किशोर कुमार को आदरांजलि / जयप्रकाश चौकसे

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उंगली में अंगूठी, अंगूठी में नगीना
प्रकाशन तिथि :03 अगस्त 2017


आज किशोर कुमार का जन्मदिन है और खंडवा में समारोह आयोजित किया गया है। पूरे भारत के फिल्म प्रेमी 31 जुलाई को रफी साहब को आदरांजलि अर्पित कर चुके हैं और अब किशोर कुमार का स्मरण कर रहे हैं। आज अगर किशोर जीवित होते तो अपने अंदाज में फिल्में बनाते, जिनके नाम इस तरह के होते 'बढ़ती का नाम महंगाई,' 'नशे का नाम सत्ता,' 'बंदर के हाथ उस्तरा।' ज्ञातव्य है कि उनकी 'चलती का नाम गाड़ी' भारतीय सिनेमा की श्रेष्ठतम हास्य फिल्म मानी जाती है। दूसरे क्रम की हास्य फिल्म 'पड़ोसन' की भी केंद्रीय सृजन शक्ति किशोर कुमार ही थे। आपातकाल के समय किशोर कुमार ने तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री के कार्यक्रम में बिना पारिश्रमिक लिए गाने से इनकार कर दिया था तो आकाशवाणी पर उनके गीतों का प्रसारण रोक दिया गया। किशोर कुमार जन्मना विद्रोही स्वभाव के व्यक्ति थे और हास्य फिल्में बनाकर वे अपने आक्रोश का विरेचन कर लेते थे।

हॉलीवुड के वुडी एलन को हम पश्चिम का किशोर कुमार कह सकते हैं। उनकी एक व्यंग्य फिल्म का केंद्रीय पात्र सदैव अपने घर में ही रहता है और प्राय: टेलीविजन देखता रहता है। एक दिन उसके घर खाने-पीने का सामान खत्म हो गया तो वह खरीदने के लिए बाहर आया। एक जगह एक गुंडा उसे चाकू दिखाकर लूटने का प्रयास करता है तो वह अपना रिमोट कंट्रोल निकालकर कहता है कि जाने कैसे अपराध चैनल लग गया है और अभी वह उसे बदलकर हास्य चैनल करेगा गोयाकि निरंतर टीवी देखने के कारण उसका यथार्थ से संपर्क टूट गया है और वह सीरियल संसार का प्राणी बन चुका है। आज अवाम का भी यथार्थ से संपर्क टूट गया है, क्योंकि सत्ता ने ऐसी ही माया रच दी है। विविध कारणों से लोग आत्महत्या कर रहे हैं और जीवित बने रहने के लिए सत्ता की नौटंकी का पात्र बन जाना आ‌वश्यक हो गया है।

किशोर कुमार पर सनकीपन के आरोप के बारे में एक दिन खाकसार ने उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि एक बार किसी मित्र की सिफारिश पर विदेश से प्रशिक्षित एक गृहसज्जा विशेषज्ञ अप्रैल के गर्म महीने में उनसे मिलने आया तो वह गरम सूट पहने था। संभवत: वह अपने विदेश में प्रशिक्षण के तथ्य को रेखांकित करना चाहता था। उसके वैचारिक दीवालिएपन को भांपकर किशोर कुमार ने उससे कहा कि उनका ड्राइंग रूम तालाब की तरह रचा जाए, जहां छोटी कश्तियों पर मेहमान और मेजबान बैठें और चाय-नाश्ता करें। वह विशेषज्ञ भाग गया और उसने सनकीपन की बात फैला दी।

किशोर कुमार के खंडवा के एक मित्र मुंबई में ठेकेदारी करते थे और उनके बुरे वक्त में आर्थिक सहायता देने के उद्‌देश्य से किशोर कुमार ने उससे कहा कि वह उनके बंगले के गिर्द एक नहर बना दे ताकि कोई सांप प्रवेश नहीं कर सके। वे अपने मित्र के आत्म-सम्मान की रक्षा करते हुए उसकी सहायता करना चाहते थे। इस प्रकरण ने भी उनके सनकीपन के अफसाने को हवा दी। इसी तरह से उनकी बहुप्रचारित कंजूसी के आरोप के जवाब में उन्होंने कहा कि क्या कोई कंजूस उनकी तरह बार-बार विवाह कर सकता है?

किशोर कुमार ने एक कमरे में देश-विदेश से खरीदे हॉरर फिल्मों के डीवीडी संकलित किए थे। टेलीविजन को इतनी ऊंचाई पर लगाया गया था कि बिस्तर पर लेटकर ही फिल्म देखी जा सकती थी। हॉरर फिल्म देखते हुए किशोर कुमार ठहाका लगाया करते थे। प्राय: इस तरह की फिल्में देखते समय डर लगता है परंतु किशोर कुमार को हंसी आती थी। अवाम प्राय: डरते-डरते ही जीवन गुजार देता है, क्योंकि सत्ता को बने रहने के लिए समाज में डर का वातावरण बनाना पड़ता है। अजीब बात है कि संत कवि भी लिख चुके हैं कि 'भय बिन होई न प्रीति।' प्रेम का अवमूल्यन करके भय का हव्वा खड़ा किया जाता है। सत्यनारायण की कथा में भी भय का विवरण है कि फलां ने अमुक चीज नहीं की तो उसे यह दंड मिला। मनुष्य का ईश्वर के साथ प्रेम और भाईचारे का रिश्ता होना चाहिए। बड़ा भाई छोटे की रक्षा को तत्पर रहता है। सामाजिक संरचना का भवन ही भय की नींव पर रखा गया है। निर्मम सत्ता का कोड़ा हवा में लहराता है और निर्बल की पीठ पर बरसता रहता है। यह कितनी दुखद बात है कि सड़क पर एक व्यक्ति स्वयं की पीठ पर हंटर मारता है और तमाशबीन उसे पैसा देते हैं। इस तरह का तमाशा हमारे अभी भी असभ्य होने का प्रमाण है। कशोर कुमार विलक्षण प्रतिभा के धनी थे और उनके गाने प्रस्तुत करके कुछ लोग आज भी रोजी-रोटी कमा रहे हैं। उनकी प्रासंगिकता और उपयोगिता हमेशा बनी रहेगी। उस तरह का सृजनात्मक सनकीपन खूब फले और फूले तो अवाम का जीवन सरल और आनंदपूर्ण कर सकता है। जीवन की सतत कायम रहने वाली अमावस्या में किशोर के गाए गीतों के जुगनुओं के सहारे अंधकार का भय कम हो सकता है। 'जीवन के सफर में राही, मिलते हैं बिछड़ जाने को और दे जाते हैं यादें तनहाई में तड़पाने को।'