थे। पुस्तकालय में अक्सर पढऩे के लिए आने वाली एक लड़की ने जब यह देखा तो उसने दावे के साथ कहा कि यह चौकीदार ऐसे काम नहीं कर सकता।

पुलिस अफसर ने पूछा, 'आप, इसे जानती हैं?'

उसने कहा 'नहीं।'

'इसकी जाति?

'पता नहीं।'

'नाम?'

'पता नहीं।'

'उम्र?'

पता नहीं। '

'पता?'

'पता नहीं।'

'आपको कुछ पता नहीं। फिर भी कह रही हैं कि यह आतंकवादियों से मिला हुआ नहीं है। इस विश्वास का कोई कारण तो होगा?' पुलिस अफसर ने कड़क आवाज में कहा।

लड़की ने बताया-'एक दिन मैं लायब्रेरी से लौट रही थी। मेरे हाथ से पुस्तक गिर गई. वह धार्मिक पुस्तक भी नहीं थी। इस युवक ने वह किताब उठाई, माथे से लगाई और मुझे पकड़ाई. क्या किताब उठाने वाले हाथ, उसे माथे से लगाने वाले हाथ, शस्त्र उठा सकते हैं?'

भीड़ स्तब्ध थी। अफसर निरुत्तर था।