किसानों के दावे का खरीता / सहजानन्द सरस्वती
परंतु वह संघर्ष और वह युध्द किसानों की खास जरूरतों एवं दावों-माँगों पर आधारित होना चाहिए। इसलिए उसी दृष्टि से किसानों के दावों का निम्नलिखित खरीते स्वीकृत किए जाते हैं। प्रांतीय संयुक्त किसान-सभाओं को हक होगा कि अपनी स्थानीय आवश्यकताओं के दावों को भी इनमें जोड़ दें ─
(1) क्योंकि जमींदारी (यू.पी., उत्कल, बंगाल, बिहार, मद्रास, आसाम) तालुकेदारी (यू. पी., गुजरात), मालगुजारी (मध्य प्रांत), इस्तिमरारदारी (अजमेर,) खोती (दक्षिण), जन्मी (मालाबार), इनामदारी, पबाईदारी, जागीरदारी, आदि वर्तमान प्रथाएँ मध्यवर्तियों (जो खुद खेती नहीं करते) के हाथों में बहुत अधिक जमीनों का स्वामित्व लगान की भारी रकम की वसूली तथा उसके उपभोग का अधिकार देती हैं ─उन्हीं मधर्यवत्तियों के हाथों में जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने भारत में बनाया और पाला-पोसा और इसीलिए ये प्रथाएँ किसानों के लिए अन्यायपूर्ण, अनुचित, भार तथा उत्पीड़क हैं, भूमि की पूरी पैदावार एवं तन्मूलक राष्ट्रीय संपत्ति की वृध्दि के मार्ग में रोड़े हैं और इसी के साथ-साथ पूर्ण आर्थिक तथा राजनीतिक प्रगति में मुल्क के लिए जबर्दस्त बाधा स्वरूप है; साथ ही ये जमींदार वगैरा बहुत ही खतरनाक जोंक हैं जो करोड़ों किसानों से अत्यधिक लगान लेने और उन्हें सताने के साथ-साथ सिंचाई के साधनों को दुरुस्त नहीं रखते तथा खेती में सहायता देने या उपज बढ़ाने के लिए भी कुछ नहीं करते; इसलिए जमींदारी की ये सभी प्रथाएँ तथा जमीन के ऊपर जो भी मध्यवर्ती स्वार्थ हैं सबके सब बिना मुआविजा दिए ही फौरन मिटा दिए जाएँगे, सभी जमीनों पर असली एवं जोतने कोड़नेवालों का अधिकार होगा और उन्हें क्रमिक वृध्दिशील कृषि आयकर देना पड़ेगा।
(2) क्योंकि मालगुजारी वसूली एवं जमीन के बंदोबस्त के वर्तमान तरीके जिन्हें सरकार के रैयतवारी इलाकों में जारी कर रखा है, अत्यंत उत्पीड़क तथा परेशान करनेवाले सिध्द हो चुके हैं, जिनके चलते किसानों की दरिद्रता बढ़ती जा रही है, इसीलिए ये सभी तरीके तथा वसूलियाँ फौरन उठा दी जाएँगी और उनकी जगह क्रमिक वृध्दिशील कृषि आयकर चालू होगा जो पाँच प्राणियों तक के खानदान पर सालाना 1200/- या अधिक आय पर ही लगेगा।
(3) क्योंकि गाँवों में प्रचलित उत्पीड़क ऋणग्रस्तता एवं अत्यधिक सूद के दर के चलते किसान निर्दयतापूर्वक सताए तथा ऋण भार से बहुत ही दबाये जाते हैं; क्योंकि अधिकांश किसानों की जमीनें या तो दूरवर्त्ती (काश्त न करनेवाले) जमींदारों साहूकारों या शहरी शोषक वर्गों के हाथों में चली जा चुकीं या धीरे-धीरे चली जा रही हैं। और क्योंकि सरकार, उसकी जाब्ता दीवानी तथा कचहरियाँ हमेशा सूदखोरों की मददगार बन कर किसानों को तबाह करती आ रही हैं; इसलिए पुराने ऋणों तथा उनके सूदों की जवाबदेही से किसान फौरन पूर्ण मुक्त किए जाएँगे एवं किसानों की चालू जरूरतों के लिए सस्ते दर पर कृषि-ऋण की व्यवस्था सरकार चटपट करेगी।
