किसान के शत्रु बनाम गुरुजी / दीनदयाल शर्मा
बच्चे बड़े जिज्ञासु होते हैं। इनके भीतर हर एक चीज को जानने-समझने की ललक होती है। इनके भीतर अच्छे-बुरे सभी कार्यों की नकल की प्रवृति भी होती है, तभी तो इन्हें बंदर के समान कहा गया है। ये जैसा देखते-सुनते हैं। वही प्रकट कर देते हैं। बच्चों में किसी प्रकार का छल-कपट नहीं होता। ये तो साफ सुथरी स्लेट की भांति होते हैं, जैसे आप लिख देते हैं, वे वैसा ही बनने का प्रयास करते हैं।
-एक बार हिन्दी वाले गुरुजी व्याकरण विषय में घटना और दुर्घटना में अंतर बता रहे थे। उन्होंने अनेक उदाहरण दिए। फिर बच्चों से कहा गया कि इसी प्रकार आप भी घटना और दुर्घटना का कोई भी नया उदाहरण दे सकते हो। फिर गुरुजी ने बच्चों से पूछा-'सब बच्चों के समझ में आ गया?'
-'हां जी।' सब बच्चे एक ही सुर में बोले।
-हां तो राजेश, अब तुम बताओ कि घटना और दुर्घटना में क्या अंतर है?
-राजेश खड़ा होते हुए बोला, 'सर... स्कूल में अचानक आग लग जाए तो यह घटना होगी और यदि आग में कोई गुरुजी जल जाए तो उसे दुर्घटना कहेंगे।'
-उत्तर सुनकर कक्षा के सारे बच्चे हंस पड़े। उत्तर सटीक था, लेकिन गुरुजी को गवारा न हुआ। उन्होंने राजेश समेत सबकी ठुकाई की।
-इसी प्रकार एक विद्यालय के बच्चे गुरुजन की बड़ी सेवा करते। कोई दूध लाता। कोई हरी सब्जियां लाता। कोई गाजर लाता तो कोई मूली लेकर आता। गुरुजन भी बच्चों से मौसमानुकूल सब्जियां आदि मंगवाते रहते।
-स्कूल में एक गुरुजी ऐसे भी थे जो रोजाना 10-12 किलो सब्जी वगैरहा मंगवाते और अपनी साइकिल पर लाद कर घर लेकर आते। भगवान जाने खुद खाते थे या पार्ट टाइम रेहड़ी लगाते।
-उसी स्कूल में एक बार सामाजिक विज्ञान के विषय के प्रश्न-पत्र में एक प्रश्न आया कि किसान के किन्ही तीन शत्रुओं के नाम लिखिए, जो खेती को नुकसान पहुंचाते हैं।
-सब बच्चों ने अपने-अपने हिसाब से उत्तर लिखा। एक बच्चे ने सब बच्चों से थोड़ा हट कर उत्तर लिखा। उसने लिखा-'तोता, चूहा और फलां गुरुजी।' कॉपी जांच में गुरुजी का नाम उजागर हुआ।
-बच्चे की सार्वजनिक पिटाई हुई। लेकिन बच्चों से सब्जी मंगवाने में कोई कमी नहीं आई। पिटने वाला लड़का फेल होने के डर से कुछ ज्यादा सब्जियां लाने लगा।
-धीरे-धीरे से गांव के जागरूक नागरिकों ने हैड साब से शिकायत की कि बच्चे पढ़ाई तो करते हैं कम और खेतों में गुरुजनों के लिए सब्जियां तोड़ते रहते हैं।
-बात तो सही थी। लेकिन बच्चों को सब्जी लाने से मना कौन करता! हैड साब भी इसी रोग से पीडि़त थे।
- गुरुजनों द्वारा सब्जियां मंगवाने की बात धीरे-धीरे पूरे गांव में आग की तरह फैल गई। घर-घर में पंचायतें होने लगी कि सारे मास्टर और मैडमें बच्चों से सब्जियां आदि मंगवाते रहते हैं। इस पर रोक लगनी चाहिए।
-आखिर हैड साब ने मन मसोस कर सभी शिक्षकों को मौखिक आदेश पारित किया कि किसी भी बच्चे से स्कूल टाइम में सब्जी आदि न मंगवाई जाए।
-पांच-सात दिन आदेश की पालना की गई। लेकिन बच्चे हैं कि सेवा करने से चूकते ही नहीं हैं। बच्चों ने अब हैड साब को अन्य गुरुजनों से ज्यादा सब्जियां देनी शुरू कर दी है।
-हैड साब सब्जियां आदि लेते हुए उनसे पूछते हैं-'क्यंू बच्चो, ये सब्जी स्कूल टाइम में तो नहीं लेकर आये ना?'
-'नहीं जी! छुट्टी के बाद लाए हैं जी।'
-सब्जियां लाने का काम अब भी जारी है। कई गुरुजन बच्चों से सब्जी लेते हुए कह देते हैं कि 'जो करेगा सेवा, वो ही पाएगा मेवा।'