कीमत समय की / अनीता चमोली 'अनु'

Gadya Kosh से
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शैंकी बंदर को सब दादाजी कहकर पुकारते थे। शैंकी दादा मंटी बंदर को समझा रहे थे, “बारिश हो चुकी है। खेतों को जोत डालो। समय पर बीज बो दो। अच्छा रहेगा।” मंटी चुप रहा। मन ही मन बोला, “खेत ही तो जोतने हैं। बीज बोने में कौन सा सप्ताह गुजर जाएगा।” वहीं जंपी बंदर अपने खेतों को जोत चुका था। खेत जोतकर उसने बीज भी बो दिए थे। मंटी अभी खेत जोतने की सोच ही रहा था कि बारिश हो गई। खेत गीले हो गए। वहीं जंपी के बीजों को अंकुरण के लिए अच्छा पानी मिल गया। मंटी ने अपने आप से कहा, “मुझे पहले ही शैंकी दादा की बात मान लेनी चाहिए थी।”

जंपी बंदर को खेती-किसानी करने की सलाह भी शैंकी दादा ने ही दी थी। जंपी ने मेहनत की और संपन्न भी हो गया। वहीं मंटी बंदर नकलची था। उसने जंपी की देखा-देखी खेती करना शुरू कर दिया। मगर मंटी आलसी था। जंपी ने मंटी के खेतों को जोतने और बीज बोने में मदद की। समय गुजरता गया। मंटी अपनी आदत के अनुसार लापरवाह हो गया। उसने खेतों की निगरानी करना छोड़ दिया। शैंकी दादा ने पिफर समझाया, “मंटी। खेतों में जाया करो। फसल कैसी हो रही है। यह लगातार देखना जरूरी है।”

मंटी कुछ न बोला। उसने अपने आप से कहा, “खेत जोत दिए। बीज बो दिए। फसल उग गई है। अब रोजाना खेतों में जाने से फसल पहले थोड़े पक जाएगी।” वहीं जंपी हर दिन खेतों में जाता। गेंहू की फसल को देखता। खरपतवार को अलग कर देता। चूहों और गिलहरी से फसल को बचाता। खेतों के चारों ओर कांटेदार बाड़ लगाता ताकि उसकी फसल को कोई नुकसान न पहुँचें।

समय बीतता गया। पफसल पक चुकी थी। जंपी के खेतों में पफसल लहलहा रही थी। वहीं मंटी के खेतों की फसल देर से बोने के कारण इतनी अच्छी नहीं हुई थी। देखभाल न करने की वजह से चूहों ने आधी फसल बरबाद कर दी थी। फसल में खरपतवार भी बेहूदे ढंग से खड़ी थी। जंपी ने अपनी फसल को काटना शुरू कर दिया। वह धीरे-धीरे फसल काटता और सुरक्षित जगह पर ढेर लगाता जाता। शैंकी दादा ने मंटी से फिर कहा, ”बेटे। फसल पक चुकी है। उसे काट दो।” मंटी कुछ न बोला। वह बुदबुदाया, “फसल काटने में एक दिन ही तो लगना है।” उधर जंपी ने अपनी फसल की मड़ाई भी कर दी थी। अनाज को भंडार में रख दिया था। मंटी अब फसल काटने की सोच ही रहा था कि अचानक बादल घिर आए। बारिश होने लगी। मंटी ने भीगते-भीगते फसल काटी। एक पेड़ के नीचे ढेर लगाया। फसल लगभग बरबाद हो चुकी थी। मंटी थक कर चूर हो गया। उसने सोचा कि अब आराम से फसल की मड़ाई करेगा। रात को फिर मूसलाधर बारिश हुई। उसकी बची-खुची फसल बारिश में बह गई।

मंटी सुबह उठा तो उसने अपना सिर पीट लिया। तभी वहां शैंकी दादा आ गए। मंटी को समझाते हुए बोले,” निराश क्यों होते हो। अच्छे काम की नकल करना बुरा नहीं। मगर अच्छे परिणाम के लिए समय से मेहनत करना बेहद जरूरी है।” मंटी सुबकते हुए बोला,”आप ठीक कहते हैं। मैंने आपकी सलाह नहीं मानी। आलसीपन की वजह से मैं अपनी फसल नहीं बचा पाया। मगर अब मैं समझ गया कि काम को कल पर टालने का क्या परिणाम होता है।” यह कहकर मंटी अपने खेतों की ओर चल पड़ा। वह अगली फसल की तैयारी में पहले से ही जुट गया।