(4) क्योंकि भूमिहीन किसानों, खेत-मजूरों तथा ऐसे लोगों को, जिनके पास पाँच प्राणियों के परिवार के वास्ते उत्ताम, मध्यम या निकृष्ट जमीनें 10 से लगायत 25 एकड़ से कम है, खेती के लिए जमीन दी जाएगी, जिसमें वे भरसक पंचायती खेती करेंगे; लेकिन जिसे बेच न सकेंगे, और क्योंकि कुल कृषियोग्य एवं बंजर जमीनों का आधा किसानों के पास न हो कर सरकार और जमींदारों के हाथ में है; इसलिए ऐसी सभी जमीनें कृषियोग्य बना कर उक्त किसानों एवं मजूरों को दे दी जाएगी।
(5) मालगुजारी तथा लगान का सभी बकाया रद्द होगा और सेल्स टैक्स फौरन उठाया जाएगा।
(6) सभी अलाभकर जमीनों का लगान, मालगुजारी तथा भावली (उपज के रूप में) लगान खत्म हो जाएगा।
(7) जब तक वर्तमान लगान तथा मालगुजारी की प्रथा का स्थान क्रमिक वृध्दिशील कृषि-आयकर नहीं ले लेता तब तक कोई जमींदार किसी भी दशा में उस रकम से ज्यादा लगान न ले सकेगा जो वैसी ही भूमि के लिए पड़ोसी प्रांतों या जिलों के रैयतवारी किसान सरकार को देते हैं। जो रैयत दखिलकार या जमीन के स्वामी हैं उनके अधीनस्थ किसानों को सुविधा दिलाने, उनके हकों को निश्चित करने तथा उनकी रक्षा के लिए उचित काश्तकारी कानून बनेंगे।
(8) जमींदार, तालुकेदार, ईमानदार, मालगुजार, इस्तिमरारदार, जन्मी, खोत तथा दूसरे मध्यवर्तियों की सीर, खास या बकाश्त जमीनों को दरअसल जोतने वाले सभी रैयतों को उन जमीनों पर खेतों का दवामी (सनातन) हक फौरन दिया जाएगा। हाँ, उन जमीनों को वे हस्तांतरित न कर सकेंगे। यदि इन जमीनों के हक के बारे में तकरार हो तो वह किसानों और रैयतों का ही माना जाएगा।
(9) जमींदारों के सभी रैयतों तथा रैयतवारी के रैयतों को लगान माफी का हक तुरंत मिलेगा अगर फसल मारी जाए। जहाँ जमींदार या मध्यवर्ती पाए जाते हैं सर्वत्र जमीनों को पुन: बंदोबस्ती, लगान या मालगुजारी की सभी तरह की वृध्दि तथा सर्वेसेटलमेंट को सरकार रोक देगी।
(10) जमींदारों तथा पूँजीपतियों की खेती संबंध एवं अन्य आय पर चटपट क्रमिक वृध्दिशील आयकर, मृत्यु कर एवं उत्ताराधिकार कर लगाए जाएँगे।
(11) सभी तरह की सामंती एवं परंपरा प्राप्त वसूलियाँ, बलात्, कम पैसा दे कर या बिना पैसा दिए काम कराना, जिसमें बेगार तथा गैरकानूनी वसूलियाँ भी शामिल हैं, उठा दी जाएँगी और दंडनीय होंगी।
(12) ऋण, लगान या मालगुजारी न दे सकने की दशा में किसान गिरफ्तारी या कैद से फौरन ही बरी किया जाएगा।
(13) सभी कामचलाऊ होल्डिंग (जमीन के तख्ते), पशुशालाएँ, निवास-स्थान, घरेलू चीजें, दुधार एवं अन्य पशु, खेती के औजार तथा साधन अदालती डिग्री या लगान एवं मालगुजारी की वसूली के लिए कुर्क न होंगे-ऐसा ऐलान फौरन कर के उस पर अमल होगा।
(14) सूदखोरों के सूद का दर दो रुपये सैकड़ा सालाना से ज्यादा न होगा और चक्रवृध्दि ब्याज गैर कानूनी होगी। सभी सूदखोरों को लाइसेन्स लेना होगा; सरकार समय-समय पर उनके बही खतों को जाँचेगी और बेकायदगी या जाल होने पर ऐसी सजा दी जाएगी जो आदत छुड़ा दे।
(15) 20 साल या अधिक मुद्दत के लिए सरकारी, सहयोग समितियों के या भूमिबंधकी बैंकों के द्वारा अधिक से अधिक दो रुपए सैकड़ा सालाना सादे सूद पर कर्ज दिया जाएगा और सर्वत्र भूमिबंधकी बैंक जल्द चालू होंगे।
(16) खेती संबंध चीजों की आवाजाही का तथा थर्ड क्लास का किराया घटाया जाएगा। सड़कों एवं नहरों के जरिए आवाजाही का प्रसार शीघ्र होगा।
(17) किरासन तेल, चीनी, तंबाकू, दियासलाई आदि पर जो चुंगी (अप्रत्यक्ष) कर है वे फौरन उठाए जाएँगे। देहातों में कारखाने की बनी चीजों, कपड़े चीनी, नमक, लोहा, सीमेंट कोयला, किरासन तेल आदि के नियंत्रित दाम पर मिलने का पूरा-पूरा तथा उचित प्रबंध होगा।
(18) फौरन ही लिफाफे का दाम दो पैसे और पोस्टकार्ड का एक पैसा कर दिया जाएगा।
(19) विनिमय एवं मुद्रानीति में आवश्यक हेर-फेर कर के या अन्य प्रकार से खेती की पैदाबार का मूल्य एक उचित दर पर पक्का कर के जारी होगा और कायम रखा जाएगा।
(20) किसानों तथा मजूरों को पूर्ण और निरवाध सुरक्षित हक होगा कि खेती-गिरस्ती और जीविका के लिए, चरने को घास, लकड़ी, ईंधन, पत्थर और बालू आदि पहाड़ी एवं जंगली चीजों का उपयोग करें। चराई का कर उठा दिया जाएगा। चराई एवं जंगल की लकड़ियों के बँटवारे का प्रबंध ग्राम पंचायत के हाथ में होगा। जंगल के तालाब, नदियाँ आदि सब किसानों तथा उनके पशुओं के लिए खुली होंगी। जंगली जानवरों से अपनी-अपनी फसलों तथा पशुओं की रक्षा के लिए किसानों को बंदूक आदि रखने का लाइसेन्स होगा। ऐसे जानवरों को मारने पर उन पर केसन चलेगा और अगर इसके लिए कोई जमींदार निजी तौर पर दंड दे तो उसे सजा मिलेगी।
(21) सभी प्रकार की सार्वजनिक जमीनों, चाहे जैसे भी उनका श्रीगणेश हुआ हो, तथा गोचर भूमि का प्रबंध ग्राम पंचायतें करेंगी।
(22) किसी किसान परिवार के पास 50 एकड़ से ज्यादा जमीन न रहने दी जाएगी।
(23) जमींदारों तथा मध्यवर्तियों के पास की 50 एकड़ से ज्यादा जमीन छीन कर भूमिहीन किसानों को दी जाएगी। ऐसे लोगों को भी जिनके पास 5 प्राणियों के परिवार के लिए 10 एकड़ से कम है यह जमीन दी जाएगी, ताकि उनके पास अपनी खेती के लिए 25 एकड़ तक हो जाए।
(24) जमींदारीं से छिनी भूमि का एक भाग सरकारी साहाय्य से सम्मिलित खेती के लिए रख छोड़ा जाएगा जहाँ दीन किसान एवं भूमिहीन मजूर उस खेती के लिए बसाए जाएँगे।
(25) किसानों के हकों को उनकी संघशक्ति के जरिए सुरक्षित रखने के 'किसान संघ' कानून बनेगा।
(26) सभी खेत-मजूरों के लिए भरण पोषण योग्य मजूरी की निश्चित व्यवस्था होगी तथा मजूरों की क्षतिपूर्ति का कानून उनके लिए भी लागू होगा।
(27) खेत-मजूरों, गाँव के गरीबों एवं शिकमी किसानों की अपने वास की भूमि से दूनी पर, जिसमें वासभूमि भी शामिल हो, कायमी हक बिना लगान के होगा।
(28) खानों के इलाकों में किसानों को सतह (ऊपर) की भूमि पर खेती का स्थायी हक होगा और जब तक उन्हें वैसी ही सुविधा अन्यत्र नहीं दी जाती वे वहाँ से हटाए न जाएँगे।
(29) गाँवों की जो कम-से-कम आधी जनसंख्या खेती में आज ही नहीं खप सकती, उद्योग-धंधों में लगाई जाएगी। इसी दृष्टि से राष्ट्र की अधीनता में मुस्तैदी से उद्योग-धंधों के विस्तार की सयिनीति सरकार अपनाएगी जिसमें खयाल रखा जाएगा कि उद्योग धंधों की अनुकूल स्थापना यत्र-तत्र हो और पिछड़े इलाकों का खास खयाल रख जाए।
(30) प्रांतीय एवं केंद्रीय करों का बँटवारा सरकार इस प्रकार करेगी कि अलग-अलग या दोनों को मिला कर तीन चौथाई कर का भार धनिक वर्ग पर हो।खर्च का प्रबंध भी ऐसा होगा कि तीन चौथाई खर्च मजूरों एवं किसानों के हितार्थ हो।
(31) चीनी के संरक्षण कानून से किसान पूर्ण लाभ उठाएँ इसी विचार से गन्ने (ऊख) का कम-से-कम उचित मूल्य निधर्रण सरकार के लिए अनिवार्य होगा जो क्रमिक वृध्दिशील होगा। इसी प्रकार जूट, रुई, नारियल तथा अन्य किराना (व्यापारिक) चीजों के उपजानेवालों के लिए भी लाभकारी मूल्य तय करके सरकार उनकी पूर्ण रक्षा करेगी।
(32) सहकारी तथा सरकारी क्रय-विक्रय का प्रसार सरकार करेगी और इस तरह मध्यवर्तियों के हाथों किसानों का शोषण मिटाएगी।
(33) बनियों के द्वारा सभी तरह की धर्मादा वसूलियाँ दंडनीय होंगी और इस मद में जो भी धन मौजूद हो किसान-सभाओं के हवाले कर दिया जाएगा।
(34) सरकार खेती तथा कल-कारखानों में उत्पन्न वस्तुओं के मूल्य में पारस्परिक सामंजस्य रखेगी।
(35) अकाल से किसानों के रक्षार्थ सरकार सिंचाई एवं जल निकास का प्रसार करेगी, किसानों को आपदाओं से बचाने के लिए अन्य उपाय भी करेगी तथा ऐसे इलाकों के लिए 'जलाशय जीर्णोध्दार निधि' की स्थापना करेगी जिससे ठीक समय पर सिंचाई के साधनों एवं जलशियों की मरम्मत और प्रगति की जाए।
(36) सरकार बाग-बगीचों एवं कम जमीनों में अधिक उत्पादन का प्रसार करेगी तथा किसानों को सस्ते परीक्षित बीज देगी। वह उपयोगी खादें देगी, खेती के नवीनतम प्रकारों का प्रचार करेगी और संयुक्त किसान-सभा के सहयोग तथा परामर्श से अपने खेती और व्यापार संबंधी कामों को चलाएगी।
(37) सरकार किसानों के लिए पशु बीमा, अग्नि बीमा तथा स्वास्थ्य बीमा का उपाय करेगी।
(38) गाँवों के नागरिक कामों के प्रबंध के लिए ग्राम पंचायतों की स्थापना होगी जिनके जिम्मे सिंचाई के पानी एवं जंगल की जरूरी चीजों के प्रबंध का भार रहेगा। गल्ले आदि की वसूली सरकार इन्हीं पंचायतों के सहयोग से करेगी।
(39) शारदा कानून जैसे मामलों में सरकार किसान संस्थाओं को अधिकार देगी कि उन सभी अफसरों तथा विशेषत: सार्वजनिक कार्य विभाग, आबकारी विभाग, माल-महकमे, रेलवे और पुलिस महकमे वालों को, जो किसान मजूरों से घूस लेते हैं, दुरुस्त करें। साथ ही जिन किसान मजदूरों को दबा कर घूस वसूला जाता है उन्हें दंड से मुक्त करेगी।
(40) किसानों के लिए भी दिवालिया कानून मुस्तैदी से पास होगा।
(41) राष्ट्र की सभी चुनी संस्थाओं के लिए बालिगम ताधिकार एवं प्रत्यक्ष, सीधो तथा गुप्त मतदान की व्यवस्था होगी।
(42) भारतीय संघ के सभी किसान विरोधी, मजूर विरोधी तथा जनतंत्र विरोधी कानून, फरमान और नियम-कायदे फौरन हटा दिए जाएँगे और सभी किसान एवं मजूर कैदी, चाहे दंड प्राप्त या नजरबंद हों, फौरन रिहा होंगे।
(43) सभी किसानों की जो जमीनें एवं संपत्तियाँ सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक आंदोलनों में भाग लेने से या उनकी शक्ति के बाहर के कारणों के चलते लगान या मालगुजारी न दे सकने के कारण जब्त कर ली गई हैं उन्हें वापस दे दी जाएँगी।
(44) मैट्रिकुलेशन तक की बच्चे-बच्चियों को शिक्षा फौरन अनिवार्य एवं मुफ्त कर दी जाएगी, ऊँची शिक्षा किसानों के लिए सुलभ बनाई जाएगी, मुस्तैदी से गाँवों में दवा-दारू एवं सफाई की सहायता पहुँचाने का तथा पीने के पानी का काफी प्रबंध होगा और राष्ट्रीयगृह निर्माण संबंधी नीति को सरकार चटपट अपनाएगी।
(45) सरकार किसानों को हर्बा हथियार रखने का अधिकार देगी।
(46) स्थानीय, म्युनिसिपल, व्यवस्थापक तथा अन्य सभी सार्वजनिक संस्थाओं के मेंबरों की नामजदगी फौरन उठा दी जाएगी।
नोट-अंग्रेजों के 'अनेकोनोमिक होल्डिंग' का अर्थ 'अलाभकर भूमि' किया है। जिस भूमि पर किसान परिवार के पूर्ण परिश्रम के बाद भी उसके भरण-पोषण से ज्यादा उपज न हो वह 'अनेकोनोमिक' कही जाती है। विपरीत उसके 'एकोनोमिक' है, जिसे 'लाभकर' कहते हैं।
5 प्राणियों के लिए क्रमश: कम उपजाऊ 10, 15, 20, 25 एकड़ भूमि 'एकोनोमिक' मानी जाती है। 'एकोनोमिक' की दूनी से ज्यादा जमीन किसी के पास न रहने पाएगी। पूर्व की 22, 23 धाराओं का यही आशय है।