किसान-मजूर राज्य क्यों? / सहजानन्द सरस्वती
यह सब कुछ मिटा देना होगा। मौजूदा शासन-प्रणाली के भीतर हमारा लक्ष्य प्राप्त नहीं हो सकता। फिर भी, यदि किसानों को बर्बादी से बचना है तो उन्हें अपने लक्ष्य के लिए लड़ना और उसे प्राप्त करना ही होगा। यदि शासन-प्रणाली उनके रास्ते का रोड़ा बनती है जैसा कि वर्तमान प्रणाली बेशक है, तो इसे मिट जाना ही होगा। इसी तरह किसानों की लड़ाई किसान-मजूर (मजूर-किसान) राज्य की लड़ाई परिणत हो जाती और मिल जाती है। यही कारण है कि संयुक्त किसान-सभा ने किसान-मजूर (मजूर-किसान) राज्य की स्थापना के संबंध में अपने संकल्प की घोषणा की है। इसी ढंग से किसान आंदोलन समाजवादी आंदोलन का प्रधान अंग बन जाता है।
ऐसी परिस्थितियों में यह आवश्यक है कि अब राजनीतिक आंदोलन के भीतर आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्र भी लाए जाएँ और उसे इस देश में इस तरह विकसित किया जाए कि मजूरों और किसानों से इसे शक्ति और स्फूर्ति मिले। उन सभी बाधाओं को मिटाने की भी कोशिश इसे करनी होगी जो देश की संपत्ति के उत्पादक जन समूह की भरपूर भलाई की ओर ले जानेवाले सच्चे और स्थिर साधनों और कामों के रास्ते में आ खड़ी होती हैं। खेत और रोटी के लिए लड़ी जानेवाली लड़ाई का अटूट संबंध किसान-मजूर (मजूर-किसान) राज्य संबंधी उनकी लड़ाई से है।