किस्सा-ए-रामलाल-श्यामलाल / प्रमोद यादव

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वैसे तो हर शहर, हर प्रदेश, हर मुल्क में रामलाल-श्यामलाल जैसे लोग पाए जाते हैं पर मेरे शहर, मेरे यूनिट में जो रामलाल-श्यामलाल नामक जीव हैं, वे हर मायने में भारी दबंग है। दबंग से मेरा अभिप्राय इनके अद्वितीय कारनामों से है। वैसे तो रामलाल पूरा गऊ है पर जब पीता है तो “गोल्लर” हो जाता है। सामने जो भी आये, पटक देता है। उनके इस खास गुण से बड़े अधिकारी भी ख़ासा परिचित हैं, इसलिए थोड़ी दूरी बनाये ‘मीडियेटर’ के जरिये काम लेते हैं। वैसे रामलाल एक कुशल आर्टिस्ट हैं। उनके बनाये चित्र सचमुच बोलते हैं। उनके आर्ट का सभी लोहा मानते हैं, पर दारु पीने के बाद गरम लोहे-सा हो जाते हैं। कोई उस पर हाथ धरा की हाथ जला। समय-बेसमय पीने के शौकीन हैं। कभी भी, कहीं भी मार लेते हैं। बड़े लोगों की तरह कोई फिक्स टाइम-टेबल नहीं है।

अब श्रीयुत श्यामलालजी से मिलें- हमारे यूनिट के जांबाज वर्कर हैं( ऐसा वे मानते हैं) अपने कार्यस्थल पर बहुत कम पाए जाते हैं(ऐसा उनके सहयोगी कहते हैं) यूनिट के प्रायः सभी कार्यक्रमों में बिना आमंत्रण-निमंत्रण के पाए जाते हैं । ” रहने को घर नहीं, सारा जहाँ हमारा है ” जैसे फलसफे को आत्मसात कर कहते हैं- यूनिट का कार्यक्रम- हमारा अपना कार्यक्रम, भला अपने कार्यक्रम में आमंत्रण-निमंत्रण की क्या आवश्यकता? जलसा हो या उद्घाटन, कव्वाली हो या सम्मलेन, सभी जगह ये पाए जाते हैं । वी। आई। पी। के साथ ( मुफ्त ) फोटो खिंचवाने में इन्हें महारत हासिल है। फोटोग्राफरों के बीच इनकी ख्याति ‘घुसपैठिये ‘जैसी है । आज तक बेचारे समझ नहीं पाए की ये महोदय फ्रेम में कब और कैसे इंट्री मारते हैं। ऎसी जगह घुसते हैं कि उसे “डीलिट “भी नहीं किया जा सकता। फिर दूसरे दिन सुबह – सुबह अखबारों में अपनी तस्वीर तलाशते हैं। कई सालों से यह सिलसिला चला आ रहा है। मेरे शहर के लोग अखबारों में वी। आई। पी। की तस्वीर बाद में देखते हैं, पहले श्यामलाल को खोजते हैं । और श्यामलाल इतने उदार हैं कि मिल ही जाते हैं।

तो किस्सा यूँ है कि एक बार हम तीनों, यूनिट द्वारा आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं में शिरकत कर ईनाम जीतने में सफल रहे। मुझे पांच हजार रुपये नगद के साथ प्रमाणपत्र, रामलाल को तीन हजार रुपये नगद के साथ प्रमाणपत्र और श्यामलाल को एक शील्ड के साथ प्रमाणपत्र मिलना तय हुआ। कंपनी स्थापना दिवस के दिन, हेड-आफिस कोलकाता में यह ईनाम मिलना मुक़र्रर हुआ। हमारी यूनिट को भी दो-तीन एवार्ड मिलना था जिसे ग्रहण करने एक जी। एम्। का भी जाना निश्चित हुआ।

हम तीनों ट्रेन से कोलकाता पहुंचे। जी। एम्। साहब ‘इंडिगो ‘की फ्लाइट से हमसे पहले पहुंचे। पार्क होटल के कन्वेंशनहाल में कार्यक्रम होंना था। उस दिन अच्छी-खासी भीड़ थी वहाँ। पूरा हाल ‘अपटूडेट ‘किस्म के लोगों से भरा पड़ा था। हमारे बैठने की व्यवस्था काफी पीछे की रो में थी। मंच से काफी दूर थे हम। कार्यक्रम शुरू होने में अभी पन्द्रह मिनट बचे थे कि रामलाल लापता । जिस बात का डर था, वही हो गया। अब करते क्या और उसे खोजते कहाँ? मैं और श्यामलाल - जी। एम्। साहब के साथ अपनी निर्धारित सीट पर बैठ गए। कार्यक्रम शुरू हुआ- पुष्प-गुच्छ भेंट, स्वागत-गीत, लेम्प-लाइटिंग, स्वागत-भाषण सब निकल गया पर रामलाल नहीं आया आख़िरकार पुरस्कार-वितरण शुरू हो गया। हम सचेत हो गए। क्या मालूम कब नाम आ जाए। तभी अचानक रामलाल को मंच के पास के गेट से घुसते देखा। मध्धिम रोशनी में वह सीट तलाश रहा था। फिर देखा- वह दूसरी पंक्ति के एक खाली सीट में हौले

से धंस गया। एकबारगी मैं डर गया कि कहीं वह कोई नाटक न क्रियेट कर दे। उसके क्रिएटिविटी से मैं वाकिफ था । पीने के बाद वह ‘सुपरमैन ‘हो जाता था मेरा पूरा ध्यान उसी पर केंद्रित था कि अचानक पुरस्कार लेने के लिए श्यामलाल के नाम की घोषणा हुई। इधर श्यामलाल अपनी बहादुरी के कारनामे जी। एम्। साहब के कान में बुदबुदाने में व्यस्त था । मैंने उसे कोहनी मार इशारा किया। तभी देखा- रामलाल मंच में चढ़कर मुख्या-अतिथि के कर-कमलों से शील्ड और प्रमाणपत्र ग्रहण कर फोटो खिंचा रहा है। इधर श्यामलाल लगभग दौड़ते- दौड़ते मंच की ओर लपका। पहुँचते तक वह ‘एपिसोड ‘खत्म हो चुका था । उद्घोषक किसी और नाम की घोषणा कर रहा था।

श्यामलाल उद्घोषक के पास पहुँच उसे समझाने की कोशिश की कि उसका पुरस्कार कोई और ले गया । उद्घोषक भी ‘तो मैं क्या करूँ ‘वाली मुद्रा में इशारा किया-”जाओ बाद में देखते हैं “बेचारा श्यामलाल मुंह तमतमाए और लटकाए पुनः अपनी सीट पर आकर कातर दृष्टि से मेरी ओर देखा-जैसे कह रहा हो- पहली बार तो व्यक्तिगत पुरस्कार मिला, उसे भी वो नालायक ले गया, अब प्रेस में क्या छपवाऊंगा? मैंने इशारा किया-”शांत रहो। कुछ करते हैं। “

पांच मिनट बाद रामलाल के नाम की घोषणा हुई। पुनः रामलाल फुर्ती से चढा और पुरस्कार ग्रहण कर फोटो खिंचाया। फिर यूनिट-अवार्ड के लिए जी। एम्। के नाम की घोषणा हुई। हम तीनों मंच तक पहुंचे नहीं कि रामलाल पहले ही चढ गया और जी। एम्। के बगल में खड़े हो, शील्ड पकड़ फोटो खिंचाया। यूनिट को तीन अवार्ड मिले- तीनों बार रामलाल ने अपने फुरतीलेपन का सबूत दिया। कार्यक्रम समाप्त हुआ तो रामलाल ने राहत की साँस ली जैसे उसी ने सब कुछ निपटाया हो। इधर श्यामलाल का गुस्सा सातवें आसमान पर था । रामलाल को गाली पे गाली दिए जा रहा था और मुझसे कुछ करने की गुजारिश कर रहा था। मैंने रामलाल को चमकाया- “इसके नाम का पुरस्कार लेने तू क्यों चढ गया? “तो जवाब मिला- ‘मुझे लगा कि मुझे पुकारा गया इसलिए चला गया “मैंने कहा- “अच्छा ठीक है, एक बार जब तुमने ले लिया तो दोबारा क्यों गया? ‘उसका उत्तरथा- “मेरा नाम पुकारा गया तो मैं क्यों न जाता? “उसके जवाब से मेरा दिमाग गरम होने लगा। मैंने कहा- “ठीक है। अब चल। इसका पुरस्कार इसे सौप दे । ” वह कुछ नकारात्मक मुद्रा में दिखा । मैंने उसे ‘आप्शन ‘दिया- “अच्छा। शील्ड तू रख ले । अपना वाला पुरस्कार –तीन हजार रुपये इसे दे दे “इतना कहना भर था कि उसने फुर्ती से शील्ड रामलाल को सौंप दी ।

मैंने श्यामलाल को समझाया कि मुख्य-अतिथि से बात करता हूँ, तुम कहीं मत जाना, यहीं रहना। अवसर देखकर मुख्य-अतिथि को किस्सा-ए रामलाल- श्यामलाल समझाया, वे तुरंत समझ गए, बोले- “हाँ । हाँ ले आइये उन्हें। हम तो यहाँ आये ही हैं इसी काम के लिए “जब श्यामलाल को लेकर अतिथि के पास पहुंचा तो वहाँ फोटोग्राफर को गायब पाया मुख्य- अतिथि से माफी माँगते अविलम्ब फोटोग्राफर लाने की बात कहते बाहर गेट की तरफ लपका। सौभाग्य से वह फोटो-सेशन करते दिख गया। उसे माजरा समझाया कि जल्दी चलो नहीं तो चीफ- गेस्ट चला जायेगा। मुझे डर था कि कहीं चीफ- गेस्ट चला गया तो श्यामलाल ‘ऊपर’ न चला जाये। फोटोग्राफर मिनटों में पहुँच गया। येन-केन-प्रकारेण अब सब कुछ नार्मल था। मैं भी नार्मल और श्यामलाल भी नार्मल । फोटोग्राफर कैमरा लिए श्यामलाल को पोज कराकर ‘रेडी ‘बोला ही था कि अचानक फ्रेम के अंदर रामलाल घुस गया। मुख्य- अतिथि और श्यामलाल के बीच शील्ड के पीछे खड़ा ही हुआ कि ‘क्लिक ‘हो गया मुख्य- अतिथि ‘जयहिंद ‘बोल चले गए। फोटोग्राफर भी खिसक गया।

मैं और श्यामलाल एक-दूसरे को तकते स्तब्ध खड़े रहे और सामने “हँसता हुआ नुरानी चेहरा “लिए रामलाल शील्ड थामे मुस्कुराता रहा। दो मिनट बाद ही मैं नार्मल हो गया और मन ही मन हंसा कि श्यामलाल जैसे घुसपैठिये को उसने एक बार में ही छठी का दूध याद करा दिया । सौ सुनार की तो एक लोहार की।

आज भी श्यामलाल इस घटना को याद कर तमतमा जाता है। और रामलाल है कि आज तलक नहीं समझ सका कि श्यामलाल को अलबर्ट पिंटो की तरह गुस्सा क्यों आता है।