किलकारी का शोर / अलका प्रमोद
“ओ हो रिया इस हेयर स्टाइल में तू कितनी सुंदर लग रही है। रिया तो हमारी स्टाइल आइकान है। ”
रिया के कालेज पहुंचते ही उसकी मित्रो ने उसके नयी केश शैली की प्रशंसा के पुल बांध दिये। रिया ने इतरा कर अपने बालों को झटका और मन ही मन नीमा आंटी को धन्यवाद दिया, जिनके कहने पर उसने ये बाल कटवाये थे।
नीमा आंटी रिया का आदर्श रही हैं, उनकी जीवन शैली, उनका पैसा, उनका प्रभावशाली व्यक्तित्व, रिया को बचपन से आकर्षित करता रहा है। घर भर की जिम्मेदारी ओढ़े घर और आफिस के बीच हांफती दौड़ती मम्मी और शान से नौकरों को आदेश देती शोफर वाली कार से आफिस जाती नीमा आंटी में उसे कोई समानता नहीं लगती। फिर भी पता नहीं उन दोनो के बीच ऐसा कौन-सा तन्तु जुड़ा है कि जब तक सप्ताह में एक दो बार दोनो मिल न लें उनका मन नहीं मानता। वह बात दूसरी है कि मिलने पर जादातर वह दोनो एक दूसरे से बहस ही करतीं। न नीमा आंटी का अपने ही लिये जीने का फलसफा मम्मी के गले उतरता, न नीमा आंटी को, मम्मी का घर परिवार के लिये मिट जाने का आदर्श समझ आता पर फिर भी घंटो अपने अपने पक्ष की वकालत करने और गर्मागर्म बहस के बाद कभी घर पर मम्मी के बनाये कुरकुरे कटलेट और चाय के साथ हंसते हुये सदन समाप्त करतीं तो, कभी किसी रेस्ट्रां की मेज पर र्कैपेचीनो काफी के साथ और अगली बार फिर दोनो अपने अपने उन्ही मुद्दों पर वही पुराने तर्कों के साथ बहस करतीं। रिया को लगने लगा है कि उन दोनो को इस बहस की आदत पड़ गयी है और वह जब तक एक दो बार सप्ताह में बहस कर नहीं लेतीं उन्हे चैन नहीं पड़ता। उसे तो यह भी लगता है कि वह जो बोलती हैं वह भी अभ्यास वश ही होता है वह बिना सोचे बस वही बात बार बार बोलती हैं।
जैसे जैसे रिया बड़ी होने लगी मम्मी और नीमा आंटी की बहस उसके मन में प्रश्न चिन्ह लगाने लगी। कभी उसे लगता मम्मी सही हैं। मम्मी यदि मम्मी जैसी न होकर नीमा आंटी जैसी होतीं तो क्या होता, शायद वह इस दुनिया में ही न आयी होती क्योंकि नीमा आंटी ने बच्चे पैदा न करने का निर्णय लिया है या मान लो वह इस दुनिया में आ भी जाती तो जिस तरह मम्मी उसके लिये दिन रात एक किये रहती है वह न करतीं तो उसका क्या होता? उसका तो मम्मी के बना एक पल भी काम नहीं चलता।
उसे तो बहुत दिनों तक पता ही नहीं था नीमा आंटी और मम्मी दोनो ने एक साथ ही एम ए किया है और मम्मी ने भी नीमा आंटी की तरह फर्स्ट डिवीजन में एम ए किया था। वह तो एक दिन जब नीमा आंटी कह रही थी “रंजू तुझे याद है मैं मैथ्स में हमेशा तेरे भरेासे ही रहती थी। अगर तू न होती तो प्रोफेसर रामालिंगम का पढ़ाया कभी मेरे पल्ले न पड़ता। ”
यह सुन कर रिया बीच में ही आश्चर्य से बोली “ मम्मी आपने मैथ्स में एमए किया है? “
“यही नहीं तेरी मम्मी को मुझसे जादा अंक मिले थे। ”नीमा आंटी ने बताया।
उस दिन उसे मम्मी पर गर्व हुआ नहीं तो वह तो यही समझती थी कि मम्मी ने ऐसे ही बस साधारण अंक पा कर डिग्री ले ली होगी और बै्रक में नौेकरी लग गई तो शादी और माँ बनके आम जिंदगी जीने लगीं। जबकि नीमा आंटी मेधावी छात्रा रही होंगी जो अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने में विश्वास रखती हैं।
नीमा आंटी के जाने के बाद उसने मम्मी से पूछा “ मम्मी जब तुम पढ़ने में इतनी अच्छी थीं तो नीमा आंटी की तरह एक्जीक्यूटिव क्यों नहीं बनीं? “
“ क्योंकि मुझे तेरे जैसी प्यारी प्यारी बेटी की देखभाल करना जादा भाता है “ कहते हुये मम्मी ने उसे प्यार से चपत लगा दी और वह भी मम्मी की बाहों में सिमट गयी। तब मम्मी ने बताया कि उन्हे भी प्रोन्नति मिल रही थी पर उनका स्थानान्तरण छोटी जगह हो रहा था जहां रिया के लिये अच्छे स्कूल नहीं थे अतः उन्होने प्रोन्नति नहीं ली।
उस दिन से उसके मन में एक प्रश्न ने अवश्य जन्म ले लिया कि उसे मम्मी जैसी बनना है कि नीमा आंटी जैसी।
अब वह प्रायः मम्मी और नीमा आंटी के जीवन की मन ही मन समीक्षा करती। वह दोनो जब भी बहस करती तांे उनके तर्कों को मन ही मन गुनती और अपनी कसौटी पर कसती। उसे सदा ही नीमा आंटी का पलड़ा भारी लगता।
नीमा आंटी कितनी मेंन्टेन्ड हैं वह अभी भी जीन्स पहन कर निकलती है तो उससे थोड़ी ही बड़ी लगती हैं। उस दिन जब वह आद्या के साथ माल में घूम रही थी और वह मिल गयीं थीं तो रिया ने आद्या से नीमा आंटी को मिलवाते हुये कहा
“ ये मेरी नीमा आंटी हैं मम्मी की खास फ्रेंड “।
आद्या को विश्वास ही नहीं हुआ था कि वह रिया की आंटी हैं। जब रिया ने उसे उनके बारे में बताया तो वह भी रिया की तरह उनकी प्रशंसक बन गई।
आज भी अंकल और नीमा आंटी उसे रोमांटिक युगल लगते हैं। हर रविवार को दोनो साथ साथ मूवी देखते और कहीं बाहर खाना खाते हैं क्लब जाते हैं। अंकल गोल्फ खेलते हैं और नीमा आंटी कभी किसी एनजीओ में सोशल वर्क करती हैं तो कभी किसी कल्चरर सोसायटी के कार्यक्रम में भाग लेती हैं।
वहीं मम्मी पापा आफिस और घर में ही डूबे रहते हैं। बहुत हुआ तो किसी रिश्तेदार के यहंा विवाह आदि में चले जाते हैं। उनको साथ साथ जाने का समय ही कब मिलता। यहाँ तक कि मम्मी तो अधिकतर सोती भी उसी के साथ हैं ताकि जब वह देर तक पढ़ती है तो उसे बीच-बीच में कुछ खाने को देती रहें। पिछले वर्ष पापा को किसी आफिस के काम से एक सप्ताह के लिये मुबंई जाना था। पापा ने कहा “रंजू तुम भी चलो इसी बहाने घूम लेंगे। ”
बहुत दिनों बाद कहीं घूमने का कार्यक्रम बना था मम्मी बहुत प्रसन्न थीं पर चलने से दो दिन पहले ही पता चला कि इसी बीच रिया के एग्जांम होने वाले हैं और फिर मम्मी रुक गईं, पापा अकेले ही गये।
उसके मन में मम्मी बसी थीं तो मस्तिष्क में नीमा आंटी। जब जब वह दोनो की तुलना करती उसे प्यार भले मम्मी पर आता पर जब भी वह अपने भविष्य की कल्पना करती स्वयं को नीमा आंटी के खांचे में ही मढ़ा हुआ पाती। ठीक ही तो कहती हैं नीमा आंटी बच्चे होते ही अपना जीवन उन्ही के अनुसार जीना पड़ता है अपनी इच्छा रह ही नहीं जाती।
दीवाली पर वीना बुआ आई थीं तो कितनी चिड़चिड़ी हो गयी थीं। आंखेा के चारों ओर काले घेरे हो गये थे। मम्मी ने कहा “ वीना बहुत कमजोर लग रही हो” तो उन्होने कहा “ भाभी क्या बतायें मैं तो तंग आ गयी हूँ जबसे पिंटू हुआ है मेरी जिंदगी मेरी नहीं रह गयी है। वह सोये तो सो वह जागें तो जागो दिन रात उनके नैपी बदलो। फिर कभी उन्हे बुखार तो कभी अपच। ”
मम्मी ने हंस कर कहा “अरे बच्चों के साथ तो ये सब होता ही है धीरे धीरे आदत हो जाएगी। ”मानो ये परेशानी कोई बड़ी बात नहीं है।
उस दिन रिया के मन में नीमा आंटी के विचारों के लियेे आस्था और भी दृढ़ हो गयी थी। उसने सोच लिया था कि वह भी उनकी तरह अपना जीवन सिर्फ अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने में लगाएगी और जीवन में मजे करेगी। ठीक ही तो कहती हैं नीमा आंटी अपने जीवन का सबसे स्वर्णिम समय बच्चे पालने में लगा दो और वह बड़े हांे तो छोड़ कर अपनी दुनिया कहंी और बसा लेंगे। और बुढ़ापा तो अकेले ही बिताना होगा। कम से कम अपने बच्चे नहीं होगे तो उम्मीद नहीं होगीं। वैसे ही दुनिया की आबादी सात अरब पहुंच गयी है क्या ज़रूरत है और आबादी बढ़ाने की।
रिया के एमबीए पूरा कर लिया, उसे एक प्रतिष्ठित फर्म में नौकरी मिल गयी। आदि कब से रिया के नौकरी लगने की प्रतीक्षा कर रहा था। जब रिया ने उसे नौकरी मिलने की खुशी में रिट्ज में डिनर पर बुलाया तो आदि ने औपचारिक रूप से रिया से विवाह के लिये निवेदन कर ही दिया।
अब तक आदि के निवेदन को टालती रही रिया को अब स्वयं भी विवाह करके आदि के साथ घर बसाना चाहती थीं। मम्मी पापा भी आदि को उसका जीवन साथी मान ही चुके थे। फिर क्या था विवाह की योजनायें बनने लगीं। एक दिन काफी हाउस में वह दोनो काफी पी रहे थे, तभी एक युगल वहाँ आया जिनका छोटा-सा बच्चा भी था। आदि ने रिया को छेड़ने के लिये कहा” एक दो साल बाद हम लोग भी ऐसे ही आएंगे। ”
तो रिया ने कहा “ इस गलफहमी में न रहना, मैं कोई बच्चा वच्चा नहीं करने वाली”। आदि समझा रिया शर्मा रही है अतः उसने कहा
“ क्या यार इतनी माडर्न हो कर पुराने जमाने की लड़कियों की तरह झिझक रही हो, ये तो लाइफ का सच है “
रिया ने गंभीर हो कर कहा “ आदि मैं ंझिझक नहीं रही हूँ आय मीन इट”
आदि ने कहा “ ये तुम्हारा पागलपन है “वो बोला “ ये तुम्हारा नीमा आंटी के प्रति फैसिनेशन है और कुछ नही। कुछ दिन बाद तुम्हे खुद ही महसूस होगा कि इसकी क्या इम्पोर्टेंस है और तुम खुद ही अपना निर्णय बदल दोगी “।
पर रिया ने दृढ़ता से कहा “ आदि आय एम सीरियस मैने सोच लिया है मैं बच्चों के चक्कर में अपना जीवन बर्बाद नहीं कर सकती” आदि गंभीर हो गया उसने कहा “रिया अगर वास्तव में तुम अपने इस निर्णय के प्रति इतनी गंभीर हो तो तुम्हे मुझे या अपने निर्णय में से एक को चुनना होगा एण्ड आई आलसो मीन इट। ”
रिया को आदि से ऐसी आशा नहीं थी, वह तो सोचती थी कि आदि उसे समझता है और उसके निर्णय में पूरा साथ देगा। उस रात वह सो नहीं पायी निर्णय आसान नहीं था। पर भली भंाति विचार करने के पश्चात उसने सोच लिया था उसे आदि को ही छेाड़ना होगा।
जब मम्मी को पता चला तो उन्होने कहा”रिया तू नीमा आंटी की राह पर मत चल”
रिया को उनकी राय गले न उतरी। मम्मी नाराज हो गयीं। वह कहने लगीं “ मैं तो अभी तक नीमा को ही ग़लत कहती थी पर अब तू भी आँख मूंद कर उसी राह पर चलने को तैयार है। पर याद रख एक दिन पछताएगी। ”
“ आप मुझे एक भी कारण बता दीजिये माँ बनने के पक्ष में “रिया ने कहा।
मम्मी ने वही पुराने घिसे पिटे तर्क दिये। त्याग, ममता का सुख, अपनापन आदि। मम्मी और पापा उसे समझा समझा कर हार गये। अंत में रिया ऊब कर वहाँ से उठ कर चली गयी।
उसे नीमा आंटी की बहुत याद आयी एक वह ही हैं जो उसको समझ सकती हैं। इधर वह कुछ वर्षो से हैदराबाद में रहने लगी थीं। अतः उसने सप्ताह के अंत में आंटी के पास जाने का निर्णय ले लिया।
नीमा आंटी के घर पहुंची तो आंटी वैसी ही स्मार्ट लग रही थीं, उन्होने कहा”आओ रिया कैसे आना हुआ? “
उन्होने उसे गले लगा लिया। रिया को आये एक दिन बीत गया। वह जब भी उनके घर जाती उनके घर में तेज संगीत बजता रहता था, आज भी सुबह ही आंटी ने एक विदेशी तेज धुन लगा दी थी। संगीत तो बज रहा था पर इसके अतिरिक्त कोई संवाद न था। अंकल आंटी दोनो अपने अपने में इतने व्यस्त थे कि दिन भर में अंकल और आंटी में शायद ही कोई बात हुई हो, आंटी अपने क्लब चली गयीं और अंकल अपने काम से किसी को किसी से बताने की ज़रूरत भी नही। अपनी अपनी जिंदगी अपनी स्वतंत्रता। खाना खाने के समय भी सब अपने अपने मोबाइल पर बात करते करते खाना खाते रहे। रिया आंटी की व्यस्तता में रिया उनको अपने निर्णय के बारे में बताने का उचित अवसर ढूंढ रही थी।
रात को दस बज गये थे सभी लोग अपने अपने कमरे में चले गये थे। उसने गेस्ट रूम से बाहर आ कर देखा आंटी के कमरे की लाइट जल रही है। रिया को लगा यही उचित अवसर है कल तो उसे वापस ही जाना है। वह दबे पांव उनके कमरे की अेार बढी, पर उसके पंाव ठिठक गये एक ओर शराब का गिलास लुढ़का पड़ा था, आंटी के बाल बिखरे थे, चेहरा मेकअप विहीन था, वह आंखे मूुंदे अधलेटी थीं और उनके चेहरे पर आंसू की धाराएं बनी हुई थीं। उसने हल्के से आवाज दी पर वह संभवतः नशे में थी अतः बोलीं नहीं। उसने देखा उसके सामने एक डायरी खुली पड़ी थी, पेन लुढ़का हुआ था। यद्यपि किसी की डायरी पढ़ना बुरी बात हैे पर अपने जीवन की आदर्श नीमा आंटी के जीवन के अन्तरंग पन्नों में झांकने से वह स्वयं को रोक नहीं पायी। वहाँ लिखा था -
जीवन मेरा ऊसर धरती,
शून्य मुझे रुलाता है
भीड़ के बीच अकेली हूँ मैं
आईना मुझे रुलाता है
उगे जो कांटे कोख में मेरी
पसर गये हैं चारों ओर
तरस गयी हूँ सुनने को
मैं चुलबुल किलकारी का शोर
नही किसी की चिंता मुझको
नहीं है मेरी कोई रचना
हुई क्लांत कर खुशी का नाटक
हुआ निरर्थक जीवन अपना...
बस आगे पढ़ना रिया के वश में नहीं था इससे पहले कि देर हो उसे आदि से मिलना था।