किस्म किस्म की भूख, ख्वाब में रोटी / जयप्रकाश चौकसे

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किस्म किस्म की भूख, ख्वाब में रोटी
प्रकाशन तिथि :20 जुलाई 2017


चौरानवे वर्षीय दिलीप कुमार लंबे समय से अस्वस्थ हैं परंतु आजकल उन्हें भूख नहीं लगती और वे केवल नींबू पानी पर टिके हैं। भूख नहीं लगना एक भयावह संकेत है। जीवन और मृत्यु के सारे सिलसिले भूख से जुड़े हैं। आर्थिक अभाव के कारण भूखे रहना हमारी व्यवस्था से सवाल है और वैचारिक शून्यता की पहाड़ियों से टकराकर यह सवाल हम तक वापस आ जाता है। भूख पूंजीवादी व्यवस्था की शतरंज का महत्वपूर्ण मोहरा है। यह रची जाती है। सत्यजीत राय की अकाल प्रेरित फिल्म 'अशनि संकेत' में भूख से मरते लोगों की व्यथा-कथा हरे-भरे स्थान पर फिल्मांकित की गई है, केवल यह रेखांकित करने के लिए कि अकाल कोई दैवी प्रकोप नहीं वरन् मनुुष्य के लालच ने रचा था। धरती इतना देती है कि कहीं कोई भूखा नहीं रहे परंतु भूख रचकर ही अपने सेवकों, ज़रखरीद गुलामों की रचना की जा सकती है।

'पाखी' के फरवरी अंक में मुशर्रफ आलम जौकी की कथा 'ग्लेशियर टूट रहे थे' मौजूदा व्यवस्था की क्रूरता का दिल दहलाने वाला विवरण देती है। उनकी रचना हरिशंकर परसाई, शरद जोशी और श्रीलाल शुक्ल की रचनाओं का शिखर होने का एहसास जगाती है। दरअसल, अंतर समय का भी है। हरिशंकर परसाई और उनके समकालीन लोगों के दौर में व्यवस्था आज की तुलना में बहुत मासूम थी, वह अत्याचार का शैशवकाल था और आज असमानता एवं अन्याय आधारित व्यवस्था अपन शिखर पर है। इस कॉलम में जिसे हुक्मरान कहकर संबोधित किया जाता है, मुशर्रफ आलम जौकी उसे जादूगर कहते हैं, जो महिलाओं के पहने हुए गहने, बच्चों की गुल्लक में जमा राशि और अवाम की बैंकों में बचत एक हल्के संकेत से नदारद कर देता है। यह नोटबंदी की आपाधापी पर लिखा श्रेष्ठ व्यंग्य है। उस स्वांग में कालेधन का एक पैसा भी सामने नहीं आया। जादूगर के अंधे भक्त विरोध को कुचल देते हैं। विचारकों की कटी हुई जीभें सड़क पर यूं हरकत करती रहती है जैसे छिपकली मारे जाने का भय होने पर अपनी दुम गिरा देती है। छिपकली की दुम उसके शरीर का वह अंग है, जो दरअसल उसका रक्षा कवच है, उसका ज़िरहबख्तर है। नींद में जादूगर को मारने का सपना देखने वाले भी अपराधी घोषित हो जाते हैं। 'पाखी' में ही प्रकाशित मेरी कथा 'सेल्समैन की व्यथा-कथा' में भी कुछ इसी तरह का अपराध ख्वाब में किया जाता है और इसे रेखांकित करने के लिए अंग्रेजी फिल्म 'ब्लो अप' का विवरण दिया गया है। बहरहाल, सर्वकालिक महान अभिनेता दिलीप कुमार को भूख नहीं लगना उनके असंख्य चाहने वालों के लिए दु:ख की बात है। वे ऐसे कलाकार हैं, जिनके लिए सरहद की दोनों ओर समान सम्मान है। उनकी सेहत को लेकर वहां भी सन्नाटा है, यहां भी खामोशी है। दिलीप कुमार के पिता को यह सख्त नापंसद था कि उनका बेटा अभिनय क्षेत्र में जाए। वे अपने पेशावर के पड़ोसी पृथ्वीराज कपूर से भी कह चुके थे कि पठानोें को भांड नहीं बनना चाहिए। उनके लिए अभिनय महज भांडगिरी थी। दिलीप के पिता उन्हें अब्दुल कलाम आज़ाद के पास ले गए कि वे उन्हें समझाएं परंतु आज़ाद साहब ने केवल इतना कहा कि जो भी काम करो, उसे पूरी मेहनत, लगन, ईमानदारी और भावना की तीव्रता के साथ करो। यही दिलीप कुमार ने ताउम्र किया। उन्होंने 1944 से 1997 तक अभिनय किया। वे भूमिकाओं में इस तरह रम जाते थे कि लगातार त्रासदी में काम करने के बाद उन्हें लंदन जाकर डॉक्टर से सलाह लेनी पड़ी और उसी के अनुसार 'राम और शाम' तथा 'कोहिनूर' व 'आज़ाद' जैसी अलग किस्म की फिल्में अभिनीत कीं। अगर भूख मर जाने के इन दिनों में उनकी बेगम सायरा बानो उन्हें फिल्म 'राम और श्याम' में उनके तंदूरी मुर्ग खाने का दृश्य दिखाएं तो संभव है कि उनकी भूख जाग जाए। दिलीप कुमार ने अभिनय को इबादत की तरह लिया। अपने लंबे कॅरिअर में उन्होंने मात्र साठ या सत्तर फिल्मों में ही अभिनय किया है। प्रसिद्ध फिल्मकार डेविड लीन ने भी उन्हें एक प्रस्ताव दिया था, जिसे उन्होंने मना कर दिया। बाद में ओमार शरीफ ने वह भूमिका अभिनीत की। फिल्म का नाम था 'लारेंस ऑफ अरेबिया'।

दरअसल कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में कलाकार की भूख अलग किस्म की भूख होती है। रांगेय राघव सारी उम्र अधलेटे रहकर लिखते रहे। हिंदी उनकी मातृभाषा भी नहीं थी। यही भूख कभी-कभी व्यक्ति को अध्यात्म कीराह पर भी ले जाती है। संसार में सारे आविष्कार सृजन की भूख से ही संभव हो पाएं। मैडम क्यूरी टीन के शेड से बनाई प्रयोगशाला में दिन-रात परिश्रम करती थीं। एक दिन थकान के मारे वे सो गईं। नींद से जागने पर उन्होंने सोचा कि एक और प्रयास किया जाए। उस समय उन्हें ज्वर था परंतु इस प्रयास में उन्होंने मरक्यूरी की खोज करने में सफलता पाई। सृजन उस रबर की गेंद की तरह है, जिसे जितनी शक्ति से दीवार पर मारो उतने ही वेग से वह आपके पास वापस आ जाती है। हुक्मरान जादूगर हो या दिग्जाल हो, हिटलर हो या मुसोलिनी हो, सभी की पराजय तय है।