किसान उपेक्षित दल / सहजानन्द सरस्वती
भारतीय किसानों की भयंकर दशा ऐसी है कि उसे दुहराने की जरूरत नहीं है। जमींदार, ताल्लुकेदार, मालगुजार, इनामदार, जन्मी, खोत, पवाईदार तथा अन्य भूस्वामी एवं मध्यवर्त्ती लोग किसानों को हजारों तरह से सताते रहते हैं। भूस्वामी किसानों के कंधों पर अखरनेवाली मालगुजारी की प्रणाली का जुआ लदा हुआ है। खेत-मजूर अगर कुछ मजूरी पाते भी हैं तो वह पेट भरने के लिए पूरी नहीं होती। उन्हें गुलामों की सी दशा में रहना और काम करना पड़ता है। वे उन कानूनों से प्राय: वंचित ही रखे गए हैं जो उनकी दशा कुछ सुधार सकते थे और जिन्हें व्यवस्थापक सभाएँ इस मुद्दत के दरम्यान पास कर सकती थीं। इसका कारण सिर्फ यही है कि व्यवस्थापकों ने अब तक यह माना ही नहीं है कि किसानों को संतुष्ट करना उनका फर्ज है। यह भी इसीलिए कि इस देश में खुद राष्ट्रीय राजनीतिक आंदोलन ने किसानों की बुनियादी और तात्कालिक समस्याओं से कोई ताल्लुक ही नहीं रखा है।