किशोरियों ने कहा लड़की ही बनना है / मनोहर चमोली 'मनु'

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हम और आप मानते हैं कि लिंग भेद धीरे-धीरे घट रहा है। लेकिन सचाई कुछ और है। यह भी मुमकिन हो कि हर बात को लिंग भेद से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। लेकिन फिर भी सूचना तकनीक के अति उपभोक्तावादी इस युग में यदि पंचानबे फीसद किशोरिया यें कहें कि वे अगले जनम में भी ‘लड़की’ ही बनना चाहती हैं तो आप चौंकेंगे जरूर। जी हां। यह किशोरियां ‘समाचार पत्रों में लेखन’ विषयक कार्यशाला में उत्तराखण्ड के गढ़वाल जनपद के सुदूर विकासखण्डों से बतौर सहभागी आई थीं। बतातें चलें कि यह किशोरियां कक्षा आठ से लेकर स्नातक में पढ़ने वाली थीं।

पहाड़ के पहाड़ी जीवन की जीवटता किसी से छिपी नहीं है। यहां सूरज के साथ-साथ घर के काम शुरू हो जाते हैं और रात के गहरा जाने तलक भी वे अनवरत् चलते रहते हैं। घर का हर सदस्य छोटा हो या बड़ा। अपनी क्षमतानुसार घर और बाहर के काम अपने हाथ में ले लेता है। सूचना तकनीक के साधन भी यहां पहुंच गए हैं। सिर पर घास का आदमकद बोझा भी है तो हाथ में मोबाइल भी। खेत में काम करती महिलाएं हों या मवेशियों को चराने जाती किशोरियां। हर हाथ में मोबाइल दिखाई देता है। घर में बिजली के उपकरणों के साथ-साथ मनोरंजन के सभी साधन और तरीके भी पहाड़ में पहुंच गए हैं।

एक दशक पहले घर आए स्वामी को मोटर मार्ग तक छोड़ने गए परिवार के सदस्य सिसकते हुए कहते थे-”पहुंचते ही चिट्ठी लिखना। राजीखुशी देते रहना।” आज भी घर आए स्वामी को परिवार के सदस्य छोड़ने सड़क तलक आते हैं। लेकिन अब कहते हैं-”पहुंचते ही फोन कर देना।”

सोचा तो था कि तेजी से बदल रहे गांव की किशोरियां भी नए तरीके से सुविधाभोगी जीवन को आत्मसात् कर चुकी होंगी। तीन दिवसीय ‘समाचार लेखन’ कार्यशाला में किशोरियों ने उम्मीद से अधिक क्षमता का प्रदर्शन तो किया ही। तीसरे दिन जब उनसे पूछा गया कि कल्पना करें कि यदि दूसरा जन्म भी मिले और उन्हें यह विकल्प भी मिले कि लड़का बनना है या लड़की। तो वे क्या बनना चाहेंगी और क्यों।

सत्तर सहभागियों में मात्र तीन किशोरियों ने लिखा कि वे लड़का बनना चाहती हैं। सड़सठ किशोरियों ने सकारण सहित लिखा कि वे लड़की ही बनना चाहेंगी। लड़का बनने की चाह वाली तीन लड़कियों ने कारणों में यही लिखा था कि उन्हें वे सब करने की आजादी मिल सकेगी जो लड़की के रूप में नहीं मिल पाती। वे असीम ऊंचाईयों को छूने के लिए लड़का बनना चाहेंगी।

‘अगले जन्म में लड़की ही बनूंगी‘ के पक्ष में जो तर्क दिए गए थे, वे आज के युग में भी चौंकाने वाले हैं। एक बात और समझ में आई कि भले ही तथाकथित बुद्धिजीवी ये कहें कि लालन-पालन के समय लड़कियों की कंडीशनिंग ही ऐसी की जाती है कि वे अपने दायरे से बाहर नहीं सोच पाती। लेकिन यह दावा यहां खोखला नज़र आया।

किशोरियों ने बेबाकी से अपने आस-पास के और अपने घर में भोगे गए जीवन के आधार पर लड़की बनना ही पसंद किया। यह पूछे जाने पर कि क्या लड़की के रूप में यह जन्म नाकाफी है? इस पर एक किशोरी ने कहा-”यह जीवन तो लड़की आखिर है क्या। यह समझने में निकल जाएगा। दूसरे जीवन में लड़की क्या नहीं कर सकती। यह कर दिखाने का भरपूर मौका मिलेगा न।”

बहरहाल सत्तर सहभागियों की सारी टिप्पणियों में कुछ सार रूप में यहां दी जा रही हैं। ये टिप्पणियां उन्होंने लड़की बनने के पक्ष में दी हैं।

अगले जन्म में लड़की ही बनना है।

  • लड़की ही है जो दो-दो घर संभालती है। माता-पिता के लिए कुछ कर गुजरने के लिए लड़की ही बनना है।
  • लड़के अधिकतर जीवन मस्ती में बिताते हैं। या फिर अपने लिए सोचते हैं। उन्हें परवाह नहीं होती कि मातापिता कैसे जी रहे हैं। परिवार के सदस्य कैसे रह रहे हैं। सो लड़की ही बनना है। लड़की रहकर हम परिवार के बनाते हैं और संभालते हैं।
  • लड़की ही बनना है क्योंकि लड़की लड़के से हर क्षेत्र में बेहतर होती हैं। वे सुलझी हुई होती हैं। किसी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहती। लड़कियां स्वार्थी नहीं होती।
  • लड़की ही बनना है। इस जन्म में तो देख लिया है कि हम क्या क्या कर सकते हैं। यदि नहीं कर पाई तो अगला जन्म लेकर वे सब कर सकूंगी और दुनिया को दिखा दूंगी कि लड़की है तो जीवन है।
  • लड़की ही है जो मां बन सकती है। लड़कों में मां बनने की क्षमता है ही नहीं। विज्ञान कुछ भी कर ले। सहनशीलता और धैर्य हम लड़कियों से कोई नहीं छीन सकता।
  • लड़की का आभूषण लज्जा नहीं निर्माण है। वह विकास की सीढ़ी है। मैं लड़की ही बनूंगी।
  • लड़की है तो यह कायनात है। हम रक्तबीज हैं। हमसे ही दुनिया है। हम दुनिया से नहीं हैं। यह बात लड़कों को समझनी चाहिए। हमारा सम्मान करना ही समाज का सम्मान करना है।
  • लड़का बनने के पीछे क्या आधार हो सकता है। मौज-मस्ती। आराम। यदि हम लड़कियां घर से मजबूत हों तो हम भी वह सब कर सकते हैं जो लड़के कर सकते हैं। यह दुनिया हम सबकी है। लड़कों की कोई नई दुनिया नहीं है। सो मैं लड़की ही बनूंगी।
  • घर को संवारना और बनाना हमें कुदरत से बतौर उपहार मिला है। यह हमसे कोई नहीं छीन सकता। हम घर और बाहर भी तरक्की करती हैं। हम ही हैं जिनकी वजह से पुरुष समाज दुनिया की सैर कर पाया है। यही कारण है कि मुझे लड़की ही बनना है।