किसानों का अनिवार्य राष्ट्रीय कार्यक्रम / सहजानन्द सरस्वती

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भारत के आर्थिक जीवन का ज्वलंत तथ्य है अपार किसान जनसमूह की अत्यंत विपन्नावस्था एवं दलनकारी गरीबी ─उस जन समूह की जो हमारी जनसंख्या का 80 प्रतिशतहै। फलत: कोई भी राजनीतिक या आर्थिक कार्यक्रम जो इन किसानों की जरूरतों तथा माँगों को भुलाने की धृष्टता करता है किसी भी खयाली दौड़ से राष्ट्रीय कार्यक्रम कहा नहीं जा सकता है। किसी संस्था को, जो भारतीय जनता के प्रतिनिधित्व का दावा करती है, दिवालिए एवं अत्यंत शोषित किसानों-रैयतों, टेनेंटों तथा खेत-मजदूरों-के स्वार्थों को अपने कार्यक्रम में अग्रस्थान देना ही होगा, यदि उसे अपने दावे को सत्य सिध्द करना है।