किफायती अक्षय और महंगे मुरुगदास / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 06 जून 2014
मेरा पांच वर्ष का पोता मंत्र कहता है कि दो महीने की कहकर सिर्फ 49 दिन की छुट्टियां मिली हैं। छुट्टियों का इंतजार और उनके लिए आतुरता मनुष्य का स्वभाव है। छुट्टी के कारण रोजमर्रा के तयशुदा कामों से बचना और छुट्टियों में संचित ऊर्जा काम के लिए ताजगी भर देती है। कुछ सुविधा संपन्न लोग हैं जिनका जीवन एक छुट्टी के बाद दूसरी छुट्टी में चला जाता है। उन्हें छुट्टियां ही थका देती हैं। दशकों पूर्व ए.जी. गार्डनर ने छुट्टियों के इस पक्ष पर लिखा था कि वे कितना थका देती हैं और असल आराम तो घर लौटकर ही मिलता है। छुट्टियों में टूरिज्म के कारण ही कुछ स्थानों के लोग शेष वर्ष के लिए धन जोड़ लेते हैं। छुट्टियों में यात्राओं के पैकेज बेचना अच्छा-खासा व्यवसाय है।
मनोरंजन उद्योग को छुट्टियों में ही खूब धन कमाने का अवसर मिलता है और हर वर्ष मई से अगस्त अंत तक के समय को शुभ माना जाता है और फिर दीवाली से मध्य फरवरी तक के समय में भी 25 प्रतिशत धंधा बढ़ता है। इस वर्ष ग्रीष्मकालीन छुट्टियों में चुनाव और क्रिकेट तमाशे आई.पी.एल के कारण मनोरंजन उद्योग में मंदी का दौर रहा है परंतु इत्तेफाक देखिए कि अब 'हॉलीडे' नामक फिल्म बची हुई छुट्टियों का लाभ उठाने के लिए प्रदर्शित हो रही है। अक्षय कुमार, सोनाक्षी सिन्हा अभिनीत 'हॉलीडे' के फिल्मकार मुरुगदास हैं, जिन्हें हम 'गजनी' के कारण याद करते हैं। दक्षिण भारत में मुरुगदास एक 'ब्रांड' हैं और उनके नाम पर ही टिकिट बिकते हैं। वे फिल्मकारों में रजनीकांत की हैसियत रखते हैं। यह बात इससे स्पष्ट होती है कि एक मक्खी को केंद्रीय पात्र बनाकर उनकी तामिल फिल्म सुपरहिट हुई क्योंकि उनके अपने दर्शक हैं, परंतु इसी फिल्म का हिंदी संस्करण बुरी तरह असफल रहा।
बहरहाल 'हॉलीडे' में मुरुगदास को दो सितारों का साथ मिला है और छुट्टियों के मौसम को हम तीसरा मान लें। गौरतलब बात यह है कि अक्षय कुमार एक घोर व्यावसायी दृष्टिकोण रखने वाले सितारे हैं और वे निर्माता को चालीस दिन से अधिक नहीं देते। टेलीविजन पर भी दिए अतिरिक्त समय के लिए अतिरिक्त धन का प्रावधान उनके अनुबंध में होता है। उन्हें आप 120 दिन में बनने वाली फिल्म के लिए अनुबंधित करना चाहें तो मेहनताना भी तीन गुना देना होगा। दूसरी ओर मुरुगदास हैं जो अपनी गति से फिल्म बनाते हैं और उनके एक्शन दृश्यों के लिए ही पचास दिन का समय लगता है। उनकी 'गजनी' के लिए आमिर खान ने एक वर्ष शरीर बनाने के लिए लिया था।
ये आमिर खान ही हैं जो एक फिल्म के लिए दो वर्ष दे सकते हैं। अब यह आश्चर्य की बात है कि समय की किफायत वाले अक्षय कुमार और नवीनता सृजन करने के लिए असीमित समय मांगने वाले मुरुगदास में किस तरह का समझौता हुआ होगा। अब यह तो सर्वविदित है कि आज के दौर के सितारे अपनी हर अभिनीत फिल्म के पचास प्रतिशत मालिकाना अधिकार लेते हैं। गोयाकि अपरोक्ष रूप से स्वयं अक्षय कुमार ही इस फिल्म के निर्माता हैं। यह भी संभव है कि सारी पूंजी और लाभ के वे ही एकमात्र हकदार हों।
यह संभव है कि अक्षय कुमार ने महसूस किया हो कि कम समय देने के कारण उनकी कुछ फिल्मों की गुणवत्ता पर असर पड़ा हो और उन्होंने महसूस किया हो कि चालीस दिनों वाली फिल्में उनके कैरियर को हानि पहुंचा रही हैं अत: अपने टाइप के सिनेमा में ताजगी लाने के लिए उन्होंने महंगे फिल्मकार को अनुबंधित किया हो। वे इतनी प्रखर व्यावसायिक बुद्धि रखते हैं कि उन्होंने यह भांप लिया कि अब दर्शक आसानी से संतुष्ट नहीं होता। वह कुछ और मांगता है। उसे हॉलीवुड की फिल्में उपलब्ध हैं। युवा का मंत्र है 'दिल मांगे मोर' और अक्षय ने वही उन्हें देने की चेष्टा की है